अवस्थापनात्मक सुविधाएँ - परिवहन, विद्युत एवं शासकीय सुविधाएँ

छत्तीसगढ़ परिवहन क्षेत्र
छत्तीसगढ़ परिवहन क्षेत्र

देश के आर्थिक विकास हेतु कृषि तथा उद्योग के समरूप परिवहन साधनों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। कृषि तथा उद्योग के विकास में परिवहन साधन सहायक सिद्ध होते हैं। अतः कहा जाता है कि यदि कृषि और उद्योग राष्ट्ररूपी प्राणी की काया है तो परिवहन एवं संचार उसकी नसें हैं।3 (गुप्ता एवं स्वामी, 1998, 313) परिवहन साधनों का पर्याप्त विकास देश के आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन के परिवर्तन में सहायक है।

छत्तीसगढ़ प्रदेश में सड़क-परिवहन

सन 1943 में भारतीय सड़क कांग्रेस (इण्डियन रोड कांग्रेस) द्वारा निर्मित नागपुर आयोजना में सड़कों को मुख्यतः पाँच श्रेणियों में विभाजित किया गया -

1. राष्ट्रीय राजपथ
2. राज्य के राजपथ,
3. प्रमुख जिला सड़कें,
4. गौण जिला सड़कें,
5. ग्रामीण सड़कें।

छत्तीसगढ़ के प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग

प्रदेश के प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग निम्नांकित हैं (सन 2001 की स्थिति में) :-

(1) राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 - धुलिया-नागपुर-रायपुर-संबलपुर (318.40 किमी)
(2) राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 43 - रायपुर-जगदलपुर-विजयनगरम (313.60 किमी)
(3) राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 16 - भोपालपट्टनम-गीदम-जगदलपुर (217 किमी)
(4) राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 78 - शहडोल-अम्बिकापुर-जशपुर नगर गुमला (350.30 किमी)
(5) राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 200 - रायपुर-बिलासपुर-चांपा-रायगढ़-झारसुगड़ा (313 किमी)
(6) राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 202 - हैदराबाद-वारंगल-भोपालपट्टनम (36 किमी)
(7) राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 12 ए - सिमगा-कवर्धा-चिल्फी-मंडला (126.60 किमी)
(8) राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 216 - सरायपाली-सारंगढ़-रामगढ़ (86.80 किमी)
(9) राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 214 - आरंग-महानदी-खरियार (65.60 किमी)

इस प्रकार प्रदेश में 9 राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई 1827.30 किमी है। उपर्युक्त राष्ट्रीय राजमार्ग के अतिरिक्त 5 नये मार्गों को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित करने हेतु प्रस्ताव केन्द्र शासन को भेजे गए हैं, जो निम्नानुसार है :-

(1) बिलासपुर - अम्बिकापुर-रामानुज मार्ग (333 किमी)
(2) रायगढ़-पत्थलगांव (109.80 किमी)
(3) जगदलपुर - कोंटा मार्ग (174.40 किमी)
(4) बिलासपुर - कटघोरा - अम्बिकापुर - वाराणसी मार्ग (33.90 किमी)
(5) बिलासपुर - मुंगेली -पंड़रिया- पोंडी-कवर्धा - राजनांदगांव-अंतागढ़-बारसूर-गीदम-दंतेवाड़ा-बचेली-जगरगुण्डा-मरियागुड़म मार्ग (684 किमी)

प्रमुख राजमार्ग निम्नांकित हैं :-

1. गरवा (झारखंड) - रामानुजगंज - सेमरसोत - राजपुर - अम्बिकापुर - पत्थलगांव - धरमजयगढ़ - रायगढ़ (219.60 किमी)
2. पिपरी (उत्तर प्रदेश) - धनवार - प्रतापपुर - अम्बिकापुर - कटघोरा - बिलासपुर - रायपुर - अभनपुर - गरियाबंद - मैनपुर - देवभोग - भवनीपट्टम (उड़ीसा) (528.60 किमी)
3.रांची (झारखंड) रामानुजगंज - वाड्रफनगर - सेमरिया - जनकपुर - जयसिंह नगर (मध्य प्रदेश) (188 किमी)
4. डिंडौरी (मध्य प्रदेश) कबीर चबूतरा - पेंड्रा - पसान- कटघोरा - कोरबा करलता - धर्मजयगढ़ - पत्थलगांव - कोनपारा - राउरकेला (उड़ीसा) (240 किमी)
5. शहडोल (मध्य प्रदेश) - पंडरिया - पोण्डी - कवर्धा - राजनांदगांव - अंतागढ़ - गीदम - बैलाडीला - भद्राचलम (आंध्र प्रदेश) (607 किमी)
6. खरियार (उड़ीसा) - मैनपुर - सिहावा - दुधावा - कांकेर - भानुपुर - गढ़चिरौली (महाराष्ट्र) (218 किमी)
7. बिलासपुर - मुंगेली - नवागढ़ - बेमेतरा - धमधा - दुर्ग बालोद - मानपुर मार्ग (2294 किमी)
8. बिलासपुर - कोटा - अचानकपुर कवर्धा - गौरेला - कोटमी - मरवाही - मनेन्द्रगढ़ - केल्हारी - जनकपुर - बुढ़वाही (मध्य प्रदेश) (308 किमी)
9. रायपुर - बलौदाबाजार - कसडोल - शिवरीनारायण - बिर्रा - चांपा - कोरबा (221.30 किमी)
10. कोटा - लोरमी - पंडरिया - मुंगेली - नांदघाट - भाटापारा बलौदा बाजार (182 किमी)
11. जगदलपुर - सुकमा - कोंटा मार्ग (174.40 किमी)
12. पटना - भैयाथान - प्रतापपुर - कंदरी - सामरी - कुसमी - नीलकंठपुर - आमाकोना - जशपुर नगर (उड़ीसा) सीमा तक (236 किमी)
13. पामगढ़ - शिवरीनारायण - बिलाईगढ़ - सारंगढ़ - बरमकेला - चुहेला (उड़ीसा) (131 किमी)
14. पिथौरा - कसडोल - बलौदाबाजार मार्ग (83 किमी)

प्रदेश में प्रमुख जिलामार्ग निम्नानुसार हैं :-

(क) रायपुर जिला :- (1) सारंगढ़ - शिवरीनारायण मार्ग (42.7 किमी), (2) रायपुर-बलौदाबाजार मार्ग (131.2 किमी), (3) नंदघाट - बलौदाबाजार मार्ग (41.9 किमी), (4) बागबहरा - पिथौरा-कसडोल मार्ग (92.8 किमी), (5) राजिम-फिंगेश्वर-महासमुन्द मार्ग (34.4 किमी), (6) धमतरी- तमसी मार्ग (60 किमी), (7) पोती-बिलाईगढ़-बानली-बसना-पदमपुर मार्ग (67.2 किमी), (8) गरियाबंद-छुरा-चोर मार मार्ग (62 किमी), (9) सिहावा-सीतानदी-राजीरा (बोरई) मार्ग (32 किमी), (10) चांपा-दमनीडीह-भाटगांव मार्ग (8.3 किमी), (11) अभनपुर-पाटन मार्ग (12.8 किमी), (12) गुण्डर देही धमतरी मार्ग (9.6 किमी)।

(ख) दुर्ग तथा राजनांदगांव जिला :- (1) धमतरी - बालोद मार्ग (30.4 किमी), (2) दुर्ग - बालोद - कुसुमकसा - मानपुर (131.2 किमी), (3) मण्डई - साले टेकरी मार्ग (32 किमी), (4) दुर्ग-पाटन-अमानपुर मार्ग (40 किमी), (5) खैरागढ़ - डोंगरगढ़ - चिचोला मार्ग (57.8 किमी), (6) नंदघाट-मुंगेली मार्ग (20.4 किमी), (7) बालोद-लोहारा मार्ग (17.9 किमी), (8) दुर्ग-बेमेतरा - नवागढ़ मार्ग (25.6 किमी), (9) राजनांदगांव - चौकी - मानपुर मार्ग (101.3 किमी), (10) कुम्हारी- पथरिया मार्ग (25.6 किमी), (11) धमधा - गण्डई मार्ग (33.6 किमी), (12) खैरागढ़ - लोजी मार्ग (37.1 किमी), (13) दुर्ग-जलबंध-खैरागढ़ मार्ग (46.7 किमी), (14) गुण्डरदेही - धमतरी मार्ग (28.8 किमी), (15) चिचोली - धुरिया - हाथ बंजारी मार्ग (20.7 किमी)

(ग) बिलासपुर जिला :- (1) सारंगढ़ - शिवरीनारायण - पामगढ़ मार्ग (209 किमी), (2) नंदघाट - मुंगेली मार्ग (13.6 किमी), (3) कोटा - लोरमी-पंडरिया मार्ग (66.7 किमी), (4) बिलासपुर-कोटा कैंवची मार्ग (91.8 किमी), (5) कोटमी-परबाई - मनेन्द्रगढ़ मार्ग (45.3 किमी), (6) मरवाही खंडगांव - नागपुर मार्ग (40.6 किमी), (7) चांपा - बम्लीडीह - भाटागांव मार्ग (37.3 किमी), (8) खरसिया - चन्द्रपुर मार्ग (27.4 किमी), (9) चांपा - कोरबा मार्ग (36.8 किमी), (10) बिलासपुर-सीपत-जमनीपाली मार्ग (91.2 किमी) (11) पौंडी-रतनपुर मार्ग (12.8 किमी)

(घ) रायगढ़ जिला :- (1) सारंगढ़ - शिवरीनारायण - पामगढ़ मार्ग (12 किमी), (2) जशपुर नगर - कांपाबेल - लोदराज मार्ग (48 किमी), (3) धरमजयगढ़ - खरसिया मार्ग (61.8 किमी), (4) रायगढ़ - टपरिया मार्ग (25.6 किमी), (5) चंद्रपुर - सरिया-बारगढ़ मार्ग (20.8 किमी), (6) खरसिया- चन्द्रपुर मार्ग (6.4 किमी)

,b>(ड.) बस्तर जिला :-(1) जगदलपुर - केसलूर-कोंटा मार्ग (170.2 किमी), (2) मरोद-सोनपुर - नारायणपुर (171.2 किमी), (3) बीजापुर - अयापल्ली - छितलनार - इन्जारंग मार्ग (107 किमी), (4) शंखनी - कुआकोंडा - सुकमा मार्ग (72 किमी)

(च) सरगुजा जिला :- (1) बैकुण्ठपुर-सोनहट-रायगढ़-बैठन मार्ग (91.2 किमी), (2) बेलबहारा केतहारी-जनकपुर - सीधी मार्ग (132 किमी), (3) राजपुर - कुसूही- महुआदण्ड मार्ग (69.4 किमी), (4) नागपुर - चिरीमिरी-खादगांव मरही मार्ग (49.6 किमी), (5) खादगांव - बैकुण्ठपुर मार्ग (28.8 किमी), (6) पटना - भैयाथान - प्रतापपुर - पोमरपोट मार्ग (88 किमी) (7) जनकपुर - बैतूपुर - गेरुआ अनूपपुर मार्ग (22.4 किमी)

प्रदेश में सड़क मार्गों की कुल लम्बाई 33295.11 किमी है। जिनमें से पक्की सड़कों की कुल लम्बाई 22448.92 किमी तथा कच्ची सड़कों की कुल लम्बाई 10846.19 किमी है। प्रदेश के मैदानी भागों रायपुर, दुर्ग तथा बिलासपुर में सड़कों की लम्बाई क्रमशः 5017.97 किमी, 4559.15 किमी तथा 2984.36 किमी हैं। वहीं प्रदेश के उत्तरी एवं दक्षिणी क्षेत्रों के अन्तर्गत जशपुर एवं कोरिया में कुल सड़क मार्ग की लम्बाई क्रमशः 692.50 किमी तथा 676.10 किमी है। दक्षिणी क्षेत्र के अन्तर्गत कांकेर तथा दंतेवाड़ा में सड़क मार्गों की लम्बाई क्रमशः 1492.10 तथा 1589.73 किमी है। प्रदेश के उत्तर पश्चिम क्षेत्र में स्थित कवर्धा जिले में सड़क की लम्बाई 856.89 किमी है, वहीं कोरबा जिले में यह 102.20 किमी है।

