यह कैसा प्रदूषण नियन्त्रक

water pollution
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किसी भी राज्य में प्रदूषण नियन्त्रित करने की सबसे अधिक अधिकारिक जवाबदेही, राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड की होती है। किन्तु यदि उसे इसके लिए धन ही न मिले अथवा उसे प्रदूषण नियन्त्रण हेतु राज्य के सम्बन्धित विभाग द्वारा जारी आदेशों/निर्देशों की जानकारी ही न हो, तो इस स्थिति को आप किस धिक्कार से नवाजेंगे? किसे दोषी ठहराएँगे-राज्य सरकार को, स्वयं राज्य प्रदूषण बोर्ड के राजनीतिक मुखिया को अथवा उस विभाग के प्रशासक को, जिस पर धन व आदेश जारी करने की जवाबदेही है?

प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के पास न पैसा, न जानकारी


गोमती नदी की सफाई हेतु उत्तर प्रदेश राज्य प्रदूषण बोर्ड को अब तक किसी सरकार से एक पैसा भी प्राप्त नहीं हुआ है। मेरी तरह, सम्भवतः यह जानकारी आपको भी चौंकाए। किन्तु सूचना के अधिकार के तहत् माँगी गई एक जानकारी के उत्तर में उ.प्र. प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने यही जानकारी दी है। लखनऊ की ‘आरटीआई गर्ल’ के नाम से मशहूर आठ वर्षीया ऐश्वर्या पाराशर द्वारा मांगी जानकारी से हुआ यह खुलासा सचमुच दिलचस्प है।

यह कोई एक वर्ष का आँकड़ा नहीं है। बोर्ड से उत्तर प्रदेश राज्य के गठन से लेकर सूचना माँगे जाने की तिथि तक गोमती सफाई पर हुए खर्च का वर्षवार ब्यौरा माँगा गया था। जानकारी माँगने की तिथि 25 अक्तूबर, 2013 थी; जवाब एक वर्ष, दो माह बाद मिला। यह जवाब http://aishwarya-parashar.blogspot.in/2015/01/blog-post.htmlपर उपलब्ध है।

जवाब देते हुए राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने स्पष्ट लिखा है कि उसे केन्द्र अथवा राज्य सरकार द्वारा गोमती नदी सफाई के मद में कोई पैसा प्राप्त नहीं हुआ है। ऐश्वर्या ने बोर्ड से गोमती में कचरा न डालने के राज्य सरकार के आदेश की सत्यापित प्रति भी माँगी थी। बोर्ड के अनुसार, गोमती नदी सफाई सम्बन्धी निर्देश, नगर विकास विभाग द्वारा जारी किए जाते हैं, लिहाजा वह ऐसी जानकारी नगर विकास विभाग से माँगे।

जवाब में प्राप्त उक्त जानकारी अपने आप में एक बहस् का विषय है। हम बहस कर सकते हैं कि बोर्ड को धन का क्या काम? उसका काम सफाई करना नहीं, कचरे पर नियन्त्रण करने हेतु जरूरी नियम-कानूनों की पालना कराना है; यह जाँचना है कि कोई नदी को प्रदूषित न करे। प्रदूषण नियन्त्रण जरूरी जन-जागरूकरता फैलाना भी राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड का काम है। किन्तु क्या ये काम बिना धन के सम्भव हैं? अतः यदि बोर्ड द्वारा दी जानकारी सही है, तो यह प्रदूषण नियन्त्रण तन्त्र को लेकर सरकारों के रवैए पर एक सवालिया निशान तो है ही।

कोई साधारण धारा नहीं गोमती


गोमती, कोई 10-20 किलोमीटर लम्बी साधारण धारा नहीं है। इसकी लम्बाई 900 किलोमीटर है। जिला पीलीभीत के 30 किलोमीटर पूर्व माधोटाण्डा कस्बे के मध्य से एक किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम स्थित पन्गैली फुलहेरा ताल इसका मूल स्रोत है। इस ताल को गोमत ताल भी कहते हैं।

20 किलोमीटर तक पतली सी धारा के रूप में चलने के बाद गैहाई और फिर 100 किलोमीटर आगे लखीमपुर खीरी जिले की मोहम्मद खीरी तहसील में सुखतो, छोहा, आन्ध्र छोहा नामक सहायक धाराएँ गोमती में मिलती हैं। बनारस से पहले गंगा में मिलने से पूर्व आगे सई, कथिना और सरायना भी गोमती का हिस्सा बन जाती हैं। इस पर बसे 15 नगरों में प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अलावा लखीमपुर, सुल्तानपुर और जौनपुर जैसे जिला नगर प्रमुख है। गोमती, आज तमाम औद्योगिक कचरे और नगरों से आकर नदी में मिलने वाले मल से त्रस्त नदी है।

