वरुणा की कछार

river
river

अरी वरुणा की शांत कछार!
तपस्वी के विराग की प्यार।
सतत व्याकुलता के विश्राम, अरे ऋषियों के कानन-कुंज
जगत-नश्वरता के लघु त्राण, लता, पादप, सुमनों के पुंज।
तुम्हारी कुटियों में चुपचाप, चल रहा था उज्जवल व्यापार।
स्वर्ग की वसुधा से शुचि संधि, गूँजता था जिस से संसार।
अरी वरुणा की शांत कछार।
तपस्वी के विराग की प्यार।
तुम्हारे कुंजों में तल्लीन, दर्शनों के होते थे वाद,
देवताओं के प्रादुर्भाव, स्वर्ग के स्वप्नों के संवाद।
स्निग्ध तरु की छाया में बैठ, परिषदें करती थीं सुविचार-
भाग कितना लेगा मस्तिष्क, हृदय का कितना है अधिकार?
अरी वरुणा की शांत कछार!
तपस्वी के विराग की प्यार।
छोड़कर पार्थिव भोग-विभूति, प्रेयसी का दुर्लभ वह प्यार,
पिता का वक्ष भरा वात्सल्य, पुत्र का शैशव-सुलभ दुलार,
दुःख का करके सत्य निदान, प्राणियों का करने उद्धार।
सुनाने आरण्यक – संवाद, तथागत आया तेरे द्वार।
अरी वरुणा की शांत कछार!
तपस्वी के विराग की प्यार।
मुक्ति-जल की वह शीतल बाढ़, जगत की ज्वाला करती शांत।
तिमिर का हरने को दुःख-भार, तेज अमिताभ, अलौकिक कांत।
देव-कर से पीड़ित विक्षुब्ध, प्राणियों से कह उठा पुकार-
तोड़ सकते हो तुम भव-बंध, तुम्हें है यह पुरा अधिकार।
अरी वरुणा की शांत कछार।
तपस्वी के विराग की प्यार।
छोड़कर जीवन के अतिवाद, मध्य पथ से लो सुगति सुधार,
दुःख का समुदय, उसका नाश, तुम्हारे कर्मों का व्यापार।
विश्व-मानवता का जय-घोष, यहीं पर हुआ जलद-स्वर-मंद्र।
मिला था वह पावन आदेश, आज भी साक्षी है रवि-चंद्र।
अरी वरुणा की शांत कछार!
तपस्वी के विराग की प्यार।
तुम्हारा वह अभिनंदन दिव्य, और उस यश का विमल प्रचार,
सकल वसुधा को दे संदेश, धन्य होता है बारंबार।
आज कितनी शताब्दियों बाद, उठी ध्वंसों में वह झंकार।
प्रतिध्वनि जिसकी सुने दिगंत, विश्व वाणी का बने विहार।
अरी वरुणा की शांत कछार।
तपस्वी के विराग की प्यार।
‘लहर’ से
 

Path Alias

/articles/varaunaa-kai-kachaara

Post By: admin
×