प्रभाष जोशी

प्रभाष जोशी
यह अनुपम आदमी
Posted on 22 Dec, 2016 11:59 AM

यह कागद मैं उन्हीं अनुपम मिश्र और उनके काम पर काले कर रहा हूँ, जिनका जिक्र आपने कई बार देखा और पढ़ा होगा। यह जीने का वह रवैया है जिसे पहले समझे बिना अनुपम मिश्र के काम और उसे करने के तरीके को समझना मुश्किल है। जो बहुत सीधा-सपाट और समर्पित दिखता है वह वैसा ही होता तो जिन्दगी रेगिस्तान की सीधी और समतल सड़क की तरह उबाऊ होती।

आप, हम सब एक पहलू के लोग होते और दुनिया लम्बाई चौड़ाई और गहराई के तीन पहलुओं वाली बहुरूपी और अनन्त सम्भावनाओं से भरी नहीं होती। विराट पुरुष की कृपा है कि जीवन-संसार अनन्त और अगम्य है।
अनुपम मिश्र
विनाश की ओर बढ़ता विकास
Posted on 21 Nov, 2011 02:17 PM

सबसे बड़ी चिंता ये है कि हमने इतना प्रदूषण पैदा कर दिया है कि हमारी समुद्र की सतह पर जो गर्मी रहा करती थी, वो बढ़ रही है और गर्मी बढ़ने के कारण जो हवाएं ठीक से चलनी चाहिए, उसमें विघ्न पड़ गया है। उस विघ्न का भी नाम उन्होंने अलनीनो इफेक्ट कह रखा है। उसके कारण से जो बिचारे बादल आ रहे थे, वे बीच में रुक गए और बाकी के लौट गए बेचारे। अगर बादलों को हवा नहीं ले के आएगी, तो बादलों के पांव तो कोई होते नहीं हैं। अपने आप तो वो चल कर आ नहीं सकते हैं। उनको हवाएं ही लाएंगी। और वो हवाएं अगर गड़बड़ हो गई हैं, तो क्या होगा?

कल मैं पटना से चला। वो हफ्ते में दो दिन चलने वाली गाड़ी है, इसलिए उसमें ज्यादा भीड़ नहीं थी। मैं जाकर अपनी जगह पर बैठा। सामने एक विदेशी लेटे हुए थे। थोड़ी दूर गाड़ी आगे निकली। उन्होंने देखा कि उस डिब्बे में बैठे हुए लोग आकर मेरे दस्तखत लेने की कोशिश कर रहे हैं, मुझसे बात कर रहे हैं। उनको लगा कि ऐसे लेटे रहना शायद ठीक नहीं है। उन्होंने उठकर किसी से जाकर बात की होगी कि ये कौन हैं। फिर उन्होंने मुझसे माफी मांगी और कहा कि मैं इतनी देर पैर पसारे आपके सामने इस तरह से लेटा हुआ हूं तो ये मैं असभ्यता कर रहा था। मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि मैं आज आपके साथ यात्रा कर रहा हूं।

वे जर्मनी के पत्रकार थे। एक साल की छुट्टी लेकर दुनिया घूमने के लिए निकले हुए हैं। अभी वो बिलकुल चले आ रहे थे चीन से। वे चीन से नेपाल आए और नेपाल से दार्जिलिंग आए और दार्जिलिंग से बस पकड़कर पटना। पटना स्टेशन के बाहर भोजन वगरैह करके बहुत थके हुए थे, इसलिए लेट गए होंगे। जवान आदमी, ठीक बात कर रहे थे। पूछा कि आप क्यों जा रहे हैं वहां। मैंने बताया कि वहां सर्व सेवा संघ में आधुनिक सभ्यता के संकट पर ‘हिन्द स्वराज’ की चर्चा है। जर्मनी के किसी प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में पढ़े अच्छे पत्रकार थे वे। उन्होंने कहा कि हां संकट तो सही है लेकिन
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