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भारत
पानी, जहर और जीडीपी
Posted on 17 May, 2010 10:13 PMभारत में नदियों को प्रदूषित करने की अनुमति दी जाती है. आप जितना प्रदूषित पानी पिएंगे, बीमार पड़ने की उतनी ही अधिक संभावना होगी. फिर आप डाक्टर के पास जाएंगे, जो आपसे फीस वसूलेगा. जिसका मतलब हुआ कि पैसा हाथों से गुजरेगा. इससे जीडीपी बढ़ेगी. यहां तक कि सफाई अभियान भी, जैसे यमुना की सफाई के लिए एक हजार करोड़ रुपए, जीडीपी की गणना को ही बढ़ाती है.
इस चिलचिलाती गरमी में पानी का मुद्दा गरमाया हुआ है. जैसे-जैसे तापमान चढ़ रहा है और प्रमुख जलस्त्रोत सूखते जा रहे हैं, दिन-ब-दिन पीने के पानी को लेकर खून बहने लगा है. अपनी रोजमर्रा की जरूरत भी पूरी न होने से गुस्साएं प्रदर्शनकारी सड़कों पर निकल रहे हैं. आने वाले महीनों में, पानी की अनुपलब्धता सुर्खियों में रहने वाली है.
पिछले 15 सालों से खतरे की घंटी बज रही है, किंतु किसी ने भी परवाह नहीं की. 1990 के दशक के मुकाबले पिछले दशक में 70 प्रतिशत अधिक भूजल का दोहन हुआ है और देश भर में जलस्त्रोत प्रदूषित हो गए हैं. जिससे कैंसर और फ्लूरोसिस जैसी बीमारियां फैल रही हैं.
सफाई की रूपरेखा
Posted on 17 May, 2010 01:19 PMहमें सफाई की रूपरेखा के साथ उसकी दृष्टि और तरीके को भी थोड़ा समझ लेना चाहिए। अंग्रेजी में कहावत है कि ‘रोग का इलाज करने की अपेक्षा रोग न होने देना कहीं अच्छा है।’ वास्तव में सफाई का असली मतलब तो है गन्दगी न होने देना, न कि गन्दा करके उसे साफ करना।
आजकल सफाई के सम्बंध में एक विचित्र धारणा हो गयी है। जितना स्थान लोगों के आँखों के सामने आता है, उतना ही स्थान साफ रखा जाय, यह बात मनुष्य की आदत में दाखिल हो गयी है। यह धारणा इतनी संस्कारभूत हो गयी है कि हमारे घर के पीछे, असबाब के नीचे, छप्पर और मकानों के कोने अर्थात् ऐसी जगहें, जहाँ किसी की नजर एकाएक नहीं जाती, गन्दगी से हमेशा भरपूर रहती हैं। जहाँ की सफाई में थोड़ी मेहनत की ही जरूरत होती है, सामान आदि हटाने की जरूरत होती है, वहाँ भी आदमी सफाई कोसफाई का महत्व
Posted on 17 May, 2010 12:46 PMउद्योग की प्रक्रियाओं का परिणाम है, आर्थिक उत्पादन। जिसे कूड़ा-करकट समझकर फेंक दिया जाता है, उसकी यदि व्यवस्था वैज्ञानिक ढंग से की जाय, तो आसानी से उसे उत्पादन का जरिया बना सकते हैं। साधारणतः गन्दगी दूर करने का अर्थ कूड़े-करकट को एक स्थान से दूसरे स्थान पर हटा देना समझा जाता है। सचमुच इसे सफाई नहीं कहते। इसे तो गन्दगी का स्थानान्तरण ही कहा जा सकता है।
प्रकृति का मौलिक गुण
गांधी जी सभी रचनात्मक कामों में सफाई को महत्वपूर्ण स्थान देते रहे हैं। वस्तुतः सफाई प्रकृति का एक मौलिक गुण है। प्रकृति आप-से-आप गन्दगी नष्ट कर देती है। प्रत्येक प्राणी को सफाई का बोध रहता है। कहते हैं कि बिल्ली भी बैठते समय पूँछ से जमीन साफ कर लेती है। सृष्टि के सभी प्राणियों में मनुष्य सर्वोच्च प्राणी समझा जाता है। अतः मनुष्य में सफाई का स्तर सबसे ऊँचा होना चाहिए। यही कारण है कि वह ‘साफ-सुथरे’ शब्द का इस्तेमाल जिंदगी के हर पहलू में किया करता है। प्रत्येक मनुष्य, फिर चाहे किसी पेशे का हो, किसी-न-किसी रूप में अपने घर-द्वार की सफाई किया करता है। घर के बाहर, समाज में अथवा दूसरों से मिलने के लिए साफ कपड़े पहनकर जाने के पीछे सफाई
स्वच्छता का धर्म
Posted on 17 May, 2010 12:21 PMबहुत-से गाँव बड़े गंदे होते हैं। अगर गाँव गंदे हों, तो गाँव के लोग नरक में ही रहते हैं। हम गाँव जाते हैं, तो कई गाँवों में नाक बंद करके ही प्रवेश करना पड़ता है, क्योंकि लोग गाँव के बाहर खुले में पाखाना करते हैं। सारी बदबू हवा में फैलती है और उससे बीमारी फैलती है। मल पर मक्खियाँ बैठती हैं और फिर वही मक्खियाँ खाने की चीजों पर भी बैठती हैं। वही खाना जब हम खाते हैं, तो उससे बीमारी होती है। इसी का नामपानी तय करेगा हमारा मानवीय होना
