भारत

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सूख जायेगा विशाल जल स्रोत हिमालय
Posted on 22 Sep, 2010 08:43 AM पिछले 20-25 सालों में पूरे देश में वर्षा की मात्रा में कमी आयी है, यद्यपि इस दौरान कुछ इलाकों में चक्रवात के कारण बहुत ज्यादा बारिश हुई है। इसका उदाहरण 1978 में बंगाल की खाड़ी में हुई 29 और 30 सितंबर की 750 मिलीमीटर वर्षा है। बहुत कम या बहुत ज्यादा वर्षा चक्रवात, अवदाब या निम्न दबाव पर निर्भर करता है। इसलिए चक्रवात के कारण हुई बारिश, कृषि को बहुत अधिक लाभ पहुंचाने के बदले बरबादी का कारण बनता है। ल
ज्यादा पैदावार के लालच में अकाल !
Posted on 22 Sep, 2010 08:31 AM वर्तमान में मानसून का अनियमित होना और वर्षा की मात्रा में स्पष्ट कमी, गंभीर समस्या के रूप में सामने है। यह समस्या पूरे देश के जन-जीवन को प्रभावित कर रही है। सिर्फ भारत में ही नहीं ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, सोवियत यूनियन और चीन जैसे देशों में भी यह समस्या बढ़ी है।भारतीय उपमहाद्वीप का बहुत बड़ा हिस्सा उष्णकटिबंधीय है, जो 5 से 30 डिग्री अक्षांश के बीच पड़ता है। जहां वायु की ग्रहीय संचार पद्धति उतर-पूर्वी
संदर्भ राजस्थान: पानी के रास्ते में खड़े हम
Posted on 21 Sep, 2010 02:41 PM मौसम को जानने वाले हमें बताएंगे कि 15-20 वर्षो में एक बार पानी का ज्यादा होना या ज्यादा बरसना प्रकृति के कलेंडर का सहज अंग है। थोड़ी-सी नई पढ़ाई कर चुके, पढ़-लिख गए हम लोग अपने कंप्यूटर, अपने उपग्रह और संवेदनशील मौसम प्रणाली पर इतना ज्यादा भरोसा रखने लगते हैं कि हमें बाकी बातें सूझती ही नहीं हैं। वरूण देवता ने इस बार देश के बहुत-से हिस्से पर और खासकर कम बारिश वाले प्रदेश राजस्थान पर भरपूर कृपा की है। जो विशेषज्ञ मौसम और पानी के अध्ययन से जुड़े हैं, वो हमें बेहतर बता पाएंगे कि इस बार कोई 16 बरस बाद बहुत अच्छी वर्षा हुई है।

हमारे कलेंडर में और प्रकृति के कलेंडर में बहुत अंतर होता है। इस अंतर को न समझ पाने के कारण किसी साल बरसात में हम खुश होते हैं, तो किसी साल बहुत उदास हो जाते हैं। लेकिन प्रकृति ऎसा नहीं सोचती। उसके लिए चार महीने की बरसात एक वर्ष के शेष आठ महीने के हजारों-लाखों छोटी-छोटी बातों पर निर्भर करती है। प्रकृति को इन सब बातों का गुणा-भाग करके अपना फैसला लेना होता है। प्रकृति को ऎसा नहीं लगता, लेकिन हमे जरूर लगता है कि अरे, इस साल पानी कम गिरा या फिर, लो इस साल तो हद से ज्यादा पानी बरस गया।

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...तो हर दिन मनाना होगा ओजोन दिवस
Posted on 16 Sep, 2010 08:43 AM
किसी व्यवस्था में छेद होने से पहले हमारे विचारों में क्षुद्रता आती है और यह क्षुद्रता यदि वैचारिक हो तो इसका अर्थ यह है कि हमारे पतन की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है।

 

 

ओजोन दिवस 16 सितम्बर पर विशेष


यह सलमान खान का कोई फिल्मी डायलाग नहीं है, सुलगती सच्चाई है और इस सच्चाई का सबब यह है कि आज राजनीति से लेकर समाज, अर्थव्यवस्था और हमारा पर्यावरण, सबकुछ छलनी हो चला है।

