भारत

Term Path Alias

/regions/india

पानी का अधिकार, किसी को कैसे दे सकती है सरकार
Posted on 27 Jun, 2012 02:12 PM पानी का असली मालिक कौन है? पानी किसका है? कौन तय कर सकता है कि पानी किसके कब्जे में रहे?
जंगल को बचाने का प्रयास
Posted on 23 May, 2012 12:28 PM प्रकृति की अद्भुत देन है जंगल। इन जंगलों की वजह से हमें फल-फूल, जलावन के लिए लकड़ी, हरियाली, आदि मिलती है। इन जंगलों को जहां कुछ माफिया लोग अपने फायदे के लिए उजाड़ रहे हैं वहीं कुछ ऐसे भी महापुरुष हैं जो इनको बचाने में लगे हुए हैं। जंगलों की अंधाधुंध कटाई के इस दौर में भरत मंसाता, जादव और नारायण सिंह जैसे लोग भी हैं, जिन्होंने अपने संकल्प से अकेले दम पर वीराने में बहार ला दी। इन अद्भुत प्रयास क
गिनती गिनिए कि वक्त कम है
Posted on 22 Apr, 2012 10:42 AM

22 अप्रैल पृथ्वी दिवस पर विशेष

Coral reef
क्या सीधे शोक प्रस्ताव ही पास करेगी सरकार ?
Posted on 20 Mar, 2012 10:28 AM क्या जीडी अग्रवाल की मौत के बाद ही जागेंगी हमारी संवेदनायें? क्या सरकार ने तय कर लिया है कि वह जीडी अग्रवाल की ’गंगा रक्षा मांग’ को मानने की बजाय उनकी मृत्यु पर सीधे शोक प्रस्ताव ही पास करेगी ? सरकार ने श्रीप्रकाश जायसवाल को बतौर प्रतिनिधि भेजा था। क्या जायसवाल जीडी अग्रवाल की मांग पर अंतिम निर्णय लेने में सक्षम थे ?
GD Agrawal
आसान नहीं है परस्पर नदियों को जोड़ना
Posted on 10 Mar, 2012 01:41 AM

वैसे ‘पानी हमारे संविधान में राज्यों के क्षेत्राधिकार में आता है। परंतु जो नदियां एक से अधिक राज्यों में बहती है

river linking map
नदी जोड़ने का नापाक फैसला
Posted on 08 Mar, 2012 02:14 AM नदी जोड़ परियोजना एक खतरनाक संकेतनदी जोड़ परियोजना एक खतरनाक संकेतनदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजनाओं को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी मिल गई है। 27 फरवरी को मुख्य न्यायाधीश एचएस कापडिया की खंडपीठ ने इस परियोजना को यह कहते हुए वैध करार दे दिया कि इससे आम आदमी को फायदा होगा। इसके साथ ही बहस का नया पिटारा खुल गया है। विरोध के स्वर को देखते हुए अब तक ये माना जा रहा था कि ये योजना देश-व्यापी नहीं रह जाएगी और ख़ास-ख़ास जगहों पर ही इसे आजमाना ज्यादा मुफीद रहेगा। ये उम्मीद की जा रही थी कि इस दौरान किसी विवाद में योजना विरोधियों की ओर से कोर्ट का दखल लिया जाएगा। ये विकल्प अब भी खुला है लेकिन कोर्ट के रूख ने साफ़ कर दिया है कि सरकारें अब तेजी दिखाएं। सरकारी कार्यप्रणाली समझने वाले मान रहे हैं कि ऐसे मेगा प्रोजेक्ल्ट्स के लिए फंड का रोना देखने को नहीं मिलेगा । खर्च जुटा ही लिया जाएगा। योजना के अमल में कमीशन की माया की पूजा होगी और अगले कई सालों तक राजनीतिक दलों को पार्टी चलाने के लिए पैसा आड़े नहीं आएगा।

नदी जोड़ परियोजना एक खतरनाक संकेत
नदियों को ऊपर नहीं, भीतर से जोड़ने की जरूरत
Posted on 02 Mar, 2012 11:37 AM

जिन नदियों को यह कहकर दूसरी नदियों से जोड़ा जा रहा है, उनके पानी में लगातार कमी आ रही है। नदियों में निर्मल जल न

river linking project
प्रकृति को सहेजने की कोशिश
Posted on 13 Jan, 2012 05:11 PM

75 साल के सत्यदेव सगवान ने सेना की नौकरी करते समय प्रकृति एवं पर्यावरण के साथ भावनात्मक नाता जोड़ा। अपने परिश्रम से उन्होंने हरियाणा और राजस्थान के कई इलाकों को हरा-भरा किया है। अपने घर पर ही 2500 पौधों की नर्सरी तैयार की है। इनमें वट, पीपल, खेजड़ी, नीम, जामुन व कदम के पौधे हैं। सत्यदेव जी यह कहकर कि पेड़ भूमि क्षरण रोकने व वर्षा की स्थिति बेहतर करने साथ ही भूमंडल से ब्रह्मांडीय संपर्क भी सकारात्मक एवं सहज करते हैं, लोगों को पौधे रोपने के लिए प्रेरित करते हैं।

