तराई में गहराया पानी का संकट


बहराइच. जल संरक्षण को सामाजिक और प्रशासनिक महत्त्व न मिलने के कारण सर्दी के मौसम में ही तराई का जल स्तर कम होने लगा है। इससे यहाँ के नागरिक चिंतित हैं। बहराइच और श्रावस्ती का तराई इलाका हिमालय से निकली नदियों के बहाव का इलाका माना जाता है। यहाँ की धरती में सूखती जलधारा से चिंतित पर्यावरणविदों का कहना है कि यदि हालात पर काबू न पाया गया, तो यहाँ के लोगों को पानी के लिये पलायन करना पड़ सकता है। धरा की सूखती कोख आज के समय की सबसे बड़ी चुनौती बन गयी है। जिले में बहने वाली नदियाँ हो या झीलें सबके सब प्रदूषण का शिकार हैं। तालाब और कुओं का अस्तित्व मिटता जा रहा। यह स्थिति तब और भयावह लगेगी, जब आपको यह पता चलेगा कि प्रशासन की ओर से इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। ऐसे में जल स्रोतों का अस्तित्व खतरे में है।

जिले में सरयू, घाघरा, कोविडयांला, गेरूआ, राप्ती आदि नदियाँ सदा बहने वाली नदियाँ हैं। लेकिन प्रदूषण और अतिक्रमण की छाप अब इन पर भी पड़ने लगी है। इससे पहले पूर्व जिलाधिकारी रिग्जियान सैंफिल के समय में सरयू नदी की सफाई अभियान चलाया गया था। लेकिन जिलाधिकारी के बदली के बाद या मुहिम धीमी पड़ गयी। उत्तर प्रदेश सरकार में पूर्व श्रममंत्री रहे वकार अहमद शाह ने भी बेगमपुर से बहराइच के बीच सरयू की सफाई के लिये करोड़ों रुपयों का प्रस्ताव रखा था। लेकिन नतीजा जस का तस रहा। पानी को बचाने के लिये विभागीय सक्रियता बड़ी ही सुस्त है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिले की सरकारी इमारतों तक में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम मौजूद नहीं है। जिले में तकरीबन 1200 राजस्व तालाब हैं। जिनमें से अधिकांश का क्षेत्रफल तेजी से घटा है। वजह कुछ और नहीं आस-पास के दबंग लोगों ने उस पर अपना कब्जा जमाना शुरू कर दिया है।

त्रिमुहानी नाम की जगह के पास स्थित तालाब खत्म होने के कगार पर है। तो हुजूरपुर में कटी स्थान में घोसियाना तालाब जो कभी दो हेक्टेयर क्षेत्र में हुआ करता था। अब मात्र एक हेक्टेयर के करीब बचा है। जिले में प्राकृतिक जल स्रोतों को संरक्षित करने के लिये इंटीग्रेट वाटर सेट मैनेजमेंट प्रोग्राम संचालित की गयी है। भूमि संरक्षण अधिकारी ने बताया कि इसके तहत पूर्व में टैंक, तालाब, चेक डैम का निर्माण करवाया गया है। प्रशासन ने अधिकतर हैंड पंपों पर आर्सेनिक रिमूवल प्लांट लगवाये थे। लेकिन देख-रेख के आभाव में हजारों खर्च कर लगवाये गये। यह आर्सेनिक रिमूवल प्लांट बदहाल हो गये हैं। प्रशासन की लापरवाही के चलते यह प्लांट सरकार की मंशा को मुह चिढ़ा रहे हैं। अधिकतर प्लांटो के पाइप को चोर निकाल ले गये हैं। तो कुछ प्लांट मरम्मत के अभाव में बदहाल हैं। हैंड पंप से पानी एक निशचित टैंक में एकत्र होता था। जो शुद्ध जल के रूप में ग्रामीणों को मिलता था।

जल निगम ने इन नलों के पीछे लाखों रूपये खर्च किये थे। पानी के लिये खर्च किया गया पैसा पानी की तरह देख-रेख के अभाव में बह गया। रूल ऑफ लॉ सोसाइटी के जिलाध्यक्ष मैथली शरण ने कहा कि जिले में नदियों के किनारे पहले नीम, पीपल, पाकण और बरगद के पेड़ हुआ करते थे। लेकिन अब पानी सोखने और धरती को बंजर बनाने वाला यूकेलिप्टस ज्यादा लगाया जा रहा है। जिले में बहुतायात से की जा रही मेथा की खेती भी जल चक्र को नुकसान पहुँचा रही है। मनरेगा के तहत भी लाखों रुपये खर्च करके बनाये गये। महज कुछ ही तालाबों में पानी रहता है। गायत्री परिवार के झिंगरी पुल स्थित आश्रम के व्यवस्थापक कहते हैं कि प्राकृतिक जल चक्र को बनाये रखने के लिये नदियों और तालाबों के किनारे वृक्षारोपण किया जाना जरूरी है। भारतीय किसान परिषद के प्रदेश अध्यक्ष भगवान बक्स सिंह सैंगर ने कहा कि उनका संगठन पर्यावरण और जल के लिये काम करने वाले सभी संगठनों के साथ मिलकर काम करने को तत्पर है। सभी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिये जल संरक्षण आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत है।

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