हरियाणा जहां अपने कारखानों के जहरीले कचरे को दिल्ली भेज रहा है वहीं दिल्ली भी उत्तर प्रदेश को अपने गंदे नालों और सीवर का बदबूदार मैला पानी ही सप्लाई कर रही है। दिल्ली में यमुना की सफाई के नाम पर अब तक साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। ढाई हजार करोड़ रुपए अभी और खर्च होने हैं। दिल्ली में यमुना में अठारह बड़े नाले गिरते हैं, जिनमें नजफगढ़ का नाला सबसे बड़ा और सबसे अधिक प्रदूषित है। इस नाले में शहरी इलाकों के अड़तीस और ग्रामीण इलाकों के तीन नाले गिरते हैं।
यमुना से कृष्ण का अटूट नाता रहा है और इसकी पवित्रता को बरकरार रखने के लिए उन्होंने कालिया नाग को खत्म किया था। लेकिन द्वापर में प्रदूषित होने से बची यमुना कलयुग में जहर उगलते कारखानों और गंदे नालों की वजह से मैली हो गई है। यमुना की निर्मलता और स्वच्छता को बनाए रखने के दावे तो किए जा रहे हैं, लेकिन इस पर कायदे से अब तक अमल नहीं हो पाया है। अपने उद्गम से लेकर प्रयाग तक बहने वाली इस नदी की थोड़ी-बहुत सफाई बरसात के दिनों में इंद्र देव की कृपा से जरूर हो जाती है। लेकिन यमुनोत्री से निकली इस यमुना की व्यथा बेहद त्रासद है। अतीत में यमुना को भी पवित्रता और प्राचीन महत्ता के मामले में गंगा के बराबर ही अहमियत मिलती थी। पश्चिम हिमालय से निकल कर उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमाओं की विभाजन रेखा बनी यह नदी पंचानवे मील का सफर तय कर उत्तरी सहारनपुर के मैदानी इलाके में पहुंचती हैं। फिर पानीपत, सोनीपत, बागपत होकर दिल्ली में दाखिल होती है। यहां से बरास्ता मथुरा और आगरा होते हुए प्रयाग पहुंच कर गंगा में समा जाती है।पिछले कई दशक में हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने यमुना की सफाई के नाम पर अरबों रुपए खर्च दिए। पर साफ-सुथरी दिखने के बजाए यमुना और ज्यादा मैली होती गई। सरकार ने इस प्राचीन नदी के अस्तित्व से सरोकार नहीं दिखाया तो देश की सबसे बड़ी अदालत ने सवाल उठाते हुए कई बार सरकारों को कड़ी फटकार भी लगाई। लेकिन सरकार तो सरकार ठहरी, उस पर किसी फटकार का अव्वल तो कोई असर नहीं होता और अगर होता भी है तो थोड़ी देर के लिए तभी तो हर राज्य यमुना की सफाई को लेकर अपना ठीकरा दूसरे पर फोड़ देता है। 1994 में यमुना के पानी के बंटवारे पर एक समझौता हुआ था। दिल्ली जल बोर्ड के पूर्व अधिकारी रमेश नेगी के मुताबिक समझौते के तहत दिल्ली को हरियाणा से पेयजल की जरूरत के लिए यमुना का पानी मिलना तय हुआ था। बदले में दिल्ली से उत्तर प्रदेश को सिंचाई के लिए पानी मिलना था, लेकिन विडंबना देखिए हरियाणा जहां अपने कारखानों के जहरीले कचरे को दिल्ली भेज रहा है वहीं दिल्ली भी उत्तर प्रदेश को अपने गंदे नालों और सीवर का बदबूदार मैला पानी ही सप्लाई कर रही है।
दिल्ली में यमुना की सफाई के नाम पर अब तक साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। ढाई हजार करोड़ रुपए अभी और खर्च होने हैं। दिल्ली में यमुना में अठारह बड़े नाले गिरते हैं, जिनमें नजफगढ़ का नाला सबसे बड़ा और सबसे अधिक प्रदूषित है। इस नाले में शहरी इलाकों के अड़तीस और ग्रामीण इलाकों के तीन नाले गिरते हैं। यह नाला वजीराबाद पुल के बाद सीधे यमुना में गिरता है। वजीराबाद, आईटीओ और ओखला में तीन बांध हैं। मकसद यमुना के पानी को रोक कर दिल्ली को पेयजल की जरूरत को पूरा करना है। वजीराबाद पुल से पहले तो फिर भी यमुना का पानी पीने लायक दिखता है। लेकिन यमुना यहां से आगे बढ़ती