आदित्य अवस्थी

आदित्य अवस्थी
झीलों और तालाबों का शहर
Posted on 15 Sep, 2013 12:35 PM
दिल्ली में अब भी इतनी झीलें, ताल-तलैये, पोखर, जोहड़ हैं कि इस शहर को ‘तालाबों और झीलों का शहर’ कहा जा सकता है। यह अलग बात है कि र
हौज़ और झरने
Posted on 15 Sep, 2013 12:31 PM
सबसे पुरानी महरौली की बावड़ियां: भाग -4
Posted on 12 Sep, 2013 03:40 PM
दिल्ली के इतिहास और ऐतिहासिक इमारतों के बारे में लिखी पुस्तक ‘दि ऑर
बावड़ी, जो कभी जेल भी रही, भाग -3
Posted on 12 Sep, 2013 03:28 PM
तुगलकाबाद के किले और शहर में चार स्थानों पर बावड़ी बनाए जाने का उल
समागम नई और पुरानी दिल्ली का, भाग -2
Posted on 10 Sep, 2013 04:04 PM

कनॉट प्लेस और आस-पास के इलाके में बरसाती पानी को इकट्ठा करके यहां के जल स्तर को और गिरने से रोकने के लिए बरसाती प

दिल्ली की बावड़ियां, भाग -1
Posted on 10 Sep, 2013 01:46 PM
दिल्ली के विभिन्न इलाकों में बनी बावड़ियों में से कई तो ऐसी हैं, जिन्हें बनवाए हुए 600 से 800 साल या उससे भी अधिक का समय गुजर चुका है। इनमें से कुछ तो अभी भी बची हुई हैं। हां, जिस संरक्षण और संवर्धन के इरादे से इनका निर्माण किया गया था, अब उनमें पानी नहीं रह गया है। उनका पानी आस-पास के विकास की बलि चढ़ गया। हालांकि इस विकास के बाद उनके आस-पास रहने आने वालों के लिए पानी उतना ही जरूरी है जितना कि सैकड़ों साल पहले यहां रहने वालों के लिए था। हां, तब उन्हें बोतलबंद मिनरल वाटर नहीं मिलता था, भले ही इन मिनरल वाटर की बोतलों में मिनरल के अलावा सब कुछ हो।दिल्ली के ज्ञात इतिहास में बावड़ी बनाने का काम इल्तुतमिश के शासन काल के दौरान शुरू किए जाने के ही प्रमाण हैं। दिल्ली में बावड़ी के विकास पर एक नजर डाली जाए तो कम-से-कम दो दर्जन बावड़ियों का पता चलता है। इनका इस्तेमाल गुज़रे कल की दिल्ली और दिल्लीवालों ने अपने जीवन की सबसे प्रमुख जरूरत पानी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए किया। ये बावड़ियां उस समय की दिल्ली के लगभग सभी हिस्सों में बनाई गई थीं। यहां यह याद रखना जरूरी है कि जब ये बावड़ियां बनाई जा रही थीं तब की दिल्ली मुख्य रूप से यमुना के पश्चिमी किनारे और रिज की पहाड़ियों के बीच ही हुआ करती थी। इस पुस्तक में शामिल की गई बावड़ियों की सूची को अंतिम नहीं कहा जा सकता। हो सकता है कि 1,000 साल से पुराने शहर में और भी बावड़ियां रही हों। शायद जो हों भी, वे भी विकास की भेंट चढ़ गई हों, अभी भी कूड़े-कचरे, मिट्टी से ढकी कहीं हों। उनके बारे में जानकारी आमतौर पर उपलब्ध नहीं है। इनका पता लगाकर उन्हें फिर बहाल किए जाने की आवश्यकता है। ऐसा किया जा पाना तकनीकी दृष्टि से संभव है और ऐसा भी किया जाना चाहिए।
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