सेवा में प्रेषित
1-माननीय प्रधानमंत्री जी
भारत सरकार
2-केन्द्रीय कृषि मंत्री जी
भारत सरकार
3-केन्द्रीय मंत्री जल संसाधन मंत्रालय
भारत सरकार
4-श्री शिवपाल यादव जी
सिंचाई मंत्री उ0प0 सरकार
5-श्री रेवती रमण सिंह
सांसद, इलाहाबाद
6-प्रमुख सचिव सिंचाई उ.प्र. शासन
7-आयुक्त इलाहाबाद मंडल इलाहाबाद
वाण सागर नहर परियोजना उ.प्र. में व्याप्त घोर वित्तीय अनियमितता की जांच केंद्रीय जांच अन्वेषण ब्यूरो (CBI) या सीएजी (कैग) से कराने के संबंध में।
महोदय
केंद्र सरकार के वित्तीय सहयोग से उत्तर प्रदेश में संचालित वाण सागर नहर परियोजना इंजीनियरों व ठेकेदारों की मिली भगत से भष्ट्राचार की भेट चढ़ गई है। सन् 1990-91 से प्रारंभ यह परियोजना 24 साल बाद भी पूरी नहीं की जा सकी। प्रारंभ में महज 669 करोड़ की लागत से तैयार की जाने वाली इस परियोजना में अब तक करीब 3100 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन अधिकतर कार्य अभी भी अधूरे पड़े हैं। यह परियोजना पूरी होगी भी या नहीं इस पर तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। सिंचाई के लिए पानी की उम्मीद में किसानों की एक पीढ़ी बूढ़ी हो गयी है। वर्तमान में खेती-बारी में लगे किसान वाण सागर नहर के पानी के उम्मीद में भारी कर्ज से दब गये हैं।
जन संघर्ष मोर्चा द्वारा पिछले वर्ष मई 2012 में वाण सागर नहर परियोजना में व्याप्त भ्रष्टाचार से संबंधित जानकारियाँ उपलब्ध कराने पर उ.प्र. के सिंचाई मंत्री श्री शिवपाल यादव ने तत्कालीन चीफ इंजीनियर सहित कुल 9 अभियांताओं को निलंबित कर वायदा किया था कि छह महीने बाद किसानों को पानी उपलब्ध करा दिया जायेगा, लेकिन सिंचाई मंत्री की बात झूठी साबित हुई। एक साल बाद भी परियोजना ज्यों की त्यों अटकी हुई है।
चीफ इंजीनियर सहित जिन 9 अभियंताओं को निलंबित किया गया था, उन पर 1200 करोड़ रुपये के वित्तीय अनियमितता का आरोप है। इस मामले की जांच उ.प्र. पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) कर रही है। आश्चर्य की बात यह है कि एक साल बीत जाने के बाद भी इओडब्ल्यू जांच पूरी नहीं कर सका। इससे यह साबित होता है कि वास्तव में यह घोटाला 1200 करोड़ से भी ज्यादा का है। यदि ऐसा नहीं है तो फिर जानबूझकर और सोची-समझी रणनीति के तहत जांच धीमी गति से की जा रही है, जिससे समय बीतने के साथ किसानों का ध्यान इस ओर से हट जाये। अब पता चला है कि इस पूरे जांच प्रकरण में अंदर-ही अंदर काफी लीपा-पोती की जा रही है और निलंबित अभियंताओं को बचाने की पुरजोर कोशिश हो रही है। अत: इस मामले की जांच अब सीबीआई या सीएजी से कराई जाए।
गौर करने की बात है कि सिंचाई मंत्री उ.प्र. द्वारा पिछले वर्ष मई 2012 में की गई जांच भी आधी-अधूरी थी। उनके द्वारा वित्तीय अनियमितता की जांच केवल वर्ष 2005 से 2012 के बीच खर्च हुए धन की गई थी, जबकि जरूरत इस बात की है कि परियोजना में 1990-91 में प्रथम बार धन आवंटन से लेकर मई 2013 तक व्यय किए गए संपूर्ण धन की जांच होनी चाहिये, जिससे वाण सागर नहर परियोजना में व्याप्त करीब 2000 करोड़ रुपये के घोटाले का खुलासा हो सके तथा दोषी अभियंताओं, ठेकेदारों को जेल भेजा जा सके।
