पूजा सिंह
धीमी मौत मर रहा है बड़ा तालाब
Posted on 20 Dec, 2015 10:57 AMगन्दे नालों से आ रही गन्दगी और खेतों की रासायनिक खाद के कारण न केवल भोपाल के मशहूर बड़े तालाब का पानी खराब हो रहा है बल्कि जलीय जीवों के लिये भी खतरा पैदा हो गया है।
तकरीबन 35 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला और 362 वर्ग किलोमीटर जल भराव क्षेत्र वाला भोपाल का बड़ा तालाब शहर के कई मोहल्लों की नालियों की गन्दगी अपने आप में समेटता हुआ धीमी मौत की ओर बढ़ रहा है। उल्लेखनीय है कि पर्यटकों और पक्षियों को समान रूप से प्रिय इस तालाब से ही शहर की तकरीबन 40 फीसदी आबादी को पेयजल की आपूर्ति की जाती है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में यह स्वीकार किया कि भोपाल शहर के नेहरू नगर, नया बसेरा, खानुगाँव, हलालपुरा, संजय नगर, राजेन्द्र नगर और बैरागढ़ समेत नौ नालों की गन्दगी लम्बे समय से लगातार बड़े तालाब में मिल रही है।
जानलेवा कचरे का अधूरा निपटान
Posted on 29 Nov, 2015 01:29 PMभोपाल गैस कांड पर विशेष
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने का घातक कचरा पीथमपुर में निपटाया जाना शुरू कर दिया गया है लेकिन पर्यावरणविद और विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कचरा स्थानीय पर्यावरण को बहुत अधिक हानि पहुँचा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद यूनियन कार्बाइड कारखाने का विषाक्त कचरा निपटाने की प्रक्रिया इन्दौर के निकट पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में शुरू कर दी गई है। लेकिन विषय विशेषज्ञों का कहना है कि कचरा निपटाने के लिये समुचित मानकों का ध्यान नहीं रखा जा रहा है जो आसपास की आबादी के लिये घातक हो सकता है।
दरअसल यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा तीन दशक बाद भी विवाद का विषय बना हुआ है। इस कचरे को दुनिया का कोई भी देश अपने यहाँ निपटाने को तैयार नहीं है। हालांकि बीच में जर्मनी की एजेंसी जीईजेड इस कचरे को जर्मनी ले जाकर कुशलतापूर्वक नष्ट करने को तैयार थी लेकिन बाद में अज्ञात कारणों से उससे करार नहीं हो सका।
समझदारी और भागीदारी से भागी फ्लोरोसिस की बीमारी
Posted on 25 Nov, 2015 10:09 AMकालापानी, बड़ी छतरी और दहेरिया गाँवों में जल उपयोगकर्ता समितियों का गठन किया गया जिनका काम पीने का साफ पानी एकत्रित करना और हर हालत में उसकी देखभाल और साफ-सफाई सुनिश्चित करना है। कालापानी गाँव की जल उपयोगकर्ता समिति की अध्यक्ष सक्कू बाई ने बताया कि किस तरह उनकी टीम पानी को साफ रखने और उसके उचित उपचार का काम करती है। कालापानी गाँव के किसान उदय सिंह ने तो फ्लोराइड के कम स्तर वाला अपना कुआँ ही गाँव के लोगों को इस्तेमाल के लिये दान में दे दिया है। धार जिले के कुछ गाँवों में स्वयंसेवी शोध संगठन पीएसआई के साथ मिलकर स्थानीय लोगों ने पानी में अतिरिक्त फ्लोराइड की समस्या को दूर कर लिया है।जो भी लोग मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिला धार के कालापानी, बड़ी छतरी और दहेरिया गाँवों के बारे में जानते हैं, उनके मन में इनका जिक्र आते ही निराशा और आशा के मिले-जुले भावों का संचार होता है। इन तीन गाँवों की कहानी एक विकट समस्या से जूझने और देश को उससे उबरने की राह दिखाने की कहानी है।
निराश करने वाली बात यह है कि ये गाँव देश के उन क्षेत्रों में आते हैं जहाँ के पानी में फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज्यादा है और जिसके चलते बच्चों से लेकर वयस्क तक फ्लोरोसिस जैसी बीमारी के शिकार हो रहे हैं।
जनभागीदारी से दूर होती फ्लोरोसिस की बीमारी