सड़क का घनत्व :-

प्रदेश में जिलेवार सड़कों का घनत्व रायपुर में प्रति 100 किमी क्षेत्र में 15.07 किमी, दुर्ग में 13.69 किमी, सरगुजा में 9.33, बिलासपुर में 8.96 किमी, राजनांदगांव में 8.26 किमी, बस्तर में 6.18, महासमुन्द में 6.03 किमी, दंतेवाड़ा में 4.48 किमी, कोरिया से 9.51 किमी, जांजगीर चांपा में 4.76 किमी, रायगढ़ में 4.72 किमी, कांकेर में 4.48 किमी, धमतरी में 3.53 किमी, कोरबा में 3.31 किमी तथा जशपुर एवं कोरिया जिले में क्रमशः 2.07 किमी है। (वर्ष 2001 की स्थिति में)

स्पष्ट है, कि प्रदेश के मैदानी क्षेत्र मुख्यतः रायपुर एवं दुर्ग में सड़गों का घनत्व प्रदेश के अन्य भागों की अपेक्षा अधिक है। प्रदेश में सड़कों के घनत्व में क्षेत्रीय भिन्नता मिलती है। भौगोलिक विषमता इसका प्रमुख कारण है। प्रदेश के दूरस्थ क्षेत्र जशपुर तथा कोरिया में सड़कों का घनत्व मैदानी क्षेत्रों की तुलना में कम है। ये क्षेत्र मुख्यतः पहाड़ी एवं पठारी क्षेत्र होने के साथ ही आदिवासी बहुल क्षेत्रों हैं। इसी प्रकार रायपुर एवं दुर्ग जिले के दक्षिणी भाग धमतरी एवं कांकेर तथा प्रदेश के उत्तर पश्चिम क्षेत्र के अन्तर्गत कवर्धा जिले में सड़कों का घनत्व (2.57 किमी) अपेक्षाकृत कम है।

स्पष्ट है, कि सड़क मार्गों का विकास मुख्यतः मैदानी क्षेत्रों में हुआ है, जबकि प्रदेश के उत्तर, दक्षिण तथा उत्तर - पश्चिम क्षेत्र में सड़क मार्गों का विकास अपर्याप्त है। जबकि इन क्षेत्रों में उपलब्ध खनिज तथा वनोपज इत्यादि संसाधनों के उचित दोहन हेतु यहाँ सड़क मार्गों का पर्याप्त विकास आवश्यक है। इन क्षेत्रों में परिवहन साधनों का अपर्याप्त विकास प्रदेश के औद्योगिक विकास में प्रमुख बाधा है।

रेल परिवहन :-

रेलें परिवहन का व्यापक एवं महत्त्वपूर्ण साधन है। आन्तरिक परिवहन व्यवस्था में महत्त्व की दृष्टि से रेलों का प्रथम स्थान है। औद्योगिक विकास रेल परिवहन के विकास के साथ जुड़ा हुआ है। कोयला, लोहा-इस्पात, सीमेंट, भारी मशीनें, जूट, इंजीनियरिंग, रासायनिक खाद, आदि उद्योगों का विकास रेल परिवहन पर ही निभर है।

छत्तीसगढ़ प्रदेश में दक्षिण-पूर्व रेलवे के अन्तर्गत प्रमुख रेलमार्ग मुम्बई-हावड़ा रेलमार्ग है। यह बड़ी लाइन है, जिसका निर्माण 1890 ई. में हुआ था। इससे जुड़े हुए रेलमार्ग निम्नांकित हैं :-

1. बिलासपुर-कटनी, 2. रायपुर-राजिम, 3. रायपुर-धमतरी, 4. रायपुर वाल्टेयर, 5. चाम्पा-गेवरारोड, 6. भिलाई-दल्लीराजहरा, 7. भिलाई-अहिवारा, 8. अनूपपुर-चिरमिरी, 9. अनूपपुर-विश्रामपुर, 10. बैलाडीला-विशाखापट्टनम। रायपुर धमतरी तथा रायपुर-राजिम को छोड़कर सभी बड़ी लाइनें है। बैलाडीला विशाखापट्टनम रेलमार्ग का निर्माण बैलाडीला की पहाड़ी से मुख्यतः लौह अयस्क निर्यात करने के लिये जापान की सहायता से दण्डकारण्य में निर्मित किया गया पहला रेलमार्ग है जो किरन्दुल (बैलाडीला) से जगदलपुर होता हुआ विशाखापट्टनम तक जाता है।

सड़क परिवहन के अनुरूप ही रेल परिवहन का विकास भी मुख्यतः मैदानी क्षेत्रों में हुआ है तथा प्रदेश के उत्तर, दक्षिण, उत्तर-पूर्व तथा उत्तर-पश्चिम क्षेत्र जो कि मुख्यतः पठारी एवं वनाच्छादित क्षेत्र है, में रेल मार्गों की अल्पता है। प्रदेश के औद्योगिक विकास हेतु सड़क एवं रेल परिवहन का समुचित विकास अत्यन्त आवश्यक है।

वायु परिवहन

वायुसेना की दृष्टि से छत्तीसगढ़ काफी पिछड़ा हुआ है। प्रदेश के विकास के अनुपात में वायुसेवा का विकास नगण्य ही है। छत्तीसगढ़ में 9 विमानतल हैं, पर रायपुर का माना विमानतल व्यावसायिक उड़ानों की दृष्टि से सुविधा सम्पन्न है। 9 विमानतलों में से 3 राष्ट्रीय विमानपत्तन के, 4 लोकनिर्माण विभाग, एक-एक म.प्र. विद्युत मण्डल व भारतीय इस्पात प्राधिकरण के आधिपत्य में है। वर्तमान में रायपुर से दिल्ली, नागपुर व भुवनेश्वर के लिये उड़ानें उपलब्ध हैं।

विद्युत सुविधा

Electricity has a vital role to play in a developing economy. The process of industrialisation, in one from or another, call for a continuing increase in availability of electric power,4 (Wagle and Rao, 1978, Vii)

औद्योगिक विकास हेतु विद्युत की भूमिक महत्त्वपूर्ण है। छत्तीसगढ़ प्रदेश में विद्युत ऊर्जा के विकास हेतु प्राकृतिक संसाधनों के विपुल भण्डार उपलब्ध है। प्रदेश की ऊर्जा उर्वरकता से कोरबा में स्थापित ताप विद्युत गृहों का योगदान उल्लेखनीय है। कोरबा ताप विद्युत गृहों की स्थापना से ही प्रदेश का विद्युत उत्पादक क्षेत्र के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

देश में विकासोन्मुखी ऊर्जा नीति के द्वारा भारतीय विद्युत अधिनियम 1948 के अन्तर्गत विद्युत ऊर्जा के सुनियोजित विकास के लिये राज्य विद्युत मण्डल का गठन किया गया था। 1 नवम्बर सन 2000 को पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के पश्चात छत्तीसगढ़ शासन द्वारा मध्यप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 के भाग सात में धारा 58 की उपधारा 4 के साथ पठित विद्युत (प्रदाय) अधिनियम 1948 (संख्यांक 54) की धारा 5 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 15 नवम्बर 2000 को छत्तीसगढ़ विद्युत बोर्ड का गठन किया गया। छत्तीसगढ़ विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल (छत्तीसगढ़ विद्युत मण्डल) तथा राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम प्रदेश में कार्यरत है। मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल द्वारा कोरबा ताप गृह (पूर्व) में 40 मेगावाट की 4 इकाइयां, तथा 120 मेगावाट की 2 इकाई कुल 400 मेगावाट तथा हसदेव ताप विद्युत ताप गृह कोरबा (पश्चिम) में 210 मेगावाट की 4 इकाइयाँ कुल क्षमता 840 मेगावाट इकाइयाँ कार्यरत है। इसी प्रकार एनटीपीसी इकाई द्वारा 2100 मेगावाट क्षमता का कोरबा सुपर ताप विद्युत गृह संचालित है तथा सीपत (बिलासपुर) में 2000 मेगावाट क्षमता की नई विद्युत इकाई की स्थापना प्रस्तावित है।

छत्तीसगढ़ प्रदेश में महानदी, शिवनाथ, मांद तथा हसदेव नदियाँ प्रमुख जलस्रोत है। इन जलस्रोतों के समुचित दोहन के उद्देश्य से मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल द्वारा ग्राम माचाडोली में मिनीमाता हसदेव बांगो जल विद्युत परियोजना संचालित की जा रही है जिसकी स्थापित क्षमता 120 मेगावाट है। इस प्रकार छत्तीसगढ़ विद्युत ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र के क्षेत्र में अग्रणी है तथा औद्योगिक विकास हेतु प्रदेश में पर्याप्त ऊर्जा उपलब्ध है।

छत्तीसगढ़ प्रदेश में विद्युतीकरण

छत्तीसगढ़ प्रदेश के कुल 19,720 ग्रामों में से 17,982 ग्राम अर्थात 91.81 प्रतिशत ग्राम विद्युतीकृत हो चुके हैं। विभिन्न जिलों में विद्युतीकृत ग्रामों की संख्या निम्नांकित है :-

 

तालिका 3.1 छत्तीसगढ़ प्रदेश : जिलेवार विद्युतीकृत ग्रामों की संख्या वर्ष 1997-98

क्रमांक

जिलों के नाम

कुल ग्रामों की संख्या

कुल ग्रामों से विद्युतीकृत ग्राम

विद्युतीकृत ग्रामों का प्रतिशत

01

रायपुर

2863

2647

94.41

02

दुर्ग

1803

1763

98.06

03

राजनांदगांव

2273

2113

92.96

04

बिलासपुर

3501

3294

94.09

05

रायगढ़

2196

2008

91.44

06

सरगुजा

2414

2152

89.15

07.

बस्तर

3670

3000

81.74

 

योग

19720

17982

91.18

स्रोत : जिला सांख्यिकी पुस्तिका

 

कोरबा क्षेत्र में स्थापित ताप विद्युत संयंत्र

औद्योगीकरण की प्रक्रिया प्राकृतिक संसाधनं पर आधारित होती है। छत्तीसगढ़ में कोरबा एक ऐसा ही प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र है जहाँ उद्योगों का विकास मुख्यतः प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित है। कोरबा की खनिज संसाधनों की सम्पन्नता ही इस क्षेत्र में ताप विद्युत गृहों की स्थापना के लिये उपयुक्त बन गई है।

कोरबा मुख्यतः कोयले से सम्पन्न क्षेत्र है जहाँ निचल गोण्डवाना क्षेत्र में 98500.8 लाख टन संचित भण्डार है। यहाँ सन 1956 में नेशनल कोल-डवलपमेंट कॉरपोरेशन (जिसे वर्तमान में साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड के नाम से जाना जाता है) द्वारा कोयले का उत्खनन प्रारम्भ किया गया था। इस प्रकार वृहद मात्रा में कोयले की प्राप्ति इस क्षेत्र में ताप विद्युत गृहों की स्थापना की आधारशिला है। विद्युत ऊर्जा की आवश्यकता समस्त उद्योगों की प्राथमिक आवश्यकता है। कोरबा में स्थापित ताप विद्युत संयंत्रों ने धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ प्रदेश को भारत के विद्युत उत्पादक मानचित्र में महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है।

छत्तीसगढ़ प्रदेश में वर्तमान विद्युत उत्पादन क्षमता 3730 मेगावाट है। वर्ष 1998-99 में प्रदेश में कुल 25783.89 मिलियन यूनिट विद्युत का उत्पादन हुआ।

कोरबा में स्थापित संयंत्र मुख्यतः मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल (वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मण्डल) तथा नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन के अन्तर्गत संचालित है जो निम्नांकित है :-

01. मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल :-

1. मध्यप्रदेश ताप विद्युत मण्डल कोरबा (पूर्व) ताप विद्युत गृह
2. हसदेव ताप विद्युत गृह कोरबा पश्चिम
3. मिनीमाता बांगो (हसदेव बांगो) जल विद्युत परियोजना

02. नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन :

1. कोरबा सुपर थर्मल पावर स्टेशन
2. बालको केप्टिव पावर प्लांट

मध्यप्रदेश ताप विद्युत मण्डल कोरबा (पूर्व) ताप विद्युत गृह

विद्युत ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में कोरबा में स्थापित मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल के कोरबा (पूर्व) ताप विद्युत गृहों का विशिष्ट स्थान रहा है। मध्यप्रदेश का प्रथम वृहद विद्युतगृह होने का श्रेय भी इन्हीं ताप विद्युत गृह को प्राप्त है।

