विधान सभा और विधान परिषद् में गर्मा-गर्म बहस

बिना पानी के निकास की योजना बनाये मात्र एक छोटा गांव बचाने के लिए सरकार ने अन्य इलाकों के सैकड़ों गांवों में बसने वाले आम नागरिकों के सामने जिंदगी के अस्तित्व पर भयंकर खतरा उत्पन्न कर दिया है।

यह सवाल बिहार विधान परिषद में भी उठा। 7 जुलाई 1982 को विधान परिषद में लाये गए एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव में कृपानाथ पाठक ने कहा, ‘‘...बेनीपट्टी अनुमंडल के बसैठ-चानपुरा के पूर्वी टोला की बाढ़ सुरक्षा के लिए सिंचाई विभाग द्वारा 32 लाख रुपये की लागत से विशालकाय तटबंध के कार्य प्रारम्भ करने से हजारों-हजार परिवारों के समाने जान-माल का खतरा उत्पन्न हो गया है क्योंकि अधवारा ग्रुप की अनेक नदियों का बहाव इस बांध के द्वारा बिल्कुल ही रोक दिया गया है। सुरसरिया और मुकरा के बेड को बिल्कुल बांधकर इसके बहाव को अवरुद्ध किया जा रहा है। बिना पानी के निकास की योजना बनाये मात्र एक छोटा गांव बचाने के लिए सरकार ने अन्य इलाकों के सैकड़ों गांवों में बसने वाले आम नागरिकों के सामने जिंदगी के अस्तित्व पर भयंकर खतरा उत्पन्न कर दिया है। ...उक्त बांध से दरभंगा-बसैठ-मधवापुर तथा मधुबनी-बसैठ-पुपरी-सीतामढ़ी लोकनिर्माण पथ जो वहाँ के नागरिकों का एक मात्र पथ है, जलमग्न होकर नष्ट हो जायेगा। खिरोई तटबंध जो एग्रोपट्टी से दरभंगा तक बाढ़ सुरक्षा का तटबंध है जो उक्त तटबंध बनने से पूर्णतया टूट जायेगा।

फलस्वरूप सैकड़ों गांवों के लोग पानी में बहकर दुनियां से चले जायेंगे और बेघरबार हो जायेंगे। ...सबसे आश्चर्य की बात है कि तटबंध निर्माण के लिए सरकार जबरन, बिना मुआवजा दिये हुए असंवैधानिक तरीके से सशस्त्र पुलिस तैनात कर किसानों की हजारों एकड़ जमीन पर तटबंध का निर्माण कर रही है। ...उक्त तटबंध योजना की तकनीकी स्वीकृति भी प्राप्त नहीं है और न उक्त योजना को गजट में ही प्रकाशित किया गया है। ...उक्त अलोक-कल्याणकारी हजारों-हजार घर-बार को बेघर कर बीच मंझधार में डुबा देने वाली योजना के विरुद्ध वहाँ के हजारों-हजार नर-नारियों (बच्चे, बूढ़े, मर्द, औरत) ने 25 मई 1982 से ही अपने जीवन मरण की लड़ाई छेड़ दी है।

भयावह जन-आक्रोश के फलस्वरूप उत्पन्न परिस्थिति को देखते हुए कुछ समय के लिए काम रोक दिया गया था। लेकिन पुनः उक्त कार्य को सशस्त्र पुलिस के द्वारा बन्दूक की नोक पर करवाया जा रहा है। प्रदर्शन, धरना, सत्याग्रह, घेराव, सर्वदलीय विरोध उसके विरुद्ध जारी है। लेकिन सरकार बच्चे, बूढ़े, बूढ़ी औरतों पर लाठी चार्ज, अश्रु गैस का प्रयोग कर उक्त विनाश लीला के उक्त कार्य को करते रहने में गर्व का अनुभव करती है। ...इस तरह के अलोकतांत्रिक, अलोक-कल्याणकारी, जन-विरोधी और अमानवीय कार्य करवाने के लिए प्रशासन के निर्णय और कठोर व्यवहार से लोगों के जन-जीवन में आक्रोश, क्षोम, भय एवं असंतोष व्याप्त हो गया है। किसी भी क्षण विस्फोट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यदि उक्त कार्य को तत्काल बंद नहीं किया गया तो जन-जीवन अस्त-व्यस्त होने के साथ-साथ कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने की संभावना है।’’

