भारत

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प्रकृति
Posted on 16 Apr, 2013 09:27 AM
एक पेड़ था बहुत बड़ा
और अपनी अनोखी छाया से भरा
जितनी सुंदर उसकी काया
उतनी अद्भुत उसकी माया
यह जो ज़मीन है
Posted on 14 Apr, 2013 04:36 PM देश में खेती की ज़मीन पर दोतरफा हमला हो रहा है। कई राज्यों में निरंतर सूखे की वजह से उपजाऊ ज़मीन बंजर हो रही है वहीं दूसरी तरफ सरकारें विकास के नाम पर बलपूर्वक किसानों से ज़मीन छीन रही हैं। कई राज्यों में संघर्ष की स्थिति है, लेकिन नीति निर्माताओं के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही। क्या है असली समस्या और क्यों सरकारें अपनी जन कल्याणकारी भूमिका से विमुख होकर कारपोरेट कंपनियों के सहयोगियों-सा बर्ताव
Land Acquisition
जनहित के नाम पर बाजार तलाशने में जुटे विश्व बैंक का विरोध
Posted on 12 Apr, 2013 01:18 PM बांध बनाने के लिए किए विस्फोटों से उनके घरों में दरार पड़ गई है। पानी के स्रोत सूख गए, उन्हें मुआवजा तक नहीं मिला। नर्मदा विस्थापितों का पुनर्वास तक नहीं हुआ। आज विश्व बैंक उनकी बात तक नहीं करता। वह केवल नई परियोजनाओं को पैसा आवंटित करने की कोशिश में लगा है ताकि उसे मोटा ब्याज और कंपनियों को मुनाफ़े की परियोजना पर काम का मौका मिल सके। विश्व बैंक की नागरिक समाज के साथ परामर्श बैठक को महज कागजी खानापूरी करार देते हुए देश के तमाम नागरिक समाज, सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने विरोध करने का फैसला किया है। गुरुवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में हिमांशू ठक्कर, विमल भाई, राजेंद्र रवि व अन्य समाज सेवकों ने कहा कि हाल में बुलाई गई यह बैठक शर्मनाक घटना है क्योंकि जनहित के नाम पर इसमें विश्व बैंक व निजी कंपनियों के हितपूर्ति की कोशिश ही छुपी हुई है। इनके लिए बाजार की संभावना तलाशने का यह अभियान भर है। इसलिए विरोध प्रदर्शन करके हमने इन्हें दो बैठकें रद्द करने को विवश कर दिया।
जलवायु परिवर्तन
Posted on 06 Apr, 2013 09:40 AM भारत के संदर्भ में यह स्पष्ट है कि यहां की कृषि अधिकांशतः मानसून आधारित है। लिहाजा मौसम में हो रहे बद
प्राणियों में दिखाई देने लगा है ग्लोबल वार्मिंग का असर
Posted on 03 Apr, 2013 09:32 AM ग्रीन हाउस प्रभाव के कारणों व परिणाम पर विवाद के बावजूद वैज्ञानिक
नजीर और नसीहत
Posted on 25 Mar, 2013 04:02 PM

डीआरडीओ : सैनिटेशन मॉडल

सफाई को साझे की दरकार
Posted on 25 Mar, 2013 03:02 PM कौन कहता है कि आसमां में सुराख हो नहीं सकता।
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।।


पांवधोई डॉट ऑर्ग पर लिखी दुष्यंत की यह पंक्ति इस बात की पुख्ता सुबूत है कि चाहे किसी मैली नदी को साफ करना हो या सूखी नदी को ‘नीले सोने’ से भर देना हो..सिर्फ धन से यह संभव नहीं है। धुन जरूरी है। नदी को प्रोजेक्ट बाद में।

कम खर्च में बड़ी सफलताओं से सीखने की जरूरत

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