है तो नजफगढ़ का नाला इसमें गिरता है और फिर पानी का रंग बदल कर काला हो जाता है। कश्मीरी गेट बस अड्डे पर बने पुल से गुजरने पर एक तरफ नाले जैसी दिखती यमुना की धारा के बीच झोपड़ी डाल कर साग-सब्जी उगाने वाले किसान दिखाई देते हैं तो दूसरी तरफ दर्जनों की संख्या में धोबी घाट। इससे बदतर हालत लोहे वाले पुल से दिखाई देती है। एक तरफ यमुना में कचरे का अंबार दिखता है तो दूसरी तरफ काला स्याह पानी। आईटीओ पुल, निजामुद्दीन और टोल ब्रिज से गुजरने पर दो-तीन धाराओं में बहती यमुना नदी कम बड़ा नाला ज्यादा नजर आती है।
यमुना के प्रदूषण ने दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन की चिंता भी बढ़ा दी है। इसके प्रदूषित पानी में मिले औद्योगिक कचरे से ऐसी जहरीली गैसें निकल रही हैं कि उनके असर से यमुना के ऊपर से गुजरने वाली मेट्रो भी प्रभावित हो रही है। इनकी वातानुकूलन प्रणाली पर इन गैसों का प्रभाव पड़ रहा है। आमतौर पर रात के समय गैस ज्यादा निकलती है। मेट्रो के अधिकारियों ने इसकी शिकायत दिल्ली सरकार से की है। छानबीन से सामने आया है कि प्रदूषित जल से अमोनिया और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं और मेट्रो के डिब्बों की एसी प्रणाली के कंडेंशरों पर लगी कोटिंग इससे हट जाती है। नतीजतन एसी की गैस रिस जाती है। इस वजह से मेट्रो के कंडेंशर बार-बार बदलने पड़ रहे हैं। इस शिकायत का संज्ञान लेते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यमुना के ऊपर की हवा का विश्लेषण कराने का फैसला किया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये जहरीली गैस अगर मेट्रो के एसी को प्रभावित कर रही हैं तो आसपास के इलाकों में रह रहे लोगों को भी बीमार बना रही होगी।
कालिंदी कुंज के पास यमुना में गिरने वाला गंदा नाला तो कचरे से लबालब तालाब जैसा नजर आता है। इसी में तपती गर्मी से राहत पाने के लिए मवेशी तैरते दिखते हैं। जिसे देख कर रसखान की याद आ जाती है। रसखान आज होते तो अपनी लिखी इन पंक्तियों पर पछताते-
‘जो खग हौं, तो बसेरो करौं मिलि कालिंदिकूल-कदम की डारन।’
मोटेतौर पर दिल्ली में यमुना का पाट डेढ़ से तीन किलोमीटर तक चौड़ा है। दिल्ली में इसका कुल दायरा संतानवे वर्ग किलोमीटर है। जिसमें करीब सत्रह वर्ग किलोमीटर पानी में है, जबकि अस्सी वर्ग किलोमीटर सूखा पाट। करीब पचास किलोमीटर लंबा यमुना में वजीराबाद बैराज तक पानी साफ दिखता है। लेकिन पच्चीस किलोमीटर दूर जैतपुर गांव में यह खासा प्रदूषित हो जाता है। यह भी एक तथ्य है कि यमुना के किनारे बसे शहरों में सबसे ज्यादा प्रदूषित इसे दिल्ली ही करती है। इसमें गिरने वाली कुल गंदगी में से अस्सी फीसद दिल्ली की होती है। प्रदूषत कचरे की वजह से ही इसके पानी में ऑक्सीजन की मात्रा लगभग खत्म हो गई है। वजीराबाद से ओखला बांध तक सबसे ज्यादा प्रदूषण है। दिल्ली सरकार के ओखला में कूड़े से खाद बनाने के कारखाने से निकलने वाली जहरीली गैस से आसपास के लोगों का जीना दूभर हो गया है। ऐसा ही संयंत्र दशकों पहले वजीराबाद पुल के पास बना था।