इंसान के क्षुद्र स्वार्थ ने पर्यावरण का गंभीर संकट पैदा कर दिया है। इस कारण कब बाढ़ आ जाए, और कब सूखे की मार पड़ जाए या कहां भूकम्प आ जाए, कहा नहीं जा सकता। इसका एकमात्र जिम्मेदार प्राणी मानव है और इसके निदान के लिए जलवायु सम्मेलनों से ही बात नहीं बनेगी। देश-दुनिया का पर्यावरण बचाने के लिए सभी को दिल से कोशिश करनी होगी जैसे गढ़वाल क्षेत्र की की डॉ. हर्षंवती बिष्ट, नैनीताल के वनखंडी महाराज, राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के स्कूल शिक्षक दिनेश व्यास और हरियाणा के 75 वर्षीय सत्यदेव सगवान कर रहे हैं।
आरटीआई के बारे में क्या नहीं जानते हम
Posted on 21 Nov, 2011 02:48 PM आप सूचना का अधिकार कानून का इस्तेमाल करते हैं? क्या आपको मालूम है कि आप अपने पास के डाक घर से केन्द्रीय सरकार के दफ्तरों में सूचना अधिकारियों को बिना किसी डाक खर्च के अपना आवेदन, प्रथम अपील और दूसरी अपील कर सकते हैं?

मेरा अपना आकलन है कि ये डाक घरों के जरिये मुफ्त में सूचनाएं मांगने का आवेदन पत्र भेज सकते हैं, यह जानकारी देश के 0.5 प्रतिशत लोगों को भी नहीं है. यह संसद जानती है. देश भर के 4707 डाकघर के लोग जानते हैं. लेकिन जिनके लिए सूचना का अधिकार कानून बनाया गया है, वे नहीं जानते.

लोकतंत्र में संचार व्यवस्था का अध्ययन
सूचना का अधिकार
विनाश की ओर बढ़ता विकास
Posted on 21 Nov, 2011 02:17 PM

सबसे बड़ी चिंता ये है कि हमने इतना प्रदूषण पैदा कर दिया है कि हमारी समुद्र की सतह पर जो गर्मी रहा करती थी, वो बढ़ रही है और गर्मी बढ़ने के कारण जो हवाएं ठीक से चलनी चाहिए, उसमें विघ्न पड़ गया है। उस विघ्न का भी नाम उन्होंने अलनीनो इफेक्ट कह रखा है। उसके कारण से जो बिचारे बादल आ रहे थे, वे बीच में रुक गए और बाकी के लौट गए बेचारे। अगर बादलों को हवा नहीं ले के आएगी, तो बादलों के पांव तो कोई होते नहीं हैं। अपने आप तो वो चल कर आ नहीं सकते हैं। उनको हवाएं ही लाएंगी। और वो हवाएं अगर गड़बड़ हो गई हैं, तो क्या होगा?

कल मैं पटना से चला। वो हफ्ते में दो दिन चलने वाली गाड़ी है, इसलिए उसमें ज्यादा भीड़ नहीं थी। मैं जाकर अपनी जगह पर बैठा। सामने एक विदेशी लेटे हुए थे। थोड़ी दूर गाड़ी आगे निकली। उन्होंने देखा कि उस डिब्बे में बैठे हुए लोग आकर मेरे दस्तखत लेने की कोशिश कर रहे हैं, मुझसे बात कर रहे हैं। उनको लगा कि ऐसे लेटे रहना शायद ठीक नहीं है। उन्होंने उठकर किसी से जाकर बात की होगी कि ये कौन हैं। फिर उन्होंने मुझसे माफी मांगी और कहा कि मैं इतनी देर पैर पसारे आपके सामने इस तरह से लेटा हुआ हूं तो ये मैं असभ्यता कर रहा था। मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि मैं आज आपके साथ यात्रा कर रहा हूं।

वे जर्मनी के पत्रकार थे। एक साल की छुट्टी लेकर दुनिया घूमने के लिए निकले हुए हैं। अभी वो बिलकुल चले आ रहे थे चीन से। वे चीन से नेपाल आए और नेपाल से दार्जिलिंग आए और दार्जिलिंग से बस पकड़कर पटना। पटना स्टेशन के बाहर भोजन वगरैह करके बहुत थके हुए थे, इसलिए लेट गए होंगे। जवान आदमी, ठीक बात कर रहे थे। पूछा कि आप क्यों जा रहे हैं वहां। मैंने बताया कि वहां सर्व सेवा संघ में आधुनिक सभ्यता के संकट पर ‘हिन्द स्वराज’ की चर्चा है। जर्मनी के किसी प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में पढ़े अच्छे पत्रकार थे वे। उन्होंने कहा कि हां संकट तो सही है लेकिन
×