मदन जैड़ा

मदन जैड़ा
वन हैं तो हम हैं
Posted on 13 Nov, 2011 08:54 PM

भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान देहरादून द्वारा देश में वन क्षेत्रफल के आंकड़े तैयार किए जाते हैं। संस्थान ने 2007 तक के वन क्षेत्रफल के आंकड़े एकत्र किए हैं। इसके अनुसार देश में छह लाख 90 हजार 899 वर्ग किमी वन क्षेत्र है। देश में वन संरक्षण कानून 1980 में बना। इससे पहले वनों के काटने पर कोई रोकटोक नहीं थी। कानून बनने के बाद विकास के लिए भी वनों को काटने की पूर्व अनुमति हासिल करने का प्रावधान है और एक पेड़ काटने के बदले में तीन पेड़ लगाने पड़ते हैं।

जल, थल और आकाश मिलकर पर्यावरण को बनाते हैं। हमने अपनी सुविधा के लिए प्रकृति के इन वरदानों का दोहन किया, लेकिन भूल गए कि इसका नतीजा क्या होगा? पर्यावरण विनाश के कुफलों से चिंतित मनुष्य आज अपनी गलती सुधारने की कोशिश में है। आइए हम भी कुछ योगदान करें। जितने अधिक वन होंगे पर्यावरण उतना ही अधिक सुरक्षित होगा। पर्यावरण की सुरक्षा में जंगलों के महत्व को स्वीकार करते हुए विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर इस साल की थीम है फारेस्ट-नेचर एट युअर सर्विस यानी ‘जंगल-प्रकृति आपकी सेवा में। इस थीम के पीछे वनों की उपयोगिता और उनके संरक्षण का भाव है। वनों के बगैर आज मानव समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। वन संसाधनों और इनके संरक्षण के मामले में भारत धनी है। हालांकि यह भी सत्य है कि पिछले कुछ दशकों के दौरान अनियंत्रित औद्योगिक विकास के कारण वनों को काफी क्षति पहुंची है लेकिन इधर हाल के वर्षों में जागरूकता बढ़ी है और वनों की कीमत पर विकास की परंपरा थमी है। वैसे भी हमारे देश के कई सूबों में वनों और वन्य जीवों का संरक्षण लोगों के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दा भी है। देश में विकास गतिविधियों में इजाफे के बावजूद वन बढ़े हैं। इसलिए भारत के कदमों को वैश्विक स्तर पर भी मान्यता मिल रही है। इसी कड़ी में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने विश्व पर्यावरण दिवस की थीम के क्रियान्वयन की मेजबानी भारत को सौंपी है।

उम्मीदों का मौसम मानसून
Posted on 16 Jun, 2011 09:05 AM
मानसून भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए तो बेहद अहम है हीं, भारत के लोक जीवन से भी गहरे जुड़ा है। यह गर्मी की तपिश से निजात दिलाता है और लोगों में उत्साह व खुशी का संचार करता है। मानसून से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विश्लेषण।
कोपेनहेगन की सफलता का आधार कार्बन का कारोबार
Posted on 13 Dec, 2009 02:01 PM

जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाना जरूरी है। कोपेनहेगन क्लाइमेट कांफ्रेंस से ठीक पहले भारत अपनी ऊर्जा सघनता में कमी करने का ऐलान कर चुका है। और ये कमी संभव कार्बन ट्रेडिंग द्वारा। दुनिया के कई देश इस विकल्प को अपना रहे हैं।

कैसे होती है कार्बन ट्रेडिंग

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