तिल-तिल कर मरता बोदरा

बोदरा गांव के जो लोग अब तक बिस्तर पर नहीं पहुंचे हैं, उनमें से ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जिनके पैर टेढ़े हो चुके हैं, दांत घिस गए हैं और कोई एक जोड़ नाकाम हो चुका है। इनमें बच्चे से लेकर बूढ़े तक हर आयु वर्ग और हैसियत के लोग शामिल हैं। अधिकतर लोगों की शिकायत है कि वे जब सुबह सोकर उठते हैं तो बिस्तर से उतर कर खड़ा होना असाध्य कार्य मालूम पड़ता है।बोदरा गांव की शुरुआत में ही 45 वर्षीया जानकी देवी (पति ब्रजमोहन मंडल) रहती हैं। पिछले 5-6 सालों से उनका जीवन खाट पर ही गुजर रहा है। उठना-बैठना तो दूर वह करवट भी लेने के लिए दूसरों पर आश्रित हैं। वे बताती हैं कि पैर ऊपर की ओर खींचता रहता है, कमर में कोई जोर ही नहीं लगता है, दिन भर शरीर टनकता रहता है। उनके कमर, घुटने, कलाई, गरदन और उंगलियों के जोड़ बेकार हो चुके हैं। जाहिर सी बात है खाने-पीने से लेकर शौच तक बिस्तर पर ही होता है।

यह कहानी अकेली जानकी देवी की नहीं है। उनके पड़ोस में रहने वाली रीता देवी और गांव के दूसरे छोर पर रहने वाले बलदेव सिंह समेत गांव के 20 से अधिक लोग ऐसे ही भीषण संकट को झेल रहे हैं। ये लोग पिछले तीन-चार सालों से बिस्तर पर मौत का इंतजार कर रहे हैं।

एक साल में 12 मौत


यहां मौत का इंतजार मुहावरे का उल्लेख तीखा लग सकता है, मगर गांव के लोगों की नजर में इस मुहावरे में कोई अतिश्योक्ति नहीं है। पिछले एक साल के दौरान इन्हीं हालातों से जूझते हुए गांव के एक दर्जन लोग असमय मौत की भेंट चढ़ चुके हैं। (देखें मृतकों की सूची) ग्रामीणों ने महज एक दिन पहले 55 साल के सच्चिदानंद उपाध्याय को और महज एक माह पूर्व 38 वर्षीय पुलिस यादव को अंतिम विदाई दी थी। लोग असमय मौत के अभ्यस्त होते जा रहे हैं।

पिछले एक साल में इस रोग से मरने वालों की सूची


नाम

उम्र

पुलिस यादव

38

बौमी यादव

40

दीबू यादव

40

राम यादव

35

कारी देवी

35

जगदंबी यादव

30

डोमन ठाकुर

45

सच्चिदानंद उपाध्याय

55

बाबूलाल यादव

45

सीताराम मंडल

55

दरसो देवी

45

रामदयाल ठाकुर

30

 



लाठी से सहारे गुजरते दिन-रात


बोदरा गांव के जो लोग अब तक बिस्तर पर नहीं पहुंचे हैं, उनमें से ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जिनके पैर टेढ़े हो चुके हैं, दांत घिस गए हैं और कोई एक जोड़ नाकाम हो चुका है। इनमें बच्चे से लेकर बूढ़े तक हर आयु वर्ग और हैसियत के लोग शामिल हैं। अधिकतर लोगों की शिकायत है कि वे जब सुबह सोकर उठते हैं तो बिस्तर से उतर कर खड़ा होना असाध्य कार्य मालूम पड़ता है।

कहीं आधे घंटे बैठ गए तो उठने में नानी याद आ जाती है। गांव की आधी-आबादी लाठी के सहारे चलती-फिरती है। कई किशोर भी लाठी के सहारे चलते नजर आ जाते हैं।

वजह क्या है


बोदरा गांव के इस भीषण हालात की वजह यहां के पानी में फ्लोराइड की अत्यधिक मात्र होना है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार इस गांव के पेयजल में फ्लोराइड की मात्र 4.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है। भारतीय मानकों के अनुसार, किसी भी पेयजल में एक मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक फ्लोराइड खतरनाक होता है।

फ्लोराइड से त्रस्त बोदरा गांवयह फ्लोराइड हड्डी को कमजोर करता है, इससे डेंटल फ्लोरोसिस (दांत का) और स्केलटल फ्लोरोसिस (हड्डियों का) भीषण रोग होता है। बोदरा गांव के लोग इसी भीषण रोग के चपेट में हैं।