कोरबा ताप विद्युत गृह (पूर्व) की स्थापना मुख्यतः कोरबा क्षेत्र में वृहद मात्रा में कोयले की प्राप्ति तथा भिलाई इस्पात संयंत्र को विद्युत आपूर्ति के उद्देश्य से की गई थी। यह संयंत्र हसदेव नदी तथा डेंगुर नाले के संगम स्थल पर नदी के बाये तट पर 50 हेक्टेयर क्षेत्र में स्थित है।

परिचालन तिथियाँ

1. ताप विद्युत गृह क्रमांक एक की आधारशिला 25 जून 1957 को तत्कालीन मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश शासन, डॉ. कैलाशनाथ काटजू द्वारा रखी गई थी। सन 1989 में इस 100 मेगावाट की क्षमता वाले ताप विद्युत संयंत्र को निर्धारित आयु पूर्ण करने पर मण्डल द्वारा सेवानिवृत्त घोषित कर दिया गया है।
2. ताप विद्युत गृह क्रमांक दो का निर्माण भारत सरकार एवं सोवियत संघ के संयुक्त प्रयास से किया गया था। जिसमें इकाई परिचाल की तिथियाँ निम्नांकित है :-

प्रथम इकाई - 5 सितम्बर 1966
दि्वितीय इकाई - 16 मई 1967
तृतीय इकाई - 23 मार्च 1968
चतुर्थ इकाई - 31 अक्टूबर 1968

1. ताप विद्युत गृह क्रमांक तीन में 120 मेगावाट की दो इकाइयाँ कार्यरत है जो भारत में रूपांकित एवं निर्मित की गई है जिनकी परिचालन तिथियाँ निम्नांकित है :-

प्रथम इकाई - 27 अप्रैल 1976,
द्वितीय इकाई - 5 अप्रैल 1981

स्थापित क्षमता एवं पूँजी लागत

 

स्थापित उत्पादन क्षमता

पूँजी लागत

विद्युत गृह क्रमांक एक

3 X 30 = 90 मेगावाट

1 X 10 = 10 मेगावाट

8.89 करोड़ रु.

-

विद्युत गृह क्रमांक दो

4 X 50 = 200 मेगावाट

25.47 करोड़ रु.

विद्युत गृह क्रमांक तीन

2 X 120 = 240 मेगावाट

63.14 करोड़ रु.

कुल क्षमता

540 मेगावाट

97.5 करोड़ रु.

वर्तमान क्षमता

विद्युत गृह क्रमांक एक को 16 जून 1989 को तकनीकी खराबी के कारण बन्द कर दिया तथा विद्युत गृह क्रमांक दो को 1 जनवरी 1990 से केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण, नई दिल्ली ने 50 मेगावाट इकाई क्षमता को 40 मेगावाट कर दिया। इस तरह वर्तमान क्षमता इस प्रकार है 

विद्युत गृह क्रमांक दो

4 X 40 = 160 मेगावाट

विद्युत गृह क्रमांक तीन

2 X 120 = 240 मेगावाट

कुल क्षमता

= 400 मेगावाट

इस प्रकार संयंत्र की वर्तमान उत्पादन क्षमता 400 मेगावाट है।

प्रमुख कच्चे पदार्थ एवं आपूर्ति के स्रोत

1. कोयला :- विद्युत उत्पादन में कोयले का विशिष्ट महत्त्व है। संयंत्र के लिये कोयले की आवश्यकता 7000 टन प्रतिदिन है। कोयले की आपूर्ति मुख्यतः मानिकपुर, गेवरा तथा कुसमुन्डा खदान द्वारा की जाती है। कोयले का परिवहन मानकिपुर खदान से स्वतः की रेल परिवहन व्यवस्था द्वारा तथा आवश्यकतानुसार सड़क परिवहन द्वारा गेवरा खदान से भारतीय रेल परिवहन द्वारा आवश्यकतानुसार तथा कुसमुन्डा खदान से रज्जू मार्ग द्वारा किया जाता है।

2. ईंधन तेल :- ताप विद्युत गृहों में मुख्यतः कोयले को जलाने के लिये ईंधन तेल का उपयोग किया जाता है जिसकी आपूर्ति आसाम से की जाती है।

2. जल :- जल आवश्यकता की पूर्ति हसदेव नदी के बायें तट नहर से की जाती है।

उत्पादन प्रतिरूप :- संयंत्र द्वारा उत्पादित विद्युत की मात्रा निम्नांकित है :-

तालिका 3.2 कोरबा (पूर्व) ताप विद्युत संयंत्र द्वारा विद्युत उत्पादन वर्ष 1990-91 से 1999-2000

क्रमांक

वर्ष

विद्युत उत्पादन (मिलियन यूनिट में)

1.

1990-91

2156.89

2.

1991-92

1473.96

3.

1992-93

1592.21

4.

1993-94

1735.94

5.

1994-95

1900.06

6.

1995-96

2132.15

7.

1996-97

2372.18

8.

1997-98

2476.18

9.

1998-99

1797.14

10.

1999-2000

2340.67

 

योग

19977.32

स्रोत : कार्यालय, मध्य प्रदेश वि.म. कोरबा (पूर्व) ताप विद्युत गृह, कोरबा

स्पष्ट है कि पिछले 10 वर्षों में संयंत्र द्वारा 1977.32 मिलियन यूनिट विद्युत का उत्पादन किया गया। पिछले 10 वर्षों में सर्वाधिक उत्पादन वर्ष 1997-98 में 2476.12 मिलियन यूनिट रहा।

संयंत्र का पुनरूद्धार :- कोरबा ताप विद्युत गृह की कार्यक्षमता एवं कार्यावधि में अभिवृद्धि के लिये मण्डल द्वारा संयंत्र के पुनरूद्धार का निर्णय लिया गया है। तदनुसार दो राष्ट्रीय कम्पनियों के माध्यम से पुनरुद्धार का कार्य पूर्ण कराया जाना निश्चित किया गया है। विद्युत गृह क्रमांक दो की सभी चारों इकाइयों मेसर्स ए.बी.बी. एवं एल्सटाम पावर इण्डिया लिमिटेड द्वारा 240 करोड़ रुपये में तथा विद्युत गृह क्रमांक तीन की दोनों इकाइयों मेसर्स बी.एस.ई.एल. कल्सोटेरियम द्वारा 134 करोड़ रुपयों में सम्पादित कराई जा रही है।

कर्मचारियों की संख्या तथा प्रदान की गई सुविधाएँ :- संयंत्र में वर्तमान में 2500 कर्मचारी कार्यरत है जिनकी श्रेणीवार संख्या निम्नांकित है :-

प्रथम श्रेणी

38

द्वितीय श्रेणी

101

तृतीय श्रेणी

1705

चतुर्थ श्रेणी

575

योग

2500

संयंत्र में कार्यरत कर्मचारियों हेतु 2508 आवास निर्मित किये गये हैं। मनोरंजन हेतु क्लब की सुविधा उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त एक श्रम कल्याण केन्द्र भी स्थापित किया गया है। अतिथि गृह, हॉस्टल, शाला तथा 20 शैय्या वाले अस्पताल की सुविधा भी प्रबन्धन द्वारा उपलब्ध कराई गई है।

पर्यावरण-प्रदूषण पर नियन्त्रण हेतु किये गए उपाय :-

ताप विद्युत गृहों से विद्युत उत्पादन में कोयले का विशिष्ट महत्त्व है। संयंत्र में प्रतिदिन 7000 मी. टन कोयले की खपत होती है। कोयले के जलने के पश्चात प्रतिदिन 3000 मीटर टन राखड़ अवशिष्ट के रूप में प्राप्त होती है, जिसमें अस्सी प्रतिशत मात्रा उड़नराख की होती है। वायुमण्डल में उड़नराख का उत्सर्जन कम से कम हो, इस हेतु सभी बायलरों में नये इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर (ई.एस.पी.) लगाये गये हैं, जिनसे राखड़ का उत्सर्जन निर्धारित मानकों के अनुरूप किया जा सके। इस कार्य हेतु संयंत्र द्वारा 30 करोड़ रुपये व्यय किये गये हैं। कोयला परिवहन करने वाले वाहनों से होने वाले वायु-प्रदूषण को नियन्त्रित करने हेतु कोयला परिवहन के लिये रज्जुमार्ग (बायकेवल रोपवे) की स्थापना की गई है, जिसकी क्षमता 250 मी. टन प्रति घंटा है। कोरबा पूर्व स्थित अस्थाई राखड़ बाँध जो अक्टूबर 1992 में बंद कर दिया गया था उसके अधिकांश भाग पर वृक्षारोपण किया जा चुका है एवं शेषभाग से राखड़ उपयोगिता के प्रोत्साहन हेतु शुष्क राखड़ की आपूर्ति सीमेंट उद्योग को की जाती है। स्थाई राखड़ बाँध रिसदा जिसे अक्टूबर 1992 में संचालन में लिया गया था, उसकी सतह को हमेशा आर्द्र रखने का प्रयास किया जाता है, जिससे वायु प्रदूषण की सम्भावनाए नगण्य हो।

जल प्रदूषण व्यवस्था को प्रभावी बनाने हेतु विद्युत गृहों में स्थापित निकास नालियों में अवरोधक एवं ऑइल केचर टैंक स्थापित किए गए हैं ताकि किसी भी प्रकार के तैलीय अथवा अपशिष्ट पदार्थ आदि के रिसाव से जल को प्रदूषित होने से बचाया जा सके। स्थाई राखड़ बाँध रिसदा में निस्सारित जल की गुणवत्ता को निर्धारित मानकों के अनुरूप रखने हेतु कार्य योजना का विवरण निम्नलिखित है :-

1. राखड़ की स्लरी का वेग कम करने हेतु राखड़ के अस्थाई अवरोधकों का निर्माण किया गया है, जिससे राखड़ को चारों ओर फैलाया जा सके। इस प्रक्रिया से राखड़ कणों के शीघ्र बैठने में मदद मिलती है साथ ही साथ राखड़ का उत्सर्जन वायुमण्डल में नहीं हो पाता।

2. राखड़ के कणों के शीघ्र बैठाने की प्रक्रिया के अन्तर्गत विभिन्न प्रखण्डों में जलीय वनस्पतियों की प्रजातियों का रोपण किया गया है।

3. निस्सारित शाफ्टों की ओर जाने वाली राखड़ की स्लरी से राखड़ के कण को कम करने हेतु राखड़ से भरी बोरियों के 1-1 मीटर ऊँचे अवरोधक बनाये जा रहे हैं ताकि स्लरी का वेग कम किया जा सके एवं राखड़ कणों को शीघ्र बैठने में मदद मिल सके।

4. छनित जल को आगे शाफ्टों के चारों ओर लगी सीमेंट कंक्रीट की डेम बीमों एवं विशिष्ट प्रकार के निर्मित ज्योटेक्स फिल्टर से गुजारा जाता है।

5. यह छनित जल आगे जाकर पुनः शाफ्टों के अन्दर स्थित 800 मिमी. व्यास के छिद्रमय लोहे के पाइपों के चारों ओर भरी हुई गिट्टियों के फिल्टर मीडिया से निष्कासित होकर आगे बढ़ता है।

6. इन प्रक्रियाओं से गुजरने के पश्चात छनित जल सीमेंट निर्मित ह्यूम पाइपों के माध्यम से निस्तारित बिन्दु तक पहुँचता है जो डेंगुर नाले के समीप स्थित है। इस निस्तारित जल का रंग प्रायः दूधिया होता है।

राखड़ बाँधों की वर्तमान स्थिति

1. आई.टी.आई. राखड़ बाँध :- यह बाँध रामपुर के समीप स्थित है, जिसका क्षेत्रफल 135.60 एकड़ है। इसे जून 1966 से दिसम्बर 1989 तक संचालन में रखा गया था। इसके पश्चात इसे बन्द कर 150 मिमी. की मोटी मिट्टी की परत से ढक दिया गया एवं उस पर सघन वृक्षारोपण किया गया।

2. रिसदी राखड़ बाँध :- यह बाँध रिसदी ग्राम के समीप स्थित है, जिसका क्षेत्रफल 33.36 एकड़ है। इस 8 जनवरी 1990 से अक्टूबर 1992 तक संचालन में रखा गया था, अब इसका उपयोग नहीं किया जाता। ग्रीष्म ऋतु में इसकी सतह को गीला रखा जाता है तथा यहाँ से शुष्क राखड़ की सप्लाई सीमेंट कारखानों को की जाती है। इसके काफी भाग पर वृक्षारोपण किया जा चुका है, भविष्य में इस पर मिट्टी की परत बिछाना प्रस्तावित है।