सितारों के आगे जहां और भी हैं
Posted on 13 Sep, 2010 03:29 PM

इस साल प्रकृति ने भारत के अधिकांश हिस्से में और दुनिया के कुछ हिस्सों में जो नजारा पेश किया है, वह हैरान करने वाला है। इतनी बारिश हो रही है कि हर कोई चकित है।

संकट में खेती का मित्र मेढक
Posted on 13 Sep, 2010 02:04 PM
मेढ़क एक ऐसा जन्तु है जो प्रतिदिन अपने वजन के बराबर नुकसानदेह कीटों को खा जाता है। यह खेती और मनुष्य का बड़ा अच्छा मित्र है।
जैव विविधता का संरक्षण सबसे बड़ी चिंता
Posted on 30 Aug, 2010 08:02 PM जैव विविधता के संरक्षण का सवाल पृथ्वी के अस्तित्व से जुड़ा है। इसे ध्यान में रखते हुए 22 मई को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है।
सिर्फ हमारा नहीं है यह विश्व
Posted on 28 Aug, 2010 07:44 AM प्रकृति हमें वह सबकुछ प्रदान करने में समर्थ है, जिसकी हमें सामान्य तौर पर आवश्यकता पड़ती है। अनादिकाल से प्रकृति पर विजय पा लेने की आकांक्षा आधुनिक विज्ञान युग में हमें फलीभूत होते दिखाई पडने लगी है। हमारे इस घमंड ने ही हमें विनाश के कगार पर ला खड़ा किया है। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि हम अपनी इस जिद को छोड़कर प्रकृति की छाया में मानवता को बचाना चाहते हैं या नहीं।स्तुशिल्पी प्रकृति से अत्यधिक प्रेरणा लेते हैं। उन्हें लम्बे पेडों से ऊँचे भवनों के बारे में सोचने में मदद मिली और उड़ने वाले चिडरा (डेगन लाय) से हेलिकॉप्टर बनाने की प्रेरणा मिली थी। हमारी अधिकांश उपलब्धियाँ प्रकृति से हैं परंतु हम यह समझ ही नहीं पाते। सक्रिय कार्यकर्ता, दार्शनिक और रचनाशील जेनी बेनीयस ने यह अपना मिशन ही बना लिया है कि बताया जाए कि हम प्रकृति से क्या-क्या लेते हैं। उन्होंने तथा अन्य वैज्ञानिकों ने अमेरिका के मोन्टाना में ‘बायो मिमिकरी इंस्टिट्यूट‘ (जैव नकल संस्थान) के माध्यम से प्रकृति के सिद्धान्त पर आधारित बनी वस्तुओं के बारे में पुनः सीखने का उपक्रम प्रारंभ भी कर दिया है। बेनीयस का विचार है कि प्रकृति के अवलोकन तथा उन्हें समझने और इन प्रक्रियाओं और डिजाइनों की नकल करने से मनुष्यों की
परम ऊर्जाः चरम विनाश (भाग - 3)
Posted on 23 Aug, 2010 03:29 PM भाभा एटमिक रिसर्च सेंटर परमाणु ऊर्जा विभाग का एकमात्र शोध और विकास संस्थान है। वह सुरक्षा मानकों का स्रोत है, स्वास्थ्य विभाग तथा रेडियोलाजिकल संरक्षण विभाग का प्रधान कार्यालय है और परमाणु ऊर्जा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का ‘पालना’ है। यहीं से निकलते हैं देश के भावी परमाणु-वैज्ञानिक। पर इस संस्थान में भी अत्यधिक मात्रा में विकिरण का फैलाव मौजूद है। कोई दस साल पहले की गई आखिरी गिनती में हर साल 4 ल
परम ऊर्जाः चरम विनाश (भाग - 2)
Posted on 23 Aug, 2010 03:03 PM इस प्रकार दूसरे चरण में परमाणु ऊर्जा आयोग की योजना प्राकृतिक यूरेनियम ईंधन वाले रिएक्टरों से निकलने वाले काम आ चुके ईंधन का पुनरुपचार करके, उससे प्राप्त प्लूटोनियम के ईंधन से चलने वाले फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों को स्थापित करने की है। दुनिया में कुछ ही देशों में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर हैं। कई विशेषज्ञों का मत है कि यह तरीका न तो सुरक्षित है, न आर्थिक दृष्टि से किफायती ही।
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