मेधा पाटकर

मेधा पाटकर
नर्मदा सेवा, पर्यटन या शिगूफा यात्रा
Posted on 15 Dec, 2016 04:40 PM

प्रदूषण बढ़ाने वाली दर्जनों तापविद्युत परियोजनाएँ बरगी और अन्
तीन दशक निमाड़
Posted on 22 Aug, 2016 11:50 AM

पहाड़ी आदिवासियों ने हमें तो बहुत सिखाया ही, खुद की और अगली पीढ़ी की शिक्षा की नींव डाल दी।
नर्मदा जयंती या पुण्यतिथि
Posted on 04 Mar, 2016 04:29 PM

देश की सबसे सौंदर्यपरक कही जाने वाली नर्मदा नदी अब एक विशाल तालाब में बदलती जा रही है। इस

उत्तराखंड: विकास ने लिखी बर्बादी की दास्तान
Posted on 12 Aug, 2013 04:38 PM
प्रकृति को पढ़ने वाला स्थानीय समाज अब जान गया है कि इसमें प्रकृति से ज्यादा करामात है जेपी एसोसिएट्स
बड़े बांधों से न बुझेगी प्यास
Posted on 07 Dec, 2012 04:20 PM
पानी की समस्या का हल बड़े बांध नहीं हैं। आंकड़े देखें तो पिछले दस सालों में तालाब और छोटे जलाशयों से ही सबसे ज्यादा सिंचाई हुई है। बड़े बांधों से पिछले बीस सालों में एक हेक्टेयर सिंचाई भी नहीं बढ़ी है। इसलिए बड़े बांध समस्या का हल नहीं है।
नर्मदा घाटी: नहरों से बर्बाद होती खेती
Posted on 07 Nov, 2011 09:41 AM

बिना समझबूझ का विकास कैसे विनाश का कारण बनता है इसे नर्मदा घाटी के बांधों से सिंचाई के लिए हो

विकास के प्रति सही समझ पैदा करे सरकार
Posted on 18 Aug, 2011 12:34 PM

मेधा पाटकर भूमि अधिग्रहण कानून का नया मसौदा तैयार है लेकिन इस गंभीर मसले को लेकर राजनीतिक पार्टियां और सरकार अभी भी ईमानदार नहीं दिख रहे हैं। इनकी प्राथमिकताओं में अभी भी औद्योगिक घराने हैं। भूमि अधिग्रहण कानून जिस साम्राज्यवादी सोच की उपज रहा है, उससे दिल्ली अब तक नहीं उबर पाई है। हाशिये पर पड़े लोगों की अनिवार्य आवश्यकताओं से अधिक उन्हें औद्योगिक घरानों की पूंजी के विकास की चिंता है। नए मसौदे

कृषि पर संकट गहराता जा रहा है
बे-पानी बड़वानी के पड़ोस में सूखती नर्मदा
बड़वानी, नर्मदा तट के अनेक शहरों में से एक हैं जो नर्मदा के पानी पर जीता रहा है। यहां पीने, सिंचाई और निस्तार के दूसरे जरूरी उपयोगों के लिए नर्मदा से पंप या 'इंटेकवेल' के जरिए पानी लिया जाता रहा है। शहरवासी अन्न से लेकर श्रमिकों के श्रम तक हर अपरिहार्य पूंजी और वस्तुएं ग्रामीण क्षेत्रों से लाते हैं
Posted on 20 Jun, 2023 12:03 PM

पिछले कुछ महीनों से नर्मदा को 'मातेसरी' मानने वाली, पूजने वाली, परिक्रमावासियों का स्वागत, सम्मान करने वाली, बड़वानी जैसे नर्मदा से कुल 5 किलोमीटर दूर के शहर की जनता हैरान है। कुछ दिनों से अलग-अलग समूह 'जल' के लिए तड़पते और आवाज उठाते रहे हैं। क्या जनता पिछले 37 सालों से दी जा रही नर्मदा - आंदोलनकारियों की चेतावनी समझकर अब जागृत हुई है?

बे-पानी बड़वानी के पड़ोस में सूखती नर्मदा,pc-Zeenews
नर्मदा बचाओ आंदोलन के 25 साल
Posted on 27 Oct, 2010 09:07 AM
विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक नर्मदा घाटी आज भी समृद्ध प्रकृति के लिए मशहूर है। घाटी में नदी किनारे पीढ़ियों से बसे हुए आदिवासी तथा किसान, मजदूर, मछुआरे, कुम्हार और कारीगर समाज प्राकृतिक संसाधनों के साथ मेहनत पर जीते आए हैं। इन्हीं पर सरदार सरोवर के साथ 30 बड़े बांधों के जरिये हो रहे आक्रमण के खिलाफ शुरू हुआ जन संगठन नर्मदा बचाओ आंदोलन के रूप में पिछले 25 वर्षों से चल रहा है। विश्व बैंक को चुनौती देते हुए उसकी पोल इस आंदोलन ने खोली है। तीन राज्यों और केंद्र के साथ इसका संघर्ष आज भी जारी है। सरदार सरोवर के डूब क्षेत्र में दो लाख लोग बसे हैं। ये लोग वर्ष 1994 से डूबी जमीन के बदले जमीन के लिए लड़ रहे हैं। हजारों आदिवासी, बड़े-बड़े गांव और शहर, लाखों पेड़, मंदिर-मसजिद, दुकान-बाजार डूबे नहीं हैं, पर 122 मीटर की डूब में धकेले गए हैं।
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