केन्द्रीय भूजल परिषद द्वारा हर साल भूजल पर वार्षिक पत्रिका प्रकाशित की जाती है। इस पत्रिका में भूजल से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण जानकारियों के साथ-साथ भूजल का प्राकृतिक पुनर्भरण, भूजल दोहन का मौजूदा प्रतिशत और भविष्य में खेती, पेयजल और उद्योगों में उपयोग में लाई जा सकने वाली सम्भावित मात्रा के आवंटन को दर्शाया जाता है।
भूजल का आकलन 6584 इकाइयों के लिये हुआ है। इनमें से 4520 इकाइयाँ सुरक्षित श्रेणी में, 681 इकाईयाँ सेमी-क्रिटिकल श्रेणी में, 253 इकाइयाँ क्रिटिकल श्रेणी में, 1034 इकाइयाँ अतिदोहित श्रेणी में और 96 इकाइयाँ खारे पानी की श्रेणी में आती हैं। क्रिटिकल श्रेणी (91 प्रतिशत से 100 प्रतिशत) और अतिदोहित श्रेणी (100 प्रतिशत से अधिक) में भूजल के दोहन को चिन्ताजनक माना जाता है। सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के निर्देशानुसार नदियों के प्राकृतिक डिस्चार्ज के लिये सकल भूजल रीचार्ज की कुल 5 प्रतिशत मात्रा आरक्षित है।हरित क्रान्ति के पहले तक, धरती में रिसा लगभग सारा पानी प्राकृतिक डिस्चार्ज के लिये उपलब्ध था। जाहिर है, उस उपलब्धता के कारण अधिकांश नदियाँ बारहमासी थीं। बरसात की मात्रा की सामान्य घट-बढ़ या प्राकृतिक रीचार्ज की कमी बेसी का प्रवाह की निरन्तरता पर खास असर नहीं पड़ता था।
केन्द्रीय भूजल परिषद की 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार विभिन्न राज्यों में भूजल भण्डारों की वस्तुस्थिति (बिलियन क्यूबिक मीटर) निम्नानुसार है-
क्र. |
राज्य |
उपयोग में लाने योग्य भूजल भण्डार |
दोहन की स्टेज प्रतिशत में |
1. |
आन्ध्र प्रदेश |
20.39 |
44 |
2. |
अरुणाचल प्रदेश |
4.433 |
0.23 |
3. |
असम |
32.11 |
16 |
4. |
बिहार |
31.31 |
45 |
5. |
छत्तीसगढ़ |
12.80 |
37 |
6. |
दिल्ली |
0.34 |
127 |
7. |
गोवा |
0.24 |
37 |
8. |
गुजरात |
20.85 |
68 |
9. |
हरियाणा |
11.36 |
135 |
10. |
हिमाचल प्रदेश |
0.56 |
51 |
11. |
जम्मू कश्मीर |
5.25 |
24 |
12. |
झारखण्ड |
6.55 |
23 |
13. |
कर्नाटक |
17.00 |
66 |
14. |
केरल |
6.27 |
47 |
15. |
मध्य प्रदेश |
35.98 |
57 |
16. |
महाराष्ट्र |
33.19 |
54 |
17. |
मणिपुर |
0.474 |
1.01 |
18. |
मेघालय |
3.31 |
0.4 |
19. |
मिजोरम |
0.03942 |
2.9 |
20. |
नगालैंड |
1.94 |
2.0 |
21. |
ओड़िशा |
17.78 |
30 |
22. |
पंजाब |
25.91 |
149 |
23. |
राजस्थान |
12.51 |
140 |
24. |
सिक्किम |
--- |
--- |
25. |
तमिलनाडु |
20.65 |
77 |
26. |
तेलंगाना |
14.74 |
58 |
27. |
त्रिपुरा |
2.471 |
7.3 |
28. |
उत्तर प्रदेश |
76.34 |
74 |
29. |
उत्तराखण्ड |
2.00 |
50 |
30. |
पश्चिम बंगाल |
29.33 |
45 |
|
केन्द्र शासित इकाइयाँ |
0.73 |
29 |
|
सम्पूर्ण भारत |
446.87 |
62.00 |
मानवीय आवश्यकताओं (पेयजल, सिंचाई तथा उद्योगों) को पूरा करने के लिये भूजल की 95 प्रतिशत पुनःभरित मात्रा का उपयोग किया जा सकता है। यह मात्रा नदियों के गैर-मानसूनी प्रवाह को सुखाने और कुओं तथा नलकूपों से पानी की सुनिश्चित उपलब्धता के लिये घातक है। जिस दिन देश में यह स्थिति हासिल होगी उस दिन देश की अधिकांश नदियों में तलीय प्रवाह (Base flow) भी खत्म हो जाएगा। लगभग सभी भूजल संरचनाएँ सूख जाएँगी। हिमालयीन नदियों के साथ भी किसी हद तक ऐसा ही होगा। सूखे दिनों में, उनमें भी बहुत ही कम पानी बहेगा।
भारतीय प्रायद्वीप के भूजल भण्डारों की तुलना में गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु के कछार के जलोढ़ भूजल भण्डार (Ground Water Resources in Alluvial Area), काफी समृद्ध हैं। यदि भूजल दोहन को नियंत्रित नहीं किया गया तो उनकी हालात बिगड़ने में भी अब अधिक समय नहीं लगेगा।
उल्लेखनीय है कि भूजल दोहन मुख्यतः निजी हाथों में है। उसके दोहन की सीमा को नदियों के सूखने या कुओं तथा नलकूपों के सूखने के आधार पर निर्धारित नहीं किया गया है। उसके दोहन पर नियंत्रण के लिये देश में सख्त कानूनों तथा प्रभावी व्यवस्था का अभाव है। इस कारण पानी निकालने की होड़ में गहरे नलकूपों का चलन बढ़ रहा है। उनके द्वारा बहुत अधिक मात्रा में पानी खींच लिया जाता है। पूरे कछार में जलस्तर घट जाता है। पम्पिंग के दौरान, नदियों के निकट बने नलकूपों का नदी के प्रवाह पर असर पड़ता है। उस असर से नदी का प्रवाह घट जाता है। यह सम्भावना, धीरे-धीरे हकीकत बन रही है। अधिकांश इलाकों की नदियों के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा रही है।