3. रिसदा राखड़ बाँध :- यह बाँध रिसदा एवं भदरापारा ग्रामों के समीप स्थित है। इसका क्षेत्रफल 248.73 एकड़ है। इसे अक्टूबर 1992 से संचालन में रखा गया है। यह बाँध तीन हिस्सों में विभक्त है।

4. जलाशय क्रमांक एक :- उक्त जलाशय को 306.5 मीटर तक भरा जा चुका है। इसके उपरान्त इसकी क्षमता 309.5 मीटर तक बढ़ाई जा चुकी है। जिसमें राखड़ निक्षेपित करने का कार्य जारी है, जिसकी क्षमता जून 2000 तक समाप्त होने की सम्भावना है।

5. जलाशय क्रमांक दो :- उक्त जलाशय 3030.5 मीटर तक भरा जा चुका है एवं उसकी ऊँचाई 3.00 मीटर बढ़ाया जाना प्रस्तावित है।

6. जलाशय क्रमांक तीन :- उक्त जलाशय अपनी पूर्व क्षमता तक भरा जा चुका है एवं मिट्टी की परत बिछाकर इसे बन्द कर दिया गया है।

7. रिसदी राखड़ बाँध :- यह बाँध 301.67 मीटर तक भरा जा चुका है और अभी केवल एक विद्युत उत्पादन केन्द्र की राखड़ निक्षेपित की जा रही है। इसकी ऊँचाई 307.17 मीटर तक बढ़ाई जाना प्रस्तावित है।

8. नवीन राखड़ बाँध :-,/b> निकटवर्ती ग्राम पाढीमार में शासन की स्वीकृति प्राप्त होते ही इसका निर्माण कार्य शीघ्र ही प्रारम्भ होने की सम्भावना है। प्रथम चरण में इसकी क्षमता 21 माह के लिये पर्याप्त होगी।

इसके अतिरिक्त बेलगिरी नाले के निकट एवं लालघाट के समीप भी राखड़ बाँध के लिये उपयुक्त भूमि की पहचान की गई है एवं औपचारिक अनुमति हेतु विभिन्न विभागों को आवेदन किया गया है। साथ ही 90 हेक्टेयर निजी भूमि का ग्राम चाकामार का सर्वेक्षण कार्य किया जा रहा है।

उड़न राख की उपयोगिता :-

1. संयंत्र द्वारा उड़न राख की उपयोगिता के अन्तर्गत मण्डल के अस्थायी राखड़ बाँध से शुष्क राखड़ की आपूर्ति सीमेंट फैक्ट्रियों को की जाती है।
2. उड़न राख की ईंटों एवं टाइल्स बनाने का कार्य भी किया जा रहा है। उनका उपयोग बाँधों की मेड़ों की बाहरी सतह पर किया जाता है, जिससे वर्षा के पानी से मिट्टी का कटाव रुक सके एवं बाँध को मजबूती प्रदान हो।

3. राखड़ बाँध आई.टी.आई. में राखड़ के ऊपर फूल, साग-सब्ज एवं अन्य फसलों के उगाने के प्रयोग भी किए गए थे जिसमें आशातीत सफलताएँ प्राप्त हुई थी। इसका उद्देश्य पड़त भूमि को उपयोगी प्रदर्शित कर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करना था। इन प्रयोगों से यह अनुभव प्राप्त हुआ कि राखड़ में प्रतिरोधात्मक गुण भी होता है जो अंगमारी (बिल्टिंग) जैसी पौधों की बीमारियों को रोकने में सक्षम है।

4. उड़न राख से बाँध की ऊँचाई बढ़ाने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है, जिससे उर्वरक भूमि से ली जाने वाली मिट्टी की बचत होगी एवं भरे हुए राखड़ बाँधों क्षमता में वृद्धि होगी।

वृक्षारोपण :- वायु-प्रदूषण को नियन्त्रित करने हेतु वृक्षारोपण का कार्य विगत दस वर्षों से किया जा रहा है। वृक्षारोपण का कार्य ना केवल राखड़ बाँधों के समीप किया गया है वरन जलीय प्रजातियों को राखड़ बाँध के भीतर भी लगाया गया है। इसके अतिरिक्त आवासीय परिसरों, सड़कों के किनारे, पावर हाउस परिसर के भीतर, कोहडिया गाँव के समीप, रज्जूमार्ग के नीचे भी वृक्षारोपण किया गया है। उद्यानिकी सिविल प्रकोष्ठ द्वारा आवासीय परिसरों में स्थित उद्यानों की शोभा बढ़ाने हेतु फल, फूलों एवं अन्य पौधों के प्रदाय किये जाने का कार्य एवं उद्यानों का विकास किया जा रहा है। वर्ष 1999-2000 में संयंत्र द्वारा 18000 वर्गमीटर के क्षेत्र में 15000 पौधों का रोपण किया गया।

राखड़ बाँधों के आस-पास स्थित ग्रामों में उपलब्ध कराई गई जनकल्याणकारी योजनाएँ :-

पाँच नलकूप का खनन
तालाब खनन एवं घाटों का निर्माण
एक कुएँ का निर्माण
भदरापारा में डेंगुरनाले तक पहुँच मार्ग का निर्माण हसदेव ताप विद्युत गृह कोरबा (पश्चिम)

मध्य प्रदेश वि.मं. द्वारा स्थापित हसदेव ताप विद्युत गृह हसदेव नदी के पश्चिमी तट पर दर्री ग्राम के समीप स्थापित है। 650 करोड़ रुपयों की लागत से स्थापित इस संयंत्र की उत्पादन क्षमता 840 मेगावाट है। इस संयंत्र में 210 मेगावाट की 4 इकाइयाँ स्थापित है। विभिन्न इकाइयों की उत्पादन क्षमता एवं प्रचलन तिथियाँ निम्नांकित है :-

क्रमांक

उत्पादन क्षमता

प्रचालन तिथियाँ

इकाई 1

210 मेगावाट

21 अगस्त 1983

इकाई 2

210 मेगावाट

31 मार्च 1984

इकाई 3

210 मेगावाट

28 मार्च 1985

इकाई 4

210 मेगावाट

13 मार्च 1986

कुल क्षमता

840 मेगावाट

 

भारतीय तकनीक पर आधारित इस संयंत्र की चारों इकाइयों के टरबाइन, इलेक्ट्रिकल-जनरेटर भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स द्वारा निर्मित है।

प्रमुख कच्चे पदार्थ एवं आपूर्ति के स्रोत :-

कोयला :- संयंत्र के लिये प्रतिदिन 14000 टन कोयले की आवश्यकता होती है जिसकी आपूर्ति एस.ई.सी.एल. द्वारा दक्षिण पूर्वी कोयला प्रक्षेत्र की कुसमुन्डा एवं गेवरा खदानों से एशिया के सबसे लम्बे (14 किमी) कल्वेयर बेल्ट द्वारा की जाती है।

जल :- जलापूर्ति हसदेव नदी पर निर्मित बराज से आवश्यकतानुसार की जाती है।

उत्पादन प्रतिरूप :- संयंत्र द्वारा उत्पादित विद्युत की मात्रा निम्नांकित है -

तालिका 3.3

हसदेव ताप विद्युत गृह कोरबा (पश्चिम) : विद्युत उत्पादन

वर्ष 1990-91 से 1998-99

क्रमांक

वर्ष

विद्युत उत्पादन (मिलियन यूनिट में)

1.

1990-91

5060.96

2.

1991-92

4649.40

3.

1992-93

4953.41

4.

1993-94

4940.03

5.

1994-95

4454.08

6.

1995-96

4880.78

7.

1996-97

4913.06

8.

1997-98

5031.22

9.

1998-99

5318.17

 

योग

44201.11

स्रोत :- कार्यालय, म.प्र. वि.मं. (पश्चिम) कोरबा

वर्ष 1990-91 से 1998-99 के मध्य संयंत्र द्वारा 44201.3 मिलियन यूनिट विद्युत का उत्पादन किया गया जिसमें सर्वाधिक उत्पादन 513.17 मिलियन यूनिट वर्ष 1998-99 में हुआ।

विद्युत वितरण :- संयंत्र द्वारा उत्पादित विद्युत का वितरण 2 लाख 20 हजार वोल्ट एवं 4 लाख वोल्ट फीडरों एवं इंटर कनेक्टरों द्वारा मध्य प्रदेश में किया जाता है। इन फीडरों के माध्यम से यह ताप विद्युत गृह देश के पावर ग्रिड से जुड़ा हुआ है। आवश्यकता पड़ने पर अन्य प्रदेशों को भी विद्युत प्रदाय किया जाता है।

कर्मचारियों की संख्या एवं प्रदान की गई सुविधाएँ :-

संयंत्र में कार्यरत श्रमिकों की संख्या 2510 है। कर्मचारियों को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। जिसमें प्रथम श्रेणी में कार्य पालक अभियन्ता, द्वितीय श्रेणी में सहायक अभियन्ता, तृतीय श्रेणी में कर्मचारी तथा चतुर्थ श्रेणी में चपरासी आदि को रखा गया है। जिनकी संख्या निम्नांकित है -

प्रथम श्रेणी

176

द्वितीय श्रेणी

121

तृतीय श्रेणी

1708

चतुर्थ श्रेणी

505

कुल संख्या

2510

कार्यरत कर्मचारियों को दी गई सुविधाएँ निम्न हैं :-

कुल निर्मित आवास 3050, सभी कर्मचारियों को आवास उपलब्ध।

एक सीनियर क्लब एवं एक श्रम कल्याण केन्द्र।

तीन उच्चतर माध्यमिक शालाएं, तीन माध्यमिक शालाएं, चार प्राथमिक शाला एवं चार बाल मंदिर।

कर्मचारियों के बच्चों हेतु स्कूल बस सुविधा एवं अन्य कार्यों हेतु वाहन सुविधा।

तीन शॉपिंग परिसर।

खेल मैदान एवं खेल सुविधाएँ।

दो तरण ताल।

साठ बिस्तरों एवं अन्य उपकरणों से सुसज्जित अस्पताल।

9. केन्द्रीय मन्त्रालय के ऊर्जा संरक्षण निर्देश के तहत कर्मचारियों को घरेलू सिलेण्डरों का आवंटन।

पर्यावरण प्रदूषण के नियन्त्रण हेतु किए गए उपाय :-

वर्तमान में कोरबा के प्राकृतिक वातावरण पर सभी तरफ से (भू जल तथा वायु) प्रदूषण का भारी दबाव पड़ा है। इसका प्रत्यक्ष कारण औद्योगीकरण की दिशा में त्वरित विकास होना है जिसमें विद्युत ऊर्जा उत्पादन मुख्य रहा है, चूँकि ताप विद्युत ऊर्जा उत्पादन में बड़ी मात्रा में कोयले की खपत होती है, अतः पर्यावरण प्रदूषण की समस्या तेजी से सामने आई है।

हसदेव ताप विद्युत गृह कोरबा (पश्चिम द्वारा) प्रदूषण नियन्त्रण हेतु किये गये कार्य निम्नांकित है :-

1. वायु प्रदूषण नियन्त्रण :- संयंत्र में 210 मेगावाट शक्ति की चार इकाइयाँ हैं। प्रत्येक इकाई में वायु प्रदूषण नियन्त्रण हेतु ई.एस.पी. स्थापित है।

2. जल प्रदूषण नियन्त्रण :- जल प्रदूषण हेतु संयंत्र द्वारा दो राखड़ बाँध क्रमशः डंगनियाखार एवं लोतलोता में निर्मित किये गये हैं। इन राखड़ बाँधों में दूषित जल की गुणवत्ता सुधार हेतु डबल फिल्टरेशन प्रक्रिया अपनाई गई है जिससे उपचारित जल की गुणवत्ता निर्धारित मानकों के अनुरूप रहे।

3. राखड़ बाँध क्षेत्र में वायु प्रदूषण नियन्त्रण कार्य :- राखड़ बाँध के अन्दर एश पाइप में विभिन्न स्थानों पर नोजल लगाये गये हैं जिसके द्वारा राखड़ को गीला रखा जाता है।

मिनीमाता बांगो (हसदेव बांगो) जल-विद्युत परियोजना

(मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल)

हसदेव बराज से 42 किमी दूर ऊपरी भाग में ग्राम बांगों (माचाडोली) तहसील कटघोरा, जिला कोरबा नामक स्थान पर हसदेव नदी पर एक बहुउद्देशीय वृहद परियोजना के अन्तर्गत मिनीमाता बांगो बाँध का निर्माण किया गया है। इस बाँध पर हसदेव बांगों जल विद्युत गृह ( 3 X 40 मेगावाट) मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल द्वारा संचालित है। हसदेव नदी के बाएँ तट पर स्थित यह एक बहुउद्देशीय परियोजना है। परियोजना की स्वीकृति योजना आयोग द्वारा मार्च 1984 में दी गई। परियोजना के बाँध एवं विद्युत गृह के यांत्रिकी एवं विद्युतीय कार्य मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल द्वारा किये गए हैं।

परियोजना का मुख्य विवरण :-

1. स्थिति :- ग्राम माचाडोली, तहसील-कटघोरा, जिला कोरबा

2. नदी :- हसदेव नदी (महानदी बेसिन के अन्तर्गत)

3. जलग्रहण क्षेत्र :- 6730 वर्ग किमी

4. सिंचित क्षेत्र :- 2.55 लाख हेक्टेयर (जिला - बिलासपुर एवं रायगढ़)

जलाशय :-

1.

