प्रेम प्रकाश
जल संरक्षण का लोकपर्व
Posted on 05 Nov, 2016 11:47 AM
भारतीय संस्कृति में परम्परा की पैरोकारी रामचन्द्र शुक्ल से लेकर वासुदेवशरण अग्रवाल तक तमाम साहित्य-संस्कृति मर्मज्ञों ने की है। समाज और परम्परा के साझे को समझे बिना भारतीय चित्त तथा मानस को समझना मुश्किल है। आज जब पानी की स्वच्छता के साथ उसके संरक्षण का सवाल इतना बड़ा हो गया है कि इसे अगले विश्वयुद्ध तक की वजह बताया जा रहा है, तो यह देखना काफी दिलचस्प है कि भारतीय परम्परा में इसके समाधान के कई तत्व हैं।
जल संरक्षण को लेकर छठ पर्व एक ऐसे ही सांस्कृतिक समाधान का नाम है। अच्छी बात है भारतीय डायस्पोरा के अखिल विस्तार के साथ यह पर्व देश-दुनिया के तमाम हिस्सों को भारतीय जल चिन्तन के सांस्कृतिक पक्ष से अवगत करा रहा है।
![छठ पूजा](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/chhath%20puja_3.jpg?itok=VlCnzvq0)
काशी की आंखों का पानी मर चुका है!
Posted on 18 Oct, 2023 12:03 PMमेरे गांव से चलने वाली बस तब 9 रूपये के किराये में बनारस पहुंचा देती थी, जहां से आने में अब 120 रूपये लगते हैं। यह 1984 की बात है। कम्प्यूटर नाम की किसी नयी मशीन का दुनिया में तब बहुत शोर मचा हुआ था, जो लाखों और करोड़ों के जोड़-घटाने पलक झपकते कर देती थी। दुनिया विकास के नये-नये मानदण्ड स्थापित कर रही थी। हमारा देश भी विकसित होने लगा था। अपने गांव के देहाती वातावरण से निकलकर जब हम बनारस पहुंचते
![कारखानों के रसायनों से मिलकर झाग-झाग हुआ वरुणा का पानी, PC-– सर्वोदय जगत](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/2023-10/Screen%20Shot%202023-10-18%20at%2012.25.00.png?itok=CvPy2qyF)
ग्लोबल वॉर्मिंग का जन्तर गाँधी के पास
Posted on 24 Dec, 2018 12:58 PMगाँधी अध्ययन के कुछ अध्येताओं ने छानबीन की तो पता चला कि गाँधी के लेखन या चिन्तन में ‘पर्यावरण’ शब्द का प्
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बदरिया घिर आई ननदी
Posted on 11 Jul, 2014 10:48 AMमौसम विभाग तो अभी देश के विभिन्न हिस्सों में मानसून के पहुंचने का कैलेंडर ही बनाने में लगा है पर इस बीच बारिश ने अपनी रिमझिम दस्तक दे दी। मौसम की इस खुशमिजाजी को देखकर सभी खुश हैं। पर एक बात जरुर अखरती है कि बारहमासा गाने वाले देश में बारिश का मतलब अब हनी सिंह जैसे रैपर बता रहे हैं। बारिश को लेकर बदले सौंदर्यबोध के बारे में बता रहे हैं प्रेम प्रकाश।
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