अब कुछ चर्चा केन्द्रीय जल आयोग की पाँचवीं लघु सिंचाई गणना में नलकूपों की संख्या में आये बदलाव की। सन 2006-07 से 2013-14 के बीच गहरे नलकूपों की संख्या में लगभग 11 लाख की वृद्धि हुई है। यह संख्या 14 लाख 60 हजार से बढ़कर 26 लाख हो गई है। ये नलकूप मुख्यतः किसानों के हैं और उनसे लगभग एक करोड़ 26.8 लाख हेक्टेयर में सिंचाई होती है। वे पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में खोदे गए हैं।
उल्लेखनीय है कि उनमें 40 प्रतिशत नलकूपों की गहराई 70 से 90 मीटर और 26 प्रतिशत की गहराई 90 से 110 मीटर है। इन नलकूपों ने न केवल भूजल स्तर को गिराया है वरन नदियों के प्रवाह को कम करने में निर्णायक भूमिका का निर्वाह किया है।
अब कुछ चर्चा भारत में भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण की।
भारत में भूजल का कृत्रिम पुनर्भरण नगरीय इलाकों में छत के पानी को धरती में उतारने और चुनिन्दा स्थानों पर प्रायोगिक रूप में ही है पर दोहन की तुलना में वह बेहद कम है।
केन्द्रीय भूजल परिषद ने सन 2013 में भारत में भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण सम्बन्धी मास्टर प्लान जारी किया था। इस मास्टर प्लान में कहा गया है कि देश के सकल क्षेत्रफल में से केवल 9,41,541 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ही ऐसा इलाका है जहाँ प्राकृतिक रीचार्ज के बावजूद भूजल का स्तर धरती की सतह से 3.00 मीटर नीचे तक नहीं लौट पाता। केन्द्रीय भूजल परिषद का मानना है कि केवल ऐसे ही इलाकों में कृत्रिम भूजल रीचार्ज की आवश्यकता है। ऐसे ही इलाकों में 85,565 मिलियन क्यूबिक मीटर (एम.सी.एम) वर्षाजल को भूगर्भ में उतारने की आवश्यकता है। उसके बाद, सभी इलाकों में, भूजल का मानसून के बाद का भूजल स्तर, सतह से 3.00 मीटर तक आ जाएगा और देश में भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण मास्टर प्लान का लक्ष्य हासिल हो जाएगा।
उल्लेखनीय है कि देश के जिन इलाकों में भूजल का कुदरती पुनर्भरण पूरा है उन इलाकों की नदियाँ भी प्रवाह के संकट से जूझ रही हैं। कहा जा सकता है कि केन्द्रीय भूजल परिषद द्वारा जारी भारत में भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण सम्बन्धी मास्टर प्लान 2013 का नदियों को पुनर्जीवित करने से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसलिये उसका पालन होने के बाद भी नदियाँ बारहमासी नहीं बन पाएँगी। यही हकीकत है।
हकीकत में नदियों को जिन्दा करने के लिये अभी तक कोई मास्टर प्लान नहीं बना है। इस कारण, देश की सूखती नदियों के प्रवाह की बहाली के लिये कुल कितने पानी की आवश्यकता है, के बारे में जानकारी का अभाव है। प्रवाह बहाली के काम को करने की जिम्मेदारी भी तय नहीं है। उसका रोडमैप भी तय नहीं है। जहाँ तक प्रवाह बहाली के लिये जल उपलब्धता का प्रश्न है तो एक आकलन के अनुसार प्रतिवर्ष भारत को बरसात के माध्यम से लगभग चालीस करोड़ हेक्टेयर मीटर जल प्राप्त होता है। उसमें से लगभग उन्नीस करोड़ तिरपन लाख हेक्टेयर मीटर पानी रन-ऑफ के रूप में हर साल भारतीय नदियों में बहता है। भारत में बाँधों के लिये अधिकतम छः करोड़ नब्बे लाख हेक्टेयर मीटर पानी की आवश्यकता है। अर्थात भारत में हर साल बारह करोड़ तिरसठ लाख हेक्टेयर मीटर पानी नदियों के प्रवाह की बहाली के लिये उपलब्ध है। पानी का टोटा नहीं है। यह वास्तविकता है।
संक्षेप में, भारत में भूजल परिदृश्य बेहतर नहीं है। उसे बेहतर बनाने की आवश्यकता है। उसका समय आ गया है। उसे बेहतर बनाने के लिये पानी की कमी नहीं है। पानी को जमीन में उतारने के तरीकों में सुधार की आवश्यकता है। आवश्यकता धरती में पानी की मात्रा के सही-सही आकलन और समय तय करने की है। भूजल के परिदृश्य को ठीक करने के लिये फैसला करने और जमीन पर उतारने की है।
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