नदियों के सूखने के कारण

सूखती नदियाँ
सूखती नदियाँ


बीसवीं सदी के पहले कालखण्ड तक भारत की अधिकांश नदियाँ बारहमासी थीं। हिमालय से निकलने वाली नदियों को बर्फ के पिघलने से अतिरिक्त पानी मिलता था। पानी की पूर्ति बनी रहती थी इस कारण उनके सूखने की गति अपेक्षाकृत कम थी। नदी के कछार के प्रतिकूल भूगोल तथा भूजल के कम रीचार्ज या विपरीत कुदरती परिस्थितियों के कारण, उस कालखण्ड में भी भारतीय प्रायद्वीप की कुछ छोटी-छोटी नदियाँ सूखती थीं। इस सब के बावजूद भारतीय नदियों का सूखना मुख्य धारा में नहीं था।

उल्लेखनीय है कि पिछले 50-60 सालों से भारत की सभी नदियों खासकर भारतीय प्रायद्वीप की नदियों के प्रवाह में गम्भीर कमी आ रही है। हिमालयीन नदियों को छोड़कर भारतीय प्रायद्वीप या जंगलों तथा झरनों से निकलने वाली बहुत सारी नदियाँ लगभग मौसमी बनकर रह गई हैं। हिमालयीन नदियों सहित भारतीय प्रायद्वीप की नदियों के प्रवाह की कमी/सूखने के लिये अलग-अलग कारण हो सकते हैं। उन कारणों को मुख्य प्राकृतिक कारण और मुख्य मानवीय हस्तक्षेप (कृत्रिम कारण) वर्ग में वर्गीकृत किया जा सकता है। कारणों का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार हैं-

मुख्य प्राकृतिक कारण


बरसात के मौसम में भारतीय नदियों को रन-आफ के माध्यम से पर्याप्त पानी मिलता है। बरसात के खत्म होने के बाद उन्हें, रन-आफ के माध्यम से पानी का मिलना बन्द हो जाता है। सूखे मौसम में उनके प्रवाह का स्रोत जमीन के नीचे संचित भूजल होता है। अगले पैराग्राफों में नदी के प्रवाह की अविरलता, प्रवाह की घट-बढ़ तथा सूखने के कारणों को समझने का प्रयास किया गया है।

भूजल स्तर की मौसमी घट-बढ़ से सभी परिचित हैं। यह घट-बढ़ प्राकृतिक है। सभी जानते हैं कि हर साल, वर्षाजल की कुछ मात्रा धरती में रिस कर एक्वीफरों में भूजल का संचय करती है। उसे भूजल का पुनर्भरण या रीचार्ज कहते हैं। यह पुनर्भरण, भले ही उसकी मात्रा असमान हो, पूरी नदी घाटी में होता है।

गौरतलब है कि भूजल के पुनर्भरण के कारण भूजल का स्तर सामान्यतः अपनी पूर्व स्थिति प्राप्त कर लेता है। विदित है कि एक्वीफरों में संचित पानी स्थिर नहीं होता। वह ऊँचे स्थान से नीचे स्थान की ओर प्रवाहित होता है। इसलिये जैसे ही बरसात खत्म होती है, एक्वीफर को पानी की आपूर्ति बन्द हो जाती है। एक्वीफर में जल संचय होना रुक जाता है और निचले इलाकों की ओर संचित जल के बहने के कारण भूजल स्तर घटने लगता है। इस कारण सूखे दिन आते ही भूजल स्तर कम होने लगता है। बरसात की वापसी के साथ उसका ऊपर उठना फिर प्रारम्भ हो जाता है। भूजल स्तर की घट-बढ़ के सकल अन्तर को भूजल का अधिकतम अन्तर (Maximum Fluctuation) कहते हैं।

विदित है कि बरसात के दिनों में रीचार्ज के कारण एक्वीफरों में पानी का संचय होता है। भूजल का स्तर ऊपर उठता है और जब वह स्तर नदी तल के ऊपर आ जाता है तो वह नदी में डिस्चार्ज (Discharge) होने लगता है। उसके डिस्चार्ज होने के कारण नदी को पानी मिलता है और नदी में पानी बहने लगता है। जब तक नदी को डिस्चार्ज मिलना जारी रहता है तब तक नदी प्रवाहमान रहती है। यही नदी की अविरलता का कारण है।

