बहराइच जिला

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सरकारी नलों से बह रहा है आर्सेनिक ‘स्लो प्वॉइजन’ (Partial success story: Arsenicosis continues in Bahraich)
Posted on 14 Apr, 2016 12:01 PM
बहराइच…यूपी का वो जिला जो अपने खूबसूरत जंगलों और वाइल्ड लाइफ रिजर्व के लिये पूरे देश में जाना जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता और कल-कल करती बहती सरयू नदी लोगों को अपनी ओर खींच लेती है। लेकिन ऐसी सुन्दरता के बीच एक अभिशाप भी इस जिले को है। वो है यहाँ के पानी में आर्सेनिक की मात्रा। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक जिले की 194 ग्राम पंचायत के 523 मजरों के पानी की 2013 में जाँच की गई थी। जाँच में जो तथ्य सामने आये वो हैरान करने वाले थे। जाँच में पाया गया कि 50 फीसदी से अधिक पानी में आर्सेनिक तत्व थे। जो अपनी तय मात्रा से काफी ज्यादा था।

जापान की यूनिवर्सिटी ऑफ मियाजॉकी और ईको फ्रेंड्स संस्था ने भी इस जिले के गाँवों में पानी में आर्सेनिक की जाँच की जो कि खतरनाक लेवल से ऊपर था।
लूट मची है सरयू नहर परियोजना के निर्माण में
Posted on 02 May, 2011 05:09 PM

अधूरी पड़ी नहर की पटरियों की मिट्टी तक अवैध रूप से बेची जा रही है। पटरियों के दोनों ओर लगाए गए

सरयू नदी भी खतरे में
Posted on 04 Mar, 2011 05:59 PM

नदियों में लगातार बढ़ते प्रदूषण के कारण आज तमाम नदियों का अस्तित्व खतरे में है। गंगा यमुना जैसी बड़ी नदियों के साथ ही छोटी नदियों की हालत तो और भी खराब है। इन छोटी नदियों की साफ सफाई की तरफ तो किसी का ध्यान भी नहीं है। इन्हीं नदियों में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सरयू नदी का अस्तित्व भी अब खतरे में है। रामायण के अनुसार भगवान राम ने इसी नदी में जल समाधि ली थी। सरयू नदी का उद्गम उत्तर प्रदेश क

नदियाँ गुस्से में हैं
Posted on 20 Nov, 2009 08:06 AM गोण्डा तथा बहराइच में सरयू तथा घाघरा नदियों के धारा बदलने से दर्जनों गावों के अस्तित्व पर संकट है। नदियों के धारा बदलने का काम प्राय: मानवीय हस्तक्षेप का ही परिणाम होता है। नदियों के रास्ते में रुकावट, उनके आगोर के जंगल खत्म होने, उनके ढांड़ को खनन से समाप्त करने आदि नदियों के गुस्सा के कारण होते हैं।
नदियों का कटान
बांध से पानी छोड़ने का सूचना तंत्र बनाओ
Posted on 29 Aug, 2012 01:56 PM भारत के तराई इलाकों में नेपाल नदियों में अचानक पानी छोड़ कर कभी भी बाढ़ ला देता है। भारत के सरकारी तंत्र की ओर से आश्वासन दिया जाता है कि उससे बात करके समस्या का स्थायी समाधान निकाला जायेगा। ऐसे में नेपाली अधिकारी यह कहकर जले पर नमक छिड़कते हैं कि वे तो पानी छोड़ने से पहले भारत के संबंधित अधिकारियों को सूचित करने का अपना फर्ज निभाते ही हैं। यह हर साल के मानसून का खेल हैं। झूठे आश्वासन देने का यह सरकारी ड्रामा हर साल का है। इस बार बहराइच के बाढ़पीड़ितों के सब्र का बांध टूट गया और वे आरपार के संघर्ष पर उतर आये। पर सरकारें ऐसी समस्याओं पर कोई स्थाई समाधान लाने की बजाय लोगों के दमन पर उतारू हो जाती है बता रहे हैं कृष्ण प्रताप सिंह।

28 अगस्त 2012। यों तो कई अन्य राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश भी सूखे का कहर झेल रहा है, लेकिन उसके नेपाल सीमा के आसपास के जिले बाढ़ की विभीषिका से भी दो-चार हैं। बहराइच, श्रवस्ती, बस्ती, बाराबंकी, गोंडा व फैजाबाद वगैरह में घाघरा व राप्ती नदियों में नेपाल से बहकर आये पानी ने लोगों का जीवन नर्क बना रखा है। अगर साफ कहें तो यह बाढ़ ‘आयातित’ है। शायद ही कोई साल ऐसा गुजरता हो जब ऐसा न होता हो। कई बार इसका खामियाजा उत्तर प्रदेश के पड़ोसी बिहार के भी एक बड़े हिस्से को चुकाना पड़ता है और पीड़ितों को संभलने तक का मौका नहीं मिलता। उन्हें पता तो नहीं होता कि कब नेपाल में पानी बरसेगा, उनके सिर पर ‘ओरौनी’ चूने लगेगी और नदियों को काबू करने के लिए बनाये गये तटबंधों को बेकार कर देगी।