लोगबाग कहते हैं कि यह संयंत्र पानी के संशोधन के साथ कूड़े से बिजली बनाने के लिए लगाया गया था। लेकिन करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद पता चला कि यहां का कचरा इस लायक है ही नहीं कि उसका ट्रीटमेंट कर उससे बिजली बनाई जा सके। यही हाल उन नालों पर लगे जल ट्रीटमेंट संयंत्रों का है जिनका तीन चौथाई गंदा पानी सीधे यमुना में मिलता है। सच्चाई यह है कि दिल्ली जल बोर्ड के सत्रह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट है, जिनकी जलशोधन क्षमता करीब 355 एमजीडी है। जबकि होनी चाहिए 5-12 एमजीडी प्रतिदिन। जाहिर है कि शेष गंदा पानी नालों के जरिए यमुना में ट्रीटमेंट के बिना ही बहाया जा रहा है। यों दिल्ली के अठारह बड़े नालों पर इंटरसेप्टर लगाने के लिए जापानी कंपनी इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड को ठेका दिया गया है। जिस पर करीब सत्रह सौ करोड़ रुपए खर्च आएगा। अभी तक मुश्किल से दो इंटरसेप्टर ही लग पाए हैं।
यों तो यमुना की सफाई के लिए कार्य योजना सरकार ने काफी पहले बनाई थी। मसलन पहला यमुना एक्शन प्लान 1993 में लागू हुआ था। जिस पर करीब 680 करोड़ रुपए खर्च हुए। फिर 2004 में दूसरा प्लान बना। इसकी लागत 624 करोड़ रुपए तय की गई। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक यमुना की सफाई पर दिल्ली जल बोर्ड ने 1998-99 में 285 करोड़ रुपए और 1999 से 2004 तक 439 करोड़ रुपए खर्च किए। डीएसआईडीसी ने 147 करोड़ रुपए अलग खर्च कर दिए। अगर यमुना के प्रदूषण की बात करें तो इसे गंदा करने में दिल्ली सबसे आगे है। बेशक कसर हरियाणा और उत्तर प्रदेश भी कुछ नहीं छोड़ रहे। उत्तर प्रदेश में भी मथुरा और आगरा जैसे शहरों के गंदे नाले सीधे यमुना में गिरते हैं। इन्हें रोकने के लिए अब तक गंभीर कोशिश नहीं हुई है।
हकीकत तो यह है कि आज की यमुना अपने उद्गम से लेकर संगम तक कहीं भी गंदगी से मुक्त नहीं है। हालांकि दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के इक्कीस शहरों में अब तक यमुना की सफाई पर 276 योजनाएं क्रियान्वित की जा चुकी हैं। जिनके माध्यम से 75325 लाख लीटर सीवर उत्प्रवाह के शोधन की क्षमता सृजित किए जाने का सरकारी दावा है। एक तरफ यमुना को बचाने के नाम पर सरकारी योजनाएं बन रही हैं तो दूसरी तरफ कुछ गैरसरकारी संस्थाएं भी मैली यमुना में सीधे न सही पर रस्म अदायगी के जरिए तो डुबकी लगा ही रही हैं। लेकिन ऐसे आधे-अधूरे प्रयासों से न यमुना की गत सुधरने वाली है और न इस प्राकृतिक धरोहर को बर्बाद होने से रोका जा सकता है। सचमुच यमुना को बचाना है तो इसके लिए एक तरफ तो सामाजिक चेतना जगानी होगी, दूसरी तरफ इसे गंदा करने वालों पर कड़ा दंड लगाना होगा।
हकीकत तो यह है कि यमुना को बचाने के ज्यादातर प्रयास थोथे, दिखावटी और ढकोसला भर है जो इससे सरोकार दिखाते हैं वे भी अखबारों में फोटो छपवाने तक ही सीमित दिखते हैं। मसलन, पिछले साल तब के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने नाव मे यमुना की सैर की थी। रमेश यमुना कार्य योजना के तीसरे चरण के पक्ष में थे और 1656 करोड़ रुपए की इस योजना को दिल्ली के हिस्से में बहने वाली यमुना की सफाई तक सीमित रखने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन उनका महकमा ही बदल दिया गया। इसलिए फिलहाल इस पर विराम लग गया है। दिल्ली सरकार के अलावा कई गैरसरकारी संगठनों ने यमुना को बचाने के लिए खूब प्रयास किए। पर नतीजा कुछ नहीं निकला हालांकि दिल्ली सरकार ने यमुना किनारे बने बाईपास के आसपास कश्मीरी गेट से आईटीओ तक वृक्षारोपण का काम शुरू किया है और यमुना किनारे की खाली जमीन को पार्क की शक्ल देने की कोशिश कर रही है, ताकि हरियाली के साथ-साथ यमुना भी साफ-सुथरी रहे। लेकिन बिना ईमानदार कोशिश के मैली यमुना को और मैली होने से नहीं बचाया जा सकता।
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