तहलका
तहलका
ढहना कूड़े के पहाड़ का
Posted on 18 Oct, 2017 11:21 AMयह दुखद दास्तान है सरकारी लापरवाही की। जिसके चलते देश की राजधानी में एक किनारे कचरे का पहाड़ बनता रहा। हो सकता है कि दिल्ली की कांग्रेस सरकार ने सोचा हो कि आने वाले सालों में इस कचरे के अम्बार से ऊर्जा बनाएँगे। खैर कामयाब नहीं रहा तो बाग-बगीचा बना देंगे। रोज शाम को प्रेमी जोड़े आएँगे। लेकिन यहाँ ऊर्जा की योजना नाकाम रही। कूड़े का अम्बार उठता गया। लोगों को लगा एक दिन यह आकाश छू लेगा। लेकिन इस
गंगा मैली नहीं रहेगी
Posted on 12 May, 2017 01:08 PMराष्ट्रीय नदी गंगा क्या इतनी प्रदूषण मुक्त हो सकेगी कि उसके जलचर जीवित रहें और मानव मात्र को भी गंंगा के स्वच्छ, निर्मल जल के स्पर्श मात्र से यह अहसास हो सकेगा कि वह वाकई उस गंगा का आचमन कर रहा है जो स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरी थी और जिसका उल्लेख शास्त्रीय ग्रंथों में मिलता है।
विस्थापितों को मुआवजे का फैसला पाने में लगी देर
Posted on 12 Mar, 2017 11:10 AMतकरीबन चालीस साल बाद सुप्रीम कोर्ट से सरदार सरोवर परियोजना के चलते मध्य प्रदेश के विस्थापित आदिवासियों को मुआवजा देने की व्यवस्था हुई। अब देखना है कि अदालती आदेश लागू हो पाता है या नहीं?
युवाबल से युगपरिवर्तन
Posted on 30 Aug, 2013 10:07 AM हिवड़े बाजार जाने पर आपको तरतीब से बने गुलाबी मकान दिखेंगे। साफ और चौड़ी सड़कें भी। नालियां बंद हैं और जगह-जगह कूड़ेदान लगे हैं। हर जगह एक अनुशासित व्यवस्था के दर्शन होते हैं। शराब और तंबाकू के लिए अब गांव में कोई जगह नहीं रही। हर घर में पक्का शौचालय है। खेतों में मकई, ज्वार, बाजरा, प्याज और आलू की फसलें लहलहा रही हैं। सूखे से जूझते किसी इलाके में यह देखना किसी चमत्कार से कम नहीं। 235 परिवारों और 1,250 लोगों की आबादी वाले इस गांव में 60 करोड़पति हैं। ताराबाई मारुति कभी दिहाड़ी मजदूर थीं। आज उनके पास 17 गायें हैं और वे ढाई सौ से तीन सौ लीटर दूध रोज बेचती हैं। वे बताती हैं, 'पहले मजदूरी करते थे। पांच-दस रुपये रोज मिलते थे तो खाना मिलता था। आज आमदनी बढ़ गई है।' हिवड़े बाजार नाम के जिस गांव में ताराबाई रहती हैं वहां के ज्यादातर लोगों का अतीत कभी उनके जैसा ही था। वर्तमान भी उनके जैसा ही है। आज राजनीति से लेकर तमाम क्षेत्रों में जिस युवा शक्ति को अवसर देने की बात हो रही है वह युवा शक्ति कैसे समाज की तस्वीर बदल सकती है, इसका उदाहरण है हिवड़े बाजार। दो दशक पहले तक महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में बसे इस गांव की आबादी का एक बड़ा हिस्सा मजदूरी करने आस-पास के शहरों में चला जाता था। यानी उन साढ़े छह करोड़ लोगों में शामिल हो जाता था जो 2011 की जनगणना के मुताबिक देश के 4000 शहरों और कस्बों में नारकीय हालात में जी रहे हैं।नाबार्ड : गांव बढ़े तो देश बढ़े
Posted on 20 Aug, 2013 12:09 PMराष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के अध्यक्ष डॉ. प्रकाश बक्षी से ग्रामीण भारत की बैंकिंग आवश्यकताएं, वित्तीय समावेशन हेतु उनके संगठन द्वारा उठाए गए कदमों और रूपे (RuPay) किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से किसानों को ऋण वितरण आदि के संबंध में बातचीत के कुछ अंश..बूँद बूँद कर बना सरोवर
Posted on 11 Sep, 2008 03:55 PMबूंद-बूंद से सागर कैसे भरता है इसकी मिसाल बिहार के माणिकपुर गांव में देखी जा सकती है। पटना से करीब सौ किलोमीटर दूर इस गांव के कमलेश्वरी सिंह ने सात साल तक अकेले ही खुरपी और बाल्टी की मदद से 60 फीट लंबा-चौड़ा और 25 फीट गहरा तालाब खोद डाला। आज जब दक्षिण बिहार के ज्यादातर गांवों के तालाब और कुएं पानी का संकट झेल रहे हैं, कमलेश्वरी के पसीने की बूंदों से तैयार