चिन्ताजनक शून्य


गोमती के महत्व तथा संकट को देखते हुए ही उत्तर प्रदेश जल बिरादरी ने वर्ष- 2009 में गोमती को उत्तर प्रदेश की ‘राज्य नदी’ का दर्जा दिए जाने की माँग की थी। सोचा था कि यह दर्जा मिलने पर राज्य सरकार को कुछ तो चिन्ता होगी। मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव ने गोमती सफाई को लेकर अपने संकल्प को कई बार दोहराया भी है। राजनाथ सिंह ने बतौर लखनऊ सांसद और उमा भारती जी ने बतौर जल संसाधन मन्त्री गोमती नदी स्वच्छता हेतु अपना साझा संकल्प सितम्बर, 2014 में ही सार्वजनिक कर दिया था।

सिर्फ प्रावधानों और ढाँचागत पहल से कोई नदी निर्मल-अविरल नहीं हो सकती। नदी सफाई के नाम पर मंजूर बजट और ढाँचागत प्रावधान अब भ्रष्टाचार की नई मंजिल बनते जा रहे हैं। इसलिए अब ऐसी माँगें डराती भी हैं। असल जरूरत है, नदी निर्मलीकरण को लेकर संजीदगी और साफ नीयत की। माँ गोमती के लिए उसकी एक नन्ही बिटिया की अपील से सरकार चेते, न चेते; यदि गोमती की सन्तानें चेत गईं, तो ही गोमती चेत जाएगी।इतने सारे संकल्प और गोमती को लेकर तमाम गैर सरकारी संगठनों की आवाजों के बावजूद सरकार कुछ तो चेती होगी। प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड को कोई धन न भी मिला हो; जन जागृति के लिए ही सही, गोमती सफाई मद में कोई-न-कोई धनराशि किसी-न-किसी विभाग को तो मिली ही होगी। यदि नहीं मिली, तो यह अजब बात होगी। यदि मिली है, तो राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड को इसकी जानकारी का न होना और भी चिन्तित करने वाली बात है।

गोमती निर्मलीकरण हेतु आदेश/निर्देश चाहे जिसने जारी किए हों, राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड इस जिम्मेदारी से नहीं मुकर सकता कि उन्हें लोगों तक पहुचाना उसका काम है। जन-जागरूकरता उसकी जिम्मेदारी है। इस जानकारी को न देना, अपनी नैतिक और अधिकारिक.. जिम्मेदारियों का निर्वाह न करने जैसा है।

प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड कार्य प्रणाली की समीक्षा जरूरी


सरकार और बोर्ड के इस रवैए को बीच बहस में लाने की जरूरत है। जरूरत है कि केन्द्र, राज्य, स्थानीय निकायों और तथा प्रदूषण नियन्त्रण बोर्डों के बीच समन्वय और संवादहीनता को लेकर उठे ऐसे सवालों के समाधान तलाशे जाएँ। राज्य बोर्डों के साथ-साथ, केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड की कार्य प्रणाली की भी संजीदा समीक्षा और अनुकूल बदलाव की माँग कर रही है।

योजना आयोग को नीति आयोग में बदलने वाले प्रधानमन्त्री महोदय को चाहिए कि वह इस दिशा में अनुकूल पहल करें; ताकि प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड महज् “प्रदूषण नियन्त्रण में है’’ प्रमाण पत्र बाँटने वाला संस्थान न होकर, प्रदूषण नियन्त्रित करने वाला एक आदर्श और सशक्त कार्यदायी संस्था न बनकर सामने आए।

गोमती को समग्र कार्य योजना की दरकार


नन्ही आरटीआई गर्ल और उसके समर्थन में खड़ी ‘तहरीर’ नामक संस्था ने माँग की है कि टुकड़ा-टुकड़ा सफाई से काम चलने वाला नहीं, गोमती निर्मलीकरण हेतु समग्र और समयबद्ध कार्य योजना बनाई जाए। केन्द्र और राज्य दोनों स्तर की सरकारें इस मद में विशेष बजट दें। नदी में कचरा न डालने के आदेश जारी हों। आदेश की पालना हो। महीने में कम-से-कम एक बार न्यूनतम नौ स्थानों पर गोमती जल की जाँच हो। जो भी जाँच रिपोर्ट आए, उसे तत्काल सार्वजनिक किया जाए।

उन्हें नहीं, तो हमें चेत हो


सच है कि सिर्फ प्रावधानों और ढाँचागत पहल से कोई नदी निर्मल-अविरल नहीं हो सकती। नदी सफाई के नाम पर मंजूर बजट और ढाँचागत प्रावधान अब भ्रष्टाचार की नई मंजिल बनते जा रहे हैं। इसलिए अब ऐसी माँगें डराती भी हैं। असल जरूरत है, नदी निर्मलीकरण को लेकर संजीदगी और साफ नीयत की। माँ गोमती के लिए उसकी एक नन्ही बिटिया की अपील से सरकार चेते, न चेते; यदि गोमती की सन्तानें चेत गईं, तो ही गोमती चेत जाएगी।

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