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लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार 2013-14
Posted on 09 Sep, 2014 09:30 AM भारत सरकार कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग

.भारत सरकार ने लोक सेवकों द्वारा किए गए असाधारण और नवप्रवर्तनकारी कार्य-निष्पादन को अभिस्वीकृति एवं मान्यता देने के लिए लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार शुरू किया है। केंद्र एवं राज्य सरकारों के सभी अधिकारी व्यक्तिगत या समूह अथवा संगठन के तौर पर इस पुरस्कार के विचारार्थ योग्य है।

वर्ष 2013-14 के लिए केंद्रीय सरकारी मंत्रालयों/विभागों/राज्य सरकारों/गैर-सरकारी संगठनों एवं अन्य भागीदरों से नामांकन आमंत्रित किए जाते हैं। नामांकन प्राप्त करने की अंतिम तिथि 17 अक्टूबर, 2014 है।

अपनी मुक्ति की राह देखती गंगा
Posted on 08 Sep, 2014 03:17 PM

नव उदार आर्थिक नीतियों और तंत्र के सहारे गंगा की सफाई की चाहे जितनी भी योजनाएं चलाई जाएंगी, उसक

ये विकास या विनाश
Posted on 08 Sep, 2014 01:07 PM

ये विकास है या विनाश है,
सोच रही इक नारी।
संगमरमरी फर्श की खातिर,
खुद गई खानें भारी।
उजड़ गई हरियाली सारी,
पड़ गई चूनड़ काली।
खुशहाली पे भारी पड़ गई
होती धरती खाली।
ये विकास है या....

विस्फोटों से घायल जीवन,
ठूंठ हो गये कितने तन-मन।
तिल-तिल मरते देखा बचपन,
हुए अपाहिज इनके सपने।
मालिक से मजदूर बन गये,

river mining
समय बेढंगा, अब तो चेतो
Posted on 08 Sep, 2014 01:01 PM

हाय! समय ये कैसा आया,
मोल बिका कुदरत का पानी।
विज्ञान चन्द्रमा पर जा पहुंचा,
धरा पे प्यासे पशु-नर-नारी।
समय बेढंगा, अब तो चेतो,
मार रहा क्यों पैर कुल्हाड़ी?

गर रुक न सकी, बारिश की बूंदें,
रुक जाएगी जीवन नाड़ी।
रीत गए जो कुंए-पोखर,
सिकुड़ गईं गर नदियां सारी।
नहीं गर्भिणी होगी धरती,
बांझ मरेगी महल-अटारी।

dry well
दिल्ली में 201 प्राकृतिक नाले बने सीवर
Posted on 08 Sep, 2014 12:23 PM आईआईटी प्रोफेसर की अगुवाई में विशेषज्ञों ने की जांच, 38 साल में ये सभी नाले गंदगी और कूड़े से पटे
यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए नालों के स्वरूप में होगा बदलाव

लबालब पानी वाले देश में विचार का सूखा
Posted on 08 Sep, 2014 11:55 AM
. गर्मी की तीव्रता से मनुष्यों और जानवरों का जीना मुहाल हो गया है। कुएं, तालाब और नदियों के जल स्तर में कमी आ रही है। ये संकट मनुष्य ने खुद पैदा किए हैं। बदल चुकी जीवन शैली की वजह से कृत्रिम तौर पर संकट पैदा हुआ है। दिल्ली में कभी 350 से ज्यादा तालाब हुआ करते थे लेकिन आज शायद तीन भी मुश्किल से मिलेंगे।

सच तो यह है कि यह संकट मौसम चक्र में आ रहे बदलावों के नतीजे हैं। गर्मी का मौसम चार महीने का होता था अब आठ महीने या नौ महीने गर्मी पड़ने लगी है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ये बदलाव कृत्रिम तौर पर पैदा किए गए संकटों से हुए हैं। अन्यथा मौसम चक्र से चीजें चलती रहती तो संभव है कि कभी कोई बड़ा संकट नहीं पैदा होता।
जब वर्षा शुरू होती है
Posted on 07 Sep, 2014 01:03 PM कबूतर उड़ना बंद कर देते हैं
गली कुछ दूर तक भागती हुई जाती है
और फिर लौट आती है

मवेशी भूल जाते हैं चरने की दिशा
और सिर्फ रक्षा करते हैं उस धीमी गुनगुनाहट की
जो पत्तियों से गिरती है
सिप् सिप् सिप् सिप्. . .

