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प्राकृतिक आपदा से हार क्यों बार-बार
Posted on 22 Sep, 2011 10:44 AM

जब आपदाओं के प्रति हम सब गंभीर और जागरूक होंगे। प्राकृतिक आपदाओं के प्रति जागरूकता के लिए 13 अक

कहीं सूखा कहीं सैलाब, वाह रे आब
Posted on 22 Sep, 2011 09:55 AM देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं जो साफ पेयजल से महरूम हैं कहीं सूखे की वजह से भुखमरी की नौबत है तो कहीं सैलाब से कोहराम मचा है। पानी की कमी नहीं है लेकिन खराब जल प्रबंधन की वजह से मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। सरकार हवाई योजनाएं बनाकर चुप बैठी है। निरंतर बढ़ते जलसंकट की पड़ताल कर रहे हैं शेखर।

जल-दोहन इसी तरह से जारी रहा तो आने वाले समय में भारत को अनाज और पानी के संकट को झेलने के लिए अभी से तैयार हो जाना चाहिए। जाहिर है कि जब जल संकट बढ़ेगा तो खेती पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। अनाजों के उत्पादन में कमी आएगी। इस वजह से अनाज संकट पैदा होगा और भूख का एक नया चेहरा उभरकर सामने आएगा। एक बड़ा तबका जो आज भरपेट भोजन कर पाता है उसके लिए पेट भर खाना मिलना मुश्किल हो जाएगा। भुखमरी की जो समस्या पैदा होगी उससे फिर निपटना आसान नहीं होगा।

क्या धरती पर पानी के बिना जिंदगानी संभव है? अगर नहीं, तो पानी की इतनी बड़ी बर्बादी क्यों हो रही है। भारत में जलसंकट लगातार दस्तक दे रहा है और सरकार की तंद्रा टूट नहीं रही है। भारत में बारिश का अस्सी फीसद पानी बर्बाद हो जाता है। आलम यह है कि कुछ इलाके तो सैलाब से घिरे रहते हैं और कुछ सूखे से। जनजीवन की हानि दोनों ही स्थितियों में होती है। ऐसे में यह सवाल लगातार उठ रहा है कि देश के जल प्रबंधन को लेकर क्या और कैसे किया जाए। फिर देश के कई हिस्सों में सूखे ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। और कई इलाके बाढ़ से तबाह हैं। कई इलाके ऐसे हैं जहां कम बारिश हुई है। इस वजह से वहां खेती बुरी तरह प्रभावित हुई है। 1991 से शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के बाद भी कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए काफी अहम है।
सरस्वती: द लॉस्ट रिवर ऑफ थार डेजर्ट
Posted on 21 Sep, 2011 04:54 PM

अब सेटेलाईट चित्रों द्वारा इसकी पुष्टि होती है कि लूनी नदी के पश्चिम की ओर चलने वाली जोजरी नदी

तलाश सरस्वती धारा की
Posted on 21 Sep, 2011 04:24 PM

कालांतर में आए भूकंपों के चलते यमुना नदी गंगा की ओर खिसक गई, सतलुज सिंधु की तरफ। सरस्वती को हिम

खो गई थी जो नदी
Posted on 21 Sep, 2011 10:59 AM सरस्वती नदी के अस्तित्व और उसकी जलधारा को लेकर भूगर्भ वैज्ञानिकों, पुरातत्ववेत्ताओं और इतिहासकारों में लंबे अरसे से मतभेद बना हुआ है। केंद्र में आने वाली सरकारों का नजरिया भी इस मुद्दे पर स्थिर और बेबाक नहीं रहा है। ऐसे में कुछ नई खोजों, प्रमाणों और विश्लेषणों पर आधारित एक पक्ष सामने रख रहे हैं बिशन टंडन

अमलानंद घोष ने उत्तरी बीकानेर में सरस्वती और दृशाद्वती घाटियों का गहन अध्ययन किया (1952-53)। इन खोजों ने इस परंपरागत विश्वास की पुष्टि की कि हाकड़ा/घग्गर के सूखे नदीतल पर ही सरस्वती बहती थी। इनमें ओल्ढम के इस निष्कर्ष से भी सहमति प्रकट की गई कि सरस्वती के ह्रास का मुख्य कारण सतलुज की धार बदलना था।

