वनस्पति और जीव

मैंग्रोव वन जिन्हें कभी केवल अनुपयोगी दलदल समझा जाता था आज उपयोगी तथा परिस्थितिकीय रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों के रूप में देखे जाते हैं। खारे पानी और दलदली क्षेत्र होने पर भी मैंग्रोव वनों में विभिन्न प्रकार के पौधों और जीव-जन्तुओं की अनेक प्रजातियां पायी जाती हैं। ये क्षेत्र अन्य प्रकार के पौधों के लिये भी भोजन तथा आवास प्रदान करते हैं। अक्सर यह माना जाता है कि मैंग्रोव वन कम आवासीय विविधता वाले होते हैं और वहां कुछ ही प्रजातियां पाई जाती हैं जबकि यथार्थ में मैंग्रोव वन विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों व जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं।

मैंग्रोव वनों में पौधों के अतिरिक्त जीवाणु, कवक तथा शैवाल भी पाये जाते हैं। मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र की गतिविधियां मुख्यतः पादप प्लवकों तथा सूक्ष्म शैवालों पर निर्भर करती है। विभिन्न प्रकार के शैवाल अकशेरुकी जीवों तथा मछलियों की अनेक प्रजातियों को भोजन प्रदान करते हैं। मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में शैवालों की विविधता अधिक होती है। शैवालों की मात्रा तथा प्रकार मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र की भौतिक तथा रासायनिक संरचना पर निर्भर करती है। इनमें मुख्य कारक खारापन, तापमान, ज्वार, लहरों का प्रभाव तथा सूर्य के प्रकाश की तीव्रता है।

भारत के पूर्वी एवं पश्चिमी तटों पर और अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में पाए जाने वाले जीवों की प्रजातियों की संख्या

जीव समूह

जीवों की प्रजातियों की संख्या

पूर्वी तट

अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह

पश्चिमी तट

कुल

झींगा एवं समुद्री झींगा

36

17

29

55

केकड़ा

87

56

27

134

कीट

367

339

10

705

मोलास्क

181

113

81

302

अन्य कशेरुकी

574

74

181

740

मत्स्य परजीवी

7

0

0

7

मीनपक्ष मछली

330

249

124

543

उभयचर

7

5

0

11

सरीसृप

77

7

3

82

पक्षी

316

53

257

419

स्तनधारी

61

8

3

68



मैंग्रोव क्षेत्रों तथा समुद्री घासों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। मैंग्रोव क्षेत्रों के आस-पास समुद्री घास की मात्रा तथा वृद्धि अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक होती है। वैज्ञानिक अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि मैंग्रोव पौधे तथा समुद्री घास अपने क्षेत्र में बहुत सारी एक जैसी गतिविधियां करते हैं। विश्व के कुछ तटीय क्षेत्रों में लवणीय दलदल के पौधों ने मैंग्रोव को प्रतिस्थापित कर दिया है। लेकिन उच्च लवणता और तीव्र अवसादी जमाव वाले क्षेत्रों में यदि अन्य वनस्पतियां जीवित रहने में असमर्थ होती है तो वहां ये मैंग्रोव द्वारा प्रतिस्थापित कर दी जाती हैं।

मैंग्रोव की वनस्पति प्रजातियां


मैंग्रोव का सम्बन्ध अलग-अलग कुलों (फैमिली) से हो सकता है जो वर्गीकरण के आधार पर एक-दूसरे से भिन्न हो सकते हैं। लेकिन इन पौधों में बहुत ही विशेषताएं एक जैसी होती हैं जिनमें मुख्य हैं श्वसन जड़ों की उपस्थिति तथ जरायुजता। प्रारम्भ में केवल राइजोफोरा प्रजाति को ही वास्तविक मैंग्रोव माना गया था। परन्तु गहन अध्ययन के पश्चात मैंग्रोव पौधों की विविधता की स्थिति अब स्पष्ट है। विश्व में किसी एक स्थान पर मैंग्रोव की सभी प्रजातियों का पाया जाना सम्भव नहीं है। मैंग्रोव की श्रेणी में आने वाली मुख्य प्रजातियां एकेन्थस, ऐक्रोस्टिकम, ऐजियालिटीज, ऐजिसिरस, ऐविसिनिया, बू्रगेरिया, कैम्पटोस्टेमोन, सेरिओरस, सायनोमेट्रा, डोलीकेन्ड्रोन, ऐक्सोकेरिया, हेरिटियेरा, कैन्डेलिया, ल्यूमिटजेरा, नाइपा, ओस्बोर्निया, पेम्फिस, राइजोफोरा, सिफिफोरा, सोनेरेशिया, जाइलोकार्पस आदि हैं। कुछ वंश जैसे लेगुनकुलेरिया, मोरा तथा टेबिबुआ बहुत कम स्थानों पर पाये जाते हैं।

