बिशन टंडन

बिशन टंडन
वाम धारा से मुक्त हुई सरस्वती
Posted on 02 Aug, 2015 11:09 AM
6 दिसम्बर, 2004 को केन्द्र सरकार ने सरस्वती के अस्तित्व को मानने से मना कर दिया था। सरकार का यह दृष्टिकोण तब तक रहा, जब तक वह अपने अस्तित्व के लिये वामपंथी दलों पर आश्रित थी। सरकारी गठबन्धन से वाम दलों के प्रस्थान के बाद सरकार ने 3 दिसम्बर, 2009 को राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में सरस्वती नदी के अस्तित्व को ‘बिना किसी सन्देह’ के स्वीकार किया। उत्तर के कथन में यह भी कहा गया कि खोज में पाये गए
खो गई थी जो नदी
Posted on 21 Sep, 2011 10:59 AM
सरस्वती नदी के अस्तित्व और उसकी जलधारा को लेकर भूगर्भ वैज्ञानिकों, पुरातत्ववेत्ताओं और इतिहासकारों में लंबे अरसे से मतभेद बना हुआ है। केंद्र में आने वाली सरकारों का नजरिया भी इस मुद्दे पर स्थिर और बेबाक नहीं रहा है। ऐसे में कुछ नई खोजों, प्रमाणों और विश्लेषणों पर आधारित एक पक्ष सामने रख रहे हैं बिशन टंडन

अमलानंद घोष ने उत्तरी बीकानेर में सरस्वती और दृशाद्वती घाटियों का गहन अध्ययन किया (1952-53)। इन खोजों ने इस परंपरागत विश्वास की पुष्टि की कि हाकड़ा/घग्गर के सूखे नदीतल पर ही सरस्वती बहती थी। इनमें ओल्ढम के इस निष्कर्ष से भी सहमति प्रकट की गई कि सरस्वती के ह्रास का मुख्य कारण सतलुज की धार बदलना था।

क्या लोक-स्मृति में सदा जीवित सरस्वती नदी अब ओछी राजनीति से बाहर निकल रही है? पिछले सौ साल से अधिक के भूगर्भ विज्ञान और पुरातत्व के शोध और गंभीर अध्ययन को नकारते हुए भारत सरकार के संस्कृति विभाग के मंत्री ने 6 दिसंबर 2004 को संसद में बड़े विश्वास के साथ कहा था कि ‘इसका कोई मूर्त प्रमाण नहीं है कि सरस्वती नदी का कभी अस्तित्व था...।’ वास्तव में यह वक्तव्य मंत्री की गैर-जानकारी का उदाहरण नहीं हो सकता। यह तब के सरकार की राजनीतिक बेबसी से ग्रस्त था। वामपंथी दल गठबंधन में अहम थे और स्वभावतः वे हर मसले को अपने राजनीतिक दृष्टि से ही देखते हैं। इन दलों से किसी न किसी प्रकार संबंधित इतिहासकार भी इसी नजरिए से त्रस्त हैं।
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