सुनो, हिमालय कुछ कह रहा है

हिमालयी जैवविविधता
हिमालयी जैवविविधता
हिमालयी जैवविविधता (फोटो साभार - विकिपीडिया)हिमालय, भारत के सबसे अधिक पवित्र और पूज्यनीय पर्वत के रूप में सदियों से प्रतिष्ठित है। वह पर्वतराज है। हिन्दु धर्मावलम्बियों द्वारा उसे भगवान शंकर का निवास और साधु-सन्तों तथा ऋषि-मुनियों के साधना केन्द्र के रूप में विख्यात है। गंगोत्री, यमुनोत्री, हरिद्वार, ऋषिकेश और केदारनाथ धाम तथा पशुपतिनाथ मन्दिर के कारण वह देवभूमि है। वह जनकदुलारी सीता का मायका है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार स्वर्ग से गंगा का अवतरण शंकरजी की जटाओं में, हिमालय पर ही हुआ है। महाभारत की कथा बताती है कि पांडव भी स्वर्गारोहण के लिये हिमालय ही गए थे। वहीं उनका स्वर्गारोहण हुआ था। मानसरोवर झील और कैलाश पर्वत उसे अलग किस्म की धार्मिक पहचान देते हैं। उसका धार्मिक महत्त्व अवर्णनीय है।

रामायण की कथा के अनुसार, हिमालय की पहचान, लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिये हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाने के कारण है। भारत के सारे आयुर्वेदाचार्य, उसे दुर्लभ जड़ी-बूटियों के विशाल भण्डार के रूप में पहचानते हैं। उसी में मिलने वाली जड़ी बुटियों ने भारतीय चिकित्सा विज्ञान की नींव रखी। उसी के कारण आर्युवेद पनपा और अकल्पनीय बना।

आधुनिक वैज्ञानिकों के लिये वह सबसे कम उम्र का पहाड़ है। गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिन्धु जैसी विश्वप्रसिद्ध नदी परिवारों का उद्गम क्षेत्र है। जलवायु का नियंत्रक है। भारत का चमकता भाल है। संक्षेप में, हिमालय भारतीय परम्परा, आस्था, कला और संस्कृति एवं साधना के अप्रतिम केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित है। वह हिन्दु धर्मावलम्बियों के लिये मोक्ष का मार्ग है।

हम सब हिमालय की उस सामान्य पहचान से भी अवगत हैं जो हमें स्कूली जीवन में भूगोल में पढ़ाया गया था। वैज्ञानिकों के लिये वह दुनिया का सबसे कम उम्र का कच्चा पहाड़ है। वह भूकम्प का आवास भी है। वह, गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिन्धु जैसी विश्व प्रसिद्ध सदानीरा नदी परिवारों का उद्गम क्षेत्र है। वह भारत की जलवायु का बहुत बड़ा नियंत्रक है। उसके कारण, हर साल, भारत को बरसात की सौगात मिलती है। यह उसकी वह कहानी है जो वैज्ञानिकों ने हमें बताई है। उसकी यही पहचान आम जन के बीच सामान्य ज्ञान के रूप में मौजूद भी है। उस जानकारी के अनुसार हिमालय पर्वत शृंखला की कुल लम्बाई लगभग 2410 किलोमीटर है। इसका विस्तार पाकिस्तान, भारत, तिब्बत, नेपाल, भूटान और ब्रह्मपुत्र नदी के प्रसिद्ध मोड़ तक है। इसकी दो प्रमुख शाखाएँ हैं। इन दोनों शाखाओं के बीच में गहरी घाटी है। इसी घाटी से सिन्धु, सतलुज और ब्रह्मपुत्र निकलती हैं और प्रकृति द्वारा निर्धारित मार्गों पर बहती हैं।

उत्तरी शाखा ट्रांस-हिमालय और दक्षिणी शाखा (ग्रेट हिमालय, लेसर हिमालय और बाहरी हिमालय) पाई जाती है। उसके बाद लगभग 10 से 50 किलोमीटर चौड़ी शिवालिक पहाड़ियाँ हैं। ग्रेट हिमालय उप-शाखा सबसे ऊँची है। मैदानी इलाके से इसकी दूरी लगभग 140 किलोमीटर है। इसी उप-शाखा पर दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत चोटी एवरेस्ट (ऊँचाई 8848 मीटर या 29,029 फुट) और तीसरी सबसे ऊँची पर्वत चोटी कंचनचंघा ( ऊँचाई 8,598 मीटर या 28,208 फुट) स्थित हैं। हिमालय की इस उप-शाखा में 25,000 फुट से अधिक ऊँची 30 चोटियाँ स्थित है। इसकी औसत ऊँचाई 3000 मीटर है। पूरी उप-शाखा बर्फ से ढँकी है।