कुदरती डिस्चार्ज के कारण जब भूजल का स्तर नदी तल के नीचे उतर जाता है तो नदी को पानी मिलना मिलना बन्द हो जाता है। नदी का प्रवाह खत्म हो जाता है और नदी सूख जाती है। यह नदी की अविरलता के समाप्त होने या सूखने का कारण है। इसके बावजूद नदी की रेत से पानी का बहना जारी रहता है। जब एक्वीफर पूरी तरह खाली हो जाते हैं तब रेत से होने वाला प्रवाह भी बन्द हो जाता है।

उल्लेखनीय है कि ढाल की अधिकता के कारण भी नदियाँ सूखती हैं। अधिक ढाल वाले इलाकों में ढाल की अधिकता के कारण बरसाती पानी तेजी से नीचे बहता है। इस कारण बरसात समाप्त होते ही रन-आफ खत्म हो जाता है।

बरसात के मौसम में धरती में पानी रिसता तो है पर ढाल के अधिक होने के कारण उसे कम समय मिलता है। इस कारण वह बहुत कम मात्रा में धरती में रिस पाता है। एक्वीफर आधा-अधूरा भर पाता है। ढाल की अधिकता के कारण भूजल भण्डार भी तेजी से खाली होने लगते हैं। उनके तेजी से खाली होने के कारण भूजल स्तर की गिरावट भी तेज गति से होती है। परिणामस्वरूप, अधिक ढाल वाले इलाकों की छोटी-छोटी नदियाँ अपेक्षाकृत जल्दी सूख जाती हैं। कठोर चट्टानी इलाकों में भी कम रीचार्ज होने के कारण छोटी-छोटी नदियाँ जल्दी सूखती हैं।

उल्लेखनीय है कि प्रवाह के खत्म होने के बावजूद, नदी मार्ग में प्रवाह पूरी तरह खत्म नहीं होता। यह सही है कि वह नंगी आँखों से दिखाई नहीं देता पर वह नदी तल के नीचे-नीचे लगातार सक्रिय रहता है और अपवादों को छोड़कर, सामान्य स्थितियों में पूरी तरह समाप्त नहीं होता। वह धरती की सतह के नीचे-नीचे चलकर समुद्र की ओर लगातार बहता है। वह भूजल का कुदरती प्रवाह है। वह तभी खत्म होता है जब एक्वीफर पूरी तरह खाली हो जाते हैं।

नदियों में नदी के तल पर और नदी के तल के नीचे प्रवाहित पानी प्राकृतिक जलचक्र का अंग होता है। उल्लेखनीय है कि नदी में बहने वाले पानी की अवधि की तुुलना में नदी तल के नीचे बहने वाले पानी की अवधि अधिक होती है। अर्थात नदी तल के नीचे पानी अधिक समय तक बहता है। संक्षेप में, बरसात के बाद नदी के सूखने का अर्थ पानी खत्म होना नहीं है। उसका अर्थ है भूजल स्तर का नदी तल के नीचे उतर जाना। नदी के फिर से प्रवाहमान होने का मतलब रन-आफ का मिलना है या भूजल स्तर का नदी तल के ऊपर पुनः उठ आना।

नदियों के सूखने का दूसरा प्राकृतिक कारण ग्लोबल वार्मिंग है। उसके कारण बरसात की मात्रा, वितरण तथा वर्षा दिवसों में बदलाव हो रहा है। औसत वर्षा दिवस कम हो रहे हैं। बरसात की मात्रा और अनियमितता बढ़ रही है। औसत वर्षा दिवस कम होने के कारण रन-आफ बढ़ रहा है।

भूजल की प्राकृतिक बहाली के लिये कम समय मिल पा रहा है। समय कम मिलने के कारण अनेक इलाकों में भूजल की कुदरती बहाली घट रही है। उसकी माकूल बहाली नहीं होने के कारण नदी में प्राकृतिक डिस्चार्ज में कमी आ रही है। उसकी अवधि भी घट रही है। प्राकृतिक डिस्चार्ज के कम होने के कारण प्रभावित इलाकों में गर्मी आते-आते अनेक छोटी-छोटी नदियाँ सूख रही हैं।

तीसरा प्राकृतिक कारण मिट्टी का कटाव है। विदित है कि मिट्टी का कटाव प्राकृतिक प्रक्रिया है। उसे पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता। वैज्ञानिकों का मानना है कि कछार की उत्पादकता बढ़ाने के लिये वह आवश्यक भी है। कैचमेंट के वानस्पतिक आवरण में कमी आने के कारण मिट्टी का कटाव बढ़ रहा है और मिट्टी की परतों की मोटाई घट रही है। मोटाई कम होने के कारण उनकी भूजल संचय क्षमता घट रही है। भूजल संचय क्षमता घटने के कारण उनका योगदान घट रहा है। योगदान के घटने से नदी का प्रवाह कम हो रहा है और अवधि घट रही है। नदियों के सूखने की सम्भावनाएँ बढ़ रही हैं।

