डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहीत

डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहीत
मालवा की गंगा-शिप्रा
Posted on 26 Jan, 2010 08:56 AM
मालवा से प्रकट होकर मालवा में ही आत्मसमर्पित हो जाने वाली नदियों में शिप्रा का नाम अग्रणी है। मालवा के दणिक्ष में विन्ध्य की श्रेणियों के क्षेत्र से प्रकट होती है। शिप्रा और मालवा के मध्योत्तर में चम्बल में यह विलीन हो जाती है। यही नदीं वह तो प्राचीन पूर्व में कालीसिन्ध से उत्तर-पश्चिम में मन्दसौर और दक्षिण में नर्मदा तक व्यापक था। शिप्रा तो नर्मदा से पर्याप्त उत्तर में मालवा के पठार के दक्षिणी सि
शिप्रा तट सभ्यताओं की जननी रहा है
Posted on 27 Jan, 2010 10:19 AM

प्राचीन सभ्यताएँ नदी-तटों पर ही पनपीं। शिप्रातट भी इसका अपवाद नहीं है। उज्जैन और महिदपुर में उत्खनन किये गये। महिदपुर उत्खनन से ताम्राश्मीय सभ्यता (2100 ई.पू.) से ई.पू.

उद्धारक शिप्रा उद्धारकों की बाट जोह रही
Posted on 27 Jan, 2010 09:53 AM

इस शिप्रा को अपने जीवन के लिए पानी उधार भी लेना पड़ता है। वही शिप्रा जो कभी सबका उद्धार करती थी और जो आशा की किरण भी- अब अपने उद्धार का रास्ता देख रही है। शिप्रा का परिसर रमणीय प्राकृतिक छटा से भरपूर था। यह सरल तरल है सिप्रा। जगह-जगह कमलकुल खिले थे। विचरते थे हंस और बतख। यक्ष और गन्धर्व इसका सेवन करते थे। तटों पर गीत गाती थीं किन्नरियाँ। पक्षी कलरव करते रहते थे। भ्रमरों की गुँजार होती रहती थी।

शिप्रा की पन्द्रह बहनें
Posted on 26 Jan, 2010 09:30 AM

अवन्तीखण्ड में उज्जयिनी के परिसर में बहती प्रायः पन्द्रह नदियाँ बतायी गयी हैं। जो शिप्रा से मिलती थीं और जिनका पौराणिक महत्व था। उसमें से कुछ तो साहित्य में भी याद की गयी हैं। ऐसी नदियों में गन्धवती सर्वप्रमुख है। कालिदास के मेघदूत, कथासारित्सागर और जैन साहित्य में इसका स्मरण किया गया है। कालिदास का कहना है कि वर्षा आने तक भी यह बहती रहती थी और इसमें नारियाँ स्नान करती थीं, आज उसके दर्शन नहीं ह

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