सुकन्या दत्ता

सुकन्या दत्ता
जैव विविधता प्रबंधन
Posted on 21 Sep, 2011 10:56 AM
इस बात से शायद ही कोई इन्कार करेगा कि जैव विविधता का सरंक्षण आज के समय की मांग है। पर इस बात पर कोई एकमत नहीं है कि इसे कैसे किया जाए।
जैव विविधता को खतरा
Posted on 21 Sep, 2011 10:08 AM

जैव विविधता का क्षरण (ह्रास) एक नकारा नहीं जा सकने वाला सत्य है। कुछ अध्ययनों से ज्ञात होता है कि वनस्पतियों की हर आठ में से एक प्रजाति विलुप्तता के खतरे से जूझ रही है। जैव विविधता के लिए पैदा हुए ज्यादातर जोखिम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बढ़ती जनसंख्या, जो बेलगाम दर से बढ़ रही है, से जुड़े हुए हैं। दुनिया की जनसंख्या इस समय 6 अरब से अधिक है जिसके 2050 तक 10 अरब तक पहुंचने के अनुमान व्यक्त किए

जैव विविधता के लाभ
Posted on 21 Sep, 2011 09:21 AM
जीवन के जाल से हम सब बंधे हुए हैं। इस बात से ही लाभ संबंधी जानकारी की आवश्यकता का पटाक्षेप हो जाना चाहिए। आखिरकार एक अंश कभी भी पूर्णता के महत्व का सवाल नहीं पूछता है। परन्तु होमो सैपियन्स या प्रबुद्ध इन्सान होने के नाते हम वस्तुगत रूप से जैव विविधता के लाभों का अध्ययन कर सकते हैं।

जैव विविधता की पारिस्थितिकीय भूमिका

जैव विविधता समृद्ध क्षेत्र
Posted on 21 Sep, 2011 08:59 AM
वैश्विक जैव विविधता पूरी पृथ्वी की सम्पूर्ण जैव विविधता है और इसकी सटीक रूप से गणना करना लगभग असंभव है। हम इतना जरूर जानते हैं कि अधिकांश प्रजातियों का समय समाप्त होता जा रहा है।

वर्णित प्रजातियों में से लगभग:


• 7,50,000 कीट हैं।
• 41,000 कशेरुकी जीव हैं।
• 2,50,000 वनस्पतियां हैं।
जैव विविधता का विस्तार
Posted on 20 Sep, 2011 03:54 PM
पृथ्वी पर जीवन के विविध रूप एक समान वितरित नहीं है। जीवों का वितरण जलवायु, ऊंचाई और मिट्टी के आधार पर भिन्नता रखता है। धरा के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार के वनस्पति एवं प्राणी पाए जाते हैं। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में प्रजातियों का वितरण अधिक है। ध्रुवीय और आसपास के क्षेत्र वहां पाई जाने वाली प्रजातियों के प्रकार के मामले में काफी गरीब हैं। अधिकांश स्थलीय विविधता उष्णकटिबंधीय वनों में पाई
जैव विविधता
Posted on 20 Sep, 2011 02:56 PM
जाने-माने संरक्षण जीवविज्ञानी थॉमस यूजीन लवजॉय ने 1980 में ‘बायोलोजिकल’ और ‘डायवर्सिटी’ शब्दों को मिलाकर ‘बायोलॉजिकल डायवर्सिटी’ या जैविक विविधता शब्द प्रस्तुत किया। चूंकि ये शब्द दैनिक उपयोग के लिहाज से थोड़ा बड़ा महसूस होता था, इसलिए 1985 में डब्ल्यू.जी.रोसेन ने ‘बायोडायवर्सिटी’ या जैव विविधता शब्द की खोज की। मूल शब्द के इस लघु संस्करण ने तुरंत ही वैश्विक स्वीकार्यता प्राप्त कर ली। शायद ही कोई द
जीवन श्रृंखलाएं और जीवन जाल
Posted on 20 Sep, 2011 12:30 PM
पृथ्वी नाना प्रकार के जीवों की शरणस्थली है जिसमें जटिल वनस्पतियों और प्राणियों से लेकर सरल एककोशीय जीव सम्मिलित हैं। परन्तु चाहे बड़ा हो या छोटा, सरल हो या जटिल, कोई भी जीव अकेला नहीं रहता। हर कोई किसी न किसी रूप में अपने आस-पास स्थित जीवों या निर्जीव पर्यावरण पर निर्भर करता है। गौर से देखने पर ज्ञात होता है कि इस प्रकृति के चित्रपट का ताना-बाना बनाने वाली प्रजातियां एक मूल सिद्धांत से बंधी हुई है
धरती पर जीवन का वर्गीकरण
Posted on 20 Sep, 2011 11:34 AM
धरती पर जीवन के असंख्य रूप हैं। जीवन यहां इतने विस्मयकारी विन्यास में प्रदर्शित होता है कि यदि इसे यथोचित रूप से वर्गीकृत न किया जाए तो इसे समझना तो दूर की बात है, इसका अध्ययन करना भी असंभव होगा। वनस्पतियों और प्राणियों को वर्गीकृत करने की क्रमबद्ध प्रणाली स्वीडन के जीवविज्ञानी कैरोलस लिनियस के विचारों पर आधारित थी पर कुछ सुधारों के साथ आज भी इसी को अपनाया जा रहा है। उन्होंने वनस्पतियों और प्राणिय
कैरोलस लिनियस
धरा पर जीवन का आरम्भ
Posted on 20 Sep, 2011 09:01 AM
हमारी धरती बहुत पुरानी है। यदि इसका इतिहास देखा जाए तो हमारे पास उपलब्ध प्राणियों और वनस्पतियों के ऐतिहासिक या जीवाश्म रिकार्ड के अनुसार धरती का अस्तित्व बहुत पुराना है। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की उम्र लगभग 4.55 अरब वर्ष है। इस महाविशाल समय के पैमाने को समझना बहुत मुश्किल है। इसलिये वैज्ञानिकों ने धरती की उम्र को कई कालों में विभक्त किया है।

जीवन का कलैण्डर


उपरोक्त सारणी के अनुसार कालावधि वास्तव में बहुत विशाल है। लेकिन यदि प्रकृतिविद् डेविड एटनबरो द्वारा उनकी पुस्तक ‘लाईफ ऑन अर्थ’ में प्रस्तुत किए गए समय के पैमाने को अपनाया जाए तो गुजरे वक्त के विस्तार को सरलता से समझा जा सकता है। उनके अनुसार यदि हम एक ऐसे कलैण्डर को अपनाएं जिसमें साल का हर दिन 10 करोड़ वर्ष के बराबर हो तो इस हिसाब से हम यह याद रख सकते हैं कि धरती पर मानव की उत्पत्ति 31 दिसम्बर की शाम को हुई थी। इस प्रकार से विभेद करने पर आसानी से
धरा पर जीवन
Posted on 19 Sep, 2011 12:55 PM

जीवन के आधार


‘जीवन’ और ‘सजीव’ शब्द आज बहुत सामान्य है। हम इन्हें सहज रूप से ही समझते हैं, और हम, सामान्यता बगैर किसी त्रुटि के, ‘सजीव’ और ‘निर्जीव’ के बीच में भेद कर सकते हैं। इन सबके बावजूद भी उन लक्षणों को पहचान पाना बहुत आसान नहीं है जो ‘सजीव’ को ‘निर्जीव’ से अलग करते हैं।

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