क्या लोक-स्मृति में सदा जीवित सरस्वती नदी अब ओछी राजनीति से बाहर निकल रही है? पिछले सौ साल से अधिक के भूगर्भ विज्ञान और पुरातत्व के शोध और गंभीर अध्ययन को नकारते हुए भारत सरकार के संस्कृति विभाग के मंत्री ने 6 दिसंबर 2004 को संसद में बड़े विश्वास के साथ कहा था कि ‘इसका कोई मूर्त प्रमाण नहीं है कि सरस्वती नदी का कभी अस्तित्व था...।’ वास्तव में यह वक्तव्य मंत्री की गैर-जानकारी का उदाहरण नहीं हो सकता। यह तब के सरकार की राजनीतिक बेबसी से ग्रस्त था। वामपंथी दल गठबंधन में अहम थे और स्वभावतः वे हर मसले को अपने राजनीतिक दृष्टि से ही देखते हैं। इन दलों से किसी न किसी प्रकार संबंधित इतिहासकार भी इसी नजरिए से त्रस्त हैं।
जैव विविधता प्रबंधन
Posted on 21 Sep, 2011 10:56 AM इस बात से शायद ही कोई इन्कार करेगा कि जैव विविधता का सरंक्षण आज के समय की मांग है। पर इस बात पर कोई एकमत नहीं है कि इसे कैसे किया जाए।
जैव विविधता को खतरा
Posted on 21 Sep, 2011 10:08 AM

जैव विविधता का क्षरण (ह्रास) एक नकारा नहीं जा सकने वाला सत्य है। कुछ अध्ययनों से ज्ञात होता है कि वनस्पतियों की हर आठ में से एक प्रजाति विलुप्तता के खतरे से जूझ रही है। जैव विविधता के लिए पैदा हुए ज्यादातर जोखिम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बढ़ती जनसंख्या, जो बेलगाम दर से बढ़ रही है, से जुड़े हुए हैं। दुनिया की जनसंख्या इस समय 6 अरब से अधिक है जिसके 2050 तक 10 अरब तक पहुंचने के अनुमान व्यक्त किए

जैव विविधता के लाभ
Posted on 21 Sep, 2011 09:21 AM जीवन के जाल से हम सब बंधे हुए हैं। इस बात से ही लाभ संबंधी जानकारी की आवश्यकता का पटाक्षेप हो जाना चाहिए। आखिरकार एक अंश कभी भी पूर्णता के महत्व का सवाल नहीं पूछता है। परन्तु होमो सैपियन्स या प्रबुद्ध इन्सान होने के नाते हम वस्तुगत रूप से जैव विविधता के लाभों का अध्ययन कर सकते हैं।

जैव विविधता की पारिस्थितिकीय भूमिका

जैव विविधता समृद्ध क्षेत्र
Posted on 21 Sep, 2011 08:59 AM वैश्विक जैव विविधता पूरी पृथ्वी की सम्पूर्ण जैव विविधता है और इसकी सटीक रूप से गणना करना लगभग असंभव है। हम इतना जरूर जानते हैं कि अधिकांश प्रजातियों का समय समाप्त होता जा रहा है।

वर्णित प्रजातियों में से लगभग:


• 7,50,000 कीट हैं।
• 41,000 कशेरुकी जीव हैं।
• 2,50,000 वनस्पतियां हैं।
जैव विविधता का विस्तार
Posted on 20 Sep, 2011 03:54 PM पृथ्वी पर जीवन के विविध रूप एक समान वितरित नहीं है। जीवों का वितरण जलवायु, ऊंचाई और मिट्टी के आधार पर भिन्नता रखता है। धरा के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार के वनस्पति एवं प्राणी पाए जाते हैं। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में प्रजातियों का वितरण अधिक है। ध्रुवीय और आसपास के क्षेत्र वहां पाई जाने वाली प्रजातियों के प्रकार के मामले में काफी गरीब हैं। अधिकांश स्थलीय विविधता उष्णकटिबंधीय वनों में पाई
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