भारत

Term Path Alias

/regions/india

शौचालय मुहैया करा देने से ही सेनिटेशन नहीं आ जाता
Posted on 06 Jun, 2012 10:12 AM आजादी के 64 साल बाद भी देश के सिर्फ 47 प्रतिशत घरों में ही शौचालय की सुविधा मौजूद है। बाकी 53 प्रतिशत यानी देश की आधे से भी ज्यादा जनता खुले में ही निवृत होने को मजबूर हैं। हालांकि पिछले 10 सालों में, इसमें 13 प्रतिशत का सुधार हुआ है। 2001 में सिर्फ 34 प्रतिशत घरों में ही शौचालय था। लेकिन स्थिति अब भी कोई ज्यादा अच्छी नहीं है। महज शौचालय मुहैया करा देने से ही काम पूरा नहीं जाता उसके लिए जरूरी ह
पर्यावरण संकट और भारतीय चित्त
Posted on 05 Jun, 2012 04:38 PM जैन समाज में लंबी तपस्याएं (निराहार) करने की परंपरा रही है। ‘उणोदरी-तप’ को एक श्रेष्ठ तप माना जाता है इसमें अपेक्षा या आवश्यकता से एक चौथाई कम खाने की परंपरा है। जीवन में खाद्य वस्तुओं का सेवन कम करने, वस्त्रों का सेवन कम करने और भौतिक संसाधनों का सेवन कम करने उणोदरी-तप की मुख्य साधना है। भारतीय चित्त और मानस प्रकृति के साथ सामंजस्य से चलता है बता रहे हैं शुभू पटवा।
अनाज की बर्बादी इस तरह रोकिए
Posted on 04 Jun, 2012 04:50 PM

एक अनुमान के अनुसार देश में प्रतिवर्ष लगभग 60 हजार करोड़ रुपए का अनाज नष्ट हो जाता है। सरकार ने बफर नॉर्म्स तय क

आधुनिक विकास के दौड़ में खत्म होते जंगल
Posted on 04 Jun, 2012 09:41 AM प्रकृति ने जिस जंगल को हमें देकर न केवल जंगल में औषधि, पशु-पक्षी आदि को अपने गोद में पाला बल्कि हमें भी अपने ही गोद में पालकर अनेक प्रकार के प्राकृतिक औषधियां, पानी, लकड़ी सभी चीजों को उपलब्ध कराया आज उसी जंगल को हम उजाड़ने में लगे हैं कहीं खनन करके तो कहीं बांध बांधकर अपने आधुनिक सुविधाओं की पूर्ति के लिए इन जंगलों को खत्म करने के होड़ में लगे हैं।
जलवायु परिवर्तन एवं मानवाधिकार
Posted on 04 Jun, 2012 08:36 AM

इस आने वाले अजूबे से विश्व में प्रत्येक देश और व्यक्ति केवल अपने संकीर्ण लाभ के लिए ऐसे पागलपन के साथ जूझेगा जिस

परिवर्तन के लिए यात्रा
Posted on 02 Jun, 2012 11:48 AM

हमारे वनवासी पहले ही बड़े बांधों के नाम पर उजाड़े जाते रहे हैं और अब बड़ी पूंजी के नाम पर उन्हें बेदखल किया जा रहा है। तिजोरियों वाला ‘इंडिया’ अलग देश है और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता और नक्सलवाद से जूझता ‘हिन्दुस्तान’ एक अलग देश है और दोनों ही के बीच एक गहरी खाई है। एक तरफ हम अपनी सुविधाओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर आराम के साधन जुटा रहे हैं तो दूसरी तरफ लाखों लोग अपनी भूमि और आजीविका के संसाधनों से वंचित हो रहे हैं।

