कुमार प्रशांत

कुमार प्रशांत
धर्म की देहरी और समय देवता
Posted on 07 Jan, 2017 04:17 PM

भारत इस अर्थ में नियति का चुना हुआ खास देश है कि यहाँ वह प्रयोग सम्भव है जिसकी संभावना गा

अनुपम जिन पर सादगी फिदा हुई
Posted on 25 Dec, 2016 11:18 AM

अनुपम अपने उस पर्यावरण में जा मिले जिससे स्वयं एकाकार होने और सबको एकाकार करने की प्रार्थना में उनका जीवन 5 जून, 1948 से चला और 19 दिसम्बर, 2016 को रुका!
अनुपम मिश्र
विकास दैत्य को सब कुछ आज ही चबा जाना है
Posted on 16 Dec, 2016 02:32 PM

1980 में साहित्य-संस्कृति की हस्तियों से लेकर प्रतिबद्ध सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पश्चिम घा

हाथ से छूटा पारस
Posted on 16 May, 2014 02:30 PM

जो गांधी के साथ के थे- उनके अनुयायी ही नहीं बल्कि उस कोटि के लोग जिनसे गांधी सलाह-मशविरा करते थ

वसंत लेकर आया है सूखा
Posted on 26 Apr, 2013 04:34 PM
आधुनिक सभ्यता में रची-बसी हमारी जीवनशैली बिजली के बिना सांस भी नहीं ले सकती है। रोशनी और पावर की प्यास और पानी की प्यास के बीच चुनाव जैसा कुछ बचा ही नहीं है। जालना में लोहे के कारखाने कुकुरमुत्तों की तरह उगे हैं और ये सारे नगर के पानी को जरूरत से ज्यादा पीते हैं। इनकी पानी भी रोका नहीं जा सकता है क्योंकि अगर ये उद्योग बंद हुए तो इनमें काम कर रहे 50 हजार से ज्यादा कामगार न केवल बेरोजगार हो जाएंगे बल्कि अपने गांव-नगर पहुंच कर पानी की ज्यादा मांग भी करेंगे।अकाल... सूखा... बाढ़...महामारी... आदि-आदि सब पहले कुछ खास प्रांतों की किस्मत में लिखे होते थे। जबसे सबकी समझ में यह आ गया है कि ये सब बेहिसाब कमाई के प्राकृतिक अवसर होते हैं, तब से ये जहां चाहें वहां आ जाते हैं। इन दिनों सूखा महाराष्ट्र में डेरा डाले हुए है। महाराष्ट्र सरकार इस मेहमान से बेहद चिंतित है। मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण अपना एक माह का वेतन सूखा राहत कोष में दे रहे हैं। मंत्रियों से भी ऐसा ही करने को कह रहे हैं। लेकिन मंत्रियों में कोई उत्साह नहीं दिखा। मंत्रियों की तरफ से बता दिया गया है कि हम अपना वेतन दे-देकर तो इस सूखे का मुकाबला नहीं कर सकते हैं। उपमुख्यमंत्री अजित पवार तो मंत्रियों से भी आगे निकल गए। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने तो जो मुंह में आया बोल दिया। कह दिया कि वे पेशाब कर-कर के भी सूखी नदियों को नहीं भर सकते हैं। सूखे से घिरे महाराष्ट्र में यह बयान सूबे की राजनीति में तूफान बरपा गया है।

अकाल मंडराने लगा है
Posted on 23 Jul, 2012 03:38 PM
शिवराम की एक कविता है अकाल। उसकी कुछ लाइनें हैं
‘रूठ जाते हैं बादल/ सूख जाती हैं नदियाँ /सूख जाते हैं पोखर-तालाब/ कुएँ-बावड़ी सब/ सूख जाती है पृथ्वी/ बहुत-बहुत भीतर तक / सूख जाती है हवा / आँखों की नमी सूख जाती है / हरे भरे वृक्ष / हो जाते हैं ठूँठ /डालियों से /सूखे पत्तों की तरह /झरने लगते हैं परिंदे/ कातर दृष्टि से देखती हैं /यहाँ-वहाँ लुढ़की / पशुओं की लाशें’
पानी का निजीकरण एक खतरनाक संकट की तैयारी
Posted on 02 May, 2012 11:26 AM
पानी के निजीकरण होने का मतलब एक खतरनाक संकट की तैयारी हो रही है जिससे लोग पानी के लिए आपस में लड़कर मरेंगे। इससे भ्रष्टाचार के साथ-साथ लोगों के लिए पानी की समस्या भी उत्पन्न हो जाएगी। पानी की कोई कमी नहीं है बस जरूरत है उसे सहेजने की। पानी को सहेज कर ही हम अपने आने वाले संकट से ऊबर सकते हैं। इस आने वाली संकट के बारे में बताते कुमार प्रशांत।
जंगल उजाड़कर बाघों के लिए विलाप!
Posted on 08 Apr, 2010 08:36 AM
बड़े-बड़े लोग, बड़ी चिंतित मुद्रा में हमसे टीवी के पर्दे से लेकर हर चौक-चौराहे पर शिद्दत से कह रहे हैं कि अब बस 1411 ही बाघ बचे हैं, हमारे महान देश में; और कुछ करिए!...क्या करें?... जवाब मिलता है, रोएं, गाएं, चीखें-चिल्लाएं, हल्ला मचाएं!...क्या इनसे बाघ बच जाएंगे?
धरती की किस्मत का फैसला
Posted on 15 Mar, 2010 07:18 PM
क्योतो के धरती सम्मेलन में प्रस्ताव हुआ था कि चालीस सबसे बड़े औद्य
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