मनीष वैद्य
यही हाल रहा तो खाली रह जाएँगे मध्यप्रदेश के बड़े बाँध
Posted on 09 Sep, 2021 04:58 PM
मध्यप्रदेश में इस बार कई इलाकों में भारी बारिश से तबाही मची हुई है। तो वहीं कई जगहों में अब तक अच्छी बारिश नहीं होने से नर्मदा नदी पर बने बड़े बाँधों के खाली रह जाने के कयास लगाए जा रहे हैं। इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर बाँध में अब तक ओवरफ्लो नहीं हो सका है। इधर बारिश का मौसम खत्म होने की कगार पर है तो चिंताएँ बढ़ने लगी हैं।
![नर्मदा घाटी का एक बांध, फोटो साभार : लेखक](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/IMG-20210906-WA0003_3.jpg?itok=RUD3KqoY)
पानी का पहचाना मोल, सवा सौ साल पुराने रणजीत बांध में रोका पानी
Posted on 30 Oct, 2019 03:38 PMमध्यप्रदेश के देवास जिले में बीते सालों में भीषण जल संकट का सामना कर चुके बागली के लोगों ने अब पानी के मोल को पहचान लिया है। उन्होंने कस्बे के नजदीक बहने वाली कालीसिंध नदी का गर्मियों में गहरीकरण कर गाद हटाई और अब बारिश के बाद 113 साल पुराने बाँध में 22 गेट लगाकर पानी को सहेज लिया है। इससे कस्बे का जल स्तर बढ़ेगा और जल स्रोतों में भरपूर पानी रहेगा।
![पानी का पहचाना मोल, सवा सौ साल पुराने बाँध में रोका पानी।](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/ranjit%20dam%20devas_3.jpg?itok=wap52VKZ)
एक किसान 52 बोरिंग
Posted on 30 Sep, 2018 06:23 PMयह कहानी एक ऐसे गाँव की है, जहाँ पाँच हजार की आबादी में एक हजार से ज्यादा बोरवेल हैं। अब समय के साथ ये सब सूख चुके हैं। यह उस गाँव के एक किसान की कहानी भी है, जिसने अपने खेतों को पानी देने के लिये सब कुछ दाँव पर लगा दिया लेकिन जितनी ही कोशिश की गई, जमीन का पानी उतना ही गहरा धँस गया।
![लोगों को पीने का पानी ढोकर लाना पड़ता है](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/nanukheda%20water%20crisis_3.jpg?itok=vWFHFgev)
मालवा में कैंसर का कहर
Posted on 25 Aug, 2018 02:34 PM'डग-डग रोटी, पग-पग नीर' और अपने स्वच्छ पर्यावरण के लिये पहचाना जाने वाला मध्य प्रदेश का मालवा इलाका इन दिनों एक बड़ी त्रासदी के खौफनाक कहर से रूबरू हो रहा है। यहाँ के गाँव-गाँव में कैंसर की जानलेवा बीमारी इन दिनों किसी महामारी की तरह फैलती जा रही है। कुछ गाँवों में घर-घर इसका आतंक है। तम्बाकू और बीड़ी पीने वालों को यह बीमारी आम है लेकिन यहाँ कई ऐसे लोग भी इस लाइलाज बीमारी के चंगुल में फँस
![कैंसर से मौत के बाद गमजदा परिवार](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/Cancer%205_3.jpg?itok=bRXWZnc9)
पानी ने लौटाई खुशहाली
Posted on 03 May, 2018 06:57 PM
बालौदा लक्खा गाँव को अब जलतीर्थ कहा जाता है। इस साल इलाके में बहुत कम बारिश हुई है। 45 डिग्री पारे के साथ चिलचिलाती धूप में भी गाँव के करीब 90 फीसदी खेतों में हरियाली देखकर मन को सुकून मिलता है। पर्याप्त पानी होने से किसान साल में दूसरी और तीसरी फसल भी आसानी से ले रहे हैं। लगभग एक हजार से ज्यादा किसान सोयाबीन, प्याज, मटर, गेहूँ और चने की तीन फसलें लेते हैं। गाँव की खेती लायक कुल 965 हेक्टेयर जमीन के 90 फीसदी खेतों में पर्याप्त सिंचाई हो रही है।
वो कहते हैं न कि आदमी के हौसले अगर फौलादी हो तो क्या नहीं कर सकता। और जब ऐसे लोगों का कारवाँ बन जाये तो असम्भव भी सम्भव हो जाता है। हम बात कर रहे हैं उज्जैन जिले के एक छोटे से गाँव बालौदा लक्खा और उसके बाशिन्दों की। लोगों की एकजुटता और उनके प्रयास ने इस बेपानी गाँव को पानीदार बना डाला।
बीस साल पहले तक यह गाँव बूँद-बूँद पानी को मोहताज था। पानी की कमी के कारण खेती दगा दे गई थी। युवा रोजगार की तलाश में उज्जैन और इन्दौर पलायन करने को मजबूर थे। महिलाएँ पानी की व्यवस्था करने में ही परेशान रहती थीं। बच्चे स्कूल जाने के बजाय हाथों में खाली बर्तन उठाए कुआँ-दर-कुआँ घूमते रहते।
![पानी से हरा-भार हुआ बालौदा लक्खा गाँव](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/Baloda%20lakkha%20village_3.jpg?itok=Cw6MwPRc)
आदिवासियों ने खुद खोजा अपना पानी
Posted on 30 Mar, 2018 03:39 PMजल दिवस की सार्थकता इसी में निहित है कि हम अपने पारम्परिक जल संसाधनों को सहेज सकें तथा प्रकृति की अनमोल नेमत बारिश के पानी को धरती की कोख तक पहुँचाने के लिये प्रयास कर सकें। अपढ़ और कम समझ की माने जाने वाले आमली फलिया के आदिवासियों ने इस बार जल दिवस पर पूरे समाज को यह सन्देश दिया है कि बातों को जब जमीनी हकीकत में अमल किया जाता है तो हालात बदले जा सकते हैं। आमला फलिया ने तो अपना खोया हुआ कुआँ और पानी दोनों ही फिर से ढूँढ लिया है लेकिन देश के हजारों गाँवों में रहने वाले लोगों को अभी अपना पानी ढूँढना होगा।
मध्य प्रदेश के एक आदिवासी गाँव में बीते दस सालों से लोग करीब तीन किमी दूर नदी की रेत में झिरी खोदकर दो से तीन घंटे की मशक्कत के बाद दो घड़े पीने का पानी ला पाते थे। आज वह गाँव पानी के मामले में आत्मनिर्भर बन चुका है। अब उनके ही गाँव के एक कुएँ में साढ़े पाँच फीट से ज्यादा पानी भरा हुआ है। इससे यहाँ के लोगों को प्रदूषित पानी पीने से होने वाली बीमारियों तथा सेहत के नुकसान से भी निजात मिल गई है।आखिर ऐसा कैसे हुआ कि गाँव में दस सालों से चला आ रहा जल संकट आठ से दस दिनों में दूर हो गया। कौन-सा चमत्कार हुआ कि हालात इतनी तेजी से बदल गए। यह सब सिलसिलेवार तरीके से जानने के लिये चलते हैं आमली फलिया गाँव। कुछ मेहनतकश आदिवासियों ने पसीना बहाकर अपने हिस्से का पानी धरती की कोख से उलीच लिया।
![कुआँ](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A5%87%20%E0%A4%AD%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%86%E0%A4%81_3.jpg?itok=R-5o8wsh)