हिमालय के जन्म की कुछ और वास्तविकताएँ हैं जो वह अपने जन्म अर्थात आज से करीब 650 लाख साल पहले से सारी दुनिया को अपनी कथनी और करनी के माध्यम से बता रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार उसका निर्माण टैथिस महासागर में प्लेट टेक्टॉनिक शक्तियों के कारण हुआ है। इसी प्रकार, उसका मौजूदा स्वरूप, भूमि कटाव का परिणाम है।

उल्लेखनीय है कि इस पर्वत माला में भूमि कटाव की दर 2 से 12 मिलीमीटर प्रतिवर्ष है जो दूनिया में सबसे अधिक है। दूसरी बात जिसे हिमालय बता रहा है वह है उस पर होने वाली बरसात की मात्रा का कारण। बादलों का अक्सर फटना और यत्रतत्र होने वाला भूस्खलन। उस पर जमा बर्फ का सबसे बड़ा भण्डार। जो ध्रुवीय इलाकों के बाद दुनिया का सबसे बड़ा भण्डार और उस भण्डार में स्थित ग्लेशियरों का तेजी से पिघल कर पानी की कमी पूरी करना।

सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसे नदी तंत्रों में लाखों करोड़ों सालों से विपुल मात्रा में प्रवाहित होता पानी। पानी के साथ प्रवाहित सिल्ट की अकल्पनीय विशाल मात्रा। उसके पश्चिमी भाग की भीषण सर्दी में स्वस्थ जीवन गुजारता जीवन। उसके इसी पश्चिमी हिस्से में कारगिल, लाहौल और स्पिति तथा ठंडा रेगिस्तान अर्थात लद्दाख है। उसके पाक अधिकृत कश्मीर में दुनिया के सबसे सुन्दर लोगों से आबाद हुंजा नदी घाटी है। हिमालय का कुदरती ढाल एक और संकेत देता है। इस संकेत के अनुसार हिमालय पर बरसे पानी का अधिकांश हिस्सा बंगाल की खाड़ी को मिलता है। यही कुछ बातें हैं जो हिमालय हमें बता रहा है। इन्हीं बातों की मदद से कुछ पुख्ता सन्देश दे रहा है। उन सन्देशों को समझना आवश्यक है। वे सन्देश कुछ बातों पर से परदा उठाते हैं।

पश्चिमी हिमालय की हुंजा घाटी एल.ओ.सी. के पास पुराने व्यापारिक सिल्क मार्ग पर स्थित है। यह बेहद ठंडा इलाका है। यह घाटी प्रदूषण से मुक्त है तथा 120 साल की औसत उम्र वाले लोगों का आवास है। उनका खान-पान उसी इलाके में पैदा किया अन्न और फल तथा सब्जियाँ हैं। वे लोग ब्लड प्रेसर, हार्ट या कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों से मुक्त हैं उनसे लगभग अनभिज्ञ हैं। हिमालय का यह पहला सन्देश है जो कह रहा है कि कुदरती माहौल, कुदरत से तालमेल और रसायन मुक्त भोजन से ही शरीर स्वस्थ रह सकता है। यह पर्यावरण के महत्त्व को प्रतिपादित करता सन्देश है।

हिमालयी क्षेत्र में भूमि कटाव की दर 2 से 12 मिलीमीटर प्रतिवर्ष है। यह दर दुनिया में सबसे अधिक है। इसके लिये जिम्मेदार है भारी बरसात तथा भूस्खलन। उसके कारण सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसे नदी तंत्रों के खड़े ढाल से विपुल मात्रा में पानी और मलबा प्रवाहित होता है। हिमालय का यह दूसरा सन्देश है जो कह रहा है कि कुदरती उसके भूगोल को बदलना चाहती है। इसी के साथ कुदरत यह भी संकेत दे रही है कि सिल्ट के निपटान का कुदरती तरीका बेहद कारगर होता है। वह सारी सिल्ट को समुद्र में जमा कर देती है तथा धरती को निरोग रखती है। इसी व्यवस्था से धरती पर जीवन स्वस्थ रह सकता है। पर्यावरण के महत्त्व को प्रतिपादित करता यह दूसरा सन्देश है।

हिमालय पर भूमि कटाव लाखों साल से चल रहा है। इसके बावजूद स्नो-लाइन के नीचे, उस पर वनस्पतियों की विपुल मात्रा मौजूद है। जड़ी बूटियों का भण्डार है। क्या यह हकीकत उस तथ्य को रेखांकित नहीं करती जिसके आधार पर हम कह सकें कि भूमि कटाव और वनस्पतियों के बीच तालमेल सम्भव है। दोनों का सह अस्तित्व सम्भव है। यह भी हिमालय का पर्यावरण की चिन्ता करने वालों के लिये सन्देश है।


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