जल बजट पानी के निवेश और निकासी (Input & Output) का लेखा-जोखा है जो किसी स्थान का जल संतुलन चाहे वह कृषि क्षेत्र हो, वाटरशेड, पृथ्वी की सतह पर पानी के इनपुट, आउटपुट और भंडारण परिवर्तनों की गणना करके निर्धारित किया जाता है। पानी का प्रमुख इनपुट वर्षा जल से होता है और आउटपुट वाष्पीकरण-वाष्पोत्सर्जन आदि से है।
जल बजट क्षेत्र के पानी के इनपुट और आउटपुट के बीच संबंध को दर्शाता है" जल बजट आमतौर पर इस बारे में ज्ञान प्रदान करता है कि कितना पानी उपलब्ध है, यह प्रवाह की गतिशीलता की विस्तृत समझ के साथ कहां उपलब्ध है। जल बजट अध्ययन जल विज्ञान चक्र के विभिन्न जलाशयों के भीतर पानी की और पुनर्भरण से निर्वहन तक प्रवाह पथ पर विचार करता है। जल बजट जल चक्र, वाष्पोत्सर्जन, भूजल और सतही जल आपूर्ति और पानी के अंतर बेसिन (आयात और निर्यात) हस्तांतरण को ध्यान में रखता है। इस प्रकार, जल बजट को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जल संसाधनों के संबंध में भूमि की वहन क्षमता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
जल बजट के घटक
जल बजट के लिए सबसे बुनियादी समीकरण जल चक्र पर आधारित है, जहां पानी वायुमंडल से पृथ्वी की सतह पर विभिन्न गंतव्यों तक जाता है, और वापस वायुमंडल में पुनः जाता है।
प्राकृतिक परिस्थितियों में वर्षा, जल बजट का एकमात्र इनपुट है:-
भूमि की सतह में पानी का प्रवेश जल बजट का एक महत्वपूर्ण घटक है। रिसाव के बिना, सारा पानी या तो भूमि की सतह से वाष्पित हो जाएगा या सतही जल में अपवाह हो जाएगा। "रिसना" शब्द का अर्थ है कि पानी भूमि की सतह से नीचे की ओर मिट्टी में चला जाता है। कुछ पानी भूमि की सतह के ठीक नीचे धाराओं की ओर बढ़ता है। यह पानी आमतौर पर पीने योग्य पानी की आपूर्ति के लिए उपयोग नहीं किया जाता है, लेकिन पारिस्थितियों में, जलभृतों का पानी वर्षों से लेकर सहस्राब्दियों तक की अवधि के बाद सतही जल में स्थानांतरित हो जाता है।
वाष्पीकरण-वाष्पोत्सर्जन
वाष्पीकरण-वाष्पोत्सर्जन दो शब्दों वाष्पीकरण ओर वाष्पोत्सर्जन का एक संयोजन है। वाष्पीकरण में सतही जल का वायुमंडलीय जल में परिवर्तन शामिल है। वाष्पोत्सर्जन तब होता है जब पौधों में पानी उथली मिट्टी से जड़ प्रणाली तक जाता है। गर्म मौसम, कम आर्द्रता और उच्च हवा की अवधि के दौरान वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन दोनों अधिक होते हैं।
अपवाह
अपवाह से तात्पर्य है कि जब वर्षा जल भूमि की सतह पर गिरती है और आगे बढ़ती है। अपवाह कई प्रकार के कारकों से प्रभावित होता है, जैसे,
- मिट्टी का प्रकार और गहराई
- वनस्पति की उपस्थिति या अनुपस्थिति
- फुटपाथ या इमारतों जैसी अभेद्य सतहों की उपस्थिति या अनुपस्थिति
- सामान्य स्थलाकृति
- किस हद तक पानी पोखरों में चला जाता है और कभी भी प्रमुख सतही जल तक नहीं पहुंचता है।
- वर्षा की तीव्रता
- वर्षा का रूप (जैसे बर्फ या बारिश) और वर्षा से ठीक पहले मिट्टी में नमी की मात्रा ।