जांच का विषय यह भी है कि शुरू से लेकर अभी तक वाण सागर नहर परियोजना में उन्हीं ठेकेदारों को कार्य करने का टेंडर दिया गया जो या तो माफ़िया थे या तत्कालीन प्रदेश सरकारों के खास लोग या बाहुबली मंत्री। ज्यादातर ठेकेदार सत्ता से जुड़े वे लोग हैं, जो गुंडे-माफिया हैं और जिन पर दर्जनों मुकदमे चल रहे हैं। वाण सागर नहर परियोजना में बैठे चीफ इंजीनियर सहित ज्यादातर अभियंताओं के इन ठेकेदारों से मधुर संबंध हैं। अभियंताओं व गुंडे, माफिया ठेकेदारों के गठजोड़ की वजह से यह परियोजना न केवल आज भी जटिल बनी हुई बल्कि इस कारण सरकार को सैकड़ों करोड़ रुपये का घाटा भी उठाना पड़ा, क्योंकि समय पर कार्य न पूरा होने पर इन ठेकेदारों का अनुबंध अभियन्ताओं ने बढ़ाया। किसी भी ठेकेदार का अनुबंध रिसाइन नहीं किया गया बल्कि ठेकेदारों के कहने पर अभियंताओं ने जानबूझकर सरकार को चूना लगाते रहे। सीबीआई द्वारा जांच करने पर सारी हकीक़त सामने आ जायेगी। कई ठेकेदारों ने तो निर्धारित समय सीमा के उपरांत कई वर्षों तक कार्य नहीं कराया और वह कार्य आधा-अधूरा पड़ा रहा लेकिन अभियंताओं को उस पर कार्यवाही करने की हिम्मत नहीं हुई।
नहर बनाकर वाण सागर डैम से मेजा व जिरगो डैम में पानी भरने के लिये जो कार्य पिछले 24 सालों से हो रहा है, उसमें से हजारों करोड़ रुपये कहां चले गये उसका कोई हिसाब-किताब नहीं है। इतनी बड़ी रकम का यदि कहीं कोई लेखा-जोखा है भी तो वह महज कागज़ों पर। परियोजना के लिये कभी भी धन की कमी नहीं होने पाई बावजूद इसके अभी तक ज्यादातर कार्य क्यों अधूरे हैं, यह उच्च स्तरीय जांच का विषय है। किसानों को अब इस बात का डर है कि कहीं यह पूरी परियोजना खंडहर में न तब्दील हो जाए।
सिंचाई मंत्री द्वारा कराई गई जांच के बाद मई 2012 से मई 2013 के बीच इस परियोजना में करीब 1000 करोड़ रुपये खर्च हो गये हैं, बावजूद इसके अभी भी वाणसागर डैम से पानी इलाहाबाद व मिर्जापुर पहुंचने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। हां अभी कुछ दिनों से जब किसानों का दबाव बढ़ा तो वाण सागर नहर परियोजना के अभियंता ठोस व मानक के हिसाब से कार्य करने की बजाय खानापूर्ति कर आधा-अधूरा कार्य कराने में जुट गये हैं और दावा कर रहे हैं कि जल्द ही इस परियोजना से किसानों को पानी दे दिया जायेगा। जबकि हकीक़त कुछ और ही है, जिसे लगातार छुपाया जा रहा है। किसानों को यह नहीं बताया जा रहा है कि आखिर वाण सागर डैम से (शहडोल मध्य प्रदेश) कुल कितना पानी ले आने का करार म.प्र. व उत्तर प्रदेश सरकार के बीच हुआ है। सच्चाई यह है कि पूर्व में निर्धारित क्षमता से काफी कम मात्रा में पानी ले आकर परियोजना का कार्य पूरा कर देने की तैयारी हो रही है, जिससे लाखों किसानों में काफी गुस्सा है।
मध्य प्रदेश में सीधी जिले के मोहनिया घाटी के पास एनएच 75 पर पहले एक पीआरबी (उपर पुल नीचे नहर) बनाने की योजना थी, लेकिन वाण सागर नहर परियोजना के चीफ इंजीनियर द्वारा 190 लाख रुपये देने के बाद भी जब नेशनल हाइवे ने इस स्थान पर पीआरबी बनाने का कार्य नहीं किया। अब वाण सागर नहर विभाग यहां पर एक पुलिया बना कर पानी ले आने का खानापूर्ति कर रही है। जबकि स्वयं इस विभाग के ही कुछ अभियंता यह दावा कर रहे हैं कि इस पुलिया से निर्धारित क्षमता से आधा पानी भी क्रास नहीं करेगा। अतः इस विषय में उच्च स्तरीय जांच की जरूरत है। यदि यहां पर छोटी पुलिया बनाई जाएगी तो पानी का डिस्चार्ज कम होगा और परियोजना का उद्देश्य कभी भी पूरा नहीं किया जा सकता।