Posted on 19 Nov, 2015 03:46 PMराज्य स्तरीय कार्यशाला में बनी सहमति, स्थानीय समुदायों, स्यवंसेवी संगठनों और सरकार के तालमेल से दूर हो सकती हैं फ्लोरोसिस जैसी क्षेत्र आधारित बीमारियाँपेयजल से पैदा होने वाली इस बीमारी की भयावहता का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है देश के 20 राज्य और अकेले मध्य प्रदेश के 27 जिले इसकी चपेट में हैं। पानी में फ्लोराइड की बढ़ी हुई मात्रा कई तरह की बीमारियों को जन्म दे सकती है। इससे निपटने के क्रम में शासकीय-स्वयंसेवी प्रयास और आम लोगों में जागरुकता दोनों समान रूप से आवश्यक हैं। प्रदेश के 27 जिलों में पेयजल फ्लोराइड से ग्रस्त है, लोक विज्ञान संस्थान तथा कुछ अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर प्रदेश सरकार तेजी से इस समस्या से निपटने का प्रयास कर रही है।राजधानी भोपाल स्थित पलाश रेजिडेंसी होटल में 18 नवम्बर को ‘सहभागी भूजल प्रबन्धन के जरिए फ्लोरोसिस शमन’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में पानी में फ्लोराइड की जरूरत से ज्यादा मौजूदगी से होने वाली समस्याओं और उनसे निपटने के जनभागीदारी वाले तरीकों के बारे में न केवल गहन चर्चा हुई बल्कि वहाँ ऐसे निष्कर्ष भी निकाले गए जो इस बीमारी से जूझ रहे जिलों और आबादी को नई राह दिखा सकते हैं।
कार्यशाला के समापन तक इस बात पर आम सहमति बन गई कि स्थानीय समुदायों को यदि थोड़ा शोध, थोड़ा प्रशिक्षण और सरकारी-गैरसरकारी मदद मुहैया करा दी जाये तो वे स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों के कारण उपजी फ्लोरोसिस जैसी समस्याओं से काफी हद तक खुद ही निपट सकते हैं।
कार्यशाला का आयोजन देहरादून स्थित शोध संस्था लोक विज्ञान संस्थान (पीएसआई), ने लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचईडी), भोपाल, फ्रैंक वाटर यूके, वसुधा, विकास संस्थान, वाटर एड, इनरेम फ़ाउंडेशन और अर्घ्यम के सहयोग से किया था।
क्या आप जॉन स्नो को जानते हैं
Posted on 17 Nov, 2015 04:09 PMविश्व शौचालय दिवस, 19 नवम्बर 2015 पर विशेष
यह सच है कि जॉन स्नो इतने लोकप्रिय नहीं हैं कि उनके बारे में बगैर गूगल किये कोई बात की जाये लेकिन यह भी उतना ही सच है कि जन स्वास्थ्य और सार्वजनिक साफ-सफाई (शौचालयों समेत) को लेकर होने वाली कोई भी बात बगैर जॉन स्नो के पूरी नहीं हो सकती।
सन् 1813 में जन्मे ब्रिटिश चिकित्सक जॉन स्नो ही वह पहले व्यक्ति थे जिनके अध्ययनों ने दुनिया भर में पानी की व्यवस्था, शौचालयों की साफ-सफाई और जलजनित बीमारियों के बारे में पारम्परिक समझ को पूरी तरह बदल दिया।
कॉलरा (ऐसा डायरिया जो कुछ घंटों में जान भी ले सकता है) से उनकी पहली मुठभेड़ सन् 1831 में हुई जब वह न्यू कैसल के सर्जन विलियम हार्डकैसल के यहाँ प्रशिक्षु के रूप में काम कर रहे थे। सन् 1937 तक वह अपनी पढ़ाई खत्म कर वेस्टमिंस्टर हॉस्पिटल में नौकरी शुरू कर चुके थे। इस बीच सन् 1849 और 1854 में लन्दन पर दो बार कॉलरा का कहर बरपा जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की जानें गईं।
बेहाल किसान
Posted on 06 Nov, 2015 10:59 AMकई जिलों में सूखे की स्थिति नहीं है लेकिन सामान्य से कम बारिश होनेपानी से बदलती कहानी
Posted on 02 Aug, 2015 04:42 PMअपना तालाब अभियान की पहल पर ‘इत सूखत जल सोत सब, बूँद चली पाताल। पानी मोले आबरू, उठो बुन्देली लाल’ का नारा लगाते हुए लगभग 4 हजार लोग फावड़ों और कुदालों के साथ खुद ही तालाब की सफाई के लिये कूद पड़े। लोगों ने महज दो घंटे में ही तालाब की अच्छी खासी खुदाई कर डाली। पूरे 46 दिन तक काम चला और 21 हजार लोगों ने मिलकर सैकड़ों एकड़ में फैले जय सागर तालाब को नया जीवन दे दिया। खर्च आया महज 35 हजार रुपए। सरकारी आकलन से पता चला कि लोगों ने करीब 80 लाख रुपए का काम कर डाला था।
अच्छे-अच्छे काम करते जाना। राजा ने कूड़न किसान से कहा था। कूड़न अपने भाइयों के साथ रोज खेतों पर काम करने जाता दोपहर को कूड़न की बेटी आती, खाना लेकर। एक दिन घर वापस जाते समय एक नुकीले पत्थर से उसे ठोकर लग गई। मारे गुस्से के उसने दरांती से पत्थर उखाड़ने की कोशिश की। लेकिन यह क्या? उसकी दरांती तो सोने में बदल गई। पत्थर उठाकर वह भागी-भागी खेत पर आती है और एक साँस में पूरी बात बताती है। एक पल को उनकी आँखे चमक उठती हैं, बेटी के हाथ पारस पत्थर लगा है। लेकिन चमक ज्यादा देर नहीं टिक पाती। लगता है देरसबेर कोई-न-कोई राजा को बता ही देगा। तो क्यों न खुद राजा के पास चला जाए। राजा न पारस लेता है न सोना। बस कहता है,‘इससे अच्छे-अच्छे काम करते जाना। तालाब बनाते जाना।’