डॉल्फिन को बचाना एक बड़ी चुनौती

डॉल्फिन के प्रति मछुआरों व आम लोगों को जागरूक करने एवं इस जलीय जीव की जिंदगी बचाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने तीन साल पूर्व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सलाह पर डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था। 5 अक्टूबर 2013 को पहली बार ‘डॉल्फिन डे’ मनाया गया। इस दिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने डॉल्फिन पर उत्कृष्ट काम करने के लिए डॉ. गोपाल शर्मा को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। जलीय जीवों में डॉल्फिन एक महत्वपूर्ण जीव है। नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित रखने, भोजन चक्र की प्रक्रिया को बनाए रखने एवं पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए डॉल्फिन को बचाना जरूरी है। गंगा एवं उसकी सहायक नदियां, नेपाल से निकलने वाली नदियां इस जलचर जीव के जीवन, प्रजनन व अठखेलियों के लिए अपना जल संसार न्यौछावर करती रही हैं, लेकिन अब मैली होती गंगा व उसकी सहायक नदियों में डॉल्फिन की संख्या घटना चिंता का विषय है।

इस चिंता के बीच डॉल्फिन बचाने का प्रयास भी हो रहा है, जो स्वागत योग्य है। बिहार में सुल्तानगंज से लेकर बटेश्वर स्थान (कहलगांव) तक का गंगा का 60 किलोमीटर का जल क्षेत्र 1991 में ‘विक्रमशीला डॉल्फिन अभ्यारण्य’ घोषित किया गया। पटना विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान के प्राध्यापक डॉ. रवींद्र कुमार सिन्हा के प्रयास से ही गांगेय डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया एवं इसके शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया।

यह डॉल्फिन संरक्षित क्षेत्र तब से इको टूरिज़्म के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थल बन गया है। एक अनुमान के मुताबिक 10 साल पहले इस संरक्षित क्षेत्र में करीब 100 डॉल्फिन थे। आज इसकी संख्या बढ़कर 160-70 हो गई है। यह सरकारी-गैरसरकारी संगठनों के प्रयासों का नतीजा है।

यहां ब्लाइंड रिवर डॉल्फिन प्रजाति की डॉल्फिन पाई जाती है। इसका दूसरा नाम गंगेटिक डॉल्फिन है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत, नेपाल, बांग्लादेश में करीब 3200 डॉल्फिन बची हैं। चीन की नदियों में डॉल्फिन 2006 में ही पूरी तरह खत्म हो गई। खुशी की बात है कि बिहार में अब भी करीब 1200-1300 डॉल्फिन के बचे होने का अनुमान है।

डॉल्फिन के प्रति मछुआरों व आम लोगों को जागरूक करने एवं इस जलीय जीव की जिंदगी बचाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने तीन साल पूर्व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सलाह पर डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था।

संकट में गांगेय डॉल्फिन5 अक्टूबर 2013 को पहली बार ‘डॉल्फिन डे’ मनाया गया। इस दिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने डॉल्फिन पर उत्कृष्ट काम करने के लिए डॉ. गोपाल शर्मा को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने गंगा में बढ़ते प्रदूषण के कारण डॉल्फिन की घटती संख्या को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए राज्य में इस राजकीय जलीय जीव की रक्षा के लिए एक अंतरराष्ट्रीय शोध केंद्र स्थापित करने की घोषणा की।

गंगा का इतना विस्तृत क्षेत्र छोड़कर भागलपुर के इस जल क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने के पीछे कुछ इकोलॉजिकल कारण रहे हैं। भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, गंगा समभूमि प्रादेशिक केंद्र, पटना के प्रभारी सह वैज्ञानिक डॉ. गोपाल शर्मा का कहना है कि यहां गंगा की गहराई डॉल्फिन के विचरण-प्रजनन के लिए अनुकूल है। पानी का वॉल्यूम अच्छा है। नदी के दोनों किनारे फिक्स रहते हैं। कटाव की समस्या नहीं है। ये सब स्थितियाँ डॉल्फिन के अनुकूल हैं।

भागलपुर वन प्रमंडल के वन परिसर पदाधिकारी वीरेंद्र कुमार पाठक कहते हैं कि वन विभाग के पास संसाधन नहीं है। मोटरबोट हैं तो खराब पड़े हैं। नाव भाड़े पर लेना पड़ता है। इसके बावजूद साल में दो-तीन बार विभाग की टीम पेट्रोलिंग करती है। डॉल्फिन का शिकार न हो इसके लिए डॉल्फिन मित्र बनाया गया है।

मछुआरों को सख्त हिदायत है कि वे मछलियों को पकड़ने के लिए करेंटी जाल (मोनोफिलामेंट गिलमेड) न लगाएं, पर चोरी-छिपे वे यह जाल लगा देते हैं। इस जाल में डॉल्फिन आसानी से फंस कर मर जाता है। सबसे अधिक किलिंग इसी जाल से होती है। समय-समय पर मछुआरों को जागरूक करने का कार्यक्रम चलाया जाता है, ताकि छोटी मछलियों का शिकार न किया जाए।

संकट में गांगेय डॉल्फिनछोटी मछलियाँ डॉल्फिन का आहार हैं। मछुआरों के आंदोलन व गंगा दस्यु के गैंगवार के कारण डॉल्फिन संरक्षण में विभाग को परेशानी होती है। पुलिस-प्रशासन की भी पूरी मदद नहीं मिलती है। वन विभाग की माने तो हाल के वर्षों में इंडियन वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1971 के प्रावधानों के बारे में मछुआरों को जागरूक करने व विभागीय सख्ती के कारण डॉल्फिन की किलिंग रुकी है। पटना में भी डॉल्फिन का शिकार कम हुआ है।

बिहार टूरिज़्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के प्रबंधक मुकेश कुमार का कहना है कि पर्यटन विभाग जल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है। 2009 से गंगा में सुमाफा क्रूज एवं आरबी बंगाल क्रूज का संचालन किया जा रहा है। जब से ये दो क्रूज चलाए जा रहे हैं, तब से डॉल्फिन सेंचूरी घूमने देशी-विदेशी सैलानी पहुंच रहे हैं।

साल में करीब 1000 सैलानी यहां आते हैं। विभाग की योजना और क्रूज चलाने की है। हालांकि, इन तमाम प्रयासों के बाद भी डॉल्फिन को बचाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बनी है।

Ganges Feature / Patna / Ganges Dolphinकहलगांव स्थित एनटीपीसी थर्मल पावर ने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाया हुआ है, लेकिन कभी-कभी प्लांट से गर्म राख मिश्रित पानी गंगा में गिरते देखा जाता है। करीब डेढ़-दो साल पूर्व कहलगांव में गंगा में बड़ी संख्या में मछलियाँ तड़प-तड़प कर मर गई थीं। थर्मल पावर का पाइप फट जाने के कारण गर्म पानी व राख की वजह से गंगा में मछलियाँ व अन्य जलीय जीव मर गए थे। जाहिर है कि जलीय जीवों के लिए गंगा का प्रदूषण जानलेवा है।

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