उत्तर प्रदेश में वाण सागर परियोजना काफी भारी-भरकम एवं महत्वाकांक्षी परियोजना है। इस परियोजना के पूरा होने के बाद करीब 1,50,000 एकड़ भूमि सिंचित होगी और 50 लाख से अधिक किसान परिवारों को सीधे लाभ मिलेगा। अतः किसानों द्वारा आपका ध्यान निम्न बिंदुओं पर आकृष्ट कराते हुए करीब 3100 करोड़ रुपये की वाण सागर नहर परियोजना की जांच सीबीआई या सीएजी से कराने की मांग की जा रही है। यदि इन दोनों एजेंसियों के माध्यम से इस परियोजना की जांच करा ली जाय तो करीब 2000 करोड़ का घोटाला उजागर होगा। किसान परियोजना के घटिया कार्यों को देखकर ऐसा दावा कर रहे हैं।
उपरोक्त सभी बिंदुओं पर यदि 25 जून 2013 तक अमल कर पूरी परियोजना में व्याप्त भ्रष्टाचार की जांच सीबीआई या सीएजी से कराने की सिफारिश न की गयी तो जन संघर्ष मोर्चा के बैनर तले हजारों किसान-मज़दूर एकजुट होकर जिला मुख्यालय, वाण सागर नहर परियोजना कार्यालय इलाहाबाद व सांसद-विधायकों के घरों के सामने धरना-प्रदर्शन व आमरण अनशन करने को बाध्य होंगे। यदि इतने पर भी सुनवाई न हुई तो किसान करछना में रेल रोको अभियान चलाने का मजबूर हो जाएंगे, जिसकी पूरी ज़िम्मेदारी केंद्र व राज्य सरकारों की होगी।
जन संघर्ष मोर्चा
पत्राचार का पता-
ग्राम व पोस्ट- सुजनी समोधा
वाया जारी बाजार इलाहाबाद उ.प्र.
पिन कोड- 212106
मो0 नं0-09454125412
1-माननीय प्रधानमंत्री जी
भारत सरकार
2-केन्द्रीय कृषि मंत्री जी
भारत सरकार
3-केन्द्रीय मंत्री जल संसाधन मंत्रालय
भारत सरकार
4-श्री शिवपाल यादव जी
सिंचाई मंत्री उ0प0 सरकार
5-श्री रेवती रमण सिंह
सांसद, इलाहाबाद
6-प्रमुख सचिव सिंचाई उ.प्र. शासन
7-आयुक्त इलाहाबाद मंडल इलाहाबाद
वाण सागर नहर परियोजना उ.प्र. में व्याप्त घोर वित्तीय अनियमितता की जांच केंद्रीय जांच अन्वेषण ब्यूरो (CBI) या सीएजी (कैग) से कराने के संबंध में।
महोदय
केंद्र सरकार के वित्तीय सहयोग से उत्तर प्रदेश में संचालित वाण सागर नहर परियोजना इंजीनियरों व ठेकेदारों की मिली भगत से भष्ट्राचार की भेट चढ़ गई है। सन् 1990-91 से प्रारंभ यह परियोजना 24 साल बाद भी पूरी नहीं की जा सकी। प्रारंभ में महज 669 करोड़ की लागत से तैयार की जाने वाली इस परियोजना में अब तक करीब 3100 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन अधिकतर कार्य अभी भी अधूरे पड़े हैं। यह परियोजना पूरी होगी भी या नहीं इस पर तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। सिंचाई के लिए पानी की उम्मीद में किसानों की एक पीढ़ी बूढ़ी हो गयी है। वर्तमान में खेती-बारी में लगे किसान वाण सागर नहर के पानी के उम्मीद में भारी कर्ज से दब गये हैं।
जन संघर्ष मोर्चा द्वारा पिछले वर्ष मई 2012 में वाण सागर नहर परियोजना में व्याप्त भ्रष्टाचार से संबंधित जानकारियाँ उपलब्ध कराने पर उ.प्र. के सिंचाई मंत्री श्री शिवपाल यादव ने तत्कालीन चीफ इंजीनियर सहित कुल 9 अभियांताओं को निलंबित कर वायदा किया था कि छह महीने बाद किसानों को पानी उपलब्ध करा दिया जायेगा, लेकिन सिंचाई मंत्री की बात झूठी साबित हुई। एक साल बाद भी परियोजना ज्यों की त्यों अटकी हुई है।