हाल तक लोग सिर्फ अनुमान के आधार पर फ्लोराइड को दोषी ठहरा रहे थे। गांव के कुछ लोगों ने भागलपुर, पटना और रांची में इलाज करवाया था। वहां के निजी डाक्टरों ने गांव के पेयजल में फ्लोराइड की अधिकता होने की आशंका जताई थी। मगर हाल में जब पीएचइडी विभाग द्वारा गांव के पेयजल की जांच कराई गई तो इस बात की पुष्टि हो गई।

विभाग ने गांव के छह स्रोतों से पेयजल लेकर उनकी जांच करवाई है। किसी भी स्रोत में फ्लोराइड की मात्रा 4.5 मिलीग्राम से कम नहीं पाई गई है।

कब से हैं ये हालात


गांव के लोग बताते हैं कि जोड़ों के भीषण दर्द की शिकायत लोगों को हमेशा से रही है, मगर पिछले कुछ सालों में हालात काफी बदतर हो गए हैं। अब लोग इस कारण असमय बूढ़े होकर जान गंवाने लगे हैं।

एक ग्रामीण दशरथ यादव बताते हैं कि पिछले 20-25 साल से हालत बेकाबू हो गए हैं। खासतौर पर जबसे लोगों ने चापानल का पानी पीना शुरू किया है। गांव के अधिकतर चापानल की गहराई 110 से 150 फुट तक है। एक चापानल तो 450 फुट गहरा लगाया गया है।

बाहर से मंगाने लगे पेयजल


लोग बताते हैं कि गांव के गणेश ठाकुर को सबसे पहले भागलपुर के एक निजी डाक्टर ने बताया था कि गांव के पानी में फ्लोराइड है। वे लोग या तो बाहर से पानी मंगाकर पीएं या गांव छोड़ दें। अन्यथा लोग इसी तरह तिल-तिलकर मरते रहेंगे। इसके बाद से गांव के कई लोग दूर-दराज से पानी मंगाकर पीने लगे हैं।

गांव की पूनम झा जो वेल्लोर तक इलाज करवा चुकी हैं, पिछले चार-पांच माह से महेशपुर से मंगवा कर पानी पी रही है, हालांकि इसके बावजूद वे किसी तरह के सुधार की बात नहीं बता रहीं। गांव के और भी कई परिवार खुद लाकर या मंगवाकर बाहर का पानी पीने लगे हैं।

डरने लगे हैं आस-पड़ोस के गांव वाले


.आस-पड़ोस के गांव के लोग अब बोदरा जाने में डरने लगे हैं। लोग जाते भी हैं तो वहां का कुछ खाते नहीं हैं और पानी तो किसी हाल में नहीं पीते। खुद बोदरा पंचायत के मुखिया जनार्दन प्रसाद मंडल जो दूसरे गांव के रहने वाले हैं, बताते हैं कि पिछले दिनों उनके कमर में दर्द होने लगा तो उन्हें लगा कि पिछले दिनों उन्होंने बोदरा में पानी पी लिया था कहीं यह उसी का असर तो नहीं।

वैकल्पिक पेय जलापूर्ति की बन रही योजना


गोड्डा डीसी के रवि कुमार ने इस मसले पर पूछे जाने पर बताया कि सरकारी स्तर पर गांव के छह स्थलों से पेयजल का नमूना लेकर जांच कराई गई है। जांच के पानी में फ्लोराइड की मात्र आवश्यकता से काफी अधिक पाई गई है। इसी वजह से लोग इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। प्रशासन बोदरा में वैकल्पिक जलापूर्ति के लिए योजना बना रहा है।

बोदरा गांव के पेयजल के सैंपल की जांच रिपोर्ट आ गई है। इन सैंपल में फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा पाई गई है। प्रशासन के द्वारा वैकल्पिक पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था कराई जा रही है।
के रवि कुमार, उपायुक्त, गोड्डा

पाइप द्वारा पेयजल की आपूर्ति ही इस तरह की समस्याओं का एक मात्र समाधान है। पेयजल आपूर्ति विभाग ऐसे क्षेत्रों में यथाशीघ्र पाइप द्वारा पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था करने जा रहा है।
सुधीर प्रसाद, प्रधान सचिव, पेयजल आपूर्ति विभाग, झारखंड सरकार


(इनपुट- बसंतराय प्रखंड से परवेज आलम)

फ्लोराइड से त्रस्त बोदरा गांव

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