Posted on 16 May, 2010 05:23 PMअब कोई अपने पानी को बांटना नहीं चाहता। वे भी नहीं जिनके पास अच्छा-खासा पानी है। मसलन, मुंबई की हाउसिंग सोसाइटी ये नियम बना रही हैं कि कोई बाहरी शख्स पानी को बाहर न ले जाए। असल में ये बाहरी भी अंदर के ही लोग हैं। ये हमारे घरों में काम करने वाले हैं। उनके बिना हमारी जिंदगी नहीं चल सकती। ये वे लोग हैं जो घरों में साफ-सफाई करते हैं, कपड़े धोते हैं, बर्तन मांजते हैं। ये उन घरों में काम करते हैं, जहां पानी पाइप के जरिए आता है। यहां काम करने के बाद वे अपने घरों को जाते हैं।
चार बाल्टी पानी से क्या आप पांच लोगों के परिवार का काम चला सकते हैं? यह ज्यादा से ज्यादा 80 लीटर दिन भर में हुआ। यानी 20 लीटर प्रति व्यक्ति हर रोज। यही नहीं कभी-कभी तो दिन भर में एक बूंद भी पानी नहीं। ये लाखों लोग इस चुनौती को किसी रेगिस्तान में नहीं झेल रहे हैं। ये मुंबई के लोग हैं, जहां हिंदुस्तान के किसी भी शहर से बेहतर पानी की व्यवस्था है। अगली पानी की लड़ाई देशों के बीच नहीं होगी। वह तो शहरों में दो वर्गो के बीच होगी। अगर लोग ऐसा कहते हैं, तो क्या गलत है।असल में अगली लड़ाई गरीब और अमीर के बीच होनी है। यों अमीरों को भी पानी कटौती का सामना करना पड़ेगा।
स्वच्छता क्यों और कैसे?
Posted on 15 May, 2010 06:40 PMशारीरिक स्वच्छता
1. शारीरिक स्वच्छता के विषय में हिन्दुस्तान की कुछ जातियों ने तो ठीक तौर से ध्यान दिया है, पर साधारण जनता में इस विषय में अभी बहुत काम करना है।
2. बच्चे की सफाई पर तो उन जातियों में भी बहुत कम ध्यान दिया जाता है। बालक के खुद सफाई रखने के लायक होने के पहले उसके माँ-बाप उसे साफ-सुथरा रखने की फिक्र रखते हों, यह नहीं दिखाई देता।
सफाईः विज्ञान और कला
Posted on 15 May, 2010 06:09 PM‘मल-मूत्र सफाई’ नाम से श्री बल्लभस्वामी की एक पुस्तक 1949 में प्रकाशित हुई थी। श्री धीरेन्द्र मजूमदार की किताब ‘सफाई-विज्ञान’, श्री कृष्णदास शाह के अनुभव और ‘मल-मूत्र सफाई’ तीनों का इस्तेमाल करके श्री बल्लभस्वामी ने ‘सफाईः विज्ञान और कला’ नाम से यह किताब लिखी जो 1957 में प्रकाशित हुई। भंगी-मुक्ति के गांधीजी के सेनानी श्री अप्पासाहब पटवर्धन के लेखन का भी उपयोग इस किताब में है।
बाण गंगा नदी सूखने के कगार पर पहुंची
Posted on 16 Apr, 2010 04:11 PMकटरा (जम्मू और कश्मीर) ।। वैष्णो देवी की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए बुरी खबर है। यहां सालों से बह रही बाण गंगा नदी इस साल
लगभग सूख चुकी है। यह नदी वैष्णो देवी मंदिर के पास ही बहती है। वैष्णो देवी जाने वाले श्रद्धालु बाण गंगा में जरूर डुबकी लगाते हैं।
जलवायु परिवर्तन पर सोचिए
Posted on 10 Apr, 2010 08:43 AMप्रकृति को कार्बन की विषाक्तकारी ताकत की जानकारी पहले ही हो जानी चाहिए थी : यह लाखों वर्षों से गोपनीय तरीके से धरती को विषाक्त करता रहा है। अब इसका उत्सर्जन उस प्राकृतिक निवास को अस्थिर करने लगा है, जिसमें हम सभी को रहना है। विवेकशील लोग कह सकते हैं कि यह उस तेजी से धरती को क्षति नहीं पहुंचा रहा, जितना कि बताया जा रहा है, लेकिन इस बारे में तो कोई मतभेद ही नहीं है कि यह पृथ्वी को नुकसान पहुंच
संकट में जल
Posted on 03 Apr, 2010 11:00 AMताजे पानी की घटती उपलब्धता आज की सबसे बड़ी समस्या है। पानी का संकट अनुमानों की सीमाओं को तोड़ते हुए दिन प्रतिदिन गंभीर होता जा रहा है। जहां एक ओर शहरी आबादी में हो रही वृद्धि से यहां जलसंकट विकराल रूप लेता जा रहा है वही दूसरी ओर आधुनिक कृषि में पानी की बढ़ती मांग स्थितियों को और स्याह बना रही है। आवश्यकता इस बात की है कि पानी को लेकर वैश्विक स्तर पर कारगार नीतियां बने और उन पर अमल भी हो।