मासानोबू फुकूओका

मासानोबू फुकूओका
एक तिनके से आई क्रांति
Posted on 09 Sep, 2011 01:54 PM

अब एक बार फिर से अधिक खाद बनाओ अभियान शुरू हुआ है। केंचुओं और ‘खाद प्रारंभकों’ की मदद से ज्याद

युद्ध और शांति से मुक्त एक गांव
Posted on 09 Sep, 2011 01:23 PM

आंधी-तूफान के समय किसी बड़े दरख्त के नीचे खड़े रहने से ज्यादा खतरनाक और कोई अन्य चीज नहीं हो स

सापेक्षता का सिद्धांत
Posted on 09 Sep, 2011 12:53 PM

प्रकृति में सापेक्षता की दुनिया का अस्तित्व ही नहीं है। सापेक्षता के विचार द्वारा मानव के बुद्

यायावर बादल और विज्ञान का भ्रम
Posted on 09 Sep, 2011 12:35 PM

अपने खेतों के जरिए मैंने कर दिखलाया कि प्राकृतिक कृषि के जरिए भी उतनी ही पैदावार ली जा सकती है

हम जन्म लेते हैं, नर्सरी स्कूल जाने के लिए
Posted on 09 Sep, 2011 11:24 AM
हम खेतों में काम कर रहे थे।

एक युवक अपने कंधे पर झोला लटकाए बड़े इत्मीनान से वहां चला आया।
‘तुम कहां से आए हो?’
‘वहां उधर से।’
‘यहां तक पहुंचे कैसे?’
‘चल कर आया हूं।’
‘यहां किसके लिए आए हो?’
‘मैं नहीं जानता।’

कम अक्ल आखिर कौन है?
Posted on 09 Sep, 2011 10:41 AM

इन सबका कारण मानव की कुछ-न-कुछ हासिल करने की कोशिश ही रही है। प्रारंभ में प्रगति करने का न कोई

होशियार बनने की कोशिश में ही हम बेवकूफ बनते हैं
Posted on 14 Jul, 2011 02:10 PM

दुःख की बात तो यह है कि, अपनी निराधार उद्दंडता के चलते वे प्रकृति को अपनी इच्छानुसार झुकाने की

खाद्य और खेती
Posted on 13 Jul, 2011 12:48 PM
प्राकृतिक खेती के विषय पर लिखी गई इस पुस्तक में प्राकृतिक आहार पर भी विचार करना आवश्यक है। यह इसलिए कि खाद्य और खेती एक ही शरीर के आगे और पीछे के दो हिस्से हैं। यह दिन जैसी साफ बात है कि, यदि प्राकृतिक खेती को नहीं अपनाया जाता तो जनता को प्राकृतिक खाने नहीं प्राप्त हो सकते लेकिन यदि यह तय नहीं किया जाता कि, प्राकृतिक खाने क्या हैं तो किसान उलझन में ही पड़े रहेंगे कि वे खेती किस चीज की करें।
आहारः मूल्यांकन
Posted on 12 Jul, 2011 12:35 PM
इस दुनिया में आहार को मुख्यतः चार प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है।

1 वह लापरवाह भोजन जो सिर्फ लोगों की रोजमर्रा की इच्छाओं और जीभ को तृप्त करता है। यह आहार करते हुए लोग अपनी मानसिक चंचलता के चलते, कभी यहां तो कभी वहां तो कभी वहां खाते रहते हैं। इस भोजन को हम अकारण और असंयमी आहार कह सकते हैं।
भोजन सिर्फ जीने के लिए नहीं होता
Posted on 11 Jul, 2011 09:31 AM

प्राकृतिक रूप से पके हुए पौधों की अपेक्षा, बे-मौसम, अप्राकृतिक परिस्थितियों में उगाई गई सब्जिय

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