श्रीपद्रे
पानी और हरियाली से हरा-भरा गाँव
Posted on 26 Dec, 2017 03:00 PMकई महीने तक खोजबीन करने और तरह-तरह के उपायों पर विचार करने के बाद लक्ष्मण सिंह ने चौका बनाने का विचार सामने रखा। यह गाँव के वातावरण के अनुकूल था और पानी के साथ-साथ माटी के क्षरण को रोकने में भी कारगर था। चौका, चौकोर आकार का कम गहराई वाला एक उथला गड्ढा होता है। इसकी गहराई नौ इंच के आसपास रखी जाती है। इससे इसमें पानी इकट्ठा होता है और फिर एक तरफ से इसकी ऊँचाई हल्की सी कम कर दी जाती है तो यही पानी धीरे-धीरे रिसकर टाँका की तरफ बह जाता है।
लोकभाषा में लापोड़िया का मतलब होता है मूर्खों का गाँव। ऐसा गाँव जहाँ लोग पढ़े लिखे नहीं हैं। अपने साधन और समृद्धि के प्रति उदासीन हैं और शिक्षा संस्कार से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं। मूर्खों के इस गाँव में रहने वाले लोग सदा आपस में लड़ते झगड़ते रहते हैं ताकि उनके ग्राम नाम की महिमा कम न हो। लापोड़िया था भी ऐसा ही लेकिन तीस साल पहले तक। आज का लापोड़िया मूर्खों का गाँव नहीं बल्कि ऐसे समझदार लोगों की सभा है जहाँ लोग अपने साधन संसाधन के प्रति संवेदनशील हो गए हैं। वो अब शिक्षा और संस्कार को प्राथमिकता देते हैं और इन सबसे ऊपर वो पानीदार हो गए हैं।श्रमदान से जल समस्या का समाधान (Satara votes for Dr. Pol)
Posted on 21 Dec, 2017 03:53 PM
डॉ. पॉल इस अजिंक्यतारा जल संरक्षण अभियान के अघोषित अगुवा हो गए। इधर धीरे-धीरे उनकी आबादी भी बढ़ती रही और व्यापारी, तकनीशियन, साफ्टवेयर इंजीनियर और एक राजनीतिज्ञ भी उनके इस अभियान का हिस्सा हो चुके थे। कारवाँ आगे बढ़ा तो किले से नीचे उतरकर लोगोंं के बीच जाने का भी फैसला हुआ कि अगर गाँव वालों को यह बात समझाई जाये कि अगर जमीन पर पानी को संरक्षित किया जाये तो जमीन के नीचे भी पानी का स्तर ऊपर आएगा और सूखे से मुक्ति पाने में यह छोटा सा उपाय बड़ी मदद करेगा। सकाल मराठी का बड़ा अखबार है। 10 जनवरी 2013 को उसने एक छोटा सा विज्ञापन प्रकाशित किया। विज्ञापन भी क्या था एक अपील थी लोगों से कि सतारा के लोग अजिंक्यतारा पर आएँ और उसकी साफ-सफाई में सहयोग दें। जब यह अपील की गई तो भारत में किसी स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत भी नहीं हुई थी इसलिये अपील का ज्यादा असर न हुआ। कुछ मुट्ठी भर लोग ही सतारा की शान अजिंक्यतारा पहुँच पाये। पहले दिन तो कुछ लोग आये भी लेकिन दूसरे दिन सिर्फ तीन लोग बचे जो अजिंक्यतारा की साफ-सफाई में स्वैच्छिक रुचि रखते थे। इसमें एक डॉ. अविनाश पॉल भी थे।
स्वर्णजलः कहीं पास कहीं फेल
Posted on 26 Jan, 2010 12:08 PMआमतौर पर कहा जाता है, पब्लिक स्कूलों में जहां कहीं भी सरकारी पैसे से रूफवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए गए हैं, पैसे की बर्बादी ही हुई है। इसके बावजूद भी चिकमगलूर जिले में तो कहानी ही दूसरी है। इस जिले की अच्छाईयां और कुछ शिक्षाओं को गिना रहे हैं श्री पद्रे...
पहाड़ के माथे पर हरा तिलक
Posted on 11 Jul, 2012 10:12 AMगांव वाले तो कहते थे महालिंग व्यर्थ की मेहनत कर रहा है। लेकिन महालिंग को गांव के लोगों की आलोचना सुनाई तक नहीं देती थी। असफल होने का डर भी उन्हें नहीं लगता था। हां वे चार बार असफल भी रहे। सुरंग बनाई। लेकिन पानी नहीं मिला। मेहनत बेकार चली गई। लेकिन महालिंग ने हार नहीं मानी। वे लोगों से कहते रहे कि एक दिन ऐसा आएगा जब मैं यहीं इसी जगह इतना पानी ले आऊंगा कि यहां हरियाली का वास होगा।
दक्षिण कन्नड़ के किसान महालिंग नाईक पोथी वाली इकाई-दहाई तो नहीं जानते लेकिन उन्हें पता है कि बूंदों की इकाई-दहाई, सैकड़ा-हजार और फिर लाख- करोड़ में कैसे बदल जाती है। 58 साल के अमई महालिंग नाईक स्कूल कभी गए ही नहीं। उनकी शिक्षा-दीक्षा और समझ खेतों में रहते हुए ही बनी और संवरी थी।गिरजाघर का तरल आशीष
Posted on 27 Aug, 2010 03:12 PMअपने पड़ोसी को प्यार करो। कर्नाटक में एक गिरजाघर ने ईसा मसीह की इस उक्ति को बड़े ही अच्छे तरीके से व्यवहार में उतारा है, खारे पानी के इस इलाके में मीठा पानी उतार कर। अपने लिए नहीं अपने पड़ोसियों के लिए। कुंदायू के पास राष्ट्रीय राजमार्ग-17 से लगे समुद्र किनारे के गांव तल्लूर में बने सेंट फ्रांसिस असीसी नामक इस चर्च ने अपने पड़ोस के पांच सूखे पड़े कुओं को फिर से जीवंत बना दिया है। वर्षों पहले
पानी के पादरी
Posted on 07 Dec, 2008 07:45 AMयह पूरा इलाका खारे पानी से भरा है। कुदायूं (केरल) के पास राष्ट्रीय राजमार्ग १७ के आसपास का यह इलाका मीठे पानी के लिए मुश्किल जगह है। लेकिन ७० साल के फादर बेंजामिन डीसूजा ने ऐसा अभिनव प्रयोग किया है कि सबके लिए मीठे पानी तक पहुंच का रास्ता खुल गया है। चर्च के अपने पास चार एकड़ जमीन है। फादर बेंजामिन ने तय किया कि वे इस भूभाग पर बरसनेवाली हर बूंद को रोकेंगे और इस खारे पानी के इलाके में कुओं को