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भागलपुर जिला
डॉल्फिन को बचाना एक बड़ी चुनौती
Posted on 14 Feb, 2014 03:28 PMडॉल्फिन के प्रति मछुआरों व आम लोगों को जागरूक करने एवं इस जलीय जीव की जिंदगी बचाने के उद्देश्य से भारततिल-तिल कर मरता बोदरा
Posted on 01 Feb, 2014 10:16 AMबोदरा गांव के जो लोग अब तक बिस्तर पर नहीं पहुंचे हैं, उनमें से ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जिनके पैरउबाल कर पीएं पानी
Posted on 10 Jun, 2013 11:39 AMगांवों में जलजनित बीमारी बड़ी समस्या बन कर उभरी है। पेट की बीमारी और पीलिया रोग से बड़ी संख्या में लोग ग्रसित हो रहे हैं। इसकी एक वजह तो दूषित पानी की आपूर्ति और गांवों में साफ-सफाई की अनदेखी है। जलजमाव, गंदगी, दूषित जल और मच्छरों की वजह से ही जलजनित इंटरो वायरस और गैर पोलियो फालिज वायरस पनप रहे हैं। दोनों एक-दूसरे को प्रोत्साहित भी कर रहे हैं और गरीबी, गंदगी, अशिक्षा, अभाव के कारण तेजी से अपनी गिनदी सूखी, जल स्तर नीचे
Posted on 10 Jun, 2013 11:16 AMवर्षों से बाढ़ की विभीषिका का शिकार रही बिहार की अधिकतर नदियां अब सूखने के कगार पर हैं। बेहतर प्रशासनिक व्यवस्था और जल संसाधन विभाग की उपेक्षा के साथ-साथ लापरवाही के कारण इनका समन्वय नहीं हो पा रहा है। इससे न केवल किसानों की परेशानी बढ़ रही है, बल्कि इस क्षेत्र के लोग भी इसकी जद में आ रहे हैं। आलम यह है कि कहीं पेयजल की समस्या, तो कहीं नदियों में पानी रहने के कारण खेत बंजर होते जा रहे हैं। इससे खेआतंक बनाम आकर्षण
Posted on 06 May, 2013 04:10 PMनदी बांधने की आकर्षक अनिवार्यता का परिणाम यह है कि आज यह सवाल भी गौण हो गया है कि युद्ध का वही
फ्लोराइड से अपाहिज होते गांव
Posted on 22 Aug, 2012 10:11 AMबिहार के लगभग 21 जिले आर्सेनिक से प्रभावित हैं और कई जिले फ्लोराइड से प्रभावित हैं। भागलपुर जिले का कोलाखुर्द गांव के भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड दोनों की मात्रा बहुत ज्यादा है। 2000 आबादी के इस गांव में 100 से ज्यादा लोग पूर्णतः या अंशतः विकलांग हो चुके हैं। काफी लोग गांव छोड़कर जा चुके हैं। सरकारी प्रयास दिखावे के लिए आर्सेनिक और फ्लोराइड प्रभावित चापाकलों पर लाल निशान लगाने तक सीमित रह गया है। गांव से महज एक किलोमीटर दूर साफ पानी उपलब्ध है। पर लापरवाही और गैरजिम्मेदारी से निजात मिले तो साफ पानी मिले। बता रही हैं डॉ. जेन्नी शबनम।कोलाखुर्द का दर्द पिघल-पिघल कर पूरे देश के अखबार की खबरों का हिस्सा बनता है, लेकिन किसी इंसान के दिल को नहीं झकझोरता न तो सरकार की व्यवस्था पर सवाल उठाता है। यहां स्वास्थय केंद्र भी नहीं है। भागलपुर जाकर ईलाज कराना इनके लिए मुमकिन नहीं क्योंकि आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं कि रोजगार छोड़ कर अपने घर वालों का अच्छा ईलाज करा सकें। ग्रामीणों के पास दो विकल्प हैं, या तो जहर पी-पी कर धीरे-धीरे पीड़ा से मरें या गाँव छोड़ दें।
