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आंध्र प्रदेश
स्लिपेज ऑफ वाश सर्विसेस पर कार्यशाला
Posted on 12 Feb, 2009 03:35 PMस्लिपेज ऑफ वाश सर्विसेस पर कार्यशाला का आयोजन
कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य स्लिपेज ऑफ वाश सर्विसेस चुनौती के कारणों और हद का आंकलन करना और मुख्य कारणों को समझना है। दूसरे कार्यशाला का उद्देश्य वाश स्लिपेज चैलेंज पर की गई कार्यशालाओं और अनुसंधानों के परिणामों को बांटना है।
सम्पर्कः slippage-workshop-2009@googlegroups.com
- स्थान:
पानी का हक : संवैधानिक
Posted on 09 Feb, 2009 01:43 PMजागरण याहू, नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि पानी की कमी के चलते सामाजिक तनाव फैलने के साथ ही बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया है कि ऐसे किसी भी संकट से निपटने के उपाय सुझाने के लिए तत्काल वैज्ञानिकों की एक उच्च अधिकार संपन्न समिति गठित की जाए।क्यों बरसात होती है
Posted on 21 Jan, 2009 08:05 PMवैसे तो हर बारिश में ही भीगने का मन होता है, पर मानसून की बात ही कुछ अलग है। मानसून तन को ही नहीं मन को भी भिगोता है - हर किसी के मन को। लोगों के तन मन ही को नहीं - नदी पहाड़, खेत खलिहान, हाट बाजार सभी के मन को। किसी को यह रोमांच देता है, किसी को खुशी, किसी को ताजगी तो किसी को नया जीवन। और यह सब करने वाला मानसून इस धरती का अपनी तरह का अकेला नाटकीय घटनाक्रम है। मानसूनी जलवायु काफी बड़े भूभाग को
‘पुलिकट’ खतरे में
Posted on 03 Jan, 2009 08:08 AMएजेंसी/ चेन्नई, भारत की दूसरी बड़ी झील पुलिकट मानवीय गतिविधियों और प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण खतरे में है। एक नए सर्वे में यह बात सामने आई है। पुलिकट झील का आकार लगातार कम हो रहा है।
नागार्जुन फर्टिलाइजर्स (काकीनाड़ा, आंध्र प्रदेश):
Posted on 08 Oct, 2008 09:39 PMअमोनिया आधारित खाद उत्पादन में पानी के इस्तेमाल में कमीआंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले में स्थित यह अमोनिया आधारित खाद उत्पादक कंपनी कूलिंग प्रक्रिया और अपनी आवासीय कॉलोनी की ज़रूरतों के लिए गोदावरी नदी से पानी लेती है। इस संयंत्र में पानी का इस्तेमाल कम करने की कोशिश के तहत कई बदलाव किए गए। कंपनी ने पानी के बेहतर इस्तेमाल, प्रयोग हुए पानी के दोबारा इस्तेमाल, पानी के रिसाव पर कड़ी नज़र और कर्मचारियों तथा आवासीय कॉलोनी के लोगो को प्रशिक्षण देने जैसे कई उपाय किए। कंपनी ने पानी के इस्तेमाल पर निगरानी, बारिश के पानी के संरक्षण और शोधित उत्सर्जित पानी का इस्तेमाल सिंचाई में करने जैसे उपाय भी किए गए।
पानी पर खतरे की घंटी सुनना जरूरी
Posted on 03 Oct, 2008 09:41 AMअनिल प्रकाश/ हिन्दुस्तान
भूमिगत जलस्रोतों को कभी अक्षय भंडार माना जाता था, लेकिन ये संचित भंडार अब सूखने लगे हैं। पिछले 50-60 बरस में डीजल और बिजली के शक्तिशाली पम्पों के सहारे खेती, उद्योग और शहरी जरूरतों के लिए इतना पानी खींचा जाने लगा है कि भूजल के प्राकृतिक संचय और यांत्रिक दोहन के बीच का संतुलन बिगड़ गया और जलस्तर नीचे गिरने लगा। केंद्रीय तथा उत्तरी चीन, पाकिस्तान के कई हिस्से, उत्तरी अफ्रीका, मध्यपूर्व तथा अरब देशों में यह समस्या बहुत गंभीर है, लेकिन भारत की स्थिति भी कम गंभीर नहीं है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिकांश इलाकों में भूजल स्तर प्रतिवर्ष लगभग एक मीटर तक नीचे जा रहा है। गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में भूजल स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है। समस्या इन राज्यों तक ही सीमित नहीं है। नीरी (नेशनल इनवायर्नमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीच्यूट) के अध्ययन में पाया गया है कि भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन के कारण पूरे देश में जल स्तर नीचे जा रहा है।
जल संरक्षण की चुनौती
Posted on 16 Sep, 2008 11:57 AMदेश की कई छोटी-छोटी नदियां सूख गई हैं या सूखने की कगार पर हैं। बड़ी-बड़ी नदियों में पानी का प्रवाह धीमा होता जा रहा है। कुएं सूखते जा रहे है। 1960 में हमारे देश में 10 लाख कुएं थे, लेकिन आज इनकी संख्या 2 करोड़ 60 लाख से 3 करोड़ के बीच है। हमारे देश के 55 से 60 फीसदी लोगों को पानी की आवश्यकता की पूर्ति भूजल द्वारा होती है, लेकिन अब भूजल की उपलब्धता को लेकर
आर्सेनिक मुक्त ट्रांसजेनिक चावल
Posted on 19 Nov, 2018 06:03 PM
हैदराबाद: चावल की फसल में आर्सेनिक का संचयन एक गम्भीर कृषि समस्या है। भारतीय वैज्ञानिकों ने अब फफूँद के अनुवांशिक गुणों का उपयोग करके चावल की ऐसी ट्रांसजेनिक प्रजाति विकसित की है, जिसमें आर्सेनिक संचयन कम होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रजाति के उपयोग से आर्सेनिक के खतरे से निपटने में मदद मिल सकती है।
मछलीपट्टनम 150 वर्ष पहले कैसे बना अग्रणी वैज्ञानिक खोज का गवाह
Posted on 16 Aug, 2018 05:13 PMमछलीपट्टनम आंध्र प्रदेश के तट पर स्थित सबसे पुराने बंदरगाहों में से एक है। बहुत कम लोगों को पता होगा कि 150 साल पहले मछलीपट्टनम एक ऐतिहासिक वैज्ञानिक खोज का गवाह बना था, जिससे विज्ञान की खगोल भौतिकी नामक एक नई शाखा की शुरुआत हुई।