नदी सूखी, जल स्तर नीचे

वर्षों से बाढ़ की विभीषिका का शिकार रही बिहार की अधिकतर नदियां अब सूखने के कगार पर हैं। बेहतर प्रशासनिक व्यवस्था और जल संसाधन विभाग की उपेक्षा के साथ-साथ लापरवाही के कारण इनका समन्वय नहीं हो पा रहा है। इससे न केवल किसानों की परेशानी बढ़ रही है, बल्कि इस क्षेत्र के लोग भी इसकी जद में आ रहे हैं। आलम यह है कि कहीं पेयजल की समस्या, तो कहीं नदियों में पानी रहने के कारण खेत बंजर होते जा रहे हैं। इससे खेती का गढ़ कहलाने वाले बिहार राज्य की एक बड़ी आबादी खुद को लाचार और बेबस महसूस कर रही है।

राज्य के पूर्वी बिहार का जिला हो, मिथिलांचल का क्षेत्र हो, कोसी क्षेत्र हो या फिर गंगा का दियरा क्षेत्र। नदियों के सूख जाने के कारण इन सभी जिलों में सिंचाई के साथ-साथ पेयजल संकट गहराने लगा है। अगर किसी नदी में पानी बचा भी है, तो वह संकुचित मानवीय सोच के कारण गंदे नाले में तब्दील हो गया है।

जल स्तर 20 से 25 फीट नीचे


पहले कोसी क्षेत्रों में 10 से 15 फीट की गहराई में पानी उपलब्ध हो जाता था, अब वही जल स्तर 20 से 25 फीट नीचे चला गया है। वहीं, बात अगर भागलपुर, बांका, कटिहार, खगड़िया और मुंगेर की करें, तो यहां की मुख्य नदी गंगा में पहले अथाह पानी हुआ करता था। गंगा पर एक बड़ी आबादी अपने जीविकोपार्जन के लिए निर्भर थी। नदी में नौका भी यातायात का एक प्रमुख साधन होता था। मछुआरे मछलियों की टोह में दिन भर गंगा की गोद में ही रहा करते थे। नदी में लबालब पानी भरा होता था और इसी पानी ने क्षेत्रीय लोगों के लिए दिलों में दहशत भी पैदा कर रखा था। बाढ़ आ जाने की स्थिति में हजारों एकड़ में लगी फसल जलमग्न हो जाती थी। लेकिन, अब स्थिति बिल्कुल इसके उलट है। नदी पर कई जगह बांध बनाये गये। नदी की धारा मोड़ दी गयी। असर यह हुआ कि इन जिलों से गंगा नदी ने अपना रुख ही बदल लिया और अब न तो किसानों को खेतों की सिंचाई के लिए नदी से पानी उपलब्ध हो पाता है, न ही लोगों को पीने के लिए पर्याप्त पानी। पहले मुख्य नदी गंगा में सालों भर पानी कलकल करता था, लेकिन अब वह कई छोटी-छोटी शाखाओं में विभक्त हो गयी है। इतना ही नहीं नदी में कई जगह बालू उभर आया है।

गंगा की सहायक नदियों ने भी अपना रुख बदल लिया और महज बरसात के दिनों में ही इनमें पानी रहता है।

मिथिलांचल की स्थिति बिल्कुल अलग


मिथिलांचल की स्थिति बिल्कुल इसके उलट है। मिथिला में कोसी नदी में सालों भर पानी जमा रहता है। यहां न तो सिंचाई के लिए पानी की किल्लत होती है न ही पेयजल की, बल्कि पानी की भरमार के कारण यह नदी लोगों की परेशानी का सबब ही बन जाती है। इस कारण क्षेत्र के सहरसा, सुपौल व मधेपुरा जिले में कोसी नदी जिले का शोक के नाम से जाती है। सालों भर पानी रहने के कारण कोसी नदी इन जिलों में बरसात के दिनों में कहर बन कर टूट पड़ती है। इस कारण हर वर्ष हजारों की संख्या में गरीबों के आशियाने कोसी की गोद में समा जाते हैं।

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