विश्वजीत चक्रवर्ती
जल सस्य-कर्तन तथा प्रबंधन- एक वस्तुस्थिति अध्ययन
Posted on 01 Feb, 2012 01:56 PMभारत में ज्यादातर कृषि-भूमि वर्षा पर निर्भर करती है। यह वर्षा मानसून के महीनों में ही प्राप्त होती है। यदि इस मौसम में प्राप्त अत्यधिक जल का संरक्षण तथा नियंत्रण किया जा सके तो क्षेत्र की कई समस्यायें जैसे कि तलछट हानि, सूक्ष्म जलवायु आदि के सुधार में लाभकारी सिद्ध होगा। इस प्रपत्र में पंजाब के होशियारपुर जिले में बलोवल सोंखरी क्षेत्र के लिये सस्य कर्तन संरचना की योजना का वस्तुस्थिति अध्ययन किया गदक्षिण बिहार की जीवनदायिनी 'पारम्परिक आहर-पईन जल प्रबन्धन प्रणाली' की समीक्षा (भाग 1)
Posted on 11 Jun, 2024 09:46 PMतकनीकी एवं औद्योगिक उन्नति के इस युग में आज भी भारत देश की अर्थव्यवस्था तथा 70% से अधिक भारतीय जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए कृषि और संबद्ध गतिविधियों पर निर्भर है। पिछले सौ वर्षों में जल प्रवन्धन के क्षेत्र में हमने कई बड़े बदलाव देखे हैं मुख्यतः आज़ादी के बाद सरकारों ने जल प्रबन्धन में व्यक्तियों एवं जनसमुदायों की भूमिका अप्रत्यक्ष रूप से निभाई है। वर्षा जल संचयन जैसी सरल तकनीक का हास हुआ है और
दक्षिण बिहार की जीवनदायिनी 'पारम्परिक आहर-पईन जल प्रबन्धन प्रणाली' की समीक्षा (भाग 2)
Posted on 11 Jun, 2024 07:56 PMआहर-पईन खोदते समय निकली मिट्टी से अलंग बनाया जाता है जो अतिवृष्टि एवं बाढ़ की स्थिति का सामना करने में सहायक होता था। भू-क्षेत्र के केंद्र में गाँव और गाँव के चारों तरफ समतल खेत मगध के ग्रामीण बसाहट की विशेषता है। खेतों के बड़े आयताकार समुच्चय (50 से 100/200 एकड़ रकबे) को खंधा कहा जाता है। हर खंधे का विशेष नाम होता है जैसे मोमिन्दपुर, बकुंरवा, धोविया घाट, सरहद, चकल्दः, बडका आहर, गौरैया खंधा आदि