जनहित के नाम पर बाजार तलाशने में जुटे विश्व बैंक का विरोध

बांध बनाने के लिए किए विस्फोटों से उनके घरों में दरार पड़ गई है। पानी के स्रोत सूख गए, उन्हें मुआवजा तक नहीं मिला। नर्मदा विस्थापितों का पुनर्वास तक नहीं हुआ। आज विश्व बैंक उनकी बात तक नहीं करता। वह केवल नई परियोजनाओं को पैसा आवंटित करने की कोशिश में लगा है ताकि उसे मोटा ब्याज और कंपनियों को मुनाफ़े की परियोजना पर काम का मौका मिल सके। विश्व बैंक की नागरिक समाज के साथ परामर्श बैठक को महज कागजी खानापूरी करार देते हुए देश के तमाम नागरिक समाज, सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने विरोध करने का फैसला किया है। गुरुवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में हिमांशू ठक्कर, विमल भाई, राजेंद्र रवि व अन्य समाज सेवकों ने कहा कि हाल में बुलाई गई यह बैठक शर्मनाक घटना है क्योंकि जनहित के नाम पर इसमें विश्व बैंक व निजी कंपनियों के हितपूर्ति की कोशिश ही छुपी हुई है। इनके लिए बाजार की संभावना तलाशने का यह अभियान भर है। इसलिए विरोध प्रदर्शन करके हमने इन्हें दो बैठकें रद्द करने को विवश कर दिया।

साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम, रीवर्स एंड पीपुल के हिमांशु ठक्कर ने कहा कि विश्व बैंक ने अपने पक्ष में माहौल खड़ा करने के लिए सिविल सोसाइटी कंसल्टेशन नाम का सहारा लिया है। ताकि यह संदेश दे कि हम जनहित व पर्यावरणीय हितों को तरजीह दे रहे हैं और अपनी परियोजनाओं को आगे बढ़ा सके। जबकि इस बैठक में न तो विकास परियोजनाओं के प्रभावितों को बुलाया गया न ही कई साल पहले बने बांध प्रभावितों के हालातों का जायजा लिया गया। न ही इस बैठक में पर्यावरणीय प्रभावों की समीक्षा की गई और न पहले हुई भूलों से कोई सीख लेने की कोई पहल की गई।

माटू जन संगठन के विमल भाई ने कहा कि आज तक उत्तराखंड के हरसारी में पीपलकोटि परियोजना के प्रभावितों को मुआवजा तक नहीं मिला। बांध बनाने के लिए किए विस्फोटों से उनके घरों में दरार पड़ गई है। पानी के स्रोत सूख गए, उन्हें मुआवजा तक नहीं मिला। नर्मदा विस्थापितों का पुनर्वास तक नहीं हुआ। आज विश्व बैंक उनकी बात तक नहीं करता। वह केवल नई परियोजनाओं को पैसा आवंटित करने की कोशिश में लगा है ताकि उसे मोटा ब्याज और कंपनियों को मुनाफ़े की परियोजना पर काम का मौका मिल सके।

इसमें सिविल सोसाइटी के नाम पर उन संस्थानों को बुला गया है जो कंपनियों के ही पैसों पर सामाजिक जिम्मेदारियों के तहत कथित समाज सेवा कर रहे हैं। विरोध करते हुए संगठनों ने कहा कि हम उन्हें पूरी तरह खारिज करते हैं। हमने दिल्ली और बंगलूर में होने वाली बैठक को रद्द करने पर विवश कर दिया। भुवनेश्वर में बैठक हुई लेकिन पुलिस के घेरे में। इसमें भी वास्तविक रूप से जिन्हें होना चाहिए था, नहीं थे। अल्टरनेट ला फोरम के क्लिफ्टन डी रोजारियो ने बताया कि बंगलूर की बैठक में जिन अफसरों को बुलाया गया था उनसे जब हमने पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए किए गए आठ प्रावधानों के बारे में पूछा तो हैरानी भरा जवाब मिला कि वे तो ऐसे किसी प्रावधान के बारे में जानते तक नहीं। कर्नाटक के चार शहरों में पानी आपूर्ति का निजीकरण किया जा चुका है और शहरों में भी ऐसा करने के लिए बैठक रखी गई थी।

नेशनल साइकलिस्ट्स यूनियन के राजेंद्र रवि ने बताया कि बैठक में जिन्हें बुलाया गया उनमें दिल्ली के नौकरशाह, बिल्डर व बड़ी-बड़ी कंपनियों के मालिक रहे। इनके जरिए विश्व बैंक अपनी नीतियाँ लागू करवा सके। भारत के समुद्र तटीय इलाकों में पहले भी ऐसी बैठक की गई थी तब पर्यावरणीय प्रभावों के अध्ययन की बात कही गई थी लेकिन उसके बाद हुआ क्या कि तटीय इलाकों में ढेर सारे निजी पोर्ट बन गए, बिजली संयंत्र लग गए, खूब सारे वाटर स्पोर्ट्स खुल गए। मछुआरों का भला नहीं हुआ।

यह ही नहीं शिक्षा सहित तमाम क्षेत्र निजी कंपनियों के लिए लगातार खोले जा रहे हैं। इसका विरोध जरूरी है। देश में काफी पैसा है उसका ही देश के विकास में उपयोग हो। भारत जन विज्ञान जत्था के सौमा दत्ता, नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट के मधुरेश कुमार व सृजन लोक हित के अवधेश भाई ने भी विचार रखे। इन्होंने हर स्तर पर विश्व बैंक या दूसरी कर्ज देने वाली विदेशी कंपनियों के आ रहे पैसों व उनकी दखल पर रोक लगाने व टिकाऊ विकास को आगे बढ़ाने की मांग की। इन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की विश्व बैंक की नीतियों और उसकी ही राह पर चलने से बाज आने की चेतावनी भी दी और कहा कि अगर सरकार नहीं सुनती है तो व्यापक आंदोलन किया जाएगा।

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