और अब नदियों को जोड़ने के शेख़चिल्ली के सपने

एक बार फिर नये सिरे से नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव लाया जा रहा है। जो पुराने प्रस्ताव से ज्यादा जटिल और लंबा-चौड़ा है। नये प्रस्ताव के अनुसार गंगा और ब्रह्मपुत्र की हिमालय से निकलने वाली सहायक नदियों में भारत, नेपाल व भूटान में बड़े बांध बनाए जायेंगे। पूर्व की ओर बहने वाली नदियों के अतिरिक्त पानी को पश्चिम की ओर तथा गंगा व ब्रह्मपुत्र के पानी को महानदी की ओर भेजने की बात कही गई है। इसी प्रकार महानदी, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी को जोड़ने और इनमें जल-संग्रह बांधों के निर्माण की तथा केन चंबल व तापी जैसी नदियों को पश्चिम की ओर मोड़ने की योजना बनाई गई है। कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी के पानी के बँटवारे पर चल रहे विवाद की पृष्ठभूमि में उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को देश की नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना को 10 वर्ष के भीतर पूरा कर लेने हेतु एक टास्क फोर्स गठित करने के निर्देश दिए हैं। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी इस आशय का बयान जारी किया है। इससे पहले सरकार ने इस परियोजना को सन् 2043 तक पूरा कर लेने के लिए अदालत में हलफ़नामा प्रस्तुत किया था। इस महापरियोजना के बारे में यह प्रचारित किया जा रहा है कि इससे देश के जल संकट की तस्वीर बदल जाएगी। उत्तर भारत की नदियों का अतिरिक्त जल दक्षिण की नदियों की ओर मोड़ दिया जाएगा। कावेरी विवाद के पसमंजर में सरसरी तौर पर नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव आकर्षक प्रतीत होता है। लेकिन जहां एक नदी बेसिन के भीतर बड़े बांधों के निर्माण के अनुभव बहुत अच्छे नहीं रहे हैं, नदियों को जोड़ने की परियोजना महा-विवादों के जन्म का कारण बन सकती है।

दरअसल नदियों को जोड़ने का विचार नया नहीं है। नेहरू मंत्रिमंडल के सिंचाई मंत्री रहे के.एल.राव ने सबसे पहले इस तरह का प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव में 2640 किमी. लंबी नहर के जरिए गंगा से कावेरी को जोड़ने की बात कही गई थी इसके अनुसार नहर को पटना के पास से निकाला जा प्रस्तावित था जिसमें वर्ष में 150 दिन बाढ़ के 1680 क्यूबिक मीटर पानी को कावेरी तक पहुंचाने के लिए बीच में 550 मी. की ऊंचाई तक पम्पों के जरिए उठाने की व्यवस्था थी। इसके अलावा इस प्रस्ताव में ब्रह्मपुत्र के पानी को गंगा में मिलाने की बात भी कही गई थी। इसके लिए भी नहर को बीच में 15 मी. की ऊंचाई तक पंप करना पड़ता लेकिन भारी लागत और बहुत ज्यादा बिजली के खर्च को देखते हुए इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया।

एक बार फिर नये सिरे से नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव लाया जा रहा है। जो पुराने प्रस्ताव से ज्यादा जटिल और लंबा-चौड़ा है। नये प्रस्ताव के अनुसार गंगा और ब्रह्मपुत्र की हिमालय से निकलने वाली सहायक नदियों में भारत, नेपाल व भूटान में बड़े बांध बनाए जायेंगे। पूर्व की ओर बहने वाली नदियों के अतिरिक्त पानी को पश्चिम की ओर तथा गंगा व ब्रह्मपुत्र के पानी को महानदी की ओर भेजने की बात कही गई है। इसी प्रकार महानदी, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी को जोड़ने और इनमें जल-संग्रह बांधों के निर्माण की तथा केन चंबल व तापी जैसी नदियों को पश्चिम की ओर मोड़ने की योजना बनाई गई है। इस प्रकार 5,60,000 करोड़ रुपयों के खर्च से 30 जोड़ बनाने का विचार रखा गया है इनमें 14 हिमालयी क्षेत्र की नदियों में होंगे तथा 16 दक्षिण की नदियों में।