इस ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर सरकार को 20 जुलाई 1982 के दिन जवाब देना था मगर लगता है कि ब्रह्मचारी जी के प्रभाव के कारण सरकार परिषद् में किसी भी बहस से बचना चाहती थी। इस बीच दुःखहरण चौधरी ने बांध के निर्माण के विरुद्ध पटना हाईकोर्ट में सरकार पर मुकदमा दायर कर दिये हुये थे। इस मुकदमे की अपील का वास्ता देकर कि अब मामला न्यायालय के विचाराधीन है अतः इस पर विधान परिषद में बहस नहीं होनी चाहिये, सरकार बहस से बच निकलना चाहती थी। सदन में त्रिपुरारी प्रसाद सिंह का मानना था, ‘‘...जितने भी कॉल अटेन्शन आते हैं वे चोरी, डकैती, हत्या, रपट आदि किसी न किसी मामलों से सम्बंधित रहते हैं। हाइकोर्ट में केस किया गया है लेकिन हाइकोर्ट ने अभी तो सुना ही नहीं है, न ही उस केस का अभी ऐडमिशन हुआ है। हाइकोर्ट ने कोई निषेधाज्ञा नहीं जारी की है। यह अब तो सदन की प्रापर्टी है। ये ब्रह्मचारी जी के डर से भाग रहे हैं। मुख्यमंत्री के रिश्तेदार तो जेल में चले गए हैं, फिर भी ब्रह्मचारी जी की बात मानते चले जाइये।’’

सदस्यों की मांग थी कि सरकार बांध निर्माण बंद करने के लिए निषेधाज्ञा लगाये। पद्मदेव नारायण शर्मा ने स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘‘...मैं आप से निवेदन करना चाहता हूँ कि यदि आप इसे स्थगित करना चाहते हैं तो आप आज ही निषेधाज्ञा जारी कीजिये कि सिंचाई विभाग द्वारा बसैठ चानपुरा गांव के पूर्वी टोला में बाढ़ सुरक्षा के नाम पर बनाये जा रहे तटबंध पर कोई काम नहीं होगा। यदि आप ऐसा नहीं कीजियेगा तो वहाँ के किसानों की सैकड़ों एकड़ जमीन बांध में चली जायेगी और बाढ़ से जान-माल का खतरा उत्पन्न हो जायेगा।’’ जबकि सभापति का मानना था कि ‘‘पहले जांच लूंगा इसके बाद ही निषेधाज्ञा जारी की जा सकती है।’’

उधर बिहार विधान सभा में भी इन्दर सिंह नामधारी ने चानपुरा में बनने वाले रिंग बांध के विरोध में एक कार्य स्थगन प्रस्ताव रखा और कहा, ‘‘...धर्मेन्द्र (धीरेन्द्र)-ले. ब्रह्मचारी जो दिल्ली में षड्यंत्र कर रहा था वह धीरेन्द्र ब्रह्मचारी अब बिहार में षड्यंत्र कर रहा है। ...मैं डॉ. जगन्नाथ मिश्रा से कहता हूँ कि इस धर्मेन्द्र ब्रह्मचारी को तुरंत बिहार से दिल्ली षड्यंत्र करने के लिए भेज दीजिये। मधुबनी जिले के चानपुरा में रिंग बांध पर 45 लाख रुपये खर्च किये जा रहे हैं। इस रिंग बांध की वहाँ क्या जरूरत थी, क्या वह पैसा श्रीमती इन्दिरा गांधी के कोष का है या बिहार की जनता का है? इस तरह बिहार में पैसे पानी की तरह बहाये जा रहे हैं।’’

इस स्थगन प्रस्ताव पर अध्यक्ष राधानन्दन झा की टिप्पणी थी कि चानपुरा में रिंग बांध का काम पिछले तीन महीनों से चल रहा है और यह कोई आपात स्थिति नहीं है कि उस पर विचार हो। अध्यक्ष की इस व्यवस्था पर भारतीय जनता पार्टी के सदस्य सदन छोड़ कर बाहर चले गए। सरकार ने जरूर यह आश्वासन दिया कि वह 30 जुलाई 1982 को इस विषय पर वक्तव्य देगी। दुर्भाग्यवश सरकार का यह बयान बिहार विधान सभा पुस्तकालय के संग्रह में या दूसरी जगह उपलब्ध नहीं है।

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Post By: tridmin
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