मानवीय हस्तक्षेप


नदियों के सूखने का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कारण नदी कछार में भूजल का लगातार बढ़ता दोहन है। उसके प्रभाव से नदी कछार के भूजल स्तर में गिरावट आती है। भूजल का स्तर तेजी से नीचे उतरने लगता है। उसके नदी तल के नीचे उतरने से नदी को पानी मिलना समाप्त हो जाता है और नदी सूख जाती है। यह तीन अलग-अलग परिस्थितियों के कारण होता है। परिस्थितियाँ निम्नानुसार हैं-

पहली परिस्थिति में कछार में भूजल का दोहन नगण्य है। भूजल के दोहन के नगण्य होने के कारण भूजल का प्रवाह नदी की ओर अर्थात निचले इलाके की ओर है। नदी को पानी मिल रहा है। नदी में भरपूर प्रवाह है। दूसरी परिस्थिति में कछार गहरे नलकूप खुद गए हैं। उनके द्वारा भूजल को पम्प किया जा रहा है। पानी पम्प किये जाने का भूजल प्रवाह पर असर पड़ा है। इस स्थिति में भूजल की कुछ मात्रा नलकूप को और कुछ मात्रा नदी को मिल रही है।

पानी के विभाजन के कारण नदी का प्रवाह समानुपातिक रूप से प्रभावित हुआ है। तीसरी स्थिति में नदी के करीब नलकूपों द्वारा पानी पम्प किया जा रहा है। नलकूपों के नदी के करीब स्थित होने के कारण उनको पानी की पूर्ति कछार तथा नदी अर्थात दोनों स्रोतों से हो रही है। नदी से पानी की सीधी आपूर्ति के कारण नदी का प्रभाव गम्भीर रूप से प्रभावित हो रहा है। अर्थात प्रवाह घट रहा है।

देश की अनेक नदियों से विभिन्न उपयोगों के लिये पानी पम्प किया जाता है। कई बार नदियों से नहरें निकाल कर बसाहटों की पेयजल आपूर्ति तथा सिंचाई की जाती है। नदी से पानी पम्प करने या नहरों से पानी उठाने के कारण भी नदी के प्रवाह में कमी हो जाती है। यदि इस कमी में भूजल के अति दोहन का कुप्रभाव जुड़ जाता है तो प्रवाह और भी कम हो जाता है। नदियाँ सूखने लगती हैं।

तीसरा महत्त्वपूर्ण कारण है नदी मार्ग पर बाँधों का बनना। उल्लेखनीय है कि बाँधों के बनने के कारण नदी का मूल प्रवाह न केवल खण्डित होता है वरन नदी के निचले मार्ग में घट भी जाता है। यदि घटते प्रवाह में भूजल दोहन का कुप्रभाव जुड़ जाता है तो प्रवाह और भी कम हो जाता है। उसके असर से कभी-कभी नदियाँ सूख भी जाती हैं।

अन्य कारणों में छोटी नदियों पर बड़ी संख्या में स्टापडेमों का बनना है। कई बार भण्डारण क्षमता के अधिक होने तथा संचित पानी के उपयोग में लिये जाने के कारण सारा प्रवाह उनमें रुक जाता है। नदी का प्रवाह टूट जाता है। इसके अतिरिक्त, स्थानीय स्तर पर प्रवाह को कम करने वाले कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं। प्रवाह बहाली की कोशिश करते समय सभी प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कारणों पर विचार करना चाहिए।

आधुनिक युग में प्रवाह की कमी के कारण नदी के पानी की विषाक्तता बढ़ रही है। इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला कारण है लगातार कम होता गैर मानसूनी प्रवाह और दूसरा कारण है अनुपचारित गन्दगी को नदी तंत्र में बिना उपचार किये छोड़ना। तीसरा कारण है रासायनिक खेती में प्रयुक्त जहरीली दवाएँ। इन कारणों से नदी और कछार की सेहत खराब हो रही है।

नदी में घटते प्रवाह और बढ़ते प्रदूषण के असर को मानव शरीर के उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है। जैसे पहले तो मानव शरीर में लगातार खून कम हो और घटते खून में खूब सारा जहर मिलाया जाये और उसकी हृदय तक पहुँचने वाली व्यवस्था को पंगु बनाया जाये तो मृत्यु को रोकना लगभग असम्भव हो जाता है। यही नदी के साथ हो रहा है। यही नदियों के सूखने के कारण हैं। यही नदी तंत्र की समस्या है।

 

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