चीफ इंजीनियर सहित जिन 9 अभियंताओं को निलंबित किया गया था, उन पर 1200 करोड़ रुपये के वित्तीय अनियमितता का आरोप है। इस मामले की जांच उ.प्र. पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) कर रही है। आश्चर्य की बात यह है कि एक साल बीत जाने के बाद भी इओडब्ल्यू जांच पूरी नहीं कर सका। इससे यह साबित होता है कि वास्तव में यह घोटाला 1200 करोड़ से भी ज्यादा का है। यदि ऐसा नहीं है तो फिर जानबूझकर और सोची-समझी रणनीति के तहत जांच धीमी गति से की जा रही है, जिससे समय बीतने के साथ किसानों का ध्यान इस ओर से हट जाये। अब पता चला है कि इस पूरे जांच प्रकरण में अंदर-ही अंदर काफी लीपा-पोती की जा रही है और निलंबित अभियंताओं को बचाने की पुरजोर कोशिश हो रही है। अत: इस मामले की जांच अब सीबीआई या सीएजी से कराई जाए।
गौर करने की बात है कि सिंचाई मंत्री उ.प्र. द्वारा पिछले वर्ष मई 2012 में की गई जांच भी आधी-अधूरी थी। उनके द्वारा वित्तीय अनियमितता की जांच केवल वर्ष 2005 से 2012 के बीच खर्च हुए धन की गई थी, जबकि जरूरत इस बात की है कि परियोजना में 1990-91 में प्रथम बार धन आवंटन से लेकर मई 2013 तक व्यय किए गए संपूर्ण धन की जांच होनी चाहिये, जिससे वाण सागर नहर परियोजना में व्याप्त करीब 2000 करोड़ रुपये के घोटाले का खुलासा हो सके तथा दोषी अभियंताओं, ठेकेदारों को जेल भेजा जा सके।
जांच का विषय यह भी है कि शुरू से लेकर अभी तक वाण सागर नहर परियोजना में उन्हीं ठेकेदारों को कार्य करने का टेंडर दिया गया जो या तो माफ़िया थे या तत्कालीन प्रदेश सरकारों के खास लोग या बाहुबली मंत्री। ज्यादातर ठेकेदार सत्ता से जुड़े वे लोग हैं, जो गुंडे-माफिया हैं और जिन पर दर्जनों मुकदमे चल रहे हैं। वाण सागर नहर परियोजना में बैठे चीफ इंजीनियर सहित ज्यादातर अभियंताओं के इन ठेकेदारों से मधुर संबंध हैं। अभियंताओं व गुंडे, माफिया ठेकेदारों के गठजोड़ की वजह से यह परियोजना न केवल आज भी जटिल बनी हुई बल्कि इस कारण सरकार को सैकड़ों करोड़ रुपये का घाटा भी उठाना पड़ा, क्योंकि समय पर कार्य न पूरा होने पर इन ठेकेदारों का अनुबंध अभियन्ताओं ने बढ़ाया। किसी भी ठेकेदार का अनुबंध रिसाइन नहीं किया गया बल्कि ठेकेदारों के कहने पर अभियंताओं ने जानबूझकर सरकार को चूना लगाते रहे। सीबीआई द्वारा जांच करने पर सारी हकीक़त सामने आ जायेगी। कई ठेकेदारों ने तो निर्धारित समय सीमा के उपरांत कई वर्षों तक कार्य नहीं कराया और वह कार्य आधा-अधूरा पड़ा रहा लेकिन अभियंताओं को उस पर कार्यवाही करने की हिम्मत नहीं हुई।
नहर बनाकर वाण सागर डैम से मेजा व जिरगो डैम में पानी भरने के लिये जो कार्य पिछले 24 सालों से हो रहा है, उसमें से हजारों करोड़ रुपये कहां चले गये उसका कोई हिसाब-किताब नहीं है। इतनी बड़ी रकम का यदि कहीं कोई लेखा-जोखा है भी तो वह महज कागज़ों पर। परियोजना के लिये कभी भी धन की कमी नहीं होने पाई बावजूद इसके अभी तक ज्यादातर कार्य क्यों अधूरे हैं, यह उच्च स्तरीय जांच का विषय है। किसानों को अब इस बात का डर है कि कहीं यह पूरी परियोजना खंडहर में न तब्दील हो जाए।