भारत वर्ष में मैंग्रोव की विविधता


भारतीय तटों पर मैंग्रोव का वितरण एक समान नहीं है। पश्चिमी तट की अपेक्षा पूर्व तट पर प्रजातियों की विविधता अधिक है। सुन्दरवन में पायी जाने वाली वनस्पति में अधिकतर काष्ठीय वृक्ष हैं। इन वनों में ताड़ के पेड़ों की दो प्रजातियां नाइपा फ्रूटिकेन्स तथा फोनिक्स पेलुडोसा पायी जाती है। इस क्षेत्र में मुख्यतः तीन प्रजातियां सोनेरेशिया ऐपिटाला, सेरिऑप्स डिकेन्ट्रा तथा ऐविसेनिया मेरीना पायी जाती हैं। अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के मैंग्रोव वनों में प्रजातियों की विविधता अधिक है। यहां पायी जाने वाली मुख्य प्रजाति राइजोफोरा है। इस प्रकार के वनों को मोनोजेनेरि (एक जातीय) कहा जाता है जहां एक प्रजाति की अधिकता होती है।

मैंग्रोव से सम्बद्ध जीव-जन्तु


तटीय जीवों के संदर्भ में प्रायः जीव ज्वारीय विस्तार व ज्वारीय आयाम से संबंधित होते हैं। मैंग्रोव से संबंधित जीवों का वितरण इन क्षेत्रों की लम्बाई (मैंग्रोव से सागर की ओर) के साथ ही ऊंचाई (वितान यानी कैनोपी से लेकर पेड़ों के निचले हिस्से तक) से भी संबंधित होता है। मैंग्रोव वनों में पायी जाने वाला वन्य जीवन अद्भुत विविधता लिए होता है।

मैंग्रोव वनों में पाये जाने वाले जीवों में मुख्यतः अकशेरुकी जीव तथा कीट आते हैं। पोरीफेरा, स्नाइडेरिया, आर्थोपोडा वर्गों के जीव जड़ों के आस-पास पाये जाते हैं। मैंग्रोव क्षेत्रों में केकड़ों की लगभग 275 प्रजतियां पायी जाती हैं। केकड़े मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के ज्वारीय क्षेत्र में पाये जाते हैं। केकड़े की लगभग 35 प्रजातियां अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में तथा लगभग 52 प्रजातियां सुन्दरवन क्षेत्र में पायी जाती हैं। मैंग्रोव के समुद्र से दूर की ओर के क्षेत्रों में बडे आकार के केकड़े (कार्डिसोमा कार्निफैक्स) मध्यम आकार के (सिसर्मा बिडेन्स, सिसर्मा लॉन्जीपेस) तथा छोटे आकार की प्रजातियां ऊका लैक्टेल, ऊका डेसूमेरी तथा ऊका वोकान्स आदि शामिल हैं।

मैंग्रोव वृक्ष पर बने घोंसलें में बैठा पक्षीमैंग्रोव वृक्ष पर बने घोंसलें में बैठा पक्षीकशेरुकी प्राणियों में उभयकर प्राणियों की केवल वे प्रजातियां ही पायी जाती हैं जो मीठे पानी में रहती हैं तथा कभी-कभी मैंग्रोव क्षेत्रों में पहुंच जाती हैं। मेढ़कों की कुछ प्रजातियों जैसे राना साइनोलिस्टिक, राना टिग्रीना तथा राना हायलोडेक्टाइलस सुन्दरवन में पायी जाती हैं। सरीसृपों के अंतर्गत मगरमच्छ, सांप तथा छिपकलियों की कुछ प्रजातियां मैंग्रोव क्षेत्र में पायी जाती हैं। खारे पानी का मगरमच्छ (क्रोकोइलस पोरोसस) अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के मैंग्रोव क्षेत्र में (तथा कभी-कभी सुन्दरवन में भी) पाया जाता है।

भारत के मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र में पाए जाने वाले जीवों और वनस्पतियों की कुल संख्या (खेत्रीसन 2000ए) से

क्रमांक

समूह

प्रजातियों की संख्या

वनस्पति समूह

1

मैंग्रोव

71

2

लवणीय दलदली वनस्पतियां

12

3

समुद्रीघास वनस्पतियां

11

4

समुद्री शैवाल (प्लवक एवं समुद्री खरपतवार)

557

5

जीवाणु

69

6

फफूंदी

102

7

ऐक्टिनोमाइसीज

23

8

शैवाक

32

जीव समूह

9

झींगा एवं समुद्री झींगा

55

10

केकड़ा

134

11

कीट

705

12

मोलास्क

302

13

अन्य कशेरुकी

740

14

मत्स्य परजीवी

7

15

मीननक्ष मछली

543

16

उभयचर

11

17

सरीसृप

82

18

पक्षी

419

19

स्तनधारी

68

प्रजातियों की कुल संख्या

3943



अंडमान क्षेत्र में वेरेनस प्रजाति की छिपकली, मगरमच्छों के प्रजनन काल में अक्सर दिखाई देती है क्योंकि मगरमच्छ के अण्डे इसका प्रिये भोजन हैं। कुत्ते के समान मुंह वाला पानी का सांप (सरबेरस रिन्कोपस) घने मैंग्रोव वनों में पाया जाता है। गोनियासिफेलस तथा केलोटस वर्सीकलर प्रजाति की छिपकलियां मैंग्रोव क्षेत्रों में प्रायः पायी जाती हैं। कछुओं की कुछ प्रजातियां भी मैंग्रोव क्षेत्रों में पायी जाती हैं।