“न चल सकते हैं, न सो सकते हैं, न बैठ सकते हैं, कैसे जीवन काटें?” कहते-कहते आँसू भर आते हैं गीता देवी की आँखों में। मेरे पास कोई जवाब नहीं, क्या दूँ इस सवाल का जवाब? मैं पूछती हूँ” कब से आप बीमार हैं?” 50 वर्षीया शान्ति देवी जो विकलांग हो चुकी है रो-रो कर बताती है “जब से सरकार ने चापाकल गाड़ा है जहर पी-पी के हमारा ई हाल हुआ है।” वे अपने दोनों पाँव को दिखलाती है जिसकी हड्डियां टेढ़ी हो चुकी है। उन्होंने कहा “जब तक चापाकल नहीं गाड़ा गया था तब तक पानी का बहुत दिक्कत था। लेकिन अब लगता है कि ये चापाकल ही हमारा जान ले लेगा तो हम कभी इसका पानी नहीं पीते।”एक पौधा और एक कुआं
Posted on 19 Jan, 2012 10:08 AMबिहार के गांवों के भ्रमण के सिलसिले में नीतीश कुमार ने भागलपुर जिले के धरहरा गांव में यह पाया कि वहां जब भी किसी लड़की का जन्म होता है तो लोगो उसकी याद में फल देने वाला एक वृक्ष अवश्य लगाते हैं। वहां यह देखकर उनके मन में यह विचार आया कि क्यों नहीं पूरे बिहार में नए वृक्षों का जाल बिछा दिया जाए। नीतीश कुमार का यह प्रयास निश्चय ही सराहनीय है। परंतु आवश्यकता इस बात की है कि केवल वृक्ष ही नहीं लगाए जाएं उसके साथ चापाकल भी लगाए जाएं जैसा कि निर्मला देशपांडे का विचार था।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने निस्संदेह बिहार को एक स्वच्छ प्रशासन दिया है। इस दिशा में उन्होंने कई अभिनव प्रयोग किए हैं। माफिया सरगनाओं को जेल में डाल दिया है। लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूल में जाने वाली हर लड़की को मुफ्त साइकिल दी है। लड़कियों के स्कूलों में शौचालय का प्रबंध किया है। पूरे बिहार में सड़कों का जाल बिछा दिया है। बिहार में तो उद्योगों का जाल भी बिछ जाता यदि वहां बिजली की उपलब्धता होती। कोयले की सारी खदान झारखंड के हिस्से में चली गईं। दुर्भाग्यवश इन खदानों से बिहार के बिजलीघरों को कोयला नहीं मिल रहा है। इसी कारण वहां पर्याप्त बिजली का उत्पादन नहीं हो रहा है। पीछे मुड़कर देखने से ऐसा लगता है कि बिहार का बंटवारा ही गलत था। राजनेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए इस फूलते-फलते राज्य को दो भागों में बांट दिया और आज की तारीख में दोनों राज्य गरीबी के शिकार हैं। बात केवल कोयला खदानों और बिजलीघरों की ही नहीं है। बिहार के तीन-चौथाई जंगल झारखंड में रह गए। वहां भी ठेकेदार माफिया ने जंगलों का बुरी तरह दोहन किया है।बिहार में आर्सेनिक
Posted on 06 Apr, 2009 03:19 PMहाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार गंगा के दोनों ओर स्थित बिहार के 15 जिलों के भूजल में आर्सेनिक के स्तर में खतरनाक बढ़ोतरी हुई है, जिसके कारण इस इलाके में रहने वालों के लिये कैंसर का खतरा बढ़ गया है। IANS की रिपोर्ट के मुताबिक गंगा किनारे के दोनों तरफ़ के 57 विकासखण्डों के भूजल में आर्सेनिक की भारी मात्रा पाई गई है। आर्सेनिक नामक धीमे ज़हर के कारण लीवर, किडनी के कैंसर और “गैंगरीन” जैसी बीमारियोंप्लास्टिक इस्तेमाल पर जुर्माना
Posted on 19 Dec, 2018 10:43 AM
भागलपुर: आधी-अधूरी तैयारी के साथ शुक्रवार 14 दिसम्बर से बिहार के शहरों में प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबन्ध लग रहा है। उल्लंघन करने वालों को 35 हजार तक जुर्माना भरना पड़ सकता है। जुर्माने की तीन श्रेणियाँ तय की गई हैं। नगर निकायों को इसकी जिम्मेदारी दी गई है।