सरल शब्दों में किसी दिए गए क्षेत्र (वाटरशेड या बेसिन) के लिए जल बजट को, जल इनपुट, आउटपुट और भंडारण में परिवर्तन के रूप में देखा जा सकता है। जांच के क्षेत्र में इनपुट (वर्षा, भूजल या सतही जल प्रवाह, मानवजनित इनपुट जैसे अपशिष्ट) आउटपुट (वाष्प-वाष्पोत्सर्जन, जल आपूर्ति निष्कासन या अमूर्त, सतह या भूजल निकासी) के साथ-साथ किसी भी परिवर्तन के बराबर होना चाहिए।
उपलब्ध जल
तालाब-ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब जल का उपयोग मुख्यतः निस्तारी कार्यों में किया जाता है, जैसे- नहाने-धोने, साफ-सफाई आदि । प्राचीन समय में तालाब जल का उपयोग लोग भोजन पकाने और पीने के लिये भी करते थे लेकिन वर्तमान में जल के अन्य स्रोत उपलब्ध हो जाने के कारण एवं तालाब जल प्रदूषण युक्त होने से इसका उपयोग मुख्य रूप से बाह्य कार्यों में उपयोग किया जाता है।
कुंआ
कुआँ जमीन को खोदकर बनाई गई एक संरचना है जिसे जमीन के अन्दर स्थित जल को प्राप्त करने के लिये बनाया जाता है। कुओं से बाल्टी या अन्य किसी बर्तन द्वारा हाथ से पानी निकाला जाता है
झील
जल-झील जल उपलब्धता का एक प्राकृतिक स्रोत है इससे हमारा भूगर्भ जल भी संवर्द्धन होता है तथा इसकी अधिकतर मात्रा का उपयोग सिंचाई / पानी पीने / पशुओं आदि के उपयोग में लाया जाता है। झीलों और आर्द्रभूमि के संरक्षण से जल सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। मांगों और उपयोगों के बीच संघर्षों का समाधान करने हेतु बहु-शाखीय कार्यवाही और सभी शेयर धारकों की सहभागिता की जरूरत है। पर्यावरण के विभिन्न संघटकों और जल के अत्यधिक महत्व के बीच व्याप्त मुद्दों और सम्पर्कों की समझ बढ़ाने के लिए हमें जनशिक्षा और जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। हमारे विकास और समृद्धि के लिए ही जल का महत्व नहीं है बल्कि हमारे अस्तित्व के लिए भी वह जरूरी है।
नहर
नहर जो प्राकृतिक न होकर, मानवनिर्मित होती है। मुख्यतः इसका प्रयोग खेती के लिये जल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने में किया जाता है। नहरें नदियो के जल को सिंचाई हेतु विभिन्न क्षेत्रो तक पहुंचाती हैं। सिंचाई नहरों में देश की वह अमूल्य निधि बहती है जिसके ऊपर कृषि उत्पादन बड़ी में निर्भर करता है।
चेक डैम
इस जल की आपूर्ति बरसाती पानी, जलाशयों, नदियों तथा जल-संरक्षण ढांचों की बदौलत होती है, जिन्हे जल पुनर्भरण ढांचे भी कहते हैं। भारत की 50 प्रतिशत से अधिक खेतों की सिंचाई जल द्वारा होती है। पिछले 03 दशकों से जनसंख्या वृद्धि तथा सिंचाई में बढ़ोतरी होने से जल का अंधाधुंध दोहन हुआ है, जिसके पुनर्भरण के अभाव में देश के कई भागों में जल-स्तर में भारी गिरावट देखी गई है। इसका प्रमुख कारण यह है कि भारत में यद्यपि 40 लाख हैक्टेयर मीटर की बारिश हर साल होती है, परंतु जल के खजाने में केवल 5 लाख हैक्टेयर मीटर पानी ही जुड़ पाता है। इसमें से भी ज्यादातर पानी दोबारा सिंचाई के लिए ऊपर खींचा जाता है। वास्तव में, बरसात का ज्यादातर पानी (करीब 11.5 हैक्टेयर मीटर) तो बेकार बहकर सागर में जा मिलता है और शेष जल भाप बनकर उड़ जाता है।