परियोजना के बारे में बड़े आशावादी शब्दों में कहा गया है कि इससे उत्तरी की नदियों में आने वाली बाढ़ का अतिरिक्त पानी समुद्र में बर्बाद नहीं हो पाएगा बल्कि उससे दक्षिण की अपेक्षाकृत सूखी धरती की प्यास बुझाई जा सकेगी। लेकिन यह भूलना नहीं चाहिए कि ऐसी समझ नदी को महज पानी ढोने का माध्यम समझने से ही पैदा हो सकती है। नदी एक जीवित पारिस्थितिकी तंत्र होती है यहां तक कि बाढ़ भी इस पारिस्थितिकी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। बाढ़ से प्रतिवर्ष होने वाला नुकसान नदी के पारिस्थितिकी तंत्र की उपेक्षा का परिणाम है। क्या यह तथ्य नहीं कि गंगा-यमुना का उपजाऊ मैदान इन नदियों की बाढ़ का ही नतीजा है और नदियों के किनारे बसने वाले पारंपरिक समाजों के करोड़ों बाशिंदे इनकी पारिस्थितिकी से तालमेल बिठा कर अपनी आजीविका चलाते हैं। इसलिए नदियों की धारा बदलने का विचार सबसे पहले प्रकृति विरोधी विचार है। दूसरे, ‘अतिरिक्त जल की अवधारणा भी वास्तविक नहीं है। खास तौर पर आज के बदलते वैश्विक वातावरण ने अतिरिक्त जल की उपलब्धता को इतना अनिश्चित बना दिया है कि इस पर किसी महा-परियोजना को खड़ा करना बुद्धिमानी नहीं होगी। नदी के स्वाभाविक पारिस्थितिकी तंत्र से छेड़-छाड़ की कीमत इसमें पलने वाले पेड़-पौधों व जीव-जंतुओं को भी चुकानी पड़ेगी।

नदियों को जोड़ने की बात मौजूदा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में अत्यंत विवादों में उलझने के लिए अभिशप्त है। कावेरी विवाद इस लिहाज से एक ज्वलंत उदाहरण है। फिर जब गंगा जैसी अनेक राज्यों और अंततः बांग्लादेश में बहने वाली नदी के पानी की धारा मोड़ना कठिन अंतरराज्यीय व अंतरराष्ट्रीय झगड़ों का कारण बनेगा। फरक्का बांध का जलस्तर पहले ही भारत-बांग्लादेश के बीच एक अनसुलझा मसला है। इसके अलावा नहरों और जल संग्रह हेतु बनाए गए विशाल बांधों से विस्थापित जनसंख्या अब तक बड़े बांधों से विस्थापित आबादी की तुलना में कहीं ज्यादा होगी। यह भी कहा जा रहा है कि नहरें अनेक राष्ट्रीय पार्कों व अभ्यारण्यों से होकर गुजरेगी। इसके लिए पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति का प्रश्न भी जुड़ा है।

बड़े बांधों और नदियों को जोड़ने जैसी महा-परियोजनाओं को देश के कृषि विकास का एकमात्र समाधान समझने की बुद्धि के पीछे दरअसल वह मानसिकता है जो संसाधनों के असीमित होने के वहम में जीती है। यदि हम टिकाऊ विकास चाहते हैं तो हमें अपने संसाधनों के अनुरूप अपनी जीवन शैली और प्रबंधन के तौर-तरीके विकसित करने होंगे। भारत में पिछले कुछ वर्षों के दौरान खेती के लिहाज से आगे कहे जाने वाले राज्य भारी संकट से घिरे हैं। अत्यधिक ऊर्जा पर आधारित कृषि प्रारंभिक दौर में ज़बरदस्त उत्पादन देने के बावजूद बहुत दूर नहीं जा सकी। आज उन्हीं राज्यों में किसान ज़मीन के खराब हो जाने, पानी की कमी या अनेक दूसरे कारणों से आत्महत्या करने को विवश हैं। यह भी कहा जाने लगा है कि हरित क्रांति के परिणाम अंततः भारतीय कृषि व्यवस्था के खिलाफ ही गए हैं। ऐसे में बगैर गंभीर बहस-मुबाहिसे और अध्ययन के ऐसी परियोजनाओं के बारे में निर्णय ले लेना अंततः और बड़े संकटों की ओर धकेलेगा। भारत की किसी भी नदी घाटी में वर्षा। भू व सतही जल सहित संपूर्ण जल की उपलब्धता संबंधी अध्ययन नहीं हुए हैं। न ही खेती में किए जाने वाले बदलाव यहां के पारिस्थितिक अध्ययनों के आधार पर किए जाते हैं। अब तो हालत यह है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों के अनुरूप खेती की निर्देशित किया जा रहा है तथा सिंचाई की आवश्यकताएं भी तय हो रही हैं।

ऐसी स्थिति में अति-उत्साहित प्रधानमंत्री का यह कहना कि कांग्रेस सरकार नदियों को जोड़ने की सिर्फ बातें करती थीं, हम वास्तव में नदियों को जोड़ेगे, बड़बोलेपन से ज्यादा कुछ नहीं है। यह महापरियोजना देश के सामाजिक व पारिस्थितिक जीवन में जहर न भर दे, इस बारे में गंभीरता से सोचे जाने की जरूरत है।

Path Alias

/articles/aura-aba-nadaiyaon-kao-jaodanae-kae-saekhacailalai-kae-sapanae

Post By: Hindi
×