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धरती की डाक सुनो रे केऊ
Posted on 22 Apr, 2013 10:02 AM यदि हम सचमुच प्रकृति के ग़ुलाम नहीं बनना चाहते, तो जरूरी है कि प्रक
save earth
सांसत में धरती
Posted on 21 Apr, 2013 03:52 PM इस धरती की सतह का सत्तर प्रतिशत हिस्सा सड़कों, खदानों और बढ़ते शहरीकरण की भेंट चढ़- गया है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि 2050 तक हमारे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी हो जाएगी और हम भयानक बीमारियों की गिरफ़्त में होंगे। दुनिया की आधी से अधिक नदियां प्रदूषित होंगी और इनका जल स्तर घट जाएगा। सदा नीरा यमुना और गंगा के हालात हमारे सामने हैं। संताप हरती इनकी ‘कल कल’ ध्वनि सुनने को कान आतुर-व्याकुल ही रह रहे हैं। भारतीय परंपरा और विश्वास कहता है कि मां की सेवा करने वाला सत्पुरुष कहलाता है। वह दीर्घायु, यश, कीर्ति, बल, पुण्य, सुख, लक्ष्मी और धनधान्य को प्राप्त करता है। यदि कोई मानता हो तो, यह भी कहा गया है कि ऐसा पुरुष स्वर्ग का अधिकारी भी हो सकता है। अब स्वर्ग किसने देखा है और अगर किसी ने देखा है तो आकर कब बताया है कि स्वर्ग कैसा होता है? पर, अगर कोई सत्पुरुष है, तो क्या यही कम है? सत्पुरुष होने के साथ जो बातें जुड़ी हैं और जिनका जिक्र हमने किया है क्या वहीं स्वर्गिक नहीं है? यही स्वर्ग है। स्वर्ग या नरक - सब इस धरती पर है। संपूर्ण प्राणी जगत इसी धरती के अंग है। इसी में सब समाए हुए हैं। हम कह सकते हैं कि यही धरती सब को अपने में समाए हुए हैं, सहेजे हुए हैं। इसीलिए धरित्री है। सबको अपने में धारण किए हैं। यही धरती का धर्म है।

यह धरती तो अपना धर्म निभा रही है, पर जिस धरती को हम मां कहते हैं, क्या हम मनुष्य भी अपना धर्म निभा रहे हैं? इसी धरती में रत्नगर्भा खनिज संपदा है।
पर्यावरण बचाना हम सबकी ज़िम्मेदारी
Posted on 21 Apr, 2013 09:58 AM पर्यावरण सुरक्षा का मुद्दा एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों में संभवत: यह सबसे मुश्किल लक्ष्य है क्योंकि यह मुद्दा इतना सरल नहीं है, जितना दिखता है। प्रदूषण एक ऐसी समस्या है जिससे कोई एक व्यक्ति या संस्था मुक्ति नहीं दिला सकती है, इसके लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है और इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका सरकार अदा कर सकती है। विकास की गति तेज होने के कारण ग्रीन हाउस
कावेरी : लहर में जहर
Posted on 20 Apr, 2013 04:21 PM पौराणिक कथाओं में कुर्गी-अन्नपूर्णा, कर्नाटक की भागीरथी और तमिलनाडु में पौन्नई यानी स्वर्ण-सरिता कहलाने वाली कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद से तो सभी परिचित हैं लेकिन इस बात की किसी को परवाह नहीं है कि यदि इसमें घुलते जहर पर तत्काल ध्यान नहीं दिया गया तो जल्दी ही हालात काबू से बाहर हो जाएंगे। दक्षिण की जीवन रेखा कही जाने वाली इस नदी में कहीं कारखाने का रसायन-युक्त पानी मिल रहा है तो क
Kaveri
हमें भी जीने और रहने का अधिकार है
Posted on 19 Apr, 2013 04:07 PM बस्तर और विशेष रूप से बोधघाट परियोजना के क्षेत्र के अध्ययन और प्रभ
निपटारे का तरीका गलत