भारत की जनसंख्या विश्व जनसंख्या की 16 प्रतिशत है, जबकि भारत भूमि का रकबा विश्व रकबे का मात्र 2 प्रतिशत है और हम हैं कि बड़े उद्योगों, विशेष आर्थिक क्षेत्र (एस.ई.जेड.) और चौड़ी सड़कों इत्यादि के नाम पर अमीरों के फायदे के लिए भूमि बर्बाद करते जा रहे हैं। जो कारखाना 500 एकड़ में बनने वाला है, वहां पांच हजार से दस हजार एकड़ तक भूमि की मांग करते हैं और कमोवेश वे इसे ले भी सकते हैं।
साफ माथे का पानी
Posted on 01 Jun, 2012 11:32 AM

आज का विज्ञान और तकनीकी की बात करने वाला नदियों से अलग-थलग पड़ा यह समाज जल-चक्र को ही नकार रहा है। इस नई सोच का मानना है कि नदियां व्यर्थ में ही पानी समुद्र में बहा रही हैं। ये लोग भूल रहे हैं कि समुद्र में पानी बहाना भी जल-चक्र का एक बड़ा हिस्सा है। नदी जोड़ परियोजना पर्यावरण भी नष्ट करेगी और भूगोल भी। नदियों को मोड़-मोड़ कर उल्टा बहाने की कोशिश की गई तो आने वाली पीढ़ियां शायद ही हमें माफ कर पाएंगी।

दृष्टि, दृष्टिकोण, दर्शन, विचार और उसकी धारा में पानी खो रहा है। पानी के अकाल से पहले माथे का अकाल हो चुका है; अच्छे कामों और विचारों का अकाल हो चुका है। नदी समाजों से खुद को जोड़ने की बजाय सरकारें समाज को नदियों से दूर करना चाहती है। आजादी से अब तक की सरकारी योजनाओं में सबसे खतरनाक और अव्यावहारिक नदी-जोड़ योजना की कोशिश हो रही है। भूगोल को कुछ लोग ‘ठीक’ करना चाहते हैं। कानून से पर्यावरण बचाना और पेड़ लगाना चाहते हैं। बड़े-बड़े बांध बांधकर लोगों की प्यास बुझाना चाहते हैं। कहना ना होगा कि ये बड़े- बड़े विचार लोगों की प्यास तो बिल्कुल नहीं बुझा पा रहे हैं। उदाहरणों के लिये इतिहास में ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। अभी पिछले साल ही मध्य प्रदेश के कई शहरों में पानी के वितरण के लिए सीआरपीएफ लगानी पड़ी। नदी की बाढ़ से ज्यादा माथे की बाढ़ दुखदायी बन गई है।
रोजमर्रा के जीवन में कचरा करते हम
Posted on 31 May, 2012 08:59 AM आज जो कचरा हमारे पर्यावरण और भूजल को नुकसान पहुंचा रहा है। उसे हमने ही तो जमा किया है। पेन, शेविंग किट, दूध की थैली, पानी का बोतल आदि सभी चीजें प्लास्टिक में ही आती है जिसे हर हफ्ते कचरा बढ़ाने वाले ‘यूज एंड थ्रो’ के रूप में प्रयोग करते हैं। पूरे देश में हर रोज चार करोड़ दूध की थैलियां और दो करोड़ पानी की बोतलें कूड़े में फेंकी जाती हैं। इस बढ़ते कचरा के बारे में जानकारी दे रहे हैं पंकज चतुर्वे
Plastic Trash
सराय एक्ट का मिट जाना
Posted on 30 May, 2012 10:38 AM

जब कोई मेहमान घर पर आता है तो उसे सबसे पहले पानी पिलाया जाता है। जेठ की दोपहरी में व चिलचिलाती गर्मी में धर्मलाभ

शौचालय या मोबाइल फोन
Posted on 29 May, 2012 04:31 PM अक्सर व्यंग में कहा जाता है और शायद आपने पढ़ा भी हो कि हमारे देश में आज संडास से ज्यादा मोबाइल फोन हैं। अगर यहां हर व्यक्ति के पास मल त्यागने के लिए संडास हो तो कैसा रहे?
×