रविशंकर
रविशंकर
कृषि में कारपोरेट का दबदबा
Posted on 03 Dec, 2017 03:41 PMसरकार जनता की सुविधाएँ और सब्सिडी घटा रही है। खेती से जीविका नहीं चलती। फसल संबंधित उद्योग-धंधों पर, जो पह
इधर खन्दक उधर खाई
Posted on 12 Feb, 2015 03:34 PMभारत में खेती-किसानी लगातार घाटे का सौदा साबित हो रही है। कर्ज और गरीबी से तंग होकर पिछले छह साल में छियासठ हजार से ज्यादा किसान अधिकृत तौर पर आत्महत्या कर चुके हैं। बावन फीसद किसान अब भी कर्ज में डूबे हैं और बदहाली का जीवन जी रहे हैं। ऐसे में सरकार की क्या जिम्मेदारी बनती है? जायजा ले रहे हैं रविशंकर।संकट में खेती-किसानी
Posted on 31 Mar, 2014 10:29 AMसरकार की गलत नीतियों के कारण सिंचाई, घरेलू उद्योग, दस्तकारी और ग्रामनरेगा की पांच साल की यात्रा
Posted on 14 Feb, 2011 10:26 AMगरीबी, बेरोजगारी और पलायन से त्रस्त ग्रामीण भारत में राहत का संदेश लेकर आए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) ने पांच साल पूरे तो कर लिए हैं, पर सरकार मनरेगा में पारदर्शिता एवं इसकी खामियों को अब तक दूर नहीं कर सकी है और इस पर चिंतित दिखती है।