शेखर पाठक

शेखर पाठक
एक थीं गौरा देवी
Posted on 26 Mar, 2018 05:12 PM

चिपको आन्दोलन की 45वीं वर्षगाँठ पर विशेष


चिपको आंदोलन की जननी गौरा देवीउत्तराखंड को जन आन्दोलनों की धरती भी कहा जा सकता है, उत्तराखंड के लोग अपने जल-जंगल, जमीन और बुनियादी हक-हकूकों के लिये और उनकी रक्षा के लिये हमेशा से ही जागरुक रहे हैं। चाहे 1921 का कुली बेगार आन्दोलन, 1930 का तिलाड़ी आन्दोलन हो या 1974 का चिपको आन्दोलन, या 1984 का नशा नहीं रोजगार दो आन्दोलन या 1994 का उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आन्दोलन, अपने हक-हकूकों के लिये उत्तराखंड की जनता और खास तौर पर मातृ शक्ति ने आन्दोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चिपको आंदोलन की जननी गौरा देवी के बारे में बता रहे हैं शेखर पाठक।

चिपको आंदोलन की जननी गौरा देवी
नामिक किससे करे निवेदन
Posted on 11 Aug, 2015 01:46 PM
कभी यहाँ वन, वनस्पति, जीव-जन्तु देखने आओगे तो रह लेना हमारी चाख में
उत्तराखंड का मीडिया
Posted on 11 Jun, 2014 10:17 AM
आज टिहरी डूबने के कगार पर है। तो डांडी-कांडी जो बम्बई के प्रवासी नि
प्राकृतिक संसाधनों की राजनीति और उत्तराखंड का भविष्य
Posted on 27 May, 2014 01:15 PM
पहले लोग अपने लिए वन पंचायतों में जंगलों को बचाते थे। उसमें कहीं भ
संकट में काजीरंगा और कार्बेट अभ्यारण्य
Posted on 15 Oct, 2012 05:39 PM
देश में अभ्यारण्यों की दुर्दशा देखने के बाद सर्वोच्च न्यायालय को दखल देना पड़ा है। कभी-कभार बाढ़ और आग से होने वाले नुकसान के अलावा भी कई मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। शिकारियों की घुसपैठ और पर्यटन एजेंसियों की दखलंदाजी ने संकट को और गहरा किया है। काजीरंगा और जिम कार्बेट अभ्यारण्यों के कुप्रबंधन का जायजा ले रहे हैं शेखर पाठक।
बांधों का दुराग्रह कहीं का न छोड़ेगा
Posted on 21 Jul, 2012 02:46 PM
भारतीय लोकतंत्र की परिधि में विकास के नये मंदिर नहीं आते। चाहे सेज का मामला हो, चाहे लंबी चौड़ी सड़कें बनाना हो या किसी बड़े बांध का मामला हो कभी भी इन पर सवाल नहीं उठाया जाता। बड़ी परियोजनाओं में लोगों को अपने घर, खेती, पनघट, गोचर और जंगलों से हाथ धोना पड़ता है। बड़ी परियोजनाएं यानी बड़ी कंपनियां साथ ही प्राकृतिक संसाधनों का निजीकरण ही है। और यह प्रक्रिया दिन प्रतिदिन तेज होती जा रही है और जिसमें जनता का कोई रक्षक नहीं रह गया है। वर्तमान में उत्तराखंड सहित भारत के सभी पहाड़ी इलाकों में बांधों का दौर शुरू हो गया है। नदियां लगातार बांधी जा रही हैं। बांधों में ही पहाड़ की सभी समस्याओं का हल देख रहे लोग एक बड़े दुराग्रह का शिकार हैं बता रहे हैं शेखर पाठक।

विकास के बारे में अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं और हर एक को अपनी बात कहने का जनतांत्रिक अधिकार है। इसलिए जीडी अग्रवाल, राजेंद्र सिंह और उनके साथियों, भरत झुनझुनवाला और श्रीमती झुनझुनवाला के साथ पिछले दिनों जो बदसलूकी हुई, वह सर्वथा निंदनीय है। यह हमला कुछ लोगों ने नियोजित तरीके से किया था। राजनीतिक पार्टियों का नजरिया बहुत सारे मामलों में एक जैसा हो गया है, पर विभिन्न समुदायों ने अभी अपनी तरह से सोचना नहीं छोड़ा है।
चिपको आन्दोलन के पचास साल : एक थीं गौरा देवी (भाग 2)
गौरा देवी चिपको आन्दोलन की सर्वाधिक सुपरिचित महिला रहीं। इस पर भी उनकी पारिवारिक या गाँव की दिक्कतें घटी नहीं। चिपको को महिलाओं का आन्दोलन बताया गया पर यह केवल महिलाओं का कितना था ? अपनी ही संपदा से वंचित लोगों ने अपना प्राकृतिक अधिकार पाने के लिए चिपको आन्दोलन शुरू किया था।
Posted on 02 Nov, 2023 05:06 PM

(पिछले भागों में आपने पढ़ा कि किस प्रकार शेखर पाठक जी अपने साथियों के साथ गौरा देवी से मिले और कैसे हुई चिपको की शुरुआत। आज जानिये चिपको आंदोलन के बाद के परिदृश्य के बारे में।)

अस्कोट-आराकोट अभियान 1984,फोटो साभार:-शेखर पाठक
चिपको आन्दोलन के पचास साल : एक थीं गौरा देवी (भाग 1)
अगली सुबह रैणी के पुरुष ही नहीं, गोविन्द सिंह रावत, चंडी प्रसाद भट्ट और हयात सिंह भी आ गये। रैणी की महिलाओं का मायका बच गया और प्रतिरोध की सौम्यता और गरिमा भी बनी रही। 27 मार्च 1974 को रैणी में सभा हुई, फिर 31 मार्च को इस बीच बारी-बारी से जंगल की निगरानी की गई।
Posted on 02 Nov, 2023 03:35 PM

जनवरी 1974 में जब अस्कोट आराकोट अभियान की रूपरेखा तैयार हुई थी, तो हमारे मन में सबसे ज्यादा कौतूहल चिपको आन्दोलन और उसके कार्यकर्ताओं के बारे में जानने का था। 1973 के मध्य से जब अल्मोड़ा में विश्वविद्यालय स्थापना, पानी के संकट तथा जागेश्वर मूर्ति चोरी सम्बन्धी आन्दोलन चल रहे थे, गोपेश्वर, मंडल और फाटा की दिल्ली-लखनऊ के अखबारों के जरिये पहुँचने वाली खबरें छात्र युवाओं को आन्दोलित करती थीं लेकिन

गौरा देवी अस्कोट अभियन 84 के दौरान अपने घर में,फोटो साभार- शेखर पाठक
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