वर्षा जल
वर्षा जल संग्रहण विभिन्न उपयोगों के लिए वर्षा के जल को रोकने और एकत्र करने की विधि है। इसका उपयोग भूमिगत जलभृतों के पुनर्भरण के लिए भी किया जाता है। यह एक कम मूल्य और पारिस्थितिकी अनुकूल विधि है जिसके द्वारा पानी की प्रत्येक बूँद संरक्षित करने के लिए वर्षा जल को गड्ढों और कुओं में एकत्र किया जाता है।
भारत में होने वाली वर्षा में अत्यधिक विभिन्नता पाई जाती है। वर्षा मुख्य रूप से मानसूनी मौसम संकेद्रित है। भारत में कुछ नदियाँ, जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु के जल ग्रहण क्षेत्र बहुत बड़े हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिन्धु नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में वर्षा अपेक्षाकृत अधिक होती है। ये नदियाँ यद्यपि देश के कुल क्षेत्र के लगभग एक-तिहाई भाग पर पाई जाती हैं, जिनमें कुल धरातलीय जल संसाधनों का 60 प्रतिशत जल पाया जाता है।
नदी
नदियां हमारे लिए सतही जल का बहुत बड़ा स्रोत हैं। भारतीय नदी जल ग्रहण क्षेत्र को मोटे तौर पर तीन वर्गों में बांटा जा सकता है- बड़े, मध्यम और लघु जल ग्रहण क्षेत्र । नदियों के द्वारा हमारा भूजल जल निरन्तर बढ़ता रहता है हम कह सकते हैं कि भूगर्भ जल का नदियां प्रमुख स्रोत हैं, इसके साथ ही नदियों पर डैम / बांध बनाकर नहरों के माध्यम से सतही जल का अधिकतम उपयोग कृषि/उद्योग / विद्युत उपार्जन एवं अन्य क्षेत्र में भी उपयोग किया जाता है।
जल का उपयोग
जल का मानव से गहरा एवं व्यापक सम्बन्ध है। मनुष्य जल को विभिन्न कार्यों में प्रयोग करता है। जैसे इमारतों, नहरों, घाटी, पुलों, जलघरों, जलकुंडों, नालियों एवं शक्तिघरों आदि के निर्माण में। जल का अन्य उपयोग खाना पकाने, सफाई करने, गर्म पदार्थ को ठंडा करने, वाष्प शक्ति, परिवहन, सिंचाई व मत्स्यपालन आदि कार्यों के लिये किया जाता है। प्राप्त आंकड़ों के आधार पर शहरी क्षेत्रों में औसत 70 लीटर और ग्रामीण क्षेत्रों में 55 लीटर प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन जल का उपयोग किया जाता है।
फसल
सिंचाई मिट्टी को कृत्रिम रूप से पानी देकर उसमे उपलब्ध जल में वृद्धि करने की क्रिया है और आमतौर पर इसका प्रयोग फसल उगाने के दौरान, शुष्क क्षेत्रों या पर्याप्त वर्षा ना होने की स्थिति में पौधों की जल आवश्यकता पूरी करने के लिए किया जाता है। खेती के लिए जल अति आवश्यक है इससे न सिर्फ खेती की लागत कम होती है साथ ही उत्पादन में भी वृद्धि होती है। भारत में विश्व के मात्र 4 प्रतिशत जल संसाधन की उपलब्धता है जबकि वैश्विक आबादी का 16 प्रतिशत हिस्सा यहीं बसता है। ऐसे में जल संरक्षण और इसके दक्ष उपयोग के महत्त्व को भलीभाँति समझा जा सकता है।
पशुधन