Posted on 19 Apr, 2013 11:05 AM प्लास्टिक कचरे के निस्तारण का दिल्ली में सही तरीका प्रयोग नहीं किया जाता है। जो भी यूनिटें लगी हैं वे काफी छोटी हैं, जिससे इसका निस्तारण पूरी तरह नहीं हो पाता है। सबसे ज्यादा परेशानी छोटे-छोटे प्लास्टिक बैग से होती है। मानक से कम वाले ये प्लास्टिक बैग ही मुसीबत की असली जड़ हैं। इससे प्लास्टिक का ऐसा कचरा पैदा होता है जो न तो एकत्र किया जा सकता है और न ही इन्हें जलाने से कुछ लाभ मिलता है। इन पर पूर
पर्यावरण का होता कचरा
Posted on 19 Apr, 2013 11:00 AM एक आविष्कार को उसकी लोकप्रियता ही कैसी ग्रस लेती है, प्लास्टिक के इस्तेमाल और ख़तरों को लेकर यह बात बखूबी समझी जा सकती है। खासतौर पर शहरों में प्लास्टिक ने जीवन को जितना आसान नहीं बनाया है, उससे ज्यादा दुश्वारियां पैदा कर दी हैं। प्लास्टिक कचरे के बढ़ते खतरे को सुप्रीम कोर्ट ने भी गंभीरता से लिया है। इसी पर पुनीत तिवारी और राजीव सिन्हा का फोकस
बांधों की निगरानी
Posted on 18 Apr, 2013 03:15 PM मंत्रालय ने ये भी नहीं देखा कि टिहरी बांध परियोजना के नीचे गंगा का क्या हाल है? नीचे भागीरथी गंगा को मक डालने का क्षेत्र बनाया हुआ है। पहले से ही सूखती-भरती गंगा की स्थिति और पारिस्थितिकी बर्बाद हुई। उर्जा मंत्रालय ने भी कभी पलट कर नहीं देखा। अलकनंदा गंगा पर विष्णुप्रयाग जविप राज्य का पहला निजी बांध है। इसकी सुरंग के कारण से धसके चाई गांव के लोगो में न तो सबको ज़मीन मिली न समुचित मुआवजा कि वे अपना मकान बना सके। सरकार ने रुड़की यूनिवर्सिटी से इस बात की जांच करवाई की उनके मकान परियोजना के कारण धंसे या प्राकृतिक आपदा की वजह से। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के कई विभाग हैं जिसमें आई. ए. डिविजन यानि प्रभाव आकलन, बड़ा ही प्रमुख विभाग है। उसका काम है कि विभिन्न परियोजनाओं के पर्यावरणीय असरों की निगरानी करना। किसी भी परियोजना को पहले मंत्रालय से पर्यावरण स्वीकृति और वन स्वीकृति लेनी पड़ती है। दोनों ही वास्तव में मज़ाक जैसे हो गये है क्योंकि ये पत्र जारी करने के बाद पर्यावरण मंत्रालय ने कभी अपनी दी गई इन स्वीकृतियों के पालन का कोई संज्ञान नही लिया। पर्यावरण मंत्रालय के लखनऊ स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में सिर्फ चार-पांच कर्मचारी हैं। जिन पर हजारों परियोजनाएं देखने की ज़िम्मेदारी है। समझा जा सकता है कि वे कितनी निगरानी कर पाते होंगे। लोहारीनाग पाला जविप भागीरथीगंगा पर आज की तारीख में बंद है। माटू जनसंगठन की जांच से मालूम पड़ा जिस समय सुरंग से मक निकाली जाती थी तो उसे पहाड़ पर जहां-तहां और गंगा में भी सीधे भी फेंका गया। इसके चित्र लेखक के पास मौजूद है। वहां पर काम कर रही पटेल कंपनी पर बहुत बड़ा प्रश्न भी आया उसकी जांच की भी बात आई। मक को सड़क के किनारे डाला गया जिससे रास्ता कम हुआ और मई 2008 में कम रास्ते के कारण बस गंगा में गिरी।
जल के विभिन्न स्रोतों का चिकित्सीय स्वरूप
Posted on 16 Apr, 2013 02:55 PM जिस स्थान पर कम मात्रा में पानी तथा वृक्षादि हो वहां का मानव पित्त
सूखे के जवाब में ‘जन-जल जोड़ो’
Posted on 16 Apr, 2013 11:10 AM कर्नाटक, आंशिक तमिलनाडु, आंध प्रदेश, गुजरात...
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