रुपल अजबे

रुपल अजबे
परिवर्तन के लिए यात्रा
Posted on 02 Jun, 2012 11:48 AM

हमारे वनवासी पहले ही बड़े बांधों के नाम पर उजाड़े जाते रहे हैं और अब बड़ी पूंजी के नाम पर उन्हें बेदखल किया जा रहा है। तिजोरियों वाला ‘इंडिया’ अलग देश है और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता और नक्सलवाद से जूझता ‘हिन्दुस्तान’ एक अलग देश है और दोनों ही के बीच एक गहरी खाई है। एक तरफ हम अपनी सुविधाओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर आराम के साधन जुटा रहे हैं तो दूसरी तरफ लाखों लोग अपनी भूमि और आजीविका के संसाधनों से वंचित हो रहे हैं।

भारत की जनसंख्या विश्व जनसंख्या की 16 प्रतिशत है, जबकि भारत भूमि का रकबा विश्व रकबे का मात्र 2 प्रतिशत है और हम हैं कि बड़े उद्योगों, विशेष आर्थिक क्षेत्र (एस.ई.जेड.) और चौड़ी सड़कों इत्यादि के नाम पर अमीरों के फायदे के लिए भूमि बर्बाद करते जा रहे हैं। जो कारखाना 500 एकड़ में बनने वाला है, वहां पांच हजार से दस हजार एकड़ तक भूमि की मांग करते हैं और कमोवेश वे इसे ले भी सकते हैं।
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