कृष्ण प्रताप सिंह

कृष्ण प्रताप सिंह
बांध से पानी छोड़ने का सूचना तंत्र बनाओ
Posted on 29 Aug, 2012 01:56 PM
भारत के तराई इलाकों में नेपाल नदियों में अचानक पानी छोड़ कर कभी भी बाढ़ ला देता है। भारत के सरकारी तंत्र की ओर से आश्वासन दिया जाता है कि उससे बात करके समस्या का स्थायी समाधान निकाला जायेगा। ऐसे में नेपाली अधिकारी यह कहकर जले पर नमक छिड़कते हैं कि वे तो पानी छोड़ने से पहले भारत के संबंधित अधिकारियों को सूचित करने का अपना फर्ज निभाते ही हैं। यह हर साल के मानसून का खेल हैं। झूठे आश्वासन देने का यह सरकारी ड्रामा हर साल का है। इस बार बहराइच के बाढ़पीड़ितों के सब्र का बांध टूट गया और वे आरपार के संघर्ष पर उतर आये। पर सरकारें ऐसी समस्याओं पर कोई स्थाई समाधान लाने की बजाय लोगों के दमन पर उतारू हो जाती है बता रहे हैं कृष्ण प्रताप सिंह।

28 अगस्त 2012। यों तो कई अन्य राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश भी सूखे का कहर झेल रहा है, लेकिन उसके नेपाल सीमा के आसपास के जिले बाढ़ की विभीषिका से भी दो-चार हैं। बहराइच, श्रवस्ती, बस्ती, बाराबंकी, गोंडा व फैजाबाद वगैरह में घाघरा व राप्ती नदियों में नेपाल से बहकर आये पानी ने लोगों का जीवन नर्क बना रखा है। अगर साफ कहें तो यह बाढ़ ‘आयातित’ है। शायद ही कोई साल ऐसा गुजरता हो जब ऐसा न होता हो। कई बार इसका खामियाजा उत्तर प्रदेश के पड़ोसी बिहार के भी एक बड़े हिस्से को चुकाना पड़ता है और पीड़ितों को संभलने तक का मौका नहीं मिलता। उन्हें पता तो नहीं होता कि कब नेपाल में पानी बरसेगा, उनके सिर पर ‘ओरौनी’ चूने लगेगी और नदियों को काबू करने के लिए बनाये गये तटबंधों को बेकार कर देगी।

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