जैसा कि विदित है कि जल ही पृथ्वी पर समस्त जीवधारियों के लिए जल आवश्यक है चाहें व किसी भी प्रजाति का क्यों न हो। एक या एक से अधिक पशुओं के समूह को जिन्हें कृषि सम्बन्धी परिवेश में भोजन, रेशे तथा श्रम आदि की प्राप्ति के लिए पालतू बनाया जाता है। पशुधन नाम से जाना जाता है।
पेड़ पौधों एवं अन्य वनस्पति- जिस तरह से गर्मी में हर प्राणी को पानी की जरुरत होती है उसी तरह से पेड़-पौधों को भी जीवन जीने के लिये पानी की जरुरत पड़ती है।
- पीने के लिए पानी -मनुष्यों के लिए भी पानी एक महत्वपूर्ण और जीवन-दायक है मानव शरीर का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा पानी है। यह प्रक्रियाओं का एक महत्वपूर्ण घटक है और कई शारीरिक विलेयों के लिए यह एक विलायक के रूप में कार्य करता है।
- व्यावसायिक उद्योग- विभिन्न औद्योगिक इकाइयाँ, विभिन्न स्रोतों जैसे भूजल, सतही जल एवं नगरपालिका के जल पर निर्भर रहती हैं। कुल औद्यौगिक इकाईयों का 41 प्रतिशत भाग भूजल पर तथा 35 प्रतिशत भाग सतही जल, जैसे झीलों, नदियों एवं तालाबों, पर एवं 24 प्रतिशत इकाइयाँ शहरी क्षेत्र के पास होने के कारण नगरपालिका से खरीदे जल पर निर्भर करती है। भारत में केवल 70 प्रतिशत औद्योगिक इकाइयों को जल सुगमता से एवं 17 प्रतिशत को कीमत चुकाकर तथा 13 प्रतिशत इकाइयों को जल सरलता से उपलब्ध नहीं होता ।
अन्य उपयोग-जल संसाधन का उपयोग कृषि में सिंचाई के अलावा मनुष्यों, पशुओं और अन्य जीवों के पीने के लिये, शक्ति के उत्पादन गंदे पानी को बहाने, सफाई, घोंघा, मछलीपालन, मनोरंजन, औद्योगिक कार्य एवं सौर परिवहन आदि हेतु किया जाता है। ऊपरी महानदी बेसिन में वर्तमान में जल का उपयोग घरेलू, औद्योगिक कार्य, मत्स्यपालन, शक्ति के उत्पादन एवं मनोरंजन हेतु किया जा रहा है।
भूजल मापन पिजोमीटर
ग्राम पंचायत स्तर पर जल बजट निर्धारण हेतु जल की उपलब्धता पर ध्यान देने के साथ-साथ हमें भूगर्भ से जीवन चक्र हेतु आवश्यकतानुसार जो भी जल प्राप्त करना है उसका भी ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है चूंकि हमारी आवश्यकता अधिकतर भूजल पर ही निर्भर है अतः जल बजट तैयार करने में भूमि में हमें जल स्तर की क्या उपलब्धता है इसका संज्ञान लेना अत्यन्त आवश्यक है। भूजल का मापन पिजोमीटर से किया जाता है। यह उपकरण ट्यूबेल खोदकर उसमें लगाया जाता है, जिससे भूजल स्तर का पता किया जाता है वर्षा के पहले भूजल की स्थिति क्या है तथा वर्षा के बाद भूजल की स्थिति में क्या परिवर्तन होता है उसी के आधार पर हमें जल बजट का निर्माण करना है तथा भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए ग्राम स्तर पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का अनुरक्षण एवं वैज्ञानिक तकनीकी अपनाकर व उसका दैनिक उपयोग में पालन करते हुए भूजल संवर्द्धन करना अत्यन्त आवश्यक है।
स्रोत :- अटल भूजल योजना
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