मैंग्रोव वृक्ष पर बैठा बंदर का दृश्यमैंग्रोव वृक्ष पर बैठा बंदर का दृश्यपक्षियों की बहुत सी प्रजातियों मैंग्रोव क्षेत्रों का उपयोग बसेरे तथा भोजन के लिये करती हैं। धरती तथा पानी में रहने वाली पक्षियों की कई प्रजातियां मैंग्रोव क्षेत्रों में स्थायी निवास करती हैं। प्रवासी पक्षी भी मैंग्रोव वन क्षेत्र को रास्ते के पड़ाव के रूप में प्रयोग करते हैं। सुन्दरवन में ग्रे हेरोन (एर्डियोला सिनेरा) नाइट हेरोन (निक्टीकोरैक्स निक्टीकोरैक्स), इग्रेट (इग्रेटा इन्टर मीडिया तथा इग्रेटा गर्जेटा) आदि पक्षी सामान्यतः देखे जा सकते हैं। किंग फिशर (किलकिला) की छः प्रजातियां सुन्दरवन में तथा 8 प्रजातियां अंडमान और निकोबार द्वीप में पायी जाती हैं। किंग फिशर की सामान्यतः पायी जाने वाली प्रजातियां ऐल्सिडो ऐथिस, होल्सियोन स्मिसेन्सिस, हेल्सियोन पिलियाटा, हेल्सियोन क्लोरिस, हेल्सियेन कोरोमेण्डा, सेरिल रूडिस, पिलारगोप्सिस, एमुआरोपेरा तथा पिलारगोप्सिस केपेन्सिस है। पक्षियों के अतिरिक्त कीटों, सरीसृपों तथा स्तनपायी जन्तुओं की अनेक प्रजातियां मैंग्रोव क्षेत्रों में पायी जाती हैं।

समुद्री मछलियों की अनेक प्रजातियां केवल मैंग्रोव क्षेत्रों तक ही सीमित रहती हैं। मैंग्रोव क्षेत्रों में छोटी मछलियों को जीवन के लिये अति आवश्यक भोजन तथा आश्रय प्राप्त होता है। मूंगे की चट्टानों (कोरल रीफ) में पाये जाने वाले बहुत से जीवों के जीवन चक्र में मैंग्रोव क्षेत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका है। उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में पायी जाने वाली मछलियों की संख्या पर मैंग्रोव क्षेत्रों का प्रभाव अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मैंग्रोव पौधों की जड़े मछलियों के लार्वा तथा छोटे बच्चों के लिये सुरक्षित आश्रय प्रदान करती है। यह सिद्ध हो चुका है कि मैंग्रोव क्षेत्र आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण मछलियों की बहुत सी प्रजातियों के छोटे बच्चों के लिये आश्रय प्रदान करते हैं। कई ऐसी प्रजातियां जिनके व्यस्क जीव सामान्यतः अन्य स्थानों पर पाये जाते हैं, उनके बच्चे भी मैंग्रोव क्षेत्र में बड़े होते हैं।

मैंग्रोव की जड़े लार्वा और नन्हीं मछलियों के लिए सुरक्षित आवास स्थल हैंमैंग्रोव की जड़े लार्वा और नन्हीं मछलियों के लिए सुरक्षित आवास स्थल हैंमैंग्रोव क्षेत्रों तथा मछलियों की संख्या में सीधा अनुपात देखने में आता है। मैंग्रोव क्षेत्र में पायी जाने वाली मछलियों का इस वातावरण के तापमान तथा भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों के साथ अनुकूलन अति आवश्यक है तथा कुछ प्रजातियों ने स्वयं को इस वातावरण के अनुकूल भली-भांति ढाल लिया है। विस्तृत क्षेत्र में पायी जाने वाली द्विलिंगी किलीफिश (रिवुलस मारमोरेटस) इसका अच्छा उदाहरण है।

मैंग्रोव क्षेत्रों में पाये जाने वाले बड़े जीवों में बन्दर, लोमड़ी, ऊद बिलाव, हिरन, बिल्लियां, जंगली सूअर तथा बाघ मुख्य हैं। बन्दर की प्रजाति मैकाका फेसिकुलारिस अंडमान क्षेत्र में तथा मकाका मुलाटा सुन्दरवन में पायी जाती है। मैंग्रोव क्षेत्रों के अस्तित्व के लिये हर खतरा इन सभी प्रजातियों के लिये भी उतना ही बड़ा खतरा है।

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