सिंचाई मंत्री द्वारा कराई गई जांच के बाद मई 2012 से मई 2013 के बीच इस परियोजना में करीब 1000 करोड़ रुपये खर्च हो गये हैं, बावजूद इसके अभी भी वाणसागर डैम से पानी इलाहाबाद व मिर्जापुर पहुंचने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। हां अभी कुछ दिनों से जब किसानों का दबाव बढ़ा तो वाण सागर नहर परियोजना के अभियंता ठोस व मानक के हिसाब से कार्य करने की बजाय खानापूर्ति कर आधा-अधूरा कार्य कराने में जुट गये हैं और दावा कर रहे हैं कि जल्द ही इस परियोजना से किसानों को पानी दे दिया जायेगा। जबकि हकीक़त कुछ और ही है, जिसे लगातार छुपाया जा रहा है। किसानों को यह नहीं बताया जा रहा है कि आखिर वाण सागर डैम से (शहडोल मध्य प्रदेश) कुल कितना पानी ले आने का करार म.प्र. व उत्तर प्रदेश सरकार के बीच हुआ है। सच्चाई यह है कि पूर्व में निर्धारित क्षमता से काफी कम मात्रा में पानी ले आकर परियोजना का कार्य पूरा कर देने की तैयारी हो रही है, जिससे लाखों किसानों में काफी गुस्सा है।
मध्य प्रदेश में सीधी जिले के मोहनिया घाटी के पास एनएच 75 पर पहले एक पीआरबी (उपर पुल नीचे नहर) बनाने की योजना थी, लेकिन वाण सागर नहर परियोजना के चीफ इंजीनियर द्वारा 190 लाख रुपये देने के बाद भी जब नेशनल हाइवे ने इस स्थान पर पीआरबी बनाने का कार्य नहीं किया। अब वाण सागर नहर विभाग यहां पर एक पुलिया बना कर पानी ले आने का खानापूर्ति कर रही है। जबकि स्वयं इस विभाग के ही कुछ अभियंता यह दावा कर रहे हैं कि इस पुलिया से निर्धारित क्षमता से आधा पानी भी क्रास नहीं करेगा। अतः इस विषय में उच्च स्तरीय जांच की जरूरत है। यदि यहां पर छोटी पुलिया बनाई जाएगी तो पानी का डिस्चार्ज कम होगा और परियोजना का उद्देश्य कभी भी पूरा नहीं किया जा सकता।
उत्तर प्रदेश में वाण सागर परियोजना काफी भारी-भरकम एवं महत्वाकांक्षी परियोजना है। इस परियोजना के पूरा होने के बाद करीब 1,50,000 एकड़ भूमि सिंचित होगी और 50 लाख से अधिक किसान परिवारों को सीधे लाभ मिलेगा। अतः किसानों द्वारा आपका ध्यान निम्न बिंदुओं पर आकृष्ट कराते हुए करीब 3100 करोड़ रुपये की वाण सागर नहर परियोजना की जांच सीबीआई या सीएजी से कराने की मांग की जा रही है। यदि इन दोनों एजेंसियों के माध्यम से इस परियोजना की जांच करा ली जाय तो करीब 2000 करोड़ का घोटाला उजागर होगा। किसान परियोजना के घटिया कार्यों को देखकर ऐसा दावा कर रहे हैं।
उपरोक्त सभी बिंदुओं पर यदि 25 जून 2013 तक अमल कर पूरी परियोजना में व्याप्त भ्रष्टाचार की जांच सीबीआई या सीएजी से कराने की सिफारिश न की गयी तो जन संघर्ष मोर्चा के बैनर तले हजारों किसान-मज़दूर एकजुट होकर जिला मुख्यालय, वाण सागर नहर परियोजना कार्यालय इलाहाबाद व सांसद-विधायकों के घरों के सामने धरना-प्रदर्शन व आमरण अनशन करने को बाध्य होंगे। यदि इतने पर भी सुनवाई न हुई तो किसान करछना में रेल रोको अभियान चलाने का मजबूर हो जाएंगे, जिसकी पूरी ज़िम्मेदारी केंद्र व राज्य सरकारों की होगी।
प्रार्थी
जन संघर्ष मोर्चा
पत्राचार का पता-
ग्राम व पोस्ट- सुजनी समोधा
वाया जारी बाजार इलाहाबाद उ.प्र.
पिन कोड- 212106
मो0 नं0-09454125412
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