जब वर्षा शुरू होती है
एक बहुत पुरानी-सी खनिज गंध
सार्वजनिक भवनों से निकलती है
और सारे शहर में छा जाती है
जल से ही बचेगी जमीन
Posted on 07 Sep, 2014 12:30 PM जल नहीं होगा तो कल नहीं होगा। यह स्लोगन संकेत देता है कि कृषि को बचाने के लिए भी जल को बचाना होगा। बरसात के जल का उपयोग खेती में किस तरह किया जा सकता है और मृदा को कैसे बचाया जा सकता है, अलनीनो जैसे संकटों से बचने के लिए भी यह जरूरी है। इन मुद्दों पर प्रकाश डाल रही है दिलीप कुमार यादव की रिपोर्ट।

.भूमि एवं जल प्रकृति द्वारा मनुष्य को दी गई दो अनमोल संपदा हैं, जिनका कृषि हेतु उपयोग मनुष्य प्राचीन काल से करता आया है। परंतु, वर्तमान में इनका उपयोग इतनी लापरवाही से हो रहा है कि इनका संतुलन बिगड़ गया है तथा भविष्य में इनके संरक्षण के बिना मनुष्य का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। मानसून की बेरुखी ने ऐसी संभावनाओं की प्रासंगिकता को और बढ़ाया है।

असल में हमारे देश की आर्थिक उन्नति में कृषि का बहुमूल्य योगदान है।

देश में लगभग 70 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि वर्षा पर निर्भर है। उत्तराखंड में तो लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है तथा लगभग 90 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि वर्षा पर निर्भर है।
क्यों मचा सूखे का कोहराम
Posted on 07 Sep, 2014 12:03 PM मौसम की बेरुखी पर कोहराम मचा है। इसके बाद भी पंजाब, हरियाणा जैसे कई राज्यों में बासमती धान की अधिकांश रोपाई हो चुकी है। इन हालात में किसान किस तरह की फसलों को लगाएं ताकि उन्हें कम लागत में भरण-पोषण के लायक पैसा मिल जाए। इस मसले पर प्रकाश डालती विशेषज्ञों से वार्ता पर आधारित दिलीप कुमार यादव की रिपोर्ट।
भूमिगत जल में रेडॉन का जहर
Posted on 07 Sep, 2014 10:20 AM भारत के बेंगलुरु, मध्य प्रदेश के किओलारी नैनपुर, पंजाब के भटिंडा एवं गुरदासपुर, उत्तराखंड का गढ़वाल, हिमाचल प्रदेश एवं दून घाटी के भूमिगत जल में रेडॉन-222 के मिलने की वैज्ञानिक पुष्टि हुई है।

बेंगलुरु शहर के भूमिगत जल में रेडॉन की मात्रा सहनशीलता की सीमा 11.83बीक्यू/लीटर से ऊपर है। कहीं-कहीं यह सौ गुना अधिक है। यहां पर रेडॉन की औसत मात्रा 55.96 बीक्यू/लीटर से 1189.30 बीक्यू/लीटर तक पाई गई है।

बेंगलुरु शहर में भूमिगत जल की तुलना में सतही जल में कम रेडॉन पाए गए क्योंकि वायुमंडल के संपर्क में रहने के कारण यह गैस जल से वायुमंडल में आसानी से घुल जाती है।
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