उच्चतम जलस्तर

362.20 मीटर

2.

बाँध का पूर्ण जलस्तर

359.66 मीटर

3.

निम्नतम जलस्तर

329.79 मीटर

4.

नदी सतह

292.60 मीटर

5.

उपयोगी जल संग्रहण क्षमता

0.3046 मि.हे. मीटर

6.

उच्चतम टेलरेस जलस्तर

319.50 मीटर

7.

सामान्य टलरेस जलस्तर

295.3 मीटर

(तीनों इकाइयों की संचालित अवस्था में)

परियोजना लागत :-

सिविल कार्य

34.06 करोड़ रुपये

विद्युत एवं यान्त्रिकी कार्य

77.80 करोड़ रुपये

कुल लागत

31.86 करोड़ रुपये

 

परियोजना के अन्तर्गत विभिन्न इकाइयों की उत्पादन क्षमता तथा क्रियान्वयन तिथियाँ निम्नांकित हैं-

1.

40 मेगावाट

21 मार्च 1994

2.

40 मेगावाट

21 नवम्बर 1994

3.

40 मेगावाट

3 जनवरी 1995

 

कुल क्षमता 120 मेगावाट

 

उत्पादन प्रतिरूप : विभिन्न वर्षों में परियोजना द्वारा उत्पादित विद्युत की मात्रा निम्नांकित है :

तालिका 3.4, वर्ष 1994-95 से 1998-99

वर्ष

उत्पादन (मिलियन यूनिट में)

1994-95

256.092

1995-96

296.769

1996-97

359.122

1997-98

189.129

1998-99

610.927

योग

1712.039

स्रोत : कार्यालय, मध्यप्रदेश वि.मं. (पश्चिम) कोरबा

कार्यरत कर्मचारियों की संख्या : परियोजना में 131 कर्मचारी कार्यरत हैं विभिन्न श्रेणियों में उनकी संख्या निम्नांकित है :

प्रथम श्रेणी

11

द्वतीय श्रेणी

83

तृतीय श्रेणी

89

चतुर्थ श्रेणी

36

योग

131

परियोजना से प्राप्त लाभ :- 3 X 40 मेगावाट बाँध से जल विद्युत प्रवाह द्वारा विद्युत गृह में औसतन 274 मिलियन इकाई के वार्षिक उत्पादन की व्यवस्था है। विद्युत गृह से उत्पादित विद्युत की लागत 4000 पैसा प्रति इकाई (वर्ष 1993 के स्तर पर) है।

परियोजना से उपलब्ध जल द्वारा 2.55 हेक्टेयर भूमि में 135 प्रतिशत मात्रा पर वार्षिक रूप से 3.433 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई का प्रावधान है। परियोजना द्वारा एनटीपीसी के 2100 मेगावाट, मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल के 1800 मेगावाट एवं बाल्को केप्टिव पावर प्लान्ट के शीतलीकरण हेतु जलप्रदाय का प्रावधान है।

परियोजना से उपलब्ध जल द्वारा बालको, एफसीआई, एसईसीएल, कोरबा शहर एवं अन्य सहायक प्रतिष्ठानों के औद्योगिक एवं घरेलू उपयोग हेतु जल प्रदाय की व्यवस्था है।

इस प्रकार कम श्रमशक्ति, कम लागत में अधिकतम उत्पादन कर यह जल विद्युत गृह राष्ट्र की प्रगति में अपना अभिनव योगदान देते हुए विकास की ओर सतत अग्रसर है।

नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन लिमिटेड (एनटीपीसी) कोरबा सुपर थर्मल पावर स्टेशन

देश के सबसे बड़े तथा अग्रणी विद्युत उत्पादक के रूप में एनटीपीसी की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। 1991 में भारत में उदारीकरण की शुरुआत के बाद एनटीपीसी की विद्युत उत्पादन क्षमता में 7018 मेगावाट की और वृद्धि हुई है। आठवीं योजना (1992-97) के दौरान देश में विद्युत उत्पादन की जो अतिरिक्त क्षमता जोड़ी गई उसमें 30 प्रतिशत से अधिक का योगदान एनटीपीसी द्वारा किया गया।

इक्कीसवीं सदी हमारे देश के लिये औद्यगोकि रूप से समृद्धि और सम्पन्नता का संकेत देती है जिससे निश्चित रूप से विद्युत क्षेत्र का विकास होगा अतः समय की माँग को देखते हुए अग्रणी विद्युत उत्पादक के रूप में एनटीपीसी ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करने की दृष्टि से अपने कार्यक्षेत्र का विश्लेषण कर वर्ष 2007 तक 30,000 मेगावाट तथा वर्ष 2012 तक 40,000 मेगावाट की विद्युत उत्पादन क्षमता प्राप्त करने की योजना को अन्तिम रूप दिया है।

एनटीपीसी द्वारा संचालित कोरबा सुपर थर्मल पावर स्टेशन हसदेव नदी के पश्चिमी तट पर, दर्री ग्राम के समीप जमनीपाली नामक स्थान पर स्थित है। इस संयंत्र की उत्पादन क्षमता 2100 मेगावाट है। यह संयंत्र 900 करोड़ रुपयों की लागत से स्थापित हुआ था। वर्तमान में संयंत्र की पूँजी लागत 1625.25 करोड़ रुपये है। यह संयंत्र दो चरणों में बनकर पूरा हुआ। प्रथम चरण के अन्तर्गत 200 मेगावाट की तीन इकाइयाँ तथा द्वितीय चरण के अन्तर्गत 500 मेगावाट की तीन इकाइयाँ स्थापित की गई।

कोरबा क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने तथा महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा एवं मध्य प्रदेश में विद्युत की बढ़ती हुई माँग की आपूर्ति करने के लिये एनटीपीसी द्वारा कोरबा में कोरबा सुपर थर्मल पावर स्टेशन की नींव 1978 में रखी गई। संयंत्र की विभिन्न इकाइयों की प्रचालन तिथियाँ निम्नांकित है :-

इकाई क्रमांक

उत्पादन क्षमता (मेगावाट में)

प्रचालन तिथियाँ

प्रथम चरण

इकाई 1

200

01-03-1983

इकाई 2

200

31-10-1983

इकाई 3

200

17-03-1984

द्वितीय चरण

इकाई 4

500

31-03-1984

इकाई 5

500

25-03-1988

इकाई 6

500

26-02-1981

कुल उत्पादन क्षमता 2100 मेगावाट

स्रोत : कार्यालय, कोरबा सुपर थर्मल पावर स्टेशन, कोरबा

प्रमुख कच्चेमाल तथा आपूर्ति के स्रोत :-

कोयला :- संयंत्र के लिये प्रतिदिन 32000 से 35000 टन कोयले की आवश्यकता होती है, जिसकी आपूर्ति एसईसीएल द्वारा गेवरा कोयला खदान से की जाती है। खदान से संयंत्र तक कोयले का परिवहन स्वयं के रेलवे ट्रैक द्वारा किया जाता है, जिसे मैरी-गो-राउण्ड के नाम से जाना जाता है।

जल :- ताप-विद्युत संयंत्रों में जल की आवश्यकता मुख्यतः बॉयलरों को ठण्डा करने के लिये होती है। संयंत्र में 7200 घनमीटर/घण्टा जल की आवश्यकता होती है जिसकी आपूर्ति हसदेव नदी के दाहिने तट की नहर से की जाती है।

उत्पादन प्रतिरूप :- संयंत्र द्वारा विभिन्न वर्षों में विद्युत उत्पादन प्रतिरूप निम्नांकित हैं :-

तालिका 3.5

नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन : वर्षवार विद्युत उत्पादन (वर्ष 1983-84 से 1999-2000)

वर्ष

उत्पादन

वर्ष

उत्पादन

1983-84

1324.38

1991-92

13284.63

1984-85

2849.80

1992-93

13110.57

1985-86

4104.80

1993-94

14522.69

1986-87

4448.03

1994-95

13989.73

1987-88

4803.46

1995-96

15397.28

1988-89

7702.80

1996-97

15895.43

1989-90

10394.23

1997-98

15690.59

1990-91

11545.08

1998-99

16046.606

   

1999-2000

15776.875

स्रोत : कार्यालय, एनटीपीसी, कोरबा

स्पष्ट है कि स्थापना वर्ष 1983-84 में विद्युत उत्पादन 1324.38 मिलियन यूनिट था जो वर्ष 1990-91 में बढ़कर 13284.63 मिलियन यूनिट हो गया तथा वर्ष 1999-2000 में विद्युत उत्पादन की मात्रा 15776.87 मिलियन यूनिट हो गई।

विद्युत - वितरण प्रतिरूप :-

संयंत्र द्वारा उत्पादित विद्युत के उपभोक्ता राज्य मुख्यतः महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, दीवदमन तथा मध्य प्रदेश है। उपर्युक्त राज्यों में दी जाने वाली विद्युत की मात्रा का प्रतिशत निम्नांकित है -

राज्य

विद्युत की मात्रा (प्रतिशत में)

महाराष्ट्र

29

गुजरात

17

गोवा दीवदमन

10

मध्य प्रदेश

29

कर्मचारियों की संख्या एवं प्रदान की गई सुविधाएँ :-

कोरबा सुपर थर्मल पावर स्टेशन के अन्तर्गत कार्यरत श्रमिकों की संख्या निम्नांकित है -

एक्जीक्यूटिव

474

सुपरवाइजर

296

श्रमिक

1305

योग

2075

संयंत्र के अन्तर्गत कार्यरत कर्मचारियों के लिये सुनियोजित आवास, बाजार, चिकित्सा तथा शिक्षा, मनोरंजन गृह क्लब, पार्क एवं स्टेडियम आदि की सुविधाएँ प्रदान की गई है।

पर्यावरण दुष्प्रभाव पर नियन्त्रण हेतु किये गये उपाय :-

पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी वचन बद्धता के अनुकूल एनटीपीसी ने अपने विद्युत संयंत्रों के आस-पास वृक्षारोपण के कार्यक्रम को पूरी निष्ठा के साथ लागू किया है। एनटीपीसी ने मार्च 99 तक 12.8 मिलियन वृक्षों को सम्पदा विकसित की है। नेशनल रिमोट सेन्सिंग हैदराबाद द्वारा सेटेलाइट के लिये गए छाया चित्र के अध्ययन तथा आकलन के पश्चात यह पाया गया है कि सघन वृक्षारोपण के फलस्वरूप कोरबा विद्युत संयंत्र क्षेत्र के आस-पास बेकार पड़त भूमि में 50 प्रतिशत की कमी आई है और सघन वन क्षेत्र में 21 प्रतिशत की वृद्धि सम्भव हो पाई है।

