कृष्ण गोपाल 'व्यास’
सुनो, हिमालय कुछ कह रहा है
Posted on 09 Sep, 2018 06:20 PMहिमालय, भारत के सबसे अधिक पवित्र और पूज्यनीय पर्वत के रूप में सदियों से प्रतिष्ठित है। वह पर्वतराज है। हिन्दु धर्मावलम्बियों द्वारा उसे भगवान शंकर का निवास और साधु-सन्तों तथा ऋषि-मुनियों के साधना केन्द्र के रूप में विख्यात है। गंगोत्री, यमुनोत्री, हरिद्वार, ऋषभारत के परम्परागत समाज की नजर में नदी
Posted on 04 Aug, 2018 12:36 PMभारतीय समाज, नदियों के प्रति आदर भाव रखने वाला परम्परागत समाज है। वह नदी की पूजा करता है। उन्हें माता कहता है। पूरी श्रद्धा से पवित्र नदियों में सिक्के अर्पित करता है। उन्हें पूरी श्रद्धा से प्रणाम करता है। उन्हें भारतीय संस्कृति के उद्भव और विकास का आधार मानता है। नद
पृथ्वी दिवस (Earth Day in Hindi)
Posted on 19 Apr, 2018 09:05 AM
22 अप्रैल, 2018, पृथ्वी दिवस पर विशेष
हर साल 22 अप्रैल को पूरी दुनिया में पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। इस दिवस के प्रणेता अमरीकी सिनेटर गेलार्ड नेलसन हैं। गेलार्ड नेलसन ने, सबसे पहले, अमरीकी औद्योगिक विकास के कारण हो रहे पर्यावरणीय दुष्परिणामों पर अमरीका का ध्यान आकर्षित किया था।
डूबते सूरज की रोशनी से उजाला बटोरने की कसरत
Posted on 02 Apr, 2018 06:30 PM
मध्य प्रदेश से निकलकर महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात को लाभान्वित करने वाली नर्मदा नदी की कुल लम्बाई 1312 किलोमीटर और उसके कछार का क्षेत्रफल लगभग 98796 वर्ग किलोमीटर है। उसके कछार का बहुत थोड़ा हिस्सा (710 वर्ग किलोमीटर) छत्तीसगढ़ में स्थित है। नर्मदा नदी के कछार में अनेक बाँध बने हैं। कुछ उसकी सहायक नदियों पर तो कुछ उसकी मुख्य धारा पर।
केप टाउन का सन्देश
Posted on 22 Mar, 2018 02:32 PM
दक्षिण अफ्रीका का पश्चिमी केप राज्य, सन 2015 से सूखे की चपेट में है। सूखे का सर्वाधिक त्रास लगभग 45 लाख की आबादी वाला नगर केप टाउन भोग रहा है। नगर को पानी की पूर्ति करने वाले निकटस्थ छः बड़े बाँधों में पानी की गम्भीर कमी है।
भूजल परिदृश्य, सोच और हकीकत
Posted on 04 Mar, 2018 06:19 PMकेन्द्रीय भूजल परिषद द्वारा हर साल भूजल पर वार्षिक पत्रिका प्रकाशित की जाती है। इस पत्रिका में भूजल से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण जानकारियों के साथ-साथ भूजल का प्राकृतिक पुनर्भरण, भूजल दोहन का मौजूदा प्रतिशत और भविष्य में खेती, पेयजल और उद्योगों में उपयोग में लाई जा सकने वाली सम्भावित मात्रा के आवंटन को दर्शाया जाता है।
नदियों के सूखने के कारण
Posted on 16 Feb, 2018 12:21 PM
बीसवीं सदी के पहले कालखण्ड तक भारत की अधिकांश नदियाँ बारहमासी थीं। हिमालय से निकलने वाली नदियों को बर्फ के पिघलने से अतिरिक्त पानी मिलता था। पानी की पूर्ति बनी रहती थी इस कारण उनके सूखने की गति अपेक्षाकृत कम थी। नदी के कछार के प्रतिकूल भूगोल तथा भूजल के कम रीचार्ज या विपरीत कुदरती परिस्थितियों के कारण, उस कालखण्ड में भी भारतीय प्रायद्वीप की कुछ छोटी-छोटी नदियाँ सूखती थीं। इस सब के बावजूद भारतीय नदियों का सूखना मुख्य धारा में नहीं था।
प्रकृति के कायदों की अनदेखी करती खेती के परिणाम
Posted on 07 Jan, 2018 11:36 AM
भारत में कृषि पद्धति के दो अध्याय हैं- पहले अध्याय के अन्तर्गत आती है प्रकृति के कायदे-कानूनों को ध्यान में रखती परम्परागत खेती और दूसरे अध्याय में सम्मिलित है कुदरत के कायदे-कानूनों की अनदेखी करती परावलम्बी रासायनिक खर्चीली खेती। पहली खेती के बारे में बूँदों की संस्कृति (पेज 274) में उल्लेख है कि जब अंग्रेज भारत आये तो उन्होंने पाया कि यह जगह बहुत समृद्ध है, लोग सभ्य और शिक्षित हैं, कला, शिल्प और साहित्य का स्तर बहुत ऊँचा है।
प्राकृतिक जलचक्र (Natural hydrologic cycle)
Posted on 21 Dec, 2017 10:14 AM
प्राकृतिक जलचक्र, पृथ्वी पर पानी की सतत यात्रा का लेखाजोखा है। अपनी यात्रा के दौरान वह समुद्र, वायुमण्डल और धरती से गुजरता है। पानी से भाप बनने की प्रक्रिया दर्शाती है कि वह चाहे जितना भी प्रदूषित हो, पर जब वह भाप में बदलता है तो पूरी तरह शुद्ध हो जाता है। वह जब धरती पर बरसता है तब भी शुद्ध रहता है। धरती पर उसकी शुद्धता खंडित होती है।