जल मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकता है। प्राचीन काल से ही समस्त मानव समस्याओं का विकास नदियों के तटों पर ही हुआ था, जहां जल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था। विकास के साथ ही मनुष्य ने कृषि की तकनीक भी सीखी तथा यह भी जाना कि फसलों की पैदावार के लिए जल अति आवश्यक है। जल के द्वारा ही पौधे जल क्षेत्र से अपना भोजन एवं पौष्टिक तत्व लवण द्रव के रूप में प्राप्त करते हैं। परन्तु जब यह जल एक सीमा से अधिक हो जाता है जिससे पौधों के जड़ क्षेत्र में स्थित मृदा छिद्र जल से संतृप्त हो जाते हैं, जिसके कारण हवा का सामान्य प्रवाह बाधित होता है एवं क्षेत्र में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। परिणामस्वरूप पौधों का विकास रुक जाता है। ऐसे क्षेत्र को जल जमाव वाला क्षेत्र कहते हैं।
भारत में उत्तरी बिहार का जल जमाव क्षेत्र प्रदेश के तकनीकी विशेषज्ञों एवं प्राधिकारियों के लिए सतत चिन्ता का विषय रहा है। बिहार के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 137.5 लाख हेक्टेयर एवं कुल जनसंख्या 86338853 है। यह जनसंख्या की दृष्टि से भारत का दूसरा एवं क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सातवां बड़ा प्रदेश है। उत्तरी बिहार का कुल भौगोलिक क्षेत्र 55568 वर्ग किमी. है। उत्तरी बिहार से होकर घाघरा, गण्डक, बागमती, कमला, कोसी एवं महानंदा आदि नदियां बहती हैं तथा अन्त में ये गंगा नदी में मिल जाती हैं। सभी बड़ी नदियां हिमालय क्षेत्र से निकलती है। भूगोलीय दृष्टि से हिमालय पर्वत तरुण पर्वत कहलाता है जिसमें ये नदियां खड़े एवं अपरदनीय ढाल से निकलने के कारण अपने साथ बहुत बड़ी मात्रा में तलछट बहाकर लाती हैं। जब ये नदियां गंगा मैदान के जलोढ़ क्षेत्र में प्रवेश करती हैं तो ढाल की कमी के कारण इन नदियों की अवसाद वहन क्षमता काफी कम हो जाती है। परिणामस्वरूप ये नदियां अपने जल के साथ बहाकर लाए हुए अवसाद को नदी के तल में निक्षेप कर देती है। जिससे क्षेत्र में जल जमाव की समस्या उत्पन्न हो जाती है। उत्तर बिहार प्रत्येक वर्षा बाढ़ से ग्रसित रहता है।
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