संयंत्र में धूल नियन्त्रण के लिये 6 ई. एस.पी. लगाये गये हैं, जिसकी क्षमता 200 मेगावाट के लिये 99.49 प्रतिशत तथा 500 मेगावाट के लिये 99.52 प्रतिशत है। गैस को सुचारू रूप से हवा में मिश्रित करने और दूर तक परिवहन करने के उद्देश्य से चिमनियाँ ऊँची है। 200 मेगावाट के लिये चिमनी की ऊँचाई 198.23 मीटर है तथा 500 मेगावाट के लिये 40 मीटर है। भारत सरकार के मापदण्डों के अनुसार चिमनी की ऊँचाई 200 मेगावाट के लिये 40 मीटर और 500 मेगावाट के लिये 275 मीटर होनी चाहिए। परन्तु एनटीपीसी, कोरबा की चिमनियाँ कानून बनाने के पूर्व बन गई थी इसलिये कानूनन चिमनियाँ छोटी रह गई, जिसको सरकार ने को ऊँचाई की सीमा से छूट दे दी है। इसके बदले संयंत्र सीमा से बाहर वायु जाँच की सलाह दी गई है। जल प्रदूषण नियन्त्रण के अन्तर्गत पावर हाउस के नालों से छोड़े जाने वाले पानी को साफ करके पुनः प्रयोग में लाने के लिये Liquid based treatment Plant बनाया जा रहा है। राखड़ बाँध के निक्षेप हेतु 3 एश डाइक बनाये गये हैं, जिसका कुल क्षेत्रफल 963 एकड़ है।

बाल्को केप्टिव पावर प्लान्ट

बाल्को केप्टिव पावर प्लान्ट, कोरबा में जमनीपाली नामक स्थान पर स्थित है। 270 मेगावाट उत्पादन क्षमता वाले इस संयंत्र की कुल लागत 483 करोड़ रुपये है।

इस संयंत्र की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत एल्युमिनियम को बिजली की आपूर्ति करना था जिसके कारण इस संयंत्र का नाम बालको केप्टिव प्लान्ट रखा गया है। बाक्साइट से एल्युमिनियम की उत्पादन की प्रक्रिया में विद्युत की आवश्यकता अधिक होती है (16 से 17 MWH/TON OF METAL) भारत एल्युमिनियम कम्पनी को एम.पी.ई.बी. से महँगी तथा कम मात्रा में विद्युत मिल रही थी जिसके परिणाम फलस्वरूप इस संयंत्र की स्थापना की गई है, जिसका संचालन एनटीपीसी द्वारा किया जाता है।

संयंत्र की विभिन्न इकाइयों की परिचालन तिथियाँ तथा क्षमता निम्नांकित है -

इकाई क्रमांक

क्षमता

परिचालन तिथियाँ

1.

67.5 मेगावाट

जून 1987

2.

67.5 मेगावाट

सितम्बर 1987

3.

67.5 मेगावाट

नवम्बर 1987

4.

67.5 मेगावाट

मार्च 1988

 

कुल क्षमता

270 मेगावाट

स्रोत : कार्यालय, बाल्को केप्टिव पावर प्लान्ट

इस प्रकार संयंत्र की कुल उत्पादन क्षमता 270 मेगावाट है। संयंत्र में चार इकाइयाँ कार्यरत हैं। प्रत्येक इकाई की उत्पादन क्षमता 67.5 मेगावाट है।

प्रमुख कच्चे माल तथा प्राप्ति स्थान :-

कोयला :- संयंत्र को प्रतिदिन 5000 टन कोयले की आवश्यकता होती है, जिसकी आपूर्ति एस.ई.सी.एल. की गेवरा तथा दीपका खदानों से की जाती है। कोयले का परिवहन मेरिगो राउण्ड (MGR) द्वारा किया जाता है।

जल :- जल का आपूर्ति हसदेव बराज के दाहिने तट से पम्प तथा पाइप द्वारा की जाती है।

उत्पादन :- संयंत्र में पिछले पाँच वर्षों में विद्युत उत्पादन निम्नांकित रहा -

तालिका 3.6, बाल्को केप्टिव पावर प्लान्ट : विद्युत उत्पादन

वर्ष 1995-96 से 1999-2000

वर्ष

विद्युत उत्पादन (मिलियन यूनिट में)

1995-96

2233.35

1996-97

2044.41

1997-98

2112

1998-99

2028

1999-2000

2025

स्रोत : कार्यालय, बाल्को केप्टिव पावर प्लान्ट, कोरबा

संयंत्र में उत्पादित विद्युत का मुख्य उपभोक्ता भारत एल्युमिनियम कम्पनी ही है।

संयंत्र में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 720 है। विभिन्न श्रेणियों के कर्मचारियों की संख्या निम्नांकित है -

प्रथम श्रेणी

142

द्वितीय श्रेणी

050

तृतीय श्रेणी

528

कुल संख्या

720

संयंत्र में कार्यरत कर्मचारियों को शिक्षा, आवास तथा स्वास्थ्य की सुविधाएँ उपलब्ध कराई गई हैं।

पर्यावरण प्रदूषण नियन्त्रण हेतु किये गये उपाय :-

वायु प्रदूषण नियन्त्रण हेतु सभी इकाइयों में ई.एस.पी. लगाये गये हैं। वर्ष 1994 में इसकी क्षमता में वृद्धि की गई है। राखड़ बाँध से निकले जल को फिल्टर कर नदी में प्रवाहित किया जाता है। राखड़ बाँध से निकले जल का उपयोग सब्जी तथा फल उगाने के लिये भी किया जा रहा है।

उद्योगों के लिये विद्युत नीति :-

औद्योगिक नीति तथा कार्ययोजना 1994 के अन्तर्गत उद्योगों के लिये विद्युत नीति तैयार की गई जो निम्नांकित है :

1. प्रदेश में विद्युत की कमी को पूरा करने एवं विशेष कर उद्योगों के लिये विद्युत की पर्याप्त एवं गुणात्मक आपूर्ति के लिये, आने वाले वर्षों में हरसम्भव प्रयास किये जायेंगे। विद्युत उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिये निजी क्षेत्र के सहयोग को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

2. कोई उद्यमी स्वयं के उपयोग हेतु डीजल या 25 मेगावाट तक क्षमता का थर्मल (जिसमें ‘वेस्ट हीट’ का उपयोग भी किया जा सकेगा) केप्टिव जनरेटिंग सेट लगाना चाहता है तो उसे इसके लिये विद्युत (प्रदाय) अधिनियम 1948 एवं भारतीय विद्युत नियम, 1956 के प्रावधानों के अन्तर्गत मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल एवं मुख्य अभियन्ता सुरक्षा/मुख्य विद्युत निरीक्षक को पूर्ण जानकारी के साथ आवेदन करने पर 15 दिन में निम्नलिखित शर्तों के साथ अनुमति प्रदान की जायेगी।

क. उद्यमी अपनी सम्पूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति ‘केप्टिव जनरेटिंग सेट’ से करना चाहता है, तो उसे इस प्रकार आवेदन करने का अनुमति दी जायेगी।

ख. उद्यमी अपनी आवश्यकता की आंशिक पूर्ति ‘केप्टिव जनरेटिंग सेट’ से करना चाहता है, तो इस प्रकार आवेदन करने की अनुमति दी जायेगी परन्तु इसके साथ ही मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल से विद्यु प्रदाय कुछ शर्तों के साथ दिया जायेगा।

3. अगर थर्मल जनरेटिंग सेट की क्षमता 25 मेगावाट से अधिक होगी तो ऐसे प्रकरणों में केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण, भारत सरकार की भी अनुमति की आवश्यकता होगी।

4. कोई उद्यमी, स्वयं के उद्योग हेतु लघु/लघुत्तम जल विद्युत या ऊर्जा के अपारम्परिक स्रोत से संयंत्र (जैसे पवन ऊर्जा सौर फोटो-वोल्टाइक, बायो-गैस इत्यादि) लगाना चाहता है तो इसके द्वारा मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल एवं ऊर्जा विकास निगम को पूर्ण जानकारी सहित आवेदन करने पर 15 दिन में अनुमति प्रदान की जाएगी।

5. कोई उद्यमी स्वयं की आवश्यकता से अधिक क्षमता के डीजल/थर्मल/लघु एवं लघुत्तम जल विद्युत के जनरेटिंग सेट या अपारम्परिक ऊर्जा स्रोत के संयंत्र लगाता है एवं वह स्वयं की आवश्यकता से अधिक विद्युत का प्रदाय पास में ही स्थित किसी अन्य उद्यमी को करना चाहता है या केवल अन्य उद्यमियों को विद्युत प्रदाय बतौर बिक्री के करने के लिये किसी भी प्रकार का संयंत्र लगाता है तो उसे विद्युत (प्रदाय) अधिनियम 1948 के प्रावधानों के अन्तर्गत मध्य प्रदेश विद्युत मंडल द्वारा, आवेदन करने के 15 दिन के अन्दर अनुमति प्रदान की जायेगी। परन्तु इसके साथ भारतीय विद्युत अधिनियम 1910 के प्रावधानों के अन्तर्गत उद्यमी को राज्य शासन की अनुमति प्राप्त करनी होगी। यदि उद्यमी इसके लिये मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल की पारेषण एवं वितरण लाइनों का उपयोग करना चाहता है तो इसके लिये विद्युत मण्डल द्वारा निम्नानुसार व्हीलिंग चार्जेस/ट्रांसमिशन लासेज के भुगतान के शर्तों के साथ अनुमति प्रदान की जाएगी।

क. 40 किमी तक दूरी के लिये सम्पूर्ण प्रदाय की गई विद्युत का 10 प्रतिशत।

ख. 60 किमी तक दूरी के लिये सम्पूर्ण प्रदाय की गई विद्युत का 12 प्रतिशत।

ग. 100 किमी तक दूरी के लिये सम्पूर्ण प्रदाय की गई विद्युत का 17 प्रतिशत।

घ. 100 किमी से अधिक दूरी के लिये सम्पूर्ण प्रदाय की गई विद्युत का 20 प्रतिशत।

6. कोई उद्यमी अपने केप्टिव जनरेटिंग सेट से अपनी आवश्यकता से अधिक उत्पादित विद्युत मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल को प्रदाय करना चाहता है या विद्युत मण्डल को विद्युत विक्रय हेतु किसी भी प्रकार का संयंत्र लगाता है तो उसे विद्युत (प्रदाय) अधिनियम 1948 के प्रावधानों के अन्तर्गत ऐसा करने की अनुमति प्रदान की जायेगी।

7. उद्यमी द्वारा अपने उत्पादन को मण्डल की विद्युत प्रणाली में प्रदाय करने के लिये जो भी ‘इन्टर कनेक्शन’ के लिये लाइन आदि डालने के लिये आवश्यक संयंत्र लगाने की आवश्यकता होगी तो वह स्वयं अपने व्यय पर उद्यमी को करना होगा।

8. औद्योगिक विकास केन्द्रों एवं औद्योगिक क्षेत्रों में स्थित उद्यमी यदि आपस में ‘कन्सोर्टियम’ बनकर उपरोक्तानुसार केप्टिव जनरेटिंग सेट लगाना चाहते हों तो उसको इसकी अनुमति प्रदान की जायेगी।

9. उपर्युक्त सभी स्थितियों को उद्यमी को आवश्यकतानुसार अन्य संस्थानों जैसे - केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण, कोल लिकेज समिति, नागरिक विमानन मन्त्रालय, मध्य प्रदेश प्रदूषण निवारण मण्डल आदि से आवश्यक अनुमति/अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करने होंगे।

10. प्रदेश में उद्यमियों द्वारा लगाये जाने वाले डीजल/थर्मल/लघु एवं लघुत्तम जल विद्युत के जनरेटिंग सेट या अपारम्परिक ऊर्जा स्रोत के संयंत्रों को नये उद्योग की श्रेणी में रखकर, नये उद्योगों को दी जा रही समस्त सुविधाएँ नियम अनुसार प्रदान की जायेगी।

11. नये उद्योगों की स्थापना हेतु उद्यमियों द्वारा सभी औपचारिकताएँ पूर्ण करने लाइन विस्तार आदि के कार्य पूर्ण होने के बाद 15 दिन के अन्दर विद्युत मण्डल द्वारा कनेक्शन प्रदान किया जाएगा।

12. औद्योगिक विकास केन्द्रों की विद्युत व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाने के लिये उन चयनित विकास केन्द्रों में जहाँ पूर्व से कार्यपालन अभियन्ता पदस्थ नहीं हैं, पदस्थ किये जायेंगे, जिससे विद्युत सम्बन्धी स्थानीय समस्याओं का हल स्थानीय स्तर पर हल हो सके एवं उद्योगों को बेहतर सेवा उपलब्ध कराई जा सके।

13. शत प्रतिशत निर्यात उन्मुख एवं निरन्तर उत्पादन के लिये औद्योगिक इकाइयों को यथा सम्भव विद्युत कटौती से मुक्त रखा जायेगा।

शासकीय सुविधाएँ :-

छत्तीसगढ़ प्रदेश को देश के औद्योगिक रूप से अग्रणी प्रदेशों की गणना में लाने के लिये अत्यधिक सम्भावना है। औद्योगिक विकास को त्वरित गति प्रदान करने, अधिक निवेशकों को आकर्षित करने तथा सन्तुलित क्षेत्रीय विकास करने का लक्ष्य, औद्योगिकी नीति एवं कार्ययोजना 1994 में रखा गया है। उद्योग के लिये भौतिक एवं मानव आधारित अधोसंरचना के आधार में वृद्धि हेतु उपाय तथा प्रोत्साहन के रूप में रियायतों तथा सुविधाओं का समावेश इस दस्तावेज में किया गया है।

कर में रियायतें एवं अन्य सुविधाएँ :-

औद्योगिक विकास की गति निर्धारण में सुविधाएँ एवं करों में रियायतों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। औद्योगिक नीति एवं कार्ययोजना 1994 के अन्तर्गत उद्योगों को निम्नांकित सुविधाएँ दी गई है -

1. उद्योगों को विक्रय कर/वाणिज्य कर की सुविधाएँ निम्नानुसार उपलब्ध होगी -

जिले की श्रेणी

विक्रय/वाणिज्य कर से मुक्ति

विक्रय/वाणिज्य कर से आस्थगन

 

अधिकतम लाभ की सीमा

पात्रता की अवधि

अधिकतम लाभ की सीमा

पात्रता की अवधि

विकसित/पिछड़ा जिला

120%

3 वर्ष

175%

4 वर्ष

‘अ’ श्रेणी

150%

5 वर्ष

200%

7 वर्ष

‘ब’ श्रेणी

200%

6 वर्ष

250%

8 वर्ष

‘स’ श्रेणी

250%

7 वर्ष

300%

9 वर्ष

1. अधिकतम लाभ इकाई के स्थाई निवेश के उक्त कालम दर्शाए प्रतिशत तक परिसीमित है। रुपये 10 लाख तक स्थाई पूँजी निवेश वाली इकाइयों को अब कर मुक्ति स्थाई पूँजी निवेश का 100% तथा आस्थगन की सुविधा 150% तक रहेगी।

2. इकाई को यह सुविधा उत्पादित वस्तुएँ, सह उत्पादन, अवशिष्ट पदार्थ, कच्चा माल तथा पैकिंग मटेरियल पर प्राप्त होगी।

3. कर से आस्थगन 5 वर्ष के लिये होगा, 6 वर्ष में नियमानुसार इकाई द्वारा आस्थगित राशि बिना ब्याज के देय होगी। निश्चित समय अवधि में आस्थगित देय कर राशि का भुगतान करने पर इकाई की शेष पात्रता अवधि निरस्त की जा सकेगी तथा उक्त राशि पर नियमानुसार ब्याज भी देय होगा।

4. महिला उद्यमियों, अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग के उद्यमियों द्वारा स्थापित इकाइयों को एक वर्ष की अतिरिक्त सुविधा रहेगी।

5. सभी विशेष पात्रता को सम्मिलित किये जाने के बाद किसी उद्योग को यह सुविधा उपलब्ध सामान्य सुविधा के अतिरिक्त अधिकतम 5 वर्ष तक उपलब्ध होगी।

2. वाणिज्यिक कर/विक्रय कर के परिसीमन के कारण स्थाई पूँजी निवेश परिभाषित करना आवश्यक हो गया है। पूँजी निवेश के साथ वाणिज्यिक कर सुविधाओं के परिसीमन हेतु स्थायी पूँजी निवेश वृहद एवं मध्यम उद्योगों हेतु निम्नानुसार परिभाषित किया गया है -

1. इकाई के लिये भूमि, भवन, यन्त्र, विद्युत स्थापना एवं प्रदूषण यन्त्रों पर किया गया निवेश।

2. भूमि विकास पर किया गया व्यय जिसकी अधिकतम सीमा भूमि तथा भवन पर किए गए निवेश का 10 प्रतिशत होगी।

3. प्रयोगशाला, अनुसन्धान हेतु यन्त्र एवं उपकरण एवं प्रशासकीय भवन पर किया गया निवेश।

4. रेलवे साइडिंग की स्थापना पर किया गया पूँजीगत व्यय।

5. गोदाम स्टोरेज टैंक आदि पर किया गया व्यय।

वृहद एवं मध्यम उद्योगों में रु. 100 करोड़ तक पूँजी निवेश वाले उद्योगों के लिये कर के लाभ की अधिकतम राशि की गणना में उस उद्योग द्वारा वाणिज्यिक उत्पादन प्रारम्भ करने के बाद 3 वर्ष तक किये गये स्थाई पूँजी निवेश को भी सम्मिलित किया जायेगा।

3. सन्तुलित क्षेत्रीय विकास हेतु प्रदेश के समस्त जिलों के ‘उद्योग शून्य विकास खण्ड’ में स्थापित लघु, वृहद, मध्यम उद्योगों को ‘स’ श्रेणी में वर्गीकृत जिलों के समान वाणिज्य कर आस्थगन अथवा मुक्ति की सुविधा प्रदान की जायेगी। उद्योग शून्य विकास खण्ड ऐसे विकास खण्डों को माना जायेगा जहाँ औद्योगिक नीति एवं कार्य योजना 1994 की घोषणा दिनांक तक कोई भी मध्यम एवं वृहद श्रेणी का उद्योग स्थापित न हो। उसके पश्चात वाणिज्यिक उत्पादन में जाने वाले लघु/मध्यम एवं वृहद उद्योगों को ही उद्योग शून्य विकास खण्ड की विशेष सुविधा प्रदान की जायेगी।

1. प्रवेश कर से छूट :- कच्चा माल क्रय की प्रथम दिनांक से 5 वर्ष की अवधि हेतु उपलब्ध होता है।
2. ब्याज अनुदान :- वित्तीय संस्थाओं से प्राप्त दीर्घ अवधि ऋण पर ऋण वितरण दिनांक से 3 वर्ष हेतु सामान्य श्रेणी को 2 प्रतिशत तथा अनुसूचित जाति, जनजाति को 6 प्रतिशत की पात्रता है। अनुदान की अधिकतम वार्षिक सीमा 25000 रुपये है तथा अनुसूचित जाति/जनजाति हेतु कोई सीमा नहीं रहेगी।
3. योजना प्रतिपूर्ति अनुदान :- योजना प्रतिपूर्ति अनुदान एक प्रतिशत किन्तु लघु उद्योग इकाई को अधिकतम 15000 रुपये तक योजना प्रतिपूर्ति अनुदान उपलब्ध कराया जाता है।

उपर्यक्त सुविधाएँ (1 से 3) राज्य शासन के निर्देशानुसार परिवर्तनशील है।

4. प्रदेश में राज्य शासन की स्वीकृति से औद्योगिक केन्द्र विकास निगमों द्वारा समय-समय पर स्थापित एवं आधारभूत सुविधाओं पर व्यय किये गये विकास केन्द्रों में दो वर्ष की अतिरिक्त अवधि हेतु वाणिज्यिक कर आस्थगन अथवा मुक्ति की विशेष सुविधा मिलेगी। यह सुविधा भविष्य में अनुमोदित किये जाने वाले विकास केन्द्रों में भी उपलब्ध रहेगी।

5. औद्योगिक केन्द्र विकास निगमों द्वारा स्थापित होने वाले विकास केन्द्रों में भूमि उपलब्ध न होने पर विकास केन्द्रों की सीमा से पाँच किलोमीटर के अन्दर स्थापित होने वाले नये उद्योगों को उस क्षेत्र की सामान्य सुविधा से एक वर्ष की अतिरिक्त सुविधा की पात्रता होगी।

6. प्रदेश के मूल निवासियों को रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध कराने की दृष्टि से उद्योगों को अतिरिक्त सुविधा प्रदान करने की नई योजना लागू की जायेगी। जिन परिवारों की भूमि उद्योग विशेष के लिये अधिगृहीत की जायेगी, उनके परिवार के एक सदस्य को ऐसी इकाई के लिये रोजगार देना आवश्यक होगा, बशर्ते कि उस योजना का उक्त भूमि पर स्वामित्व कम-से-कम 12 वर्ष का हो।

7. मानव शक्ति के विकास हेतु विशेष वित्तीय सुविधाएँ ऐसे उद्योगों को दी जायेंगी जो प्रदेश के मूल निवासियों को प्रशिक्षित कर रोजगार उपलब्ध करायेंगे। इन उद्योगों को विकलांगों को रोजगार उपलब्ध कराने हेतु विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जायेगा।

8. थ्रस्ट सेक्टर को विस्तारित किया गया है। अब थ्रस्ट सेक्टर में आटोमोबाइल्स, कृषि उपकरण, कृषि पर आधारित उद्योग, खनिज पर आधारित उद्योग, जीवन रक्षक औषधियाँ, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, फिश केनिंग, चमड़ा उद्योग तथा रेशम उद्योग सम्मिलित किये जायेंगे। इन थ्रस्ट सेक्टर में सम्मिलित उद्योगों की सूची समय-समय पर राज्य शासन द्वारा घोषित की जायेगी। इन उद्योगों के लिये अधिकतम लाभ का परिसीमन लागू नहीं होगा बशर्ते कि प्लान्ट एवं मशीनरी पर कम-से-कम एक करोड़ रुपये का पूँजी निवेश किया गया हो।

9. सहकारी क्षेत्रों में नये उद्योगों की स्थापना होने पर तीन वर्ष की अतिरिक्त अवधि के लिये वाणिज्यिक कर आस्थगन अथवा मुक्ति की सुविधा प्रदान की जायेगी, बशर्ते कि कम-से-कम एक करोड़ रुपये का प्लान्ट एवं मशीनरी पर पूँजी निवेश किया गया हो तथा न्यूनतम सदस्य संख्या कम-से-कम 100 हो।

10. इकाई द्वारा विस्तार करने के लिये किये गये अतिरिक्त निवेश को नई इकाई के समान, पात्रता परिसीमन तथा अवधि का लाभ प्राप्त होगा। यह सुविधा 10 लाख रुपये से अधिक पूँजी निवेश वाली इकाइयों के लिये उपलब्ध रहेगी।

11. शत-प्रतिशत निर्यातक इकाइयों को विशेष प्रोत्साहन दिया जायेगा। ऐसी इकाइयों को दो वर्ष की अतिरिक्त अवधि हेतु वाणिज्यिक कर की सुविधा तथा 8 वर्ष की अवधि के लिये प्रवेश कर से छूट दी जायेगी।

अनिवासी भारतीयों द्वारा कम-से-कम 2 करोड़ रुपये पूँजी निवेश वाले उद्योग को भी शत-प्रतिशत निर्यातक इकाइयों के समान सुविधा प्राप्त होगी। परन्तु यह आवश्यक होगा कि अनिवासी भारतीय इस इकाई में प्रवर्तक अंश पूँजी का कम-से-कम 50 प्रतिशत कर हो।

12. लघु उद्योग इकाइयों के लिये लागू ब्याज अनुदान योजना के अन्तर्गत सामान्य उद्यमियों के लिये दस हजार रुपये प्रतिवर्ष की अधिकतम सीमा को पच्चीस हजार रुपये प्रतिवर्ष किया जायेगा। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के उद्यमियों को ब्याज अनुदान दर चार से बढ़ाकर छः प्रतिशत कर दी गयी।

13. मध्यम एवं वृहद क्षेत्र के उद्योगों को सहायक उद्योग लगवाने हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा। इस हेतु आकर्षक योजना घोषित की जायेगी।

14. पर्यावरण संरक्षण हेतु उपकरण स्थापना को प्रोत्साहित करने के लिये पर्यावरण संरक्षण उपकरणों को वाणिज्यिक कर से मुक्त किया जायेगा।

15. प्रदेश में वृहद पूँजी निवेश को आकर्षित करने के लिये विशेष सुविधा पैकेज तैयार किये जायेंगे।

16. पाँच सौ करोड़ रुपये या इससे अधिक पूँजी वेष्ठन से स्थापित होने वाले समस्त प्रकार के नये उद्योगों के लिये एक विशेष प्रोत्साहन योजना तैयार की जायेगी।

17. कृषि एवं शहरी अनुपयोगी पदार्थों के प्रसंस्करण संयंत्रों की स्थापना हेतु विशेष योजना तैयार की जायेगी।

कुटीर एवं ग्रामीण उद्योग हेतु सुविधाएँ :

कुटीर एवं ग्रामीण उद्योग औद्योगिक विकास के आधार स्तम्भ है। इन उद्योगों द्वारा ही ग्रामीण क्षेत्रों का वास्तविक औद्योगीकरण होता है। कुटीर एवं ग्रामीण उद्योगों का विकास, ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक गतिविधियों में, भूमि पर दबाव घटाने एवं बेरोजगारी के समस्या का प्रभावी रूप से निराकरण करने हेतु आवश्यक है।

01. कुटीर तथा ग्रामोद्योग के विकास के लिये खादी तथा ग्रामोद्योग, हाथ करघा, हस्तशिल्प, चर्मशिल्प उद्योग के क्षेत्र में चार हजार व्यक्तियों को प्रतिवर्ष प्रशिक्षित कर उन्हें आवश्यक उपकरणों की सहायता देकर रोजगार स्थापित किया जायेगा।

02. आदिवासी बहुल जिलों में सुव्यवस्थित ग्रामीण औद्योगीकरण हेतु ‘परियोजना आधारित पहुँच’ को प्रोत्साहित किया जायेगा, इस हेतु राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा प्रवर्तित जिला ग्रामीण उद्योग परियोजना के चरण बद्ध कार्यान्वयन के प्रयास किये जायेंगे।

03. कुटीर एवं ग्रामीण उद्योग सेक्टर को कच्चे माल के स्रोत, विपणन द्वारा एवं वित्तीय संस्थाओं से प्रभावी रूप से जोड़ने के प्रयास किये जायेंगे।

04. भण्डार क्रय नियमों में संशोधन कर कुटीर एवं ग्रामीण उद्योगों के चयनित उत्पादों को आरक्षित किया जायेगा।

05. रेशम उद्योग के विकास हेतु विशेष ध्यान दिया जायेगा। रेशम उद्योग के प्रत्येक घटक अर्थात खेतों में शहतूत रोपण, रोपण से प्राप्त पत्ती से रेशम कीट पालन, कीट पालन से प्राप्त ककूनों के धागाकरण को सर्वसम्भव सुविधा दी जायेगी। इस उद्योग के विकास हेतु ग्राम पंचायतों की सक्रिय भागीदारी प्राप्त की जायेगी। निजी क्षेत्रों में रेशम के ककून उत्पादन को प्राथमिकता दी जायेगी। इसके लिये कृषकों को अनुदान तथा ऋण उपलब्ध कराया जायेगा।

06. मध्य प्रदेश खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड द्वारा ग्रामोद्योग को कच्चा माल दिया जायेगा। तथा उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विपणन की व्यवस्था की जायेगी।

07. हाथ करघा क्षेत्र में बुनकरों को उचित दाम पर सूत प्रदाय किया जायेगा एवं हाथ करघों के आधुनिकीकरण के कार्यक्रमों में वृद्धि की जायेगी।

चयनित महत्त्वपूर्ण उद्योगों को विशेष सुविधाएँ :-

01. थ्रस्ट सेक्टर के उद्योगों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की जायेगी।

02. राज्य शासन इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों के उच्च तकनीकी एवं सीमान्तक क्षेत्र के विकास हेतु विशेष रूप से प्रयत्नशील रहेगा।

03. प्रधानमन्त्री रोजगार योजना, नेहरू रोजगार योजना एवं ट्रायसेम योजना के अन्तर्गत प्रशिक्षण देकर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के क्षेत्र में अधिकाधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जायेंगे।

04. कृषि आधारित उद्योगों में अधिक लोगों की साझेदारी हेतु सहकारी क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जायेगा। इससे न केवल रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी अपितु कृषकों को बढ़ी हुई कीमत के उत्पादों का लाभ भी प्राप्त होगा। लघु वनोपज तथा उद्यानिकी प्रौद्योगिकी पर आधारित उद्योगों के विकास के लिये विशेष योजनाएँ तैयार की जायेंगी।

05. कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग अन्य क्षेत्र है जिस पर शासन का गहन ध्यान होगा। औद्योगिक इकाइयों को बगैर व्यवधान कच्चेमाल के स्वयं सुरक्षित लिंकेज हेतु सम्पूर्ण तहसील गोद लेने की योजना की जायेगी। इस हेतु विस्तृत प्रतिबन्धित शर्तों पर इन इकाइयों को कच्चे माल की एक ही स्थान से व्यवस्था को सुनिश्चित किया जायेगा।

06. थ्रस्ट सेक्टर के उद्योगों के अन्तर्गत सोयाबीन प्रोसेसिंग उद्योगों को रियायतें उपलब्ध कराई जायेगी। कच्चे माल के संग्रहण हेतु प्रतिबन्धों को समाप्त किया जायेगा।

07. निजी क्षेत्र की भागीदारी को कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास में बढ़ोत्तरी की दृष्टि से अनुपयोगी भूमि के फसलीकरण हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा।

08. खनिज आधारित उद्योगों को थ्रस्ट सेक्टर में होने के कारण विशेष सुविधाएँ मिलेंगी। निजी क्षेत्र की भागीदारी को खनन में प्रोत्साहित किया जायेगा। डायमण्ड पार्क की स्थापना की जायेगी। इससे प्रदेश में हीरे तराशने पर आधारित उद्योगों की भविष्य में सम्भावनाओं को केन्द्रित करने में सहायता मिलेगी। वस्त्र, चमड़ा एवं रेशम उद्योग को रोजगार क्षमता एवं निर्यात हेतु पूरी तरह उपयोग के लिये थ्रस्ट सेक्टर में रखा गया है।

लघु उद्योग राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार स्तम्भ है। लघु उद्योगों के बहुमुखी विकास के उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा 30 अगस्त 2000 को अनेक रियायतों की घोषणा की गयी है जो निम्नांकित है-

01. उत्पादन शुल्क छूट की सीमा 50 लाख से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर दी गई।

02. हाथ करघा क्षेत्र के लिये 447 करोड़ रुपये का पैकेज घोषित किया है तथा इन्स्पेक्टर राज को समाप्त करने की घोषणा की गयी है।

03. मिली जुली साख सुविधा की सीमा 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये कर दी गई।

04. जो इकाई आईएसओ - 9000 का प्रमाणीकरण प्राप्त कर लेगी उसे अगले 6 वर्षों तक 75 हजार रुपये की अनुदान सुविधा जारी रहेगी।

05. लघु उद्योग संघ अगर अन्तरराष्ट्रीय मानक की परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित करना चाहे तो सरकार 50 प्रतिशत पूँजीगत अनुदान देगी।

06. खादी तथा ग्रामोद्योग को मजबूत बनाने के लिये 447 करोड़ रुपये की दीनदयाल हाथ करघा प्रोत्साहन योजना केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर क्रियान्वित करेंगी। इस योजना के तहत बुनकरों तथा हाथ करघा संगठनों को व्यापक वित्तीय मदद तथा आधारभूत सुविधाएँ प्रदान की जायेंगी।

वर्तमान सुविधाएँ :- छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के पश्चात 6 सितम्बर 2001 को घोषित राज्य की प्रथम औद्योगिक नीति में उद्योगों को अनेक सुविधाएँ दी गई है जिससे अधोसंरचनात्मक सहायता, विद्युत सुविधा तथा ब्याज अनुदान सुविधाएँ सम्मिलित है।

1. अधोसंरचनात्मक सहायता :

निर्धारित औद्योगिक क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्यत्र अन्य क्षेत्रों में स्थापित होने वाले मेगा औद्योगिक परियोजनाओं को शासन अधोसंरचनात्मक विकास में वित्तीय सहायता उपलब्ध करायेगी। यह सहायता अधोसंरचना लागत के 25 प्रतिशत एवं अधिकतम पाँच वर्ष के विक्रय करके बराबर होगी।

2. विद्युत प्रभार :-

समस्त नये स्थापित होने वाले उद्योगों को उनके व्यवसायिक उत्पादन आरम्भ उत्पादन आरम्भ करने के दिनांक से 15 वर्ष तक विद्युत प्रभार में भुगतान से छूट होगी।

3. ब्याज अनुदान :-

लघु उद्योगों को प्राथमिकता देने की नीति की अनुरूप जिनमें स्थाई पूँजी निवेश की अपेक्षा कार्यशील पूँजी अधिक महत्त्वपूर्ण होती है, शासन ब्याज अनुदान के रूप में पाँच वर्ष के लिये 5 प्रतिशत वार्षिकी की दर से अधिकतम पाँच लाख रुपए तक सहायता, राज्य में स्थापित होने वाले सभी उद्योगों को देगी।

4. भूमि उपयोग में परिवर्तन :-

अति लघु एवं लघु औद्योगिक इकाइयों को कृषि उपयोग से औद्योगिक उपयोग में भू-परिवर्तन कराने हेतु भू-परिवर्तन शुल्क में पूर्ण छूट दी जायेगी।

5. प्रौद्योगिकी प्रोन्नति कोष :-

शासन द्वारा आगामी पाँच वर्षों में तीस करोड़ रुपयों का एक प्रौद्योगिक प्रोन्नति कोष बनाया जायेगा, जिसके माध्यम से लघु एवं मध्यम औद्योगिक इकाइयों को ब्याज अनुदान के रूप में उनके द्वारा तकनीकी प्रोन्नति हेतु लिये गये ऋण के विरुद्ध वित्तीय सहायता प्राप्त होगी।

6. गुणवत्ता प्रमाणीकरण :-

शासन द्वारा औद्योगिक इकाइयों को आई.एस.ओ. - 9000 तथा आई.एस.ओ. - 14000 एवं समान अन्तरराष्ट्रीय प्रमाणीकरण प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा। प्रमाणीकरण प्राप्त करने में इकाई द्वारा किये जाने वाले व्यय का 50 प्रतिशत अधिकतम रुपये 75000 प्रति इकाई का वहन शासन द्वारा किया जायेगा।

7. विशेष क्षेत्रों में अतिरिक्त सुविधाएँ :-

अधिसूचित पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित होने वाले उद्योगों को उनके परियोजना लागत का 10 प्रतिशत आधारभूत सहायता के रूप में दिया जाएगा। उपरोक्त सुविधाओं के अतिरिक्त निम्नलिखित सुविधाएँ सभी उद्योगों को उनके श्रेणी पर बिना विचार किये प्राप्त होगी।

1. प्रवेश कर से छूट : प्रवेश कर से छूट का विस्तार वृहद एवं मध्यम उद्योगों सहित सभी श्रेणी के उद्योगों के लिये किया जायेगा।

2. स्टाम्प शुल्क में छूट : सभी नये उद्योगों को स्टाम्प शुल्क में छूट होगी। इसके अतिरिक्त नये उद्योगों को ऋण प्राप्त करते समय पंजीकरण शुल्क में कमी करते हुए प्रति 1000 रु. पर 1 रुपया पंजीकरण शुल्क लिया जायेगा।

3. तकनीकी पेटन्ट :- छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रियल डवलपमेंट कॉर्पोरेशन के अन्तर्गत एक सुविधा कक्ष का गठन किया जायेगा जो उद्यमियों को उनके पेटेंट एवं बौद्धिक सम्पत्ति अधिकार प्रावधानों से सम्बन्धित विषयों में उनकी सहायता करेगा। राज्य के उद्योग तथा अनुसन्धान एवं विकास संस्थाओं को पेटेन्ट प्राप्ति हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा। इस कार्य में होने वाले व्यय का 50 प्रतिशत अधिकतम रु. 5 लाख का \[वहन राज्य शासन द्वारा किया जायेगा।

8. अतिरिक्त सुविधाएँ :-

ऐसे समस्त नवीन उद्योगों को जिनमें 500 से अधिक श्रमिक कार्यरत हों, में यदि 50 प्रतिशत महिलाएँ कार्यरत हो तो शासन द्वारा 10 प्रतिशत या रु. दो लाख जो भी कम हो वार्षिक की दर से अतिरिक्त अनुदान 5 वर्ष के लिये दिया जायेगा।

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