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भारत
शहरीकरण रुके तो कार्बन उत्सर्जन थमे
Posted on 21 Apr, 2012 02:44 PMहालांकि दूसरे एशियाई देशों के मुकाबले भारत में अब भी शहरीकरण की दर बहुत कम है। दक्षिण कोरिया में 81 प्रतिशत, मले
शौच पर एक कानूनी सोच
Posted on 20 Apr, 2012 10:21 AMवर्ष 2008 में सरकार ने कहा था कि वर्ष 2015 तक कुल 60 फीसदी भारतीयों की खुले में शौच की समस्या का निराकरण कर लिया
सकारात्मक सोच, दृढ संकल्प व ठोस कदम से ही पृथ्वी का संरक्षण संभव
Posted on 20 Apr, 2012 09:28 AM22 अप्रैल पृथ्वी दिवस पर विशेष
एनजीआरबीए की तीसरी बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का भाषण
Posted on 19 Apr, 2012 03:14 PM17 अप्रैल 2012 ‘राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण’ की आज यहां हो रही तीसरी बैठक में शामिल होकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। मैं आप सबका हार्दिक स्वागत करता हूं।![प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मंगलवार को नई दिल्ली में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की बैठक की अध्यक्षता करते हुए](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/ganga3_3.jpg?itok=4v9eRvgM)
अब जवान बताएंगे गंगा में अमृत है या जहर
Posted on 19 Apr, 2012 10:41 AMहर पचास किमी का सैंपल एकत्रित कर उसकी हकीकत दुनिया के सामने लाएगा आईटीबीपी
गंगा प्राधिकरण की तीसरी बैठक संकेत बुरे, बैठक बेनतीजा
Posted on 18 Apr, 2012 05:54 PMगंगा प्राधिकरण की बैठक का विफल होना यह संकेत है कि अध्ययन व कार्ययोजना उसे अनुकूल मानते हों या न मानते हों, मास्
![national ganga river basin authority meeting](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/national%20ganga%20river%20basin%20authority%20meeting_3.jpg?itok=Vw-5yA1M)
पृथ्वी रहेगी तो जीवन बचेगा
Posted on 18 Apr, 2012 12:24 PMपृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष
ग्लोबल वार्मिंग आज पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है। सबसे अजीब बात यह है कि जो विकसित देश इस समस्या के लिए अधिक जिम्मेदार हैं वहीं विकासशील व अन्य देशों पर इस बात के लिए दबाव बना रहे हैं कि वो ऐसा विकास न करें जिससे धरती का तापमान बढ़े। हालांकि वो खुद अपनी बात पर अमल नहीं करते लेकिन दूसरों देशों को शिक्षा देते हैं। बहरहाल बात चाहे जो हो विभिन्न देशों के आपसी विवाद में नुकसान केवल हमारी पृथ्वी का ही है।
पृथ्वी पर कल-कल बहती नदियां, माटी की सोंधी महक, विशाल महासागर, ऊंचे-ऊंचे पर्वत, तपते रेगिस्तान सभी जीवन के असंख्य रूपों को अपने में समाए हुए हैं। वास्तव में अन्य ग्रहों की अपेक्षा पृथ्वी पर उपस्थित जीवन इसकी अनोखी संरचना, सूर्य से दूरी एवं अन्य भौतिक कारणों के कारण संभव हो पाया है। इसलिए हमें पृथ्वी पर मौजूद जीवन के विभिन्न रूपों का सम्मान और सुरक्षा करनी चाहिए। परंतु पिछले कुछ दहाईयों के दौरान मानवीय गतिविधियों एवं औद्योगिक क्रांति के कारण पृथ्वी का अस्तित्व संकट में पड़ता जा रहा है। दिशाहीन विकास के चलते इंसानों ने प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया है। परिणामस्वरूप आज हवा, पानी और मिट्टी अत्यधिक प्रदूषित हो चुके हैं। इस प्रदूषण के कारण कहीं लाइलाज गंभीर बीमारियां फैल रही हैं तो कहीं फसलों की पैदावार प्रभावित हो रही है।गंगा नदी मुद्दा : मुख्यमंत्रियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं में मतभेद
Posted on 18 Apr, 2012 11:49 AMइस बैठक में जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद शामिल नहीं हो सके। लेकिन पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने
बौने होकर हम बच जाएंगे
Posted on 16 Apr, 2012 05:03 PMकुछ वैज्ञानिक समुद्र में लोहे का अंश बढ़ाने की बात करते हैं। उनका तर्क है कि इससे कार्बन सोखने वाले प्लैंकटन को
मिट्टी हमारा साथ छोड़ रही है
Posted on 14 Apr, 2012 04:17 PMहम मिट्टी को यों ही हलके में लेते रहेंगे, तो यह तसवीर नहीं बदलने वाली। इसका खामियाजा आखिरकार हमें ही भुगतना पड़ेग
![soil](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/soil